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Premanand Ji Maharaj Satsang: मन को शांत रखो, नाम का जप करो, दुःख, चिंता, रोग सब दूर
Premanand Ji Maharaj Satsang: प्रेमानंद जी महाराज ने समझाया कि मन की हलचल ही हमारे कष्टों की जड़ है, आइये जानते हैं और क्या-क्या बताया उन्होंने।
Premanand Ji Maharaj Satsang and Motivation Gyan
Premanand Ji Maharaj Satsang: प्रेमानंद महाराज जी ने अपने प्रतिदिन के प्रातःकालीन प्रवचन की कड़ी में एक समय साधारण लेकिन गहरी बात कही। उन्होंने कहा कि 'दुःख तब आता है, जब मन अशांत होता है।' उन्होंने बताया कि व्यक्ति अपने जीवन में कितना भी कुछ पा ले, लेकिन यदि मन शांत नहीं है, तो सुख का अनुभव नहीं होता। उन्होंने समझाया कि मन की हलचल ही हमारे कष्टों की जड़ है। अगर मन को मौन में रखो, शांत रखो तो खुद-ब-खुद बहुत सी समस्याएं हल हो जाती हैं। उन्होंने कहा, 'जैसे एक गंदा जल जब बहना बंद करता है तो नीचे की गंदगी बैठ जाती है, वैसे ही जब मन को रोकते हो तो शांति प्रकट होती है।' दिन में कम से कम 15 मिनट मौन और आत्मनिरीक्षण में बिताएं।
नाम-जप ही चिंता, कष्ट और रोगों का सच्चा इलाज
महाराज जी का मुख्य संदेश था कि, प्रभु के नाम में अमोघ शक्ति है। उन्होंने कहा कि आज के युग में भौतिक उपचार के साथ-साथ आध्यात्मिक उपचार भी आवश्यक है। इसके लिए भगवान के नाम का जप सबसे आसान और प्रभावी उपाय है। उन्होंने कहा, 'नाम में इतनी शक्ति है कि वह रोग को हर लेता है, चिंता को निगल लेता है और मन को निर्मल बना देता है।' उदाहरण दिया कि जैसे, अग्नि लकड़ी को भस्म कर देती है, वैसे ही नाम-जप पाप और दुखों को भस्म कर देता है। प्रतिदिन सुबह-शाम 5 से 10 मिनट बैठकर 'राम', 'गोविंद', 'कृष्ण', 'राधे' जैसे नामों का मन में या स्वर में जप करें।
आस्था और धैर्य- मनोकामना पूरी होती है, लेकिन अपने समय पर
महाराज जी ने बहुत ही भावनात्मक ढंग से यह बात रखी कि हम अकसर भगवान से मांगते तो हैं, लेकिन उनके समय का सम्मान नहीं करते। उन्होंने स्पष्ट किया कि, भगवान तब कृपा करते हैं जब तीन बातें मिलती हैं- सही समय, सही पात्रता और सही भावना।'
उनका कहना था कि, जब भक्त की नीयत सच्ची होती है और वह धैर्य रखता है, तो प्रभु अवश्य ही कृपा करते हैं। लेकिन यह कृपा उनके समय अनुसार होती है, न कि हमारे अनुमान के अनुसार। प्रार्थना करते समय यह भावना रखें' हे प्रभु जो उचित हो, वही मुझे दो और समय भी तुम्हारा ही हो।'
एकांत और मौन-आत्मबल और ध्यान का मार्ग
आज का मनुष्य बाहरी शोरगुल में इतना उलझा है कि वह अपनी ही आत्मा की आवाज़ नहीं सुन पाता। प्रेमानंद जी ने कहा कि एकांत और मौन आत्मा को भीतर से मजबूत बनाते हैं। 'मौन में मन की शक्ति जागती है, और एकांत में आत्मा का दर्शन होता है।'
उन्होंने सलाह दी कि हर व्यक्ति को दिन में कुछ समय अकेले बैठना चाहिए। बिना फोन, बिना टीवी, बिना किसी से बात किए। सिर्फ अपने भीतर के विचारों को सुनने के लिए। हर दिन 10 से 15 मिनट अकेले किसी शांत स्थान पर बैठें और केवल अपने विचारों को देखें उन्हें रोके नहीं, सिर्फ देखें।
अनुशासन और संयम- साधना को जीवन में उतारें
प्रेमानंद महाराज जी ने स्पष्ट किया कि केवल प्रवचन सुनना काफी नहीं, बल्कि उसे जीवन में उतारना ही असली साधना है। उन्होंने कहा कि, 'जो जीवन में अनुशासन नहीं ला सकता, वह भगवान की कृपा को स्थायी रूप से अनुभव नहीं कर सकता।' अनुशासन का अर्थ केवल नियमों में बंधना नहीं, बल्कि आत्म-संयम और विवेक का विकास करना है। जब इंसान सोच-समझकर खाता है, बोलता है, सोचता है तभी भीतर की शक्ति विकसित होती है। सुबह जल्दी उठने, नियमित जाप-ध्यान, सात्विक आहार और संयमित विचारों का अभ्यास शुरू करें।
आधुनिक मनोविज्ञान भी करता है समर्थन
प्रेमानंद महाराज जी के संदेश सिर्फ अनुभवजन्य नहीं, बल्कि यह शास्त्रों में भी दर्ज हैं। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं - 'शमः दमः तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च'।
इसका भावार्थ है कि, एक आदर्श और सात्विक जीवन जीने के लिए मन की शांति, इंद्रियों पर नियंत्रण, आत्म-अनुशासन (तप), बाह्य और आंतरिक शुद्धता, क्षमा करने की क्षमता और निष्कपटता (सच्चाई और सरलता) अत्यंत आवश्यक गुण हैं। ये गुण आत्म-विकास और आध्यात्मिक प्रगति के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण माने गए हैं। वो गुण जिन्हें अपनाने से मनुष्य शुद्ध और प्रभु के योग्य होता है।
आधुनिक मनोविज्ञान भी स्वीकार करता है कि नाम-जप, ध्यान और मौन से न्यूरोलॉजिकल संतुलन बेहतर होता है, और स्ट्रेस हार्मोन कम होते हैं।
प्रेमानंद महाराज जी का यह प्रवचन केवल एक धर्मिक व्याख्यान नहीं था बल्कि यह एक जीवन-मार्गदर्शक था। उन्होंने अपने श्रोताओं को बताया कि, सुख का मार्ग बाहर नहीं, भीतर है।
नाम-जप और मौन से हर कष्ट का समाधान संभव है।
अनुशासित और सात्विक जीवन से ही प्रभु की कृपा स्थायी होती है।
यदि आप भी जीवन में सच्चा सुख और शांति चाहते हैं, तो आज से ही इन पांच सूत्रों को अपनाएं - मौन, नाम-जप, धैर्य, एकांत, अनुशासन।
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