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जयंती विशेष : सरदार वल्लभ भाई पटेल - लौह पुरुष जिसने दिया ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का संदेश
सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती विशेष: भारत की एकता के निर्माता और लौह पुरुष सरदार पटेल ने ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का संदेश दिया। रियासतों के एकीकरण से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक, उनका साहस, दूरदर्शिता और न्यायप्रियता आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।
Sardar Vallabhbhai Patel (Image Credit-Social Media)
Birth Anniversary Special: 1942 में गांधीजी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की घोषणा की, पटेल ने अहमदाबाद के लोकल बोर्ड मैदान में एक लाख से अधिक लोगों के सामने आंदोलन की रूपरेखा स्पष्ट की। उन्होंने कहा कि यदि नेता गिरफ्तार भी हो जाएं तो जनता के हाथ में शक्ति इतनी है कि ब्रिटिश शासन को मात्र 24 घंटे में चुनौती दी जा सकती है।
भारत की आज़ादी के इतिहास में कई ऐसी हस्तियों का नाम शामिल है, जिनकी दूरदर्शिता और साहस ने पूरे राष्ट्र के भविष्य को आकार देने में अपनी महती भूमिका निभाई है। सरदार वल्लभ भाई पटेल भी उन्हीं महापुरुषों में से एक हैं। एक साधारण गांव में जन्मे, सरदार वल्लभ भाई पटेल जिन्होंने अपने सरल जीवन और अदम्य साहस से अपनी खास पहचान कायम की। साथ ही यह संदेश दिया कि नेतृत्व केवल पद और शक्ति का नाम नहीं, बल्कि जिम्मेदारी, धैर्य और न्यायप्रियता का प्रतीक है। स्वतंत्रता संग्राम में उनकी रणनीतिक सूझबूझ, भारतीय रियासतों के एकीकरण में उनका योगदान और व्यक्तिगत सादगी ये सभी गुण उन्हें एक राजनेता से भी ऊपर उठकर आधुनिक भारत का निर्माता और लौह पुरुष का दर्जा प्रदान करते हैं। आइए जानते हैं वल्लभभाई झावेरभाई पटेल की जयंती पर उनके जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण किस्सों के बारे में -
वल्लभभाई झावेरभाई पटेल का प्रारंभिक जीवन
31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले के कारमसद गांव में वल्लभभाई झावेरभाई पटेल का जन्म हुआ था। वे अपने पिता झावेरभाई और मां लाडबा पटेल के चौथे पुत्र थे। बचपन से ही उनमें नेतृत्व और न्यायप्रियता की विशेषताएं दिखाई दीं। स्कूली शिक्षा के दौरान उन्होंने अपने शिक्षक संघ के खिलाफ खड़े होकर छात्रों को अनावश्यक आर्थिक बोझ से बचाया। जो उनकी राजनीति की पहली सीधी बना। उनकी शिक्षा यात्रा लंबी और कठिन रही। 22 वर्ष की उम्र में उन्होंने 10वीं की परीक्षा पास की और 1908 में इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त की। अहमदाबाद में उन्होंने फौजदारी वकालत में अपनी पहचान बनाई और समाज के लिए कई कानूनी लड़ाइयों में अग्रणी भूमिका निभाई। निजी जीवन में भी उन्होंने कठिनाइयों का सामना किया। उनकी पत्नी झबेरबा का 33 साल की उम्र में निधन हो गया और उनके पास खुद का मकान भी नहीं था। सरदार वल्लभभाई पटेल और उनकी पत्नी झबेरबा पटेल के दो बच्चे थे।
महात्मा गांधी के नेतृत्व में सरदार पटेल का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
सरदार पटेल का राजनीतिक जीवन महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा। जब 1942 में गांधीजी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की घोषणा की, पटेल ने अहमदाबाद के लोकल बोर्ड मैदान में एक लाख से अधिक लोगों के सामने आंदोलन की रूपरेखा स्पष्ट की। उन्होंने कहा कि यदि नेता गिरफ्तार भी हो जाएं तो जनता के हाथ में शक्ति इतनी है कि ब्रिटिश शासन को मात्र 24 घंटे में चुनौती दी जा सकती है। उनके भाषण और नेतृत्व ने लोगों में उत्साह और विश्वास जगाया।
गृहमंत्री के रूप में पटेल ने किया भारत का एकीकरण
स्वतंत्रता के बाद देश के सामने सबसे बड़ा प्रश्न था 562 रियासतों को भारतीय संघ में समाहित करना। सितंबर 1946 में, जब जवाहरलाल नेहरू की अस्थाई राष्ट्रीय सरकार बनी, पटेल को गृहमंत्री नियुक्त किया गया। उन्होंने इस मैटर चुनौतीपूर्ण कार्य को दूरदर्शिता और रणनीति के साथ पूरा किया। जूनागढ़, हैदराबाद, कश्मीर, बड़ौदा और अन्य रियासतों को बिना खून-खराबे के भारतीय संघ में शामिल करना उनके नेतृत्व की मिसाल है। वहीं चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई द्वारा तिब्बत को चीन का अंग मानने की मांग पर पटेल ने नेहरू से कहा कि, भारत इसे स्वीकार न करे। उनकी यह सलाह यदि समय पर मानी गई होती तो 1962 के भारत-चीन युद्ध की परिस्थितियां शायद नहीं बनतीं। आजादी के बाद जब हैदराबाद और जूनागढ़ ने भारत में मिलने से मना कर दिया। इसके पीछे पाकिस्तान और मोहम्मद अली जिन्ना की चाल थी, लेकिन हैदराबाद में सरदार पटेल ने सेना भेजकर वहां के निजाम का आत्मसमर्पण करवा लिया। वहीं, जूनागढ़ में जनता के विद्रोह से घबराकर वहां का नवाब भागकर पाकिस्तान चला गया। इसी तरह भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान ने भी शर्त रख दी कि वो या तो आजाद रहेंगे या पाकिस्तान में मिल जाएंगे। इसके बाद सरदार पटेल की वजह से ही भोपाल के नवाब ने हार मान ली। 1 जून 1949 को भोपाल भारत का हिस्सा बन गया।
14 मई 1939 को गुजरात के भावनगर में जब सरदार वल्लभभाई पटेल पर एक जानलेवा हमला हुआ
14 मई 1939 की घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण लेकिन कम चर्चित अध्याय है। यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई संघर्ष और बलिदान हुए हैं, जो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए हैं। 14-15 मई 1939 को भावनगर राज्य परिषद की पांचवीं बैठक आयोजित की गई थी, जिसकी अध्यक्षता सरदार पटेल ने की। जैसे ही वे एक खुले जीप में यात्रा कर रहे थे, नगीना मस्जिद के पास 57 हथियारबंद हमलावरों ने उन पर हमला किया। हमलावरों के पास तलवारें और भाले थे। इस हमले में दो युवा कार्यकर्ताओं, बच्चूभाई पटेल और फूलभाई मोदी ने अपनी जान की आहुति दी, जिससे सरदार पटेल की जान बची। बच्चूभाई महल पर ही शहीद हो गए, जबकि फूलभाई मोदी अस्पताल में दम तोड़ गए।
ब्रिटिश शासन की जांच और सजा
ब्रिटिश शासन ने इस घटना की जांच के लिए विशेष अदालत का गठन किया। 57 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से आज़ाद अली और रुस्तम अली सिपाहियों को फांसी की सजा दी गई, जबकि 15 अन्य को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
इतिहास से क्यों हटाया गया ये पन्ना?
इस घटना को इतिहास से हटाने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। एक संभावना यह है कि हमलावरों का संबंध मुस्लिम समुदाय से था, और इस तथ्य को उजागर करने से सांप्रदायिक तनाव बढ़ने का डर था। इसके अलावा, यह घटना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर भी विवाद का कारण बन सकती थी, क्योंकि सरदार पटेल की हत्या के प्रयास को लेकर कुछ राजनीतिक मतभेद हो सकते थे। इसलिए, इस घटना को इतिहास की मुख्यधारा से बाहर रखा गया।
राजनीतिक क्षेत्र से परे ऐतिहासिक और सामाजिक योगदान
सरदार पटेल का योगदान केवल राजनीतिक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण, गांधी स्मारक निधि की स्थापना और कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा तैयार करने जैसे कार्य किए। गोवा को भारत में विलय कराने की उनकी इच्छा भी मुखर थी। एक अवसर पर भारतीय युद्धपोत द्वारा गोवा की स्थिति का मूल्यांकन करते हुए उन्होंने आवश्यक कार्रवाई की तैयारी की थी। पटेल और नेहरू के बीच विचारों में अंतर था, फिर भी गांधी से वचनबद्ध होने के कारण उन्होंने हमेशा सहयोग किया। गंभीर मुद्दों को हल्के और विनोदी अंदाज में प्रस्तुत करने की उनकी कला भी प्रसिद्ध थी। कश्मीर को लेकर उनका कथन था कि, सब जगह तो मेरा वश चल सकता है, पर जवाहरलाल की ससुराल में मेरा वश नहीं चलेगा'। ये कथन उनकी सूझबूझ और व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण का उदाहरण पेश करता है।
सरदार पटेल का निजी जीवन और निधन
सरदार पटेल का जीवन सादगीपूर्ण और नैतिक मूल्यों पर आधारित था। उन्होंने कभी व्यक्तिगत लाभ को प्राथमिकता नहीं दी। 15 दिसंबर 1950 को 76 वर्ष की आयु में उनका हृदय-गति रुक जाने से निधन हुआ। उनकी दृढ़ता, कार्यक्षमता और नैतिकता के कारण ही उन्हें लौह पुरुष कहा जाता है। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारतीय लोकतंत्र और राष्ट्रीय एकता की नींव रखी। उनका प्रसिद्ध नारा था, 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' आज भी देशवासियों को एकता और देशभक्ति का संदेश देता है।
राष्ट्रीय एकता दिवस के अवसर पर उनकी स्मृति हमें याद दिलाती है कि स्वतंत्रता, एकता और अनुशासन के मूल्यों के बिना कोई राष्ट्र स्थिर नहीं रह सकता। आधुनिक भारत की अखंडता और सामर्थ्य में सरदार पटेल का योगदान सदैव प्रेरणादायक रहेगा।
डिस्क्लेमर: यह आलेख ऐतिहासिक स्रोतों और उपलब्ध जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें व्यक्त किए गए विचार और घटनाएं तथ्यात्मक रूप में प्रस्तुत हैं, लेकिन कुछ विवरण संक्षिप्त और पाठक-सुलभ बनाने के लिए सरल शब्दों में अनूदित किए गए हैं।
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