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Premanand Ji Maharaj Motivation: संसार एक धोखा है, रिश्ते क्षणिक हैं- कर्मों का लेखा-जोखा अटल है — प्रेमानंद महाराज जी
Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह संसार एक माया-जाल है। इसमें जितने भी रिश्ते-नाते हैं, सब अस्थायी हैं। लोग आपको तब तक प्रिय लगते हैं जब तक उनका स्वार्थ सिद्ध होता है।
Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)
Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद महाराज जी ने अपने दिव्य प्रवचन में मानव जीवन की अस्थिरता, संसार की नश्वरता और आत्म-कल्याण की दिशा पर गहराई से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि भक्ति केवल शब्दों की क्रिया नहीं, बल्कि भीतर से उठने वाला एक शुद्ध कंपन है। उन्होंने खुलकर कहा कि 'यह संसार एक धोखा है। कोई किसी का नहीं। केवल कर्म ही सच्चे साथी हैं।'
वक्त बदलते ही सबसे दूर खड़ा होंगे आपके अपने
उन्होंने कहा कि, 'जिसे आप ‘अपना’ समझते हो, वही वक्त बदलते ही सबसे दूर खड़ा दिखेगा। मौत आएगी तो कोई साथ नहीं जाएगा -न धन, न पुत्र, न पत्नी। केवल कर्म ही साथ चलेंगे।' इस कथन ने सत्संग में बैठे हर व्यक्ति को आत्ममंथन की स्थिति में पहुंचा दिया।
कर्मों का फल हर हाल में मिलेगा- चाहे छुप जाएं, पर बच नहीं सकते
महाराज जी ने बताया कि ईश्वर न्याय का सागर है और कर्म का फल देना उनका विधान। चाहे आप कितनी भी चालाकी से पाप छिपाएं, वह ईश्वरीय तराजू से नहीं बचता। उन्होंने कहा-'भूतकाल में किया गया हर कार्य आज के परिणामों में झलकता है, और वर्तमान का हर कार्य भविष्य को रचता है।' कर्मों का फल न समय देखता है, न जात-पात और न ही प्रतिष्ठा। अच्छे कर्मों से सुख और बुरे कर्मों से दुख अटल है।
नाम-जप ही सच्चा रक्षा कवच है
प्रवचन का केंद्रबिंदु रहा – नाम-जप। महाराज जी ने कहा कि इस युग में भगवान के नाम का स्मरण सबसे बड़ी साधना है। भौतिक साधनों से आत्मिक संतोष नहीं मिलेगा, केवल हरि-नाम में ही अमृत छुपा है। 'एक दिन में 10 मिनट भी अगर सच्चे हृदय से राम-राम जप लिया, तो जीवन बदल सकता है।' उन्होंने मोबाइल, टीवी, सोशल मीडिया में खोए भक्तों को चेताया कि जीवन बहुत छोटा है। उसे नामजप में लगाओ, ताकि अंतिम समय में पछताना न पड़े।
मौन साधना और आत्मनिरीक्षण ही जीवन की दिशा तय करते हैं
प्रेमानंद जी ने मौन को अत्यंत शक्तिशाली बताया। उन्होंने कहा कि शब्दों का कोलाहल व्यक्ति को बाहर की दुनिया में भटका देता है, जबकि मौन उसे भीतर के सत्य से जोड़ता है। 'जब आप बोलना छोड़ देते हो, तब आप अपने भीतर की आवाज़ सुन पाते हो।' यह उपदेश आज की भागदौड़ और तनावग्रस्त जीवनशैली में अत्यंत प्रासंगिक है, जहां लोग बाहर की भीड़ में स्वयं को खो चुके हैं।
मृत्यु का चिंतन करें - ताकि जीवन सार्थक बन सके
प्रवचन के दौरान एक अति गंभीर क्षण तब आया जब उन्होंने मृत्यु की अनिवार्यता पर चर्चा की। उन्होंने कहा- 'मौत अटल है, पर हम भूल बैठे हैं कि हम भी जाएंगे। और जाते समय केवल कर्म साथ जाएगा, बंगलो-गाड़ी नहीं।' उन्होंने कहा कि मृत्यु का चिंतन हमें संकीर्ण सोच से ऊपर उठाता है।
रिश्तों से ऊपर है भक्ति- आत्मा का नाता केवल प्रभु से
महाराज जी ने बताया कि यह संसार एक अस्थायी सराय है। यहां हम यात्री हैं, ठिकाना स्थायी नहीं। उन्होंने कहा कि, 'तुम अपने बच्चों, पत्नी, भाइयों पर भरोसा करते हो लेकिन ये साथ कब तक देंगे?' केवल प्रभु का नाम ही है जो हर जन्म में, हर युग में, हर अवस्था में साथ रहता है। इसलिए सबसे पहला और पक्का रिश्ता आत्मा और परमात्मा का होना चाहिए।
सच्चा भक्त वही है, जो मन से बदलता है
उन्होंने सत्संग में केवल बैठने को ही साधना नहीं माना। उन्होंने कहा कि जो भक्त प्रवचन सुनकर भी भीतर से नहीं बदलता, वह समय और अवसर दोनों गंवा रहा है।
'बदलाव पहले मन से करो, बाकी सब अपने आप बदल जाएगा।'उन्होंने स्पष्ट किया कि बाहरी भक्ति (जैसे दीप जलाना, फूल चढ़ाना) तभी मूल्यवान है जब वह भीतरी शुद्धि से जुड़ी हो।
विनम्रता से जीवन जीना ही सच्चा योग है
महाराज जी ने अहंकार को सबसे बड़ा रोड़ा बताया। उन्होंने कहा कि जो भक्त विनम्र नहीं, वह सच्चा साधक नहीं हो सकता 'घमंड की जगह जब तक नम्रता नहीं लेती, तब तक भक्ति अधूरी है।'उन्होंने उदाहरणों के माध्यम से समझाया कि कैसे बड़े-बड़े भक्त भी अपनी विनम्रता के कारण ही प्रभु को प्रिय हो गए।
संकट आने पर घबराएं नहीं- वह ईश्वर की परीक्षा है
प्रेमानंद जी ने बताया कि जीवन में जब अचानक संकट आता है, तब व्यक्ति का विश्वास डगमगाने लगता है। पर वहीं से ईश्वर की परीक्षा शुरू होती है।
'भक्त वही है जो दुख में भी राम नाम से डगमगाता नहीं।'उन्होंने कहा कि जैसे सोने को तपाकर शुद्ध किया जाता है, वैसे ही भक्त को जीवन की अग्नि से परखा जाता है।
सत्संग जीवन का दर्पण है- इसे खाली न जाने दें
महाराज जी ने अंत में कहा कि जो व्यक्ति नियमित सत्संग में आता है और केवल श्रोता बनकर रह जाता है, वह स्वयं से धोखा करता है। 'जो सुना, उसे जीवन में उतारो यही असली सत्संग है।'उन्होंने भक्तों से कहा कि प्रवचन केवल श्रवण नहीं, एक चेतावनी है। जागो, क्योंकि जीवन का समय कम हो रहा है।
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