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बाबर की ‘जानम’ खानजादा! कौन थी मुगल साम्राज्य की पहली महिला बेगम, रणनीतिकार और बलिदानों की प्रतिमूर्ति

Khanzada Begum History: खानजादा न केवल बाबर की सबसे बड़ी बहन थीं, बल्कि उनके संघर्षों, निर्णयों और अस्तित्व की आत्मा भी थीं।

Admin 2
Published on: 8 Jun 2025 3:27 PM IST
Khanzada Begum History and Intresting Facts
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Khanzada Begum History and Intresting Facts

Khanzada Begum History: जब भी मुगल साम्राज्य के प्रारंभिक वर्षों की चर्चा होती है तब बाबर, हुमायूं और अकबर जैसे शासकों के नाम प्रमुखता से सामने आते हैं। लेकिन इस साम्राज्य की नींव जिस संकल्प, त्याग और नेतृत्व से पड़ी उसमें एक ऐसी महिला की भूमिका भी शामिल थी। जिसे अक्सर इतिहास के हाशिए पर डाल दिया गया। वो थीं खानजादा बेगम। एक शहजादी, एक बहन, एक राजनीतिक बंधन का हिस्सा और अंततः मुगल साम्राज्य की पहली महिला। खानजादा न केवल बाबर की सबसे बड़ी बहन थीं, बल्कि उनके संघर्षों, निर्णयों और अस्तित्व की आत्मा भी थीं। खानजादा के जीवन की कहानी त्याग, अपमान, प्रेम और सत्ता के संघर्षों का मिश्रण है। आइए जानते हैं मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर की बहन खानजादा की जीवनगाथा के बारे में, जिसे बाबर ने खुद ‘जानम’ कहकर पुकारा और जिसे गुलबदन बेगम ने अपनी पुस्तक ‘हुमायूंनामा’ में स्नेह से स्थान दिया।

खानजादा बेगम- शाही खून,दुश्वारियों से भरा जीवन

खानजादा बेगम का जन्म 1478 में फ़रग़ना (अब उज्बेकिस्तान में) के शासक उमर शेख मिर्जा और उनकी पहली पत्नी कुतलुग निगार खानम के घर हुआ था। उनकी माता मुगलिस्तान की रॉयल प्रिंसेस थीं। बाबर उनसे पांच वर्ष छोटे थे। लेकिन दोनों के बीच भावनात्मक संबंध बहुत गहरा था।


खानजादा की परवरिश एक राजकुमारी की तरह हुई। लेकिन उनका जीवन कभी भी सरल या शांत नहीं रहा। उनकी दादी ऐसन दौलत बेगम, जो परिवार की प्रमुख थीं, ने उन्हें राजनीति, कूटनीति और शाही संस्कृति की बारीकियों से अवगत कराया।

कैसे बनीं बाबर के जीवन की निर्णायक स्तंभ

बाबर के संघर्षमय जीवन में खानजादा बेगम ने एक नहीं, कई बार महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक ऐसा समय आया जब बाबर समरकंद में घिर गया था। उज़्बेक शासक शायबानी खान ने शहर को छह महीने तक घेर लिया था। जब भूख और थकावट से हालत बिगड़ने लगी। तब शायबानी ने एक शर्त पर युद्ध रोकने की बात की वह थी खानजादा बेगम की शादी।


बिना हिचकिचाहट खानजादा ने खुद को राजनीतिक गठबंधन की बलि चढ़ा दिया। यह बलिदान केवल एक बहन का नहीं था, यह एक राजवंश को बचाने का फैसला था।

शायबानी खान से विवाह- बलिदान की परिणीति

शायबानी खान के साथ विवाह के बाद खानजादा का जीवन अत्यंत कष्टमय रहा। उन्हें शोषण, उपेक्षा और शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा। इस विवाह से उनका एक पुत्र खुर्रम जन्मा। लेकिन उसका निधन शैशवावस्था में ही हो गया। कुछ समय बाद शायबानी ने उन्हें तलाक दे दिया। कारण यह था कि वह अपने भाई बाबर और परिवार के प्रति निष्ठावान थीं।

स्वतंत्रता की वापसी और खानजादा का पुनर्जन्म

1511 में, ईरान के शासक शाह इस्माइल I ने शायबानी को हराकर खानजादा को कुंदुज में बाबर के पास भिजवा दिया। यह केवल रिहाई नहीं थी, बल्कि एक सशक्त संकेत था कि अब खानजादा का पुनर्जन्म एक स्वतंत्र और सम्मानित राजकुमारी के रूप में होगा।

महदी ख्वाजा से दूसरा विवाह

बाबर ने अपनी बहन का विवाह शिया सरदार मुहम्मद महदी ख्वाजा से करवाया। यह विवाह राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण था।


लेकिन व्यक्तिगत रूप से खानजादा को इस रिश्ते में सम्मान और स्नेह मिला।हालांकि इस विवाह से उनके कोई संतान नहीं हुई। लेकिन उन्होंने अपने पति की भतीजी सुल्तानम बेगम को बेटी की तरह पाला और उसका विवाह अपने भतीजे हिंडल मिर्जा से स्वयं सम्पन्न कराया।

एक संरक्षक, एक आयोजक और मुगल दरबार की शक्ति बनकर उभरी थीं खानजादा

खानजादा बेगम केवल पारिवारिक संबंधों की मध्यस्थ नहीं थीं, बल्कि उन्होंने मुगल दरबार में राजनीतिक शांति, विवाह गठबंधन और रणनीतिक निर्णयों में अहम भूमिका निभाई। 1537 में सुल्तानम और हिंडल की शादी पर उन्होंने काबुल में भव्य आयोजन किया। यह केवल एक दावत नहीं थी, बल्कि मुगल साम्राज्य की संस्कृति और ताकत का प्रदर्शन था।

बाबरनामा में ‘जानम’ - भाई की आंखों से बहन की छवि

बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ में खानजादा को बेहद आत्मीयता से ‘जानम’ कहकर संबोधित किया है। उनके लिए खानजादा केवल एक बहन नहीं बल्कि संरक्षक, प्रेरणा और सौभाग्य का प्रतीक थीं। जिसमें कुछ इस तरह से अंकित है....

'तुम एक नायिका हो, मेरी तारणहार हो। मेरी देवी और मेरा सौभाग्य हो। तुम्हारे बलिदानों के बिना, मैं कभी नहीं बच पाता...'

– बाबर, बाबरनामा से

खानजादा की अंतिम यात्रा और मृत्यु

खानजादा का जीवन अपने अंतिम वर्षों में भी संघर्षों से भरा रहा। 1545 में, जब वह अपने भतीजे हुमायूं के साथ कंधार की यात्रा पर थीं। तब काबल-चक के निकट उन्हें बुखार हुआ और तीन दिनों की पीड़ा के बाद उनका निधन हो गया। मृत्यु के पश्चात पहले उन्हें वहीं दफनाया गया। लेकिन बाद में उनके पार्थिव शरीर को काबुल लाकर ‘गार्डन ऑफ बाबर’ में उनके भाई के समीप दफनाया गया। यह मृत्यु भी उस बंधन की पुष्टि थी जो जीवन और मृत्यु के पार तक बाबर और खानजादा को जोड़ता था।

वेब सीरीज़ ‘द एंपायर’ और खानजादा की लोकप्रियता

डिज़्नी प्लस हॉटस्टार की सीरीज ‘The Empire’ में जब दृष्टि धामी ने खानजादा बेगम का किरदार निभाया, तो एक बार फिर से यह नाम चर्चा में आ गया। यह रोल, जो कभी इतिहास की पुस्तकों में सीमित था, स्क्रीन पर जीवंत हो उठा।

दृष्टि ने जिस भावनात्मक गहराई, साहस और सशक्तता से इस किरदार को निभाया, उसने आधुनिक दर्शकों को खानजादा की विरासत से जोड़ा।

खानजादा – एक कालजयी प्रेरणा

खानजादा बेगम का जीवन केवल एक राजकुमारी की कहानी नहीं है। यह बलिदान, नीति, करुणा और शक्ति की मिसाल है। उन्होंने ना केवल अपने प्रिय भाई बाबर को अनगिनत बार मुश्किलों से बचाया, बल्कि मुगल साम्राज्य को एक स्थायी नींव भी प्रदान की।

उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि इतिहास में नायिकाएं केवल प्रेम या युद्ध की कहानियों की पृष्ठभूमि नहीं होतीं। बल्कि वे स्वयं इतिहास गढ़ने का भी हुनर रखती हैं। यही वजह है कि खानजादा बेगम को मुगल साम्राज्य की प्रथम महिला और असली शेरनी कहा जाना कतई अतिशयोक्ति नहीं होगा।

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