Premanand Ji Maharaj Motivation: पाप की कमाई से अमीर बनने वालों के सामने सत्कर्मियों की खुशी क्यों कम दिखती है?

Premanand Ji Maharaj Motivation: महाराज प्रेमानंद जी, जो जीवन को गहराई से समझने वाले एक महान गुरु और प्रवचनकार हैं...

Jyotsna Singh
Published on: 24 July 2025 7:00 AM IST (Updated on: 24 July 2025 7:01 AM IST)
Premanand Ji Maharaj
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Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)

Premanand Ji Maharaj Motivation: आज की दुनिया में हम अक्सर देखते हैं कि गलत रास्ता अपनाकर, पाप की कोई कमाई से अमीर बनने वाले लोग आराम, भौतिक सुख-सुविधाओं का आनंद ले रहे होते हैं। बड़ी-बड़ी गाड़ियां, महंगे घर, ढेर सारा पैसा, लेकिन सवाल यही उठता है कि क्या ये लोग सच में सुखी होते हैं? वहीं, ईमानदारी, सच्चाई और सत्कर्म के रास्ते पर चलने वाले लोग कई बार संघर्ष करते हैं, दुख झेलते हैं। ज्यादातर उनके जीवन में धन वैभव के दिखावे या विलासिता से जुड़ी खुशियों को कम ही देखा जाता है।

यह विरोधाभास हमारे मन में जिज्ञासा जगाता है कि, आखिर सत्कर्मी इतने सुखी क्यों नहीं होते जबकि पाप की कमाई से अमीर बने लोग अपने जीवन में आनंदित नजर आते हैं? महाराज प्रेमानंद जी, जो जीवन को गहराई से समझने वाले एक महान गुरु और प्रवचनकार हैं, इस सवाल का बहुत ही सरल और जीवनदायी उत्तर देते हैं। उनके अनुसार, सुख केवल बाहरी चीज़ों से नहीं आता, वह तो आत्मा की शांति और मन की संतुष्टि से आता है।

भौतिक सुख और असली सुख के बीच अंतर

महाराज प्रेमानंद जी कहते हैं कि, 'जो सुख इंद्रियाओं को भाता है, वह क्षणिक है। असली सुख तो आत्मा से आता है।' यह सच है कि पैसे से हम अच्छे कपड़े पहन सकते हैं, अच्छी-खासी जगह पर रह सकते हैं, स्वादिष्ट खाना खा सकते हैं और मनोरंजन कर सकते हैं। लेकिन क्या ये सब जीवन के असली सुख हैं?


नहीं। यह तो केवल मन और शरीर के सुख हैं, जो जल्दी फिसल जाते हैं। शरीर तो एक दिन मरना है, मन की इच्छाएं तो कभी खत्म ही नहीं होतीं। इसलिए भौतिक सुख का आनंद कुछ समय के लिए होता है। फिर मन और आत्मा फिर भी बेचैन रहती हैं। पाप की कमाई से मिले भौतिक सुख में अक्सर छिपा होता है भय और चिंता। चोरी, छल, बल से जो धन अर्जित किया गया हो, उसमें हमेशा डर होता है पकड़े जाने का, खोने का, या बदले का। इसलिए भले ही बाहर से वह व्यक्ति सुखी दिखे, अंदर से वह बेचैन और असंतुष्ट होता है।

सत्कर्म से प्राप्त सुख की गहराई

महाराज प्रेमानंद जी का मानना है कि, 'सत्कर्म का फल तो तुरंत नजर नहीं आता, लेकिन वह सुख स्थायी और गहरा होता है।'

जब हम सत्य, धर्म और नैतिकता के रास्ते पर चलते हैं, तो कठिनाइयां आती हैं, संघर्ष होता है। लेकिन यही संघर्ष हमें मजबूत बनाता है। यह हमें सही अर्थ में खुशी और शांति का अनुभव कराता है। सत्कर्म करने वाले व्यक्ति के मन में संतोष, आत्मगौरव और आंतरिक शांति होती है, जो बाहरी दुनिया के भौतिक सुखों से कहीं बड़ी है। वे जानते हैं कि उनका कर्म धर्म के अनुरूप है, उनका मन शांत है, और वे निडर होकर जीवन का सामना कर सकते हैं।

पाप की कमाई से अर्जित होती है केवल झूठी चमक


पाप की कमाई से जो सुख मिलता है, वह एक धोखे जैसा है। यह सुख चमकदार तो दिखता है, लेकिन वह असली सुख नहीं होता।

प्रेमानंद जी बताते हैं कि,'पाप से पाया धन मन को कभी चैन नहीं देता। वह भय, अपराधबोध और असुरक्षा को जन्म देता है।'

जो व्यक्ति गलत रास्ता अपनाकर अमीर बनता है, वह हमेशा अपने धन को लेकर चिंतित रहता है कि कहीं खो न जाए, कोई उससे छीन न ले, या कानून के शिकंजे में न फंस जाए। यह तनाव उसे अंदर से खोखला कर देता है।

कई बार हम बड़े-बड़े अपराधी और भ्रष्ट लोगों को सुनते हैं जो अपने धन के साथ घुमते हैं, लेकिन उनका मन हमेशा बेचैन रहता है। इसलिए वे असली आनंद से दूर रहते हैं।

सत्कर्मी क्यों होते हैं संघर्षशील?

यह सवाल अक्सर उठता है कि सत्कर्मी लोग मेहनत करते हैं, पर उनकी स्थिति बेहतर क्यों नहीं होती?

महाराज प्रेमानंद जी इसे एक प्राकृतिक प्रक्रिया बताते हुए स्पष्ट करते हैं कि,

'दूध आग में उबालने के बाद ही मलाई देता है।'

सत्कर्मी लोग भी अपने संघर्ष और तपस्या के बाद ही जीवन में गहरा सुख और स्थिरता पाते हैं। उनका संघर्ष उन्हें आंतरिक रूप से मजबूत करता है, उनका मनोबल बढ़ाता है।

जीवन के रास्ते में आने वाली कठिनाइयां उनके लिए परीक्षाएं हैं, जो उन्हें आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित करती हैं। इसलिए वे अंततः स्थायी सफलता और सुख की ओर बढ़ते हैं।

जरूरी ये है कि अंत समय में साथ क्या जाता है?

महाराज प्रेमानंद जी का यह संदेश सबसे गहरा है कि,'जब जीवन का अंत आता है, तब धन-दौलत, भौतिक सुख कुछ साथ नहीं जाता। साथ जाता है केवल आपका कर्म और आत्मा की शांति।'इसलिए सत्कर्म करने वाले जीवन में भले ही संघर्ष करें, पर उनकी आत्मा संतुष्ट होती है। और यही संतुष्टि जीवन का सबसे बड़ा सुख है।

जीवन को सही दिशा देने के उपाय


प्रेमानंद जी के अनुसार, यदि हम अपने जीवन में सुख और शांति चाहते हैं, तो हमें कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए कि, सदैव हमें धर्म और सत्य के रास्ते पर चलना चाहिए। सत्कर्म और परोपकार को जीवन का हिस्सा बनाएं। भौतिक सुखों की लालसा कम करें और आंतरिक शांति की खोज करें। पाप से बचें, क्योंकि उसका परिणाम हमेशा दुखद होता है। धैर्य और संयम रखें, क्योंकि संघर्ष के बाद ही सुख मिलता है। आज की तेजी से बदलती दुनिया में हम यह सोचते हैं कि पैसा और भौतिक सुख ही जीवन की सबसे बड़ी पूंजी हैं। लेकिन महाराज प्रेमानंद जी का संदेश हमें याद दिलाता है कि जीवन की सच्ची पूंजी है सत्कर्म, नैतिकता और आत्मिक शांति।

गलत राह से मिले सुख की चमक अस्थायी होती है, जबकि सत्कर्म से मिला सुख स्थायी और गहरा होता है। इसलिए जीवन में खुश रहना है तो पाप की कमाई से दूर रहें, सत्कर्म को अपनाएं, संघर्षों को गले लगाएं और अंततः सच्चे आनंद का अनुभव करें। क्योंकि असली सुख बाहरी चमक-दमक में नहीं, आपके कर्मों और आत्मा की शांति में है।

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