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Premanand Ji Maharaj Satsang: निःस्वार्थ सेवा से मन का अहंकार घटता है और कर्म की शुद्धता बढ़ती है- प्रेमानंद महाराज
Premanand Ji Maharaj Satsang: प्रेमानंद जी महाराज ने बताया कि कैसे हम आध्यात्मिक मार्ग, नियमित अभ्यास, और संयम के माध्यम से जीवन को समृद्ध और संतुलित बना सकते हैं।
Premanand Ji Maharaj Satsang and Motivation Gyan
Premanand Ji Maharaj Satsang: वृंदावन से मंचस्थ प्रेमानंद महाराज जी का प्रवचन एक बार फिर आध्यात्मिक चेतना को नई दिशा देने वाला रहा। इस दिव्य प्रवचन में उन्होंने गुरुकृपा,भूमिका-साक्षात्कार, भगत भाव और जीवन में सकारात्मकता बनाए रखने के गूढ़ संदेश दिए, जो हर उम्र, पृष्ठभूमि और सामाजिक स्तर के लोगों के बीच आत्मसार किए जाने योग्य हैं। महाराज जी ने सरल भाषा में बताया कि कैसे हम आध्यात्मिक मार्ग, नियमित अभ्यास, और संयम के माध्यम से जीवन को समृद्ध और संतुलित बना सकते हैं। उन्होंने सेवा भाव का महत्व बताते हुए स्पष्ट किया कि किस तरह निःस्वार्थ सेवा से ईश्वर का प्रेम और कर्म की शुद्धता बढ़ती है।
गुरु कृपा का लाभ
महाराज जी ने 'गुरु कृपा' को इस यात्रा की आधारशिला के रूप में वर्णित किया। उन्होंने समझाया कि जब हम निष्काम भाव से गुरु के मार्गदर्शन को अपनाते हैं, तो जीवन में आत्मविश्वास और स्थिरता आती है। आज के समय में, जिसमें चिंता, अव्यवस्था और मानसिक अस्थिरता ने घर कर रखा है। वहां ये गुरु कृपा सीधे आत्मा को सुरक्षित, शांत और केंद्रित बनाती है।
लक्ष्य-साक्षात्कार- अपने आप को पहचाने
महाराज जी ने कहा कि हर व्यक्ति को पहले स्पष्ट रूप से यह समझना होगा कि उसका जीवन उद्देश्य क्या है। सिर्फ सपने देखने से कुछ नहीं होता, जब तक उसे ईमानदारी से आत्मावलोकन के माध्यम से पहचाना न जाए। उन्होंने कहा कि, 'जब तक आपने खुद को, अपनी शक्तियों और लक्ष्यों को नहीं समझा। तब तक गुरु की उपासना अधूरी है।' यह संदेश खासतौर पर युवाओं के लिए प्रासंगिक है, जो करियर, संबंध या आत्मिक संतुष्टि में दिशाहीन महसूस करते हैं। ऐसे में व्यक्ति को बाहरी शोर से हटकर भीतर की शांति की तलाश करना जरूरी है।
कर्म, भक्ति और गुरु भाव एक त्रिवेणी
प्रेमानंद जी महाराज ने कर्मयोग, भक्ति योग और गुरु-भाव को एक त्रैमूर्ति के रूप में बताया। उन्होंने समझाया कि, कर्मयोग से हमारा मन व्यवस्थित और अग्रसर होता है। भक्ति से मन में शांति और श्रद्धा आती है और गुरु-समर्पण से हमें दिशा, आध्यात्मिक ऊर्जा और आशीर्वाद मिलता है। इस मिलन ने जीवन को सिर्फ शारीरिक या मानसिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि आत्मा से जोड़ने का मार्ग भी प्रशस्त किया।
साधारण जीवन और संयम से संतुलन की अनुभूति
अपने प्रवचन में महाराज जी ने आसन, ब्रह्मचर्य और ध्यान के अभ्यास को दैनिक जीवन में लाने की बात कही। जैसे कि, सुबह ब्रह्म मुहूर्त में मंत्र जाप या ध्यान। जो दिन की शुरुआत को शांत और ऊर्जावान बनाता है।
मौन साधना या प्राणायाम, जो मन को नियंत्रित करने में मदद करता है। ये सब साधारण लेकिन इनके गहन अभ्यास जीवन में स्पष्टता और संतुलन लाते हैं।
नकारात्मकता से बचने की नीति
महाराज जी महाराज ने स्पष्ट रूप से कहा कि, 'अगर आप नकारात्मक भाव नष्ट करेंगे, तो ही आपका मन शुद्ध और ऊर्जावान बनेगा।' उन्होंने नकारात्मक विचारों, बद-मुल्याकंन और इर्षा व द्वेष से दूर रहने की सलाह दी। क्योंकि ये सभी मन को विचलित और अशांत करते हैं।
उपलब्धियों के प्रति विनम्रता
प्रवचन में महाराज जी ने दो बातें बार-बार दोहराईं। उन्होंने कहा कि, जीवन की कोई भी सफलता केवल आपके योग्यता से नहीं आती, बल्कि उसमें ईश्वर की कृपा, गुरु का आशीर्वाद, और आपके पूर्व के कर्मों का भी योगदान होता है।
सफलता के बाद जो अहंकार आता है, वही व्यक्ति का पतन बन सकता है।
उन्होंने कहा कि सफलता में भी सदैव नम्रता बनाए रखें, जीवन को सादा और शांत रखें।
सेवा की महत्ता
प्रेमानंद महाराज जी ने मानवता की सेवा को भक्ति का प्रमुख अंग बताया। उन्होंने कहा कि,
दूसरों की भौतिक या आध्यात्मिक जरूरत की मदद करना सिर्फ दान नहीं, साझी दिव्यता है।
'हम दूसरों को जितना देते हैं, उतना ही आत्मा को आनंद मिलता है।'
उनका मानना है कि निःस्वार्थ सेवा से मन का अहंकार घटता है और कर्म की शुद्धता बढ़ती है।
धार्मिकता और दैनिक कर्तव्य के बीच संतुलन
उन्होंने स्पष्ट किया कि हमेशा आर्थिक, मानसिक कर्तव्यों और आध्यात्मिकता के बीच संतुलन बनाए रखना जरूरी । धार्मिक प्रवचन सुनें लेकिन साथ में आधुनिक ज्ञान को समझें। ध्यान भजन का अभ्यास करें, लेकिन दैनिक जिम्मेदारियों से बैर न रखें।
जीवन के उतार‑चढ़ाव में सदैव संयम और श्रद्धा बनाए रखें।
आंतरिक शांति और बाहरी जीवन
महाराज जी का यह संदेश बहुत ही भावपूर्ण था। जिसमें उन्होंने बताया कि,'जब मन में शांति होगी, तभी ही संसार में प्रेम और करुणा फैल सकेगी।' उन्होंने परिवार, ऑफिस, समाज सभी जीवन क्षेत्रों में अंतःचेतना का महत्व बताया। ताकि हम शब्दों से परिवर्तन लाने के साथ ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से भी जीवन जी सकें। महाराज जी द्वारा
बताए गए अभ्यास से सुबह मंत्र-ध्यानदिन की शुरुआत शांत व सकारात्मक,गुरु को समर्पित मन से आशीर्वाद व मार्गदर्शन, सेवा कार्य से अहंकार में कमी, आनंद में वृद्धि, सफलता में अहंकार त्याग से मानसिक शांति, नियमित साधना में ध्यान और भजन से जीवन में संतुलन और ऊर्जा का संचार होता है।
प्रेमानंद महाराज जी के प्रवचन सिर्फ एक धार्मिक उपदेश नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जीवनशैली की नींव है। हर दिन इनसे प्रेरणा मिल सकती है। इन ऊर्जावान संदेशों को अपनाने से मन की गहराई, आत्मिक स्थिरता और समाज में सकारात्मक योगदान सुनिश्चित हो सकता है।
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