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मैरी ब्रंकॉ, फ्रेड राम्सडेल और शिमोन सकागुची ने जीता 2025 का नोबेल—खुला इम्यून टॉलरेंस का रहस्य
घोषित हुए 2025 के नोबेल चिकित्सा पुरस्कार- पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस की खोज के लिए मैरी ब्रंकॉ, फ्रेड राम्सडेल और शिमोन सकागुची को मिला सम्मान
2025 Nobel Prize in Medicine (Image Credit-Social Media)
2025 Nobel Prize in Medicine Announced: दुनिया का प्रतिष्ठित सम्मान नोबेल पुरस्कार 2025 को लेकर आई खबर ने दुनिया का ध्यान फिर एक बार चिकित्सा विज्ञान की ओर मोड़ दिया। नोबेल समिति ने इस साल का नोबेल चिकित्सा पुरस्कार (Nobel Prize in Physiology or Medicine) तीन वैज्ञानिकों अमेरिकी वैज्ञानिक मैरी ई. ब्रंकॉ, फ्रेड राम्सडेल और जापानी वैज्ञानिक शिमोन सकागुची को संयुक्त रूप से देने की घोषणा की है। इन तीनों को यह सम्मान ‘पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस’ (Peripheral Immune Tolerance) यानी शरीर के बाहरी हिस्सों में प्रतिरक्षा प्रणाली की सहनशीलता से जुड़ी उनकी खोजों के लिए दिया गया है। इस खोज ने यह समझने में क्रांतिकारी परिवर्तन किया कि हमारी इम्यून सिस्टम (immune system) खुद के ऊतकों पर हमला क्यों नहीं करती और वह संतुलन कैसे बनाए रखती है।
मैरी ई. ब्रुंको अमेरिका के सिएटल में इंस्टीट्यूट फॉर सिस्टम्स बायोलॉजी, फ्रेड राम्सडेल सैन फ्रांसिस्को में सोनोमा बायोथेरेप्यूटिक्स और शिमोन साकागुची जापान के ओसाका में ओसाका विश्वविद्यालय से जुड़े हैं। इन तीनों ही नोबेल चिकित्सा पुरस्कार विजेताओं को 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना (करीब 1.04 करोड़ रुपये) बराबर-बराबर बांटे जाएंगे।
क्या है पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस पर की गई खोज
पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस का मतलब हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली का मूल काम शरीर की रक्षा करना है यानी किसी बाहरी संक्रमण, बैक्टीरिया या वायरस से सुरक्षा प्रदान करना है। लेकिन कभी-कभी यह प्रणाली भ्रमित होकर अपने ही ऊतकों पर हमला करने लगती है, जिससे ऑटोइम्यून रोग (Autoimmune Diseases) जैसे टाइप-1 डायबिटीज़, ल्यूपस, रूमेटॉयड आर्थराइटिस आदि होते हैं।
पहले वैज्ञानिक मानते थे कि यह सहनशीलता केवल थाइमस ग्रंथि (thymus gland) के भीतर विकसित होती है, जहां खुद को और बाहरी को पहचानने की प्रक्रिया चलती है। लेकिन नई खोजों ने दिखाया कि यह पूरी कहानी नहीं थी। कई आत्म-प्रतिक्रियाशील कोशिकाएं थाइमस से बचकर बाहर निकल जाती हैं। पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस उन्हीं कोशिकाओं को नियंत्रित करने की दूसरी, बाहरी परत है। जो यह सुनिश्चित करती है कि वे शरीर के स्वस्थ ऊतकों को नुकसान न पहुंचाएं। यह प्रतिरक्षा प्रणाली का ‘सेकंड लेवल सिक्योरिटी सिस्टम’ है। जो संतुलन बनाए रखता है और हमें ऑटोइम्यून रोगों से बचाता है। इन वैज्ञानिकों की खोज से चिकित्सा के क्षेत्र में कई बड़े बदलाव आने की संभावनाएं जाग उठी हैं।
वैज्ञानिक शिमोन सकागुची का इम्यून सिस्टम के ' शांत प्रहरी' की शानदार खोज
जापानी वैज्ञानिक शिमोन सकागुची ने 1995 में पहली बार यह दिखाया कि शरीर में कुछ विशेष T-कोशिकाएँ होती हैं जिन्हें Regulatory T Cells (Tregs) कहा जाता है। ये कोशिकाएँ शरीर की रक्षा प्रणाली को कंट्रोल में रखती हैं, ताकि वह अपने ऊतकों पर हमला न करे। सकागुची की यह खोज आज इम्यूनोलॉजी की आधारशिला बन चुकी है।
वैज्ञानिक मैरी ब्रंकॉ और फ्रेड राम्सडेल का FOXP3 जीन का रहस्य
अमेरिकी वैज्ञानिक मैरी ई. ब्रंकॉ और फ्रेड राम्सडेल ने 2001 में FOXP3 जीन की खोज की, जो इन Regulatory T Cells के विकास और कार्य के लिए बेहद ज़रूरी है। उन्होंने पाया कि यदि यह जीन ठीक से काम न करे, तो शरीर में गंभीर प्रतिरक्षा असंतुलन पैदा हो जाता है। यही FOXP3 जीन T-कोशिकाओं को नियामक या सहनशील बनाता है। इन तीनों की खोजों ने मिलकर यह दिखाया कि प्रतिरक्षा प्रणाली केवल आक्रमण ही नहीं करती, बल्कि खुद को सीमित रखना भी जानती है और यही सीमितता हमारे स्वास्थ्य की कुंजी है।
नोबल पुरस्कार पाने वाले इन वैज्ञानिकों की क्यों महत्वपूर्ण है यह खोज
यह खोज केवल विज्ञान की दृष्टि से नहीं, बल्कि चिकित्सा की दृष्टि से भी मील का पत्थर साबित हुई है। इस खोज से चिकित्सा के क्षेत्र में कई असाध्य रोगों के इलाज में बड़ी सफलता हासिल होगी -
मिलेगी ऑटोइम्यून रोगों में राहत
ऑटोइम्यून रोग एक ऐसी स्थिति है जहां शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से शरीर की अपनी स्वस्थ कोशिकाओं, ऊतकों या अंगों को विदेशी घुसपैठिया मानकर उन पर हमला करना शुरू कर देती है। जिससे सूजन और क्षति होती है। यह तब होता है जब प्रतिरक्षा प्रणाली बाहरी आक्रमणकारियों के बजाय अपने ही शरीर के खिलाफ काम करने लगती है, जिसके परिणामस्वरूप शरीर का कोई भी अंग प्रभावित हो सकता है। अगर हम नियामक टी कोशिका (Tregs) को कृत्रिम रूप से बढ़ा सकें या FOXP3 जीन को टार्गेट कर सकें, तो कई ऑटोइम्यून बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है।
मिलेगी अंग प्रत्यारोपण में सफलता:
यह खोज बताती है कि कैसे प्रतिरक्षा प्रणाली को इस तरह संतुलित किया जाए कि वह ट्रांसप्लांटेड अंग को स्वीकार करे, न कि उस पर हमला करे। इस तरह अंग प्रत्यारोपण जैसे जटिल इलाज में भी सफलता मिलेगी।
मिली कैंसर उपचार में नई दिशा
कैंसर कोशिकाएं अक्सर Tregs यानी प्रतिरक्षा प्रणाली की श्वेत रक्त कोशिकाओं का इस्तेमाल करके इम्यून सिस्टम से बच निकलती हैं। इस खोज से कैंसर इम्यूनोथेरेपी को नए रास्ते मिले हैं। यह शोध चिकित्सा जगत में 'संतुलन के विज्ञान' का प्रतीक है। न अधिक आक्रामक, न अधिक लचीला, बस सही मात्रा में प्रतिक्रिया।
कब हुई थी नोबेल पुरस्कार की शुरुआत, क्या है इसका ऐतिहासिक महत्व?
नोबेल पुरस्कार की शुरुआत 1901 में हुई थी। यह विज्ञान, साहित्य और शांति के क्षेत्र में असाधारण योगदान देने वालों को सम्मानित करने के लिए दिया जाता है।
हर साल इन श्रेणियों में दिए जाते हैं नोबेल पुरस्कार
1. भौतिकी (Physics)
2. रसायन विज्ञान (Chemistry)
3. शरीर क्रिया विज्ञान या चिकित्सा (Physiology or Medicine)
4. साहित्य (Literature)
5. शांति (Peace)
इसके अलावा अर्थशास्त्र में नोबेल मेमोरियल पुरस्कार (Economic Sciences) भी दिया जाता है, जो 1969 से शुरू हुआ था।
नोबेल पुरस्कार उन लोगों को सम्मानित करता है जिन्होंने पिछले 12 महीनों में मानवता की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया हो। यानी यह सम्मान सिर्फ उपलब्धि का नहीं, बल्कि 'मानवता की भलाई' का प्रतीक है।
क्या होंगी बाकी पुरस्कारों की तारीखें?
नोबेल समिति के अनुसार, इस वर्ष पुरस्कार घोषणाओं का क्रम इस प्रकार रहेगा —
मंगलवार (7 अक्टूबर): भौतिकी का नोबेल पुरस्कार
बुधवार (8 अक्टूबर): रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार
गुरुवार (9 अक्टूबर) - साहित्य का नोबेल पुरस्कार
शुक्रवार (10 अक्टूबर)- नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) की घोषणा
13 अक्टूबर (सोमवार) - अर्थशास्त्र के लिए नोबेल मेमोरियल पुरस्कार की घोषणा
नोबेल के इन 6 पुरस्कारों की श्रृंखला में चिकित्सा के क्षेत्र में पुरस्कार की घोषणा सबसे पहले हुई है, जिसे स्टॉकहोम के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट में एक पैनल द्वारा की गई है।
पिछले वर्ष इन्हें मिला था ये सम्मान
चिकित्सा के क्षेत्र में अब तक 1901 से 2024 तक कुल 229 वैज्ञानिकों को यह पुरस्कार 115 बार दिया जा चुका है। पिछले वर्ष (2024) यह सम्मान अमेरिका के विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रुवकुन को माइक्रो RNA की खोज के लिए मिला था।
क्या है 2025 के नोबेल चिकित्सा पुरस्कार की विशेषता
यह पुरस्कार इस बात का प्रमाण है कि विज्ञान केवल प्रयोगशाला तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में भी सांस लेता है। मैरी ब्रंकॉ, फ्रेड राम्सडेल और शिमोन सकागुची की खोज ने दुनिया को यह सिखाया कि प्रतिरक्षा का अर्थ केवल दुश्मन से लड़ना नहीं, बल्कि खुद को समझना भी है। यह खोज न केवल कैंसर और ऑटोइम्यून रोगों के इलाज में दिशा दिखाएगी, बल्कि यह हमारे शरीर की 'स्वयं-सुरक्षा' प्रणाली की समझ को भी नए स्तर तक ले जाएगी।
रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने तीनों को 'परिधीय प्रतिरक्षा सहिष्णुता से संबंधित उनकी खोजों' के लिए इस प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा है। आज भौतिकी के लिए दिया गया है।
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