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Motivational Thoughts: शुरुआत करके तो देखिए , अधिक ख़ुशी देगी
Motivational Thoughts: भाषा के संप्रेषण से अधिक भावों का संप्रेषण महत्वपूर्ण हो जाता है।
Motivational Thoughts (Image Credit-Social Media)
Motivational Thoughts: आरामतलब और सिर्फ एकरेखीय होती इस दुनिया में अगर कोई अनजान किसी के लिए खुद उठकर अपनी जगह उसके छोटे बच्चे के साथ बैठने को दे-दे। एक अनजान शहर, प्रदेश या जगह पर कोई आपकी मदद कर दे। किसी ऐसी जगह जहां की भाषा आपके लिए बिल्कुल समझ के बाहर हो, वहां भी कोई आपकी बातों के भाव को समझ लें और आपको अपनी बात समझा दे तो भाषा के संप्रेषण से अधिक भावों का संप्रेषण महत्वपूर्ण हो जाता है। ऐसे समय में यह तो नहीं कह सकते हैं कि भाषा के संप्रेषणियता की आवश्यकता समाप्त हो गई लेकिन वह महत्वपूर्ण नहीं रहती। कुछ शब्दों के सहारे, कुछ हाथ के इशारों से, कुछ चेहरे की मुद्राएं किसी अनजान भाषा-भाषी जगह में तिनके का सहारा बनते हैं। और यह सहारा कोई कमजोर सहायक नहीं होता बल्कि नैया पार लगाने वाला बन जाता है। गौण हो जाती है भाषा यहां पर। आवश्यक रह जाता है तो सिर्फ भावों का आदान-प्रदान प्रदान।
भारत में रेलवे नेटवर्क का जाल इतना विशाल और विस्तार वाला है कि देश की जनसंख्या का एक बड़ा भाग यात्रा के लिए उस पर निर्भर करता है। तो यह कहना लाजमी है कि हम किस-किस के लिए अपनी जगह छोड़ें। फिर भी दैनिक यात्रा करते समय ऐसा सबके साथ हो सकता है कि आपसे कमजोर या अधिक आवश्यकता वाला व्यक्ति खड़ा हो और आप अधिक योग्य होने के बावजूद बैठे हों। एक छोटे बच्चे को गोद में लेकर खड़े माता-पिता, एक विकलांग बच्चे का हाथ पकड़ कर खड़े उसके अभिभावक, एक बुजुर्ग महिला या पुरुष..... कोई भी हो सकता है, जिसकी मदद करना हो सकता है कि आपके दिमाग को गवारा न करें लेकिन यकीन मानिए कि आपके दिल को तसल्ली जरूर मिलेगी।
हो सकता है कि आज हम योग्य हों कि हमें किसी के सहारे की, मदद की आवश्यकता न हो पर परिस्थितियों में कब परिवर्तन हो जाता है यह हम में से किसी के बस में नहीं। हो सकता है कि आपके पास कहीं भी आने जाने के लिए अपनी सवारी हो, आपको किसी की भी जरूरत न पड़ रही हो, एक दिन अचानक आपके वाहन का कोई पुर्जा इस तरह से खराब होता है कि वह चलता तो है पर आपको उसे चालू करने के लिए किसी और की भी आवश्यकता पड़ती है। अब आपकी स्थिति इस तरह की है कि आप न तो अपने वाहन को छोड़ सकते हैं और न ही उसको खुद से प्रयोग कर सकते हैं बिना किसी दूसरे की मदद के। ऐसे समय में आपको समझ आता है कि किसी की मदद करना कितना आवश्यक होता है। अगर आपने कभी किसी की मदद नहीं की होगी तो आपको किसी दूसरे से मदद मांगने में भी झिझक महसूस होगी।क्योंकि आपने कभी किसी की मदद करने की सुखद अनुभूति को महसूस ही नहीं किया है। 'जाके पाँव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई' वाली स्थिति है, जब तक हम स्वयं मुश्किल स्थिति में नहीं पड़ते हैं और हमें किसी दूसरे की मदद की आवश्यकता नहीं पड़ती है । तब तक हम स्वयं मदद की आवश्यकता का अर्थ महसूस भी नहीं कर सकते हैं।
हो सकता है कि किसी की मदद करते समय हमारे अंदर यह भाव आए कि इस अनजान की मदद तो मैं कर दूं लेकिन यह तो मुझे फिर कभी भी नहीं मिलेगा तो यह मेरी की गई मदद की वापसी मुझे कैसे करेगा। मुझे कोई है मदद नहीं करेगा। आम का पेड़ लगाने वाला व्यक्ति कभी भी उसके बढ़ते हुए पेड़ को नहीं देख पाता है और न हीं उसका स्वाद ले पाता है, फिर भी वह पेड़ लगता है क्योंकि वह जानता है कि उसने भी किसी और के लगाए हुए पेड़ के आमों का रसास्वादन किया है। एक नदी निष्काम भाव से बहती है, वह आसपास पड़ने वाली जमीन को तृप्त करती जाती है, वह आसपास पड़ने वाले खेतों की प्यास बुझाती है और न जाने कितने ही मवेशियों को पानी देती है। वह कभी पहाड़ों से नीचे गिरती है तो कहीं मैदान के फैलाव को समेटती है, पर कभी यह इच्छा नहीं करती कि वह दूसरों को जो दे रही है उसका परिणाम क्या होगा और उसको वे लोग किस तरह से वापस करेंगे। सभ्यताएं पनपती हैं नदियों के किनारे, नदियां देती हैं जीवन। निष्काम भाव का इससे बेहतर उदाहरण और क्या होगा कि पेड़ हमें लगातार प्राणवायु ऑक्सीजन दिए जाते हैं बजाए यह सोचने के कि इस ऑक्सीजन को ग्रहण करने वाले मुझे क्या देंगे। दरअसल आसक्ति या अहंकार के कारण करी गई मदद कभी भी सच्ची मदद नहीं होती है।
यह जीवन है जो कभी भी शांत और सहज नहीं होता। इसमें पग-पग पर बाधाएं हैं, अवरोध हैं, दूसरों की आवश्यकता है तो दूसरों की मदद भी है, मुश्किलें हैं, समस्याएं हैं तो हल भी है और उसे साधने के साधन भी हैं। कब न जाने कौन, किस तरह से हमारे काम आ जाए और हमारे लिए एक सहारा बन जाए, हमारे जीवन को आगे बढ़ाने का, उसे पथ पर चलते रहने का। इसीलिए मदद मांगने से अगर नहीं झिझकते हो तो मदद करने से भी मत झिझको। क्योंकि आज अगर हमारा दिन है तो कल यह दिन किसी और का भी हो सकता है। इसलिए खुल के जिएं और किसी की छोटी सी मदद करके देखिए। जीवन में आपकी खुद की राहें कितनी आसान और व्यवस्थित होती जाएंगी। यह प्रकृति अगर आपसे कुछ लेती है तो आपको उससे कहीं अधिक देती भी है। आप उसे खुशी देंगे तो वह आपको कहीं न कहीं अधिक खुशी जरूर देगी। करके तो देखिए.....।
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