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Rabindranath Tagore: करोड़ों में बिकी रवींद्रनाथ टैगोर की दिल से तराशी गई विरासत-मूर्ति और दुर्लभ पत्रों की ऐतिहासिक नीलामी

Rabindranath Tagore: यह नीलामी न सिर्फ कला प्रेमियों के लिए एक ऐतिहासिक क्षण रही, बल्कि इसने टैगोर के बहुआयामी व्यक्तित्व की एक अनोखी और अनदेखी भावनाओं को भी उजागर किया।

Jyotsna Singh
Published on: 2 July 2025 9:03 PM IST
Rabindranath Tagore
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Rabindranath Tagore (Image Credit-Social Media)

Rabindranath Tagore: भारतीय साहित्य और कला की विरासत में अगर कोई नाम पूरे वैश्विक पटल पर अमर है, तो वह रवींद्रनाथ टैगोर का है। एक ऐसे व्यक्तित्व, जिन्होंने सिर्फ कलम नहीं चलाई, बल्कि अपने विचारों, भावनाओं और रचनाओं से पूरी एक पीढ़ी को दिशा दी। उनकी कविताएं, गीत, उपन्यास, नाटक और चित्रकला आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी वे अपने समय में थीं। हाल ही में टैगोर के कृतित्व से जुड़ी दो दुर्लभ धरोहरें, उनके हाथों से बनाई गई एकमात्र मूर्ति और 35 पत्रों का संग्रह कोलकाता में नीलाम हुआ। यह नीलामी न सिर्फ कला प्रेमियों के लिए एक ऐतिहासिक क्षण रही, बल्कि इसने टैगोर के बहुआयामी व्यक्तित्व की एक अनोखी और अनदेखी भावनाओं को भी उजागर किया। आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक नीलामी के बारे में विस्तार से-

टैगोर- शब्दों से जीवन को रचने वाला कलाकार

रवींद्रनाथ टैगोर (1861–1941) केवल एक कवि नहीं थे, वे भारतीय नवजागरण के अग्रदूत, एक दार्शनिक, चित्रकार, संगीतज्ञ और स्वतंत्रता आंदोलन के सांस्कृतिक प्रतिनिधि थे। वे पहले एशियाई व्यक्ति थे जिन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार (1913) से सम्मानित किया गया। उन्होंने 'जन गण मन' की रचना की, जो आज भारत का राष्ट्रीय गान है।


उनकी रचनाएं बांग्ला भाषा को विश्व साहित्य में एक सम्मानजनक स्थान दिलाने वाली रचनाओं में गिनी जाती हैं। गीतांजलि, घरे बाहिरे, चोखेर बाली, गौरांगेरी कथा, रथयात्रा जैसे उपन्यास और कविताएं आज भी साहित्यिक धरोहर मानी जाती हैं। टैगोर जीवन को एक समग्र कला मानते थे। उन्होंने शांति निकेतन की स्थापना कर शिक्षा को सिर्फ किताबी ज्ञान से ऊपर उठाने का प्रयास किया।

ऐतिहासिक नीलामी- दिखी टैगोर की दुर्लभ विरासत की झलक

28 जून 2025 को कोलकाता के प्रसिद्ध नीलामीघर अस्तागुरु द्वारा एक अनोखी नीलामी आयोजित की गई। इसे ‘कलेक्टर्स चॉइस’ नाम दिया गया था। इस नीलामी में टैगोर की हाथों से बनाई गई एकमात्र मूर्तिकला और उनके 35 दुर्लभ पत्र और 14 लिफाफे शामिल थे।

इस नीलामी का मुख्य आकर्षण रही वह मूर्ति, जिसे टैगोर ने 1883 में मात्र 22 वर्ष की उम्र में कर्नाटक के कारवार शहर में बनाया था।


इसका नाम 'The Heart' रखा गया, क्योंकि यह एक दिल के आकार की मूर्ति है।

यह मूर्ति 55 से 70 लाख रुपये की अनुमानित कीमत के साथ नीलामी में रखी गई थी, लेकिन टैगोर प्रेमियों ने इसे 1.04 करोड़ रुपये में खरीदा। यह मूर्ति टैगोर ने कादंबरी देवी (अपने भाई की पत्नी) की याद में बनाई थी, जिनका उनके जीवन में गहरा भावनात्मक स्थान था।

मूर्ति पर टैगोर ने लिखा था कि, 'पत्थर से अपना दिल काटकर मैंने अपने हाथों से उकेरा है। क्या यह कभी आंसुओं की धारा से मिट जाएगा?”

मूर्ति पीढ़ियों से चली आ रही विरासत

यह मूर्ति टैगोर ने अपने मित्र कवि अक्षयचंद्र चौधरी को भेंट की थी। अक्षयचंद्र ने इसे अपनी बेटी उमारानी को सौंपा और आगे चलकर यह देबजानी को दी गई जिनकी शादी प्रसिद्ध पेंटर अतुल बोस से हुई थी। यह मूर्ति 2024 तक उन्हीं के परिवार के पास थी और तब पहली बार कोलकाता में प्रदर्शित की गई थी।

नीलाम हुए टैगोर के पत्र

ये सभी पत्र रविंद्र टैगोर द्वारा 1927 से 1936 के बीच टैगोर ने प्रसिद्ध समाजशास्त्री धुर्जति प्रसाद मुखर्जी को लिखे थे। इनकी अनुमानित कीमत 5 से 7 करोड़ रुपये के बीच थी, जबकि 5.6 करोड़ रुपये में इन्हें खरीदा गया।



इन पत्रों से टैगोर के जीवन के विचारशील, दार्शनिक और साहित्यिक पहलुओं की गहराई का अंदाज़ा मिलता है। नीलामीघर के CMO मनसुखानी ने कहा कि, 'यह नीलामी विशेष थी क्योंकि यहां दृश्य कला नहीं, बल्कि टैगोर के हाथों से लिखी गई पांडुलिपियों का संग्रह मौजूद था। जिनसे उनके मानसिक संसार की झलक मिलती है।' टैगोर को हम अक्सर कवि या लेखक के रूप में जानते हैं, लेकिन उनका रचनात्मक मन चित्रकला और शिल्प में भी रुचि रखता था। उन्होंने 60 वर्ष की उम्र के बाद चित्र बनाना शुरू किया। उनकी इस कला ने यूरोप में भी पहचान पाई। उनका मानना था कि 'कला आत्मा की वह भाषा है जो शब्दों से परे होती है।'

संग्रहालय बनाम निजी संग्रह इस पर छिड़ी एक बहस

इस नीलामी के बाद एक सवाल फिर से उठ खड़ा हुआ कि क्या ऐसी अमूल्य धरोहरें सार्वजनिक संग्रहालयों में होनी चाहिए?

सत्येंद्रनाथ टैगोर, जो रवींद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई थे। सत्येंद्रनाथ भारतीय सिविल सेवा में शामिल होने वाले पहले भारतीय भी थे। इन्होंने अनुवाद, लेखन और समाज सुधार में भी योगदान दिया। सत्येंद्रनाथ ने रवींद्रनाथ टैगोर को साहित्य और कला के क्षेत्र में प्रभावित किया। वहीं सत्येंद्रनाथ की पत्नी कादंबरी देवी, रवींद्रनाथ टैगोर के साथ भी अच्छी दोस्ती थी।

सत्येंद्रनाथ टैगोर के परपोते सुमंतो चट्टोपाध्याय ने इस नीलामी को लेकर कहा, 'यह मालिक का विशेषाधिकार है, लेकिन मैं इन्हें संग्रहालयों में देखना ज्यादा पसंद करूंगा। टैगोर की कलाकृतियां मानवता की विरासत हैं। उन्होंने राष्ट्रवाद को मानवतावाद से जोड़ा। शिक्षा को रचनात्मकता और स्वतंत्र सोच का माध्यम माना। वे जीवन की हर अभिव्यक्ति को कला का रूप मानते थे।' रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन में न सिर्फ साहित्य को नई ऊंचाइयां दीं, बल्कि कला, दर्शन और समाज को भी एक नई दृष्टि दी। उनकी एकमात्र मूर्ति और दुर्लभ पत्रों की यह नीलामी उनके प्रेमियों के लिए उनके बहुआयामी व्यक्तित्व और संवेदनशील मन के और करीब लाती है।

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