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केरल में भाजपा बनाएगी सरकार और मुख्यमंत्री होंगे थरूर! नेताजी का ख्याल अच्छा है
Shashi Tharoor: पिछले लोकसभा चुनाव में तिरुवनंतपुरम सीट पर थरूर की जीत का अंतर घटा था, जिससे उन्हें अपनी राजनीतिक जमीन मज़बूत करने की चिंता हो सकती है।
Politics: केरल की सियासत में इन दिनों कांग्रेस सांसद डॉ. शशि थरूर चर्चा के केंद्र में हैं। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद बने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई कर रहे थरूर को लेकर राजनीतिक गलियारों में यह सवाल गूंजने लगा है कि क्या उनका रुझान भारतीय जनता पार्टी की ओर बढ़ रहा है?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, थरूर की हालिया गतिविधियां और बयान उनकी पार्टी कांग्रेस को असहज कर रहे हैं। फरवरी में जब उन्होंने केरल सरकार की निवेश परियोजनाओं में सहयोग की इच्छा जताई थी, तो कांग्रेस नेतृत्व को यह रुख पार्टी लाइन के खिलाफ लगा। वहीं हाल ही में, थरूर ने खुद को ऑपरेशन सिंदूर से जुड़े भाजपा-प्रायोजित प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई के लिए भी उपलब्ध बताया, जिसकी जानकारी उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व को पहले नहीं दी।
भाजपा में जाने की संभावना?
राजनीतिक विश्लेषक दो धाराओं में बंटे हुए हैं। एक वर्ग का मानना है कि थरूर का भाजपा में जाना विचारधारात्मक रूप से असंभव है। वरिष्ठ विश्लेषक का कहना है, थरूर एक सॉफ्ट हिंदू हैं, लेकिन भाजपा की बहुसंख्यकवादी विचारधारा के खिलाफ उन्होंने लगातार मुखर रुख अपनाया है। वे ‘मैं हिंदू क्यों हूं’ जैसी पुस्तक के लेखक हैं, लेकिन कभी हिंदुत्व का समर्थन नहीं किया। भाजपा में जाना उनके विचारों से मेल नहीं खाता।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों की राय है कि थरूर हिंदू मतदाताओं को साधने की कोशिश में हैं और अपनी पार्टी को साफ़ संदेश देना चाहते हैं कि वे कांग्रेस में किनारे किए जाने को स्वीकार नहीं करेंगे। इस वर्ग का मानना है कि थरूर मुख्यमंत्री पद की संभावनाएं तलाश रहे हैं और इसी रणनीति के तहत भाजपा से समीपता बढ़ा रहे हैं।
कांग्रेस में असहजता
थरूर की गतिविधियों पर कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने खुलकर नाराजगी जाहिर की है। राज्यसभा के पूर्व डिप्टी चेयरमैन पी.जे. कुरियन ने कहा, अगर कोई मानता है कि थरूर भाजपा की ओर झुकाव दिखा रहे हैं, तो इसमें कोई शक नहीं। उनका रुख़ अब तटस्थ नहीं रहा।
वहीं, आमतौर पर संयमित रहने वाले केरल के वित्त मंत्री के.एन. बालगोपाल ने भी थरूर की उस टिप्पणी पर आपत्ति जताई, जिसमें उन्होंने 2023 में तुर्की को दी गई मानवीय सहायता को "अनुचित उदारता" बताया था। बालगोपाल ने कहा, यह सहायता विदेश मंत्रालय के माध्यम से दी गई थी और उस वक्त यह एक जरूरी मानवीय कदम था। सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास और विश्लेषक एम.जी. राधाकृष्णन ने भी थरूर के तुर्की संबंधी बयान को राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित बताया और उन्हें केंद्र की ‘ऑपरेशन दोस्त’ नीति को भी याद करने की सलाह दी।
‘विचारधारा बनाम व्यावहारिकता’
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि थरूर के रुख में विचारधारा से अधिक व्यावहारिकता झलक रही है। एक वरिष्ठ विश्लेषक ने कहा कि थरूर भाजपा के मुखर आलोचक रहे हैं, लेकिन राजनीति में समीकरण जल्दी बदलते हैं। जॉर्ज फर्नांडिस जैसे नेता भी कभी भाजपा के साथ गए थे। थरूर जैसे नेता के लिए भाजपा में शामिल होना मुश्किल जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। कुछ जानकारों के मुताबिक, पिछले लोकसभा चुनाव में तिरुवनंतपुरम सीट पर थरूर की जीत का अंतर घटा था, जिससे उन्हें अपनी राजनीतिक जमीन मज़बूत करने की चिंता हो सकती है।
शशि थरूर भाजपा में शामिल होंगे या नहीं, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन इतना तय है कि उनके बयानों और रुख़ ने केरल की राजनीति में हलचल जरूर मचा दी है। कांग्रेस के भीतर असंतोष बढ़ा है, जबकि भाजपा खेमे में उत्सुकता। अब सबकी निगाहें थरूर के अगले कदम पर टिकी हैं।
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