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Premanand Ji Maharaj Satsang: दुख से लड़ना नहीं है! उसे समझकर पार करना है, यही जीवन की साधना है
Premanand Ji Maharaj Satsang: प्रेमानंद महाराज जी का यह प्रवचन इस कष्ट और दुविधा भरी स्थिति से उबरने के लिए बड़ा ही सरल उपाय लेकर आया, जिसका हर वाक्य अंतरात्मा को सीधा प्रभावित करता है।
Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)
Premanand Ji Maharaj Satsang: कभी-कभी जीवन हमें ऐसे मोड़ों पर लाकर खड़ा कर देता है, जहां सपने, उमंगें और संबल सब कुछ ठहर जाता है। ऐसे ही समय में हमें कोई ऐसा चाहिए जो शब्दों से आत्मा को स्पर्श कर जाए। प्रेमानंद महाराज जी का यह प्रवचन इस कष्ट और दुविधा भरी स्थिति से उबरने के लिए बड़ा ही सरल उपाय लेकर आया, जिसका हर वाक्य अंतरात्मा को सीधा प्रभावित करता है। सत्संग में महाराज जी ने जीवन की कठिनाइयों को 'ईश्वरीय प्रसाद' बताते हुए ये सिखाया कि, दुख भी भगवान की ही कृपा होती है जरूरत है बस देखने की दृष्टि बदलने की।
जब कष्ट आता है, तब कृपा बरसती है
प्रवचन की शुरुआत ही एक गहरे सत्य से हुई कि, जीवन के सबसे कठिन क्षणों में ईश्वर हमें सबसे अधिक करीब से देखता है। महाराज जी ने कहा कि जब भी जीवन में पीड़ा आती है, तब इंसान भीतर से बदलने लगता है। कष्ट केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक अवसर है, आत्मा की प्रगति का, हृदय की शुद्धि का और जीवन के प्रति दृष्टिकोण के परिवर्तन का। उन्होंने उदाहरणों से समझाया कि इतिहास में जितने भी महान संत और साधु हुए, उन्होंने अपने जीवन के सबसे अंधेरे काल में ही ईश्वर का साक्षात्कार किया है।
संघर्ष से नहीं, संकल्प से बनता है चरित्र
महाराज जी ने कहा कि आज की पीढ़ी संघर्ष से डरती है, जबकि संघर्ष से ही इंसान का चरित्र निर्मित होता है। उन्होंने युवाओं को संबोधित करते हुए समझाया कि जीवन में संघर्ष न हो तो आत्मबल कभी पैदा नहीं हो सकता। ईश्वर कभी किसी को बर्बाद नहीं करता, पर वह चाहता है कि हम जीवन की अग्निपरीक्षा में तपकर निखरें। दुख, असफलता, ठोकरें ये सभी ईश्वरीय परीक्षाएं हैं। उन्होंने कहा, जो दुख से डरता है, वो जीवन से दूर भागता है। लेकिन जो दुख से सीखता है, वो जीवन को समझ जाता है।
साधना ही है जीवन की दिशा और दशा की सुधारक
जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान अगर कहीं है तो वह है साधना। महाराज जी ने कहा कि रोजाना कुछ समय मौन में बैठकर नामजप करने से जीवन की सारी उलझनें धीरे-धीरे खुलने लगती हैं। उन्होंने विशेष रूप से यह रेखांकित किया कि भगवान के नाम की महिमा इतनी है कि वह बिना किसी शर्त के, बिना किसी तर्क के, हमारे भीतर स्थिरता और संतोष ले आता है। उन्होंने यह भी कहा कि आज की भागदौड़ में अगर हम 15 मिनट भी राधा नाम' जप लें, तो हमारा मन दिन भर स्थिर और प्रसन्न बना रहता है।
दूसरों से अपेक्षा नहीं, खुद से संबंध बनाएं
महाराज जी के प्रवचन का एक महत्वपूर्ण पहलू था- अपेक्षाओं से मुक्ति। महाराज जी ने बड़ी सहजता से कहा कि, 'हम दुखी इसलिए नहीं हैं कि हमारे जीवन में दुख है, बल्कि इसलिए कि हम उम्मीद करते हैं कि कोई और आएगा और हमारे दुख दूर कर देगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि दूसरों से प्रेम रखो, सेवा करो। पर इन चीजों की उम्मीद किसी से पलट कर मत करो। जब तक हम उम्मीदों का बोझ दूसरों पर डालते रहेंगे, तब तक मन में बेचैनी और तकलीफ बनी रहेगी। लेकिन जिस दिन हम खुद से प्रेम करना सीख जाते हैं, उस दिन दूसरों से अपेक्षा की भावना ही शून्य हो जाती है।
कष्ट से मत डरो, उसे स्वीकार कर तपो
महाराज जी ने अपने प्रवचन में यह स्पष्ट किया कि, 'कष्ट कोई अभिशाप नहीं, बल्कि तप का माध्यम है। उन्होंने कहा कि ईश्वर अपने प्रिय भक्तों को ही अधिक कष्ट देता है ताकि वे भीतर से प्रबल बनें। उन्होंने महाभारत के उदाहरण देते हुए कहा कि, 'जब पांडव वनवास में थे, तब भी भगवान श्रीकृष्ण उनके साथ थे। यह बताता है कि कठिन समय ईश्वर से दूरी नहीं, बल्कि निकटता का प्रमाण होता है। हमें कष्ट से भागना नहीं, उसे धैर्य और प्रेम से स्वीकार करना है।'
मौन साधना आत्मा से मिलने की सबसे पवित्र राह
महाराज जी ने बताया कि आज की दुनिया में बाहर का शोर बहुत है, लेकिन भीतर की आवाज़ बहुत धीमी हो गई है। इस आवाज़ को फिर से सुनने के लिए जरूरी है..मौन। उन्होंने कहा कि, 'मौन' कोई मौन रहना भर नहीं है, बल्कि यह अपने भीतर उतरने की एक कला है। जब हम कुछ नहीं बोलते, तब हम सबसे ज्यादा खुद से बात करते हैं। मौन से चित्त शांत होता है और बुद्धि तेज़ होती है। यह वो साधना है जो बिना किसी विशेष विधि के भी आपको ईश्वर के बहुत पास ले जाती है।
क्षमा करें, पर मूर्ख न बनें
'प्रेम और क्षमा' पर बोलते हुए महाराज जी ने स्पष्ट किया कि, जो व्यक्ति वास्तव में अपनी गलती पर पश्चाताप करता है, उसे क्षमा देना चाहिए। लेकिन जो बार-बार उसी भूल को दोहराता है, उसके प्रति कठोर होना ही हितकारी है। उन्होंने कहा कि 'दूसरे को माफ करना सरल है, पर खुद को बार-बार आहत होने देना मूर्खता है'। यह संतुलन ही जीवन में शांति और आत्मसम्मान की रक्षा करता है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि क्षमा तभी सार्थक है जब उसके साथ विवेक भी हो।
सकारात्मक सोच बनाएं जीवन का मूल मंत्र
महाराज जी का भक्तों के लिए यह काफी प्रभावी संदेश है कि, 'अपना दृष्टिकोण बदलो, जीवन बदल जाएगा।' उन्होंने कहा कि, एक ही घटना किसी को तोड़ सकती है और किसी को बना सकती है। फर्क सिर्फ सोच में होता है। अगर आप हर परिस्थिति को 'यह भगवान की इच्छा है' मानकर स्वीकार कर लें, तो कोई भी परिस्थिति आपको विचलित नहीं कर सकती। उन्होंने यह भी कहा कि यदि हर सुबह यह सोचकर उठें कि 'आज ईश्वर का दिया एक और दिन है,' तो जीवन में एक नई ऊर्जा, नया उत्साह और नई श्रद्धा जन्म लेती है
प्रेमानंद महाराज जी का यह प्रवचन केवल आध्यात्मिक उपदेश नहीं था, बल्कि यह हर मनुष्य के लिए एक स्पष्ट दिशासूचक था कि, कैसे कठिनाइयों को स्वीकार करके, भीतर उतरकर, साधना द्वारा और सकारात्मक सोच के माध्यम से हम एक बेहतर और शांतिपूर्ण जीवन की ओर बढ़ सकते हैं। दुख कोई संयोग नहीं, बल्कि हमारे भीतर की शक्ति को जगाने का ईश्वरीय उपाय है और इस प्रवचन का सबसे अहम संदेश यह है कि, जो दुख को देखकर नहीं डरता, वही सच्चा साधक बनता है।
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