भारत का मौसम विज्ञान...घाघ-भड्डरी की कहावतों से लेकर 'भारत फोरकास्ट सिस्टम' तक का अनूठा सफर

India's Meteorology: भारत का मौसम विज्ञान का सफर बेहद रोचक और प्रेरणादायक है यहाँ घाघ और भड्डरी की लोक कथाओं से लेकर 'भारत फोरकास्ट सिस्टम' (BFS) के लॉन्च तक को आइये विस्तार से समझते हैं।

Jyotsna Singh
Published on: 27 May 2025 4:29 PM IST
Indias Meteorology
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India's Meteorology (Image Credit-Social Media)

India's Meteorology: मौसम की लुका छिपी के खेल में आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादलों को देख कर जहां एक किसान का चेहरा खिल उठता है, तो वहीं दूसरी ओर एक मछुआरा आने वाले तूफान की आहट से सहम जाता है। बारिश का मिजाज एक है लेकिन इसके अंदाज अनगिनत हैं। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में वैसे भी मौसम, सदियों से हमारे जीवन का अभिन्न अंग रहा है। जो सीधे हमारी कृषि, अर्थव्यवस्था और यहां तक कि हमारी भावनाओं को भी प्रभावित करता आया है। हमारे देश में, जहां मॉनसून हमारी जीवनरेखा है। वहीं मौसम की पूर्व सटीक जानकारी बेहद अनमोल है। इसी कड़ी में हमने न केवल प्राचीन काल से प्रकृति के इन संकेतों को समझा है, बल्कि आधुनिक विज्ञान ने अब हमें ऐसी क्षमताएं दी हैं, जिससे हम आने वाले समय की तस्वीर लगभग साफ-साफ देख सकते हैं। घाघ और भड्डरी की लोक कथाओं से लेकर 'भारत फोरकास्ट सिस्टम' (BFS) के लॉन्च तक, भारत का मौसम विज्ञान का सफर अत्यंत रोचक और प्रेरणादायक रहा है, जो सदियों के लोक ज्ञान और आधुनिक तकनीकी क्रांति का एक अद्भुत संगम है। आइए जानते हैं इस विषय पर विस्तार से -

मौसम विज्ञान का प्राचीन इतिहास और घाघ और भड्डरी की अनमोल विरासत (Ancient history of meteorology and the precious heritage of Ghagh and Bhaddari)

भारत में मौसम के पूर्वानुमान का इतिहास वेदों जितना ही पुराना है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने नक्षत्रों, ग्रहों की चाल और पशु-पक्षियों के व्यवहार के आधार पर मौसम का अनुमान लगाना शुरू कर दिया था। लेकिन, यदि हम लोक ज्ञान और कृषि पर आधारित मौसम विज्ञान की बात करें, तो घाघ और भड्डरी का नाम सबसे ऊपर आता है। ये दोनों ही चरित्र, जो संभवतः 12वीं से 16वीं शताब्दी के बीच के रहे होंगे। ये मौसम पर आधारित अपनी सटीक लोक कथाओं और कहावतों में आज भी जीवित हैं।

घाघ और भड्डरी कौन थे? (Who were Ghagh and Bhaddari)

माना जाता है कि घाघ और भड्डरी मध्यकालीन भारत के कृषि विशेषज्ञ और मौसम विज्ञानी थे। जिनके द्वारा कहे गए दोहे और कहावतें पीढ़ियों से मौखिक परंपरा के माध्यम से चलती आ रही हैं। वे केवल मौसम के बारे में नहीं, बल्कि कृषि पद्धतियों, सामाजिक व्यवहार और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी अपनी गहरी समझ रखते थे। घाघ को अक्सर भड्डरी का पति या ससुर माना जाता है, हालांकि उनकी वास्तविक पहचान और रिश्तेदारी को लेकर स्पष्ट ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं। ये कहावतें ग्रामीण भारत में आज भी प्रासंगिक हैं और कई किसान आज भी उनके बताए गए संकेतों का पालन करते हैं।

घाघ और भड्डरी की कहावतें: मौसम के पूर्वानुमान का लोक-आधारित विज्ञान

उनकी कहावतें मौसम के कई संकेतों को उजागर करती हैं, जो आज भी विज्ञान की कसौटी पर खरी उतरती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कहावते इस प्रकार हैं -

घाघ कहै सुनो रे भइया, जो बोवै सोई खइया।

अर्थ: घाघ कहते हैं – जो जैसा करेगा या जैसे बीज बोएगा, वैसा ही पाएगा यानी वैसी ही फसल की पैदावार होगी ।

2. घाघ कहै यह बात ठिकाना, भादों सूखा रहे सुहाना।

अर्थ: अगर भाद्रपद का महीना सूखा रहे तो स्वास्थ्य और खेती दोनों के लिए अच्छा होता है।

3. घाघ कहै दिन देखि के, बोवौ बीज विचार।

अर्थ: बीज बोने से पहले मौसम, दिन और भूमि की स्थिति को ध्यान से देखो।

4. घाघ कहै सुन किसान, भदौ के बाद मत कर धान।

अर्थ: भाद्रपद के बाद धान बोना लाभदायक नहीं होता।

5. घाघ कहै भइया सुन ले, जेठ में बैल न मोड़।

अर्थ: जेठ के महीने में खेतों में बैल न घुमाओ (क्योंकि भूमि सूखी होती है)।

भड्डरी की कहावतें (गृहस्थ, वर्षा और स्त्रीज्ञान से संबंधित)

1. भड्डरी कहे सुनो नारी, बरखा बिना खेती हारी।

अर्थ: भड्डरी कहती हैं कि बिना वर्षा के खेती नहीं हो सकती, इसलिए मौसम को समझो।

2. भड्डरी कहे, बुध को जले दीपक, तो बरसे पानी।

अर्थ: यदि बुधवार की रात दीपक तेज़ जले, तो वर्षा की संभावना होती है।

3. भड्डरी कहे सुबुधि से, जौं बोवो कार्तिक मास।

अर्थ: यदि जौं (जौ) को कार्तिक में बोया जाए तो अच्छी उपज मिलती है।

4. भड्डरी कहे, घर में मेल, तो खेत में फसल झमेल।

अर्थ: अगर घर में कलह है तो खेत में भी काम बिगड़ता है। यानी समरसता ज़रूरी है।

5. भड्डरी कहे, चंद्र जब बले, तो चार दिन पानी जले।

अर्थ: यदि पूर्णिमा की रात चंद्रमा साफ दिखाई दे तो चार दिन के भीतर बारिश निश्चित होती है।

इसी तरह की कई अन्य कहावतें मौसम और कृषि को लेकर बेहद लोकप्रिय हैं। जिनका वैज्ञानिक आधार भी मौजूद है। वे इस प्रकार हैं -

काली बादर, लाल झाई, बरसा होय तो बरसै न जाई।

अर्थ: यदि आसमान में गहरे काले बादल हों और उनमें लालिमा या नारंगी रंग की आभा हो, तो इसका अर्थ है कि भारी वर्षा की संभावना नहीं है।

वैज्ञानिक आधार- सूर्योदय या सूर्यास्त के समय जब बादल लालिमा या नारंगी रंग के दिखते हैं, तो इसका मतलब होता है कि वायुमंडल में नमी कम है और प्रकाश का प्रकीर्णन अधिक है। यह साफ मौसम या हल्की बारिश का संकेत हो सकता है, लेकिन भारी बारिश का नहीं।

सावन सुक्खा, भादौ सूखा, घर में न हो पूत न मूका।

अर्थ: यदि सावन (जुलाई-अगस्त) और भादो (अगस्त-सितंबर) के महीनों में सूखा पड़े, तो परिवार में गरीबी और अकाल की स्थिति आ सकती है।

वैज्ञानिक आधार- ये दोनों महीने भारत में खरीफ फसलों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि इनमें मॉनसून की अधिकतम वर्षा होती है। इन महीनों में बारिश की कमी सीधी फसल बर्बादी और अकाल का कारण बनती है।

जब गरजे दक्खिन की घटा, तब बरसे ना दक्खिन का पानी।

अर्थ: जब दक्षिण दिशा से बादल गरजते हैं, तो अक्सर भारी वर्षा नहीं होती है।

वैज्ञानिक आधार- भारत में मॉनसून की हवाएं मुख्यतः दक्षिण-पश्चिम दिशा से आती हैं। दक्षिण से आने वाले बादल अक्सर स्थानीय गरज-चमक वाले बादल होते हैं जो हल्की बारिश दे सकते हैं, लेकिन व्यापक मॉनसून वर्षा नहीं।

पहिले पौष में पानी परै, तो किसान के खेत में मोती भरै।

अर्थ: यदि पौष (दिसंबर-जनवरी) के महीने की शुरुआत में बारिश हो, तो रबी फसलें (जैसे गेहूं, चना) अच्छी होती हैं।

वैज्ञानिक आधार- रबी की फसलों के लिए शीतकालीन वर्षा अत्यंत लाभकारी होती है, क्योंकि यह भूमि को नमी प्रदान करती है और सिंचाई की आवश्यकता को कम करती है।

दिन में तारे, रात में तारे, बादल छाए, मूसलधारे।

अर्थ: यदि दिन में तारे दिखें (जो कि बहुत दुर्लभ घटना है) और रात में भी तारे साफ दिखें, तो यह भारी बारिश का संकेत है।

वैज्ञानिक आधार- यह एक रूपक कहावत है जो वायुमंडलीय परिस्थितियों में तीव्र बदलाव को इंगित करती है। हालांकि, दिन में तारों का दिखना सामान्य नहीं है, यह अत्यधिक वायुमंडलीय अशांति या धूल के कणों की कमी को दर्शाता है, जो कभी-कभी तीव्र मौसम परिवर्तन से जुड़ा हो सकता है।

पुरवा चले, झूम-झूम, तब बरसे धूंम-धूम।

अर्थ: जब पूर्वी हवाएं तेजी से चलती हैं, तो भारी वर्षा होती है।

वैज्ञानिक आधार- भारत में मॉनसून के दौरान पूर्वी हवाएं (विशेषकर बंगाल की खाड़ी से) नमी से भरी होती हैं और अक्सर भारी वर्षा लाती हैं।

सावन में कुत्ता चाटे घास, तब बरखा होवे खास।

अर्थ: यदि सावन के महीने में कुत्ते घास चाटते हुए दिखें, तो यह अच्छी बारिश का संकेत है।

वैज्ञानिक आधार- पशु-पक्षियों का व्यवहार मौसम परिवर्तन से पहले बदलता है। कुत्तों का घास चाटना अक्सर पाचन संबंधी समस्याओं से जुड़ा होता है। जो मौसम परिवर्तन से प्रभावित हो सकता है। यह एक लोक-निरीक्षण है, जिसका सीधा वैज्ञानिक प्रमाण कठिन है, लेकिन यह दर्शाता है कि प्राचीन लोग प्रकृति के हर संकेत पर ध्यान देते थे।

इन कहावतों में सिर्फ मौसम का पूर्वानुमान नहीं, बल्कि कृषि के लिए दिशानिर्देश भी शामिल हैं। जैसे फसल बोने का समय, खाद का प्रयोग और पानी का प्रबंधन। ये कहावतें बताती हैं कि कैसे प्राचीन समाज ने प्रकृति के साथ एक गहरा संबंध स्थापित कर लिया था और उसके संकेतों को पढ़कर अपने जीवन को ढालना सीख लिया था।

आधुनिक मौसम विज्ञान की ओर एक लंबी छलांग (A giant Leap towards Modern Meteorology)

समय के साथ, लोक ज्ञान के साथ-साथ वैज्ञानिक उपकरणों और पद्धतियों का विकास हुआ। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान भारत में व्यवस्थित मौसम विज्ञान की शुरुआत हुई। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की स्थापना 1875 में हुई थी, जिसका उद्देश्य देश भर में मौसम संबंधी डेटा एकत्र करना और पूर्वानुमान जारी करना था।

आजादी के बाद, भारत ने मौसम विज्ञान के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए। उपग्रह प्रौद्योगिकी (ISRO के INSAT और IRS सैटेलाइट्स), रडार सिस्टम और सुपरकंप्यूटिंग क्षमताओं का विकास किया गया, जिसने मौसम के पूर्वानुमान को एक नई दिशा दी।

भारत फोरकास्ट सिस्टम' (BFS) का उदय: एक नया मील का पत्थर (Emergence of 'Bharat Forecast System' (BFS): A New Milestone)

इसी कड़ी में 26 मई, 2025 को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने पुणे में 'भारत फोरकास्ट सिस्टम' (BFS) नाम की एक नई हाई-रेजोल्यूशन मौसम प्रणाली लॉन्च करके एक नया अध्याय लिखा है। यह प्रणाली भारत के मौसम विज्ञान के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और तकनीकी उत्कृष्टता का प्रतीक है।

BFS की खासियतें और यह कैसे काम करती है (Features of BFS and How it Works)

स्वदेशी विकास के तहत BFS पूरी तरह से भारत में बनी है। इसे भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पुणे ने विकसित किया है। यह भारत की वैज्ञानिक क्षमता का एक प्रमाण है।

उच्च-रेजोल्यूशन पूर्वानुमान

यह प्रणाली 6 किलोमीटर की हाई-रेजोल्यूशन पर मौसम का पूर्वानुमान देती है। पहले यह 12 किलोमीटर हुआ करता था, जिसका अर्थ है कि BFS अब और भी अधिक बारीकी से और स्थानीय स्तर पर मौसम की जानकारी दे सकती है। यह छोटे पैमाने की मौसम घटनाओं, जैसे स्थानीय गरज-चमक या अचानक भारी बारिश, का बेहतर पूर्वानुमान लगाने में मदद करेगा।

Power of 'Arka' Supercomputer

‘अर्का' सुपरकंप्यूटर की शक्ति

BFS को IITM के अत्याधुनिक 'अर्का' सुपरकंप्यूटर द्वारा चलाया जाएगा। 'अर्का' की ताकत 11.77 पेटाफ्लॉप है और इसमें 33 पेटाबाइट की स्टोरेज क्षमता है। यह पुरानी तकनीकों की तुलना में कहीं अधिक तेज और सटीक गणनाएं करने में सक्षम है। जिससे जटिल मौसम मॉडल को चलाने और विशाल डेटासेट को संसाधित करने में मदद मिलती है।

डॉपलर वेदर रडार का एकीकरण (Integration of Doppler Weather Radar)

यह प्रणाली 40 डॉपलर वेदर रडार के डेटा को जोड़ती है, जिसे आने वाले समय में 100 तक बढ़ाया जा सकता है। डॉपलर रडार हवा की गति और बारिश की तीव्रता का पता लगाने में महत्वपूर्ण होते हैं। जिससे वास्तविक समय में मौसम की निगरानी और अल्पकालिक पूर्वानुमान (नाउकास्ट) में सुधार होता है।

‘Nowcast' Facility; नाउकास्ट' सुविधा

BFS 'नाउकास्ट' नाम की एक खास सुविधा से जुड़ी है। जो 2 घंटे पहले का सबसे सटीक पूर्वानुमान देती है। यह किसानों, मछुआरों और आपदा प्रबंधन एजेंसियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उन्हें तुरंत निर्णय लेने में मदद करता है।

AI और मशीन लर्निंग का समावेश (Incorporation of AI and Machine Learning)

इस प्रणाली में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) तकनीक को जोड़ा गया है। AI और ML ऐतिहासिक डेटा पैटर्न को समझने, त्रुटियों को कम करने और पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार करने में मदद करते हैं। यह मौसम की छोटी-बड़ी घटनाओं का अनुमान और भी बेहतर कर सकेगा।

वैश्विक सहयोग और डेटा साझाकरण (Global Collaboration and Data Sharing)

BFS प्रणाली का डेटा पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों के लिए खुला रहेगा, जिससे वैश्विक स्तर पर भी शोध में सहयोग बढ़ेगा। यह प्रणाली ISRO के INSAT और IRS सैटेलाइट्स से डेटा लेती है और UK मेट ऑफिस जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ मिलकर काम करती है। यह वैश्विक मौसम विज्ञान समुदाय में भारत की स्थिति को मजबूत करेगा।

Importance and Future Direction of BFS

BFS का महत्व और भविष्य की दिशा

BFS का लॉन्च भारत के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। जो कि इस प्रकार है -

प्राकृतिक आपदाओं से बचाव (Protection from Natural Disasters)

सटीक मौसम पूर्वानुमान प्राकृतिक आपदाओं, जैसे बाढ़, सूखा, चक्रवात और अचानक आई बारिश, से निपटने में मदद करेगा। यह अग्रिम चेतावनी जारी करने और जान-माल के नुकसान को कम करने में सहायक होगा।

कृषि उत्पादकता में वृद्धि (Increase in Agricultural Productivity)

किसानों को सटीक और समय पर मौसम की जानकारी मिलने से वे अपनी फसलों की बुवाई, सिंचाई और कटाई का बेहतर ढंग से प्रबंधन कर पाएंगे, जिससे कृषि उत्पादकता बढ़ेगी।

आर्थिक लाभ (Economic Benefits)

बेहतर मौसम पूर्वानुमान ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन और जल संसाधन जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिए आर्थिक लाभ लाएगा।

वैश्विक नेतृत्व (Global Leadership)

यह प्रणाली भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान के क्षेत्र में भारत को वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ने में मदद करेगी।

घाघ और भड्डरी की लोक कथाओं से लेकर 'भारत फोरकास्ट सिस्टम' जैसे अत्याधुनिक वैज्ञानिक मॉडल तक, भारत का मौसम विज्ञान का सफर लोक ज्ञान, मानवीय अवलोकन और वैज्ञानिक नवाचार का एक अद्वितीय संगम रहा है। यह सफर इस बात का प्रमाण है कि कैसे सदियों पुराना लोक ज्ञान आधुनिक विज्ञान के साथ मिलकर हमारी दुनिया को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है। BFS न केवल हमें सटीक मौसम की जानकारी देगा, बल्कि यह हमें प्रकृति के साथ और भी गहरे संबंध स्थापित करने में मदद करेगा। ताकि हम भविष्य की चुनौतियों का सामना और भी सशक्त रूप से कर सकें। यह न केवल विज्ञान की जीत है, बल्कि यह उस लोक-परंपरा को भी सलाम है, जिसने सदियों तक हमें प्रकृति की बारीकियों को समझने की प्रेरणा दी है।

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