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करवा चौथ 2025 - क्या है छन्नी से पति का चेहरा देखने का रहस्य और चंद्रमा दर्शन का महत्व
करवा चौथ 2025 प्रेम, समर्पण और परंपरा का प्रतीक पर्व है, जिसमें विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। जानिए छन्नी से चंद्रमा और पति का चेहरा देखने का रहस्य, इस व्रत से जुड़ी पौराणिक कथाएं और धार्मिक महत्व।
Karwa Chauth 2025 (Image Credit-Social Media)
Karwa Chauth 2025: भारतीय संस्कृति में सुहाग की लंबी आयु से जुड़े कई पर्व बेहद प्रचिलत हैं। जिनमें से एक करवा चौथ विवाहिता महिलाओं का एक अत्यंत प्रिय पर्व है। यह दिन पति के प्रति प्रेम, समर्पण और उनकी लंबी उम्र की कामना के लिए रखा जाता है। सूर्योदय से पहले उपवास शुरू करने वाली महिलाएं दिनभर अन्न और जल का त्याग करती हैं और शाम को चंद्रमा के दर्शन के साथ ही व्रत पूर्ण करती हैं। इस दिन की सबसे विशेष परंपरा है कि महिलाएं छन्नी के माध्यम से अपने पति का चेहरा देखती हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसके पीछे धार्मिक विश्वास, पौराणिक कथाएं और सांस्कृतिक प्रतीकात्मकता गहराई से जुड़ी है। आइए जानते हैं करवा चौथ और छन्नी से जुड़ी परंपरा के बारे में विस्तार से -
पति का चेहरा छन्नी से देखने का रहस्य
करवा चौथ के दिन महिलाएं जब छन्नी से पहले चंद्रमा और फिर अपने पति का चेहरा देखती हैं, तो इसका अर्थ अध्यात्म के अनुसार परम्परा से कहीं अधिक है। असल में छन्नी में मौजूद हजारों छोटे-छोटे छेद प्रतीकात्मक रूप से जीवन की कठिनाइयों और बाधाओं को दर्शाते हैं। जैसे छन्नी के छेदों से होती हुई चंद्रमा की महीन किरणें भी रोशनी बिखेर देती है, वैसे ही इस प्रक्रिया से दाम्पत्य जीवन में सारी मुश्किलों से मुक्ति मिलने ने साथ ही पति की लंबी उम्र और दांपत्य सुख का आशीर्वाद प्राप्त होता है। छन्नी के माध्यम से पति को देखना व्रत की पूर्णता का प्रतीक माना जाता है। कुछ क्षेत्रीय मान्यताओं के अनुसार यदि महिला सीधे अपने पति का चेहरा देखती है, तो पुरानी मान्यता के अनुसार व्रत अधूरा रह सकता है।
धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है सीधे चंद्रमा न देखने का महत्व
करवा चौथ पर चंद्रमा को सीधे न देखने की परंपरा भी धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं से जुड़ी है। पुराणों में वर्णित है कि प्रजापति दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दिया था कि जो भी उसके दर्शन करेगा, उस पर कलंक आएगा। जब चंद्रमा दुखित होकर भगवान शिव के पास गए, तो उन्हें आश्वासन मिला कि केवल चतुर्थी के दिन ही दर्शन किए जाने पर यह दोष समाप्त हो जाएगा। इसलिए करवा चौथ की रात में चंद्रमा को सीधे देखने की बजाय छन्नी के माध्यम से दर्शन करना शुभ माना जाता है। यह प्रथा न केवल धार्मिक दृष्टि से फलदायी मानी जाती है, बल्कि यह पति की लंबी उम्र और दांपत्य जीवन की समृद्धि की कामना का प्रतीक भी है।
पौराणिक कथाओं में करवा चौथ के किस्से जो आज भी लोकप्रिय हैं
करवा चौथ के कई पौराणिक किस्से प्रचलित हैं, जिनमें सबसे प्रमुख कथा करवा नामक महिला से जुड़ी है। करवा अपने पति के साथ भद्रा नदी के किनारे रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान कर रहा था और उसी समय एक मगरमच्छ ने उसे खींच लिया। करवा ने अपने पति की सुरक्षा के लिए यमराज से प्रार्थना की। उसकी गहरी भक्ति और समर्पण से प्रभावित होकर यमराज ने भी उसे आशीर्वाद दिया कि जो भी महिला इस दिन व्रत रखेगी, उसके पति को लंबी उम्र का वरदान प्राप्त होगा। यह कथा इस पर्व के प्रेम और भक्ति की शक्ति को दर्शाती है और आज भी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत है।
करवा चौथ के दिन महिलाओं की पूजा केवल अपने पति के लिए ही नहीं, बल्कि परिवार की खुशहाली, सुख-शांति और समृद्धि के लिए होती है। वे पहले मां पार्वती और भगवान शिव की आराधना करती हैं। इसके बाद भगवान कार्तिकेय की पूजा और परिवार के कल्याण की प्रार्थना की जाती है। दिनभर का उपवास और शाम को छन्नी के माध्यम से पति का दर्शन करना व्रत की पूर्णता को सुनिश्चित करता है। पूजा में करवा (मिट्टी का छोटा बर्तन) भी शामिल होता है, जो स्थायित्व और शुद्धता का प्रतीक है।
आज के समय में यह पर्व आधुनिक जीवन में भी उतना ही महत्वपूर्ण है। शहरों की महिलाएं पारंपरिक पोशाक पहनकर और आधुनिक सजावट के बीच भी इस प्रथा का पालन करती हैं। सोशल मीडिया पर भी करवा चौथ की तैयारियां और व्रत की तस्वीरें साझा की जाती हैं, जो इस परंपरा को और जीवंत बनाती हैं।
करवा चौथ केवल उपवास का दिन नहीं है, बल्कि यह प्रेम, समर्पण और भक्ति का प्रतीक है।
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