Quit India Movement: 'करो या मरो' की पुकार भारत छोड़ो आंदोलन- जिसे अंग्रेज़ी साम्राज्य की जड़े हिला दीं

Quit India Movement: महात्मा गांधी के एक छोटे से वाक्य 'करो या मरो' के नारे के साथ भारत छोड़ो आंदोलन ने करोड़ों भारतीयों के दिलों में आजादी की ऐसी आग जलाई जिसने ब्रिटिश साम्राज्य को गहराई तक हिला दिया।

Jyotsana Singh
Published on: 9 Aug 2025 6:40 AM IST (Updated on: 9 Aug 2025 6:40 AM IST)
Do or kill the cry of Quit India Movement - which shook the foundations of the British Empire
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 'करो या मरो' की पुकार भारत छोड़ो आंदोलन- जिसे अंग्रेज़ी साम्राज्य की जड़े हिला दीं (Photo- Newstrack)

Quit India Movement: 1942 का भारत राजनीतिक उथल-पुथल और उम्मीद के भवन में डूबा हुआ था। एक तरफ दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध के विनाश में जल रही थी। तो दूसरी तरफ भारत अपने सबसे निर्णायक मोड़ पर खड़ा था। महात्मा गांधी के एक छोटे से वाक्य 'करो या मरो' के नारे के साथ भारत छोड़ो आंदोलन ने करोड़ों भारतीयों के दिलों में आजादी की ऐसी आग जलाई जिसने ब्रिटिश साम्राज्य को गहराई तक हिला दिया। यह आंदोलन केवल नेताओं का नहीं बल्कि हर उस आम आदमी का था। जो स्वतंत्रता का सपना देख रहा था। गांव-गांव, शहर में इसकी गूंज सुनाई देने लगी और भारत की आजादी अब केवल एक मांग नहीं बल्कि जीवन मरण का प्रश्न बन गई। आईए जानते हैं भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े इतिहास और किस्सों के बारे में विस्तार से-

When and why did the idea of Quit India arise?

कब और क्यों उठा भारत छोड़ो का विचार

भारत छोड़ो आंदोलन के पृष्ठभूमि को समझने के लिए हमें 1939 में लौटना होगा जब द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ा। ब्रिटेन ने बिना भारतीय नेताओं से राय लिए भारत को युद्ध में झोंक दिया। यह कदम भारतीयों के आत्मसम्मान को गहरी चोट देने वाला था। कांग्रेस ने इस युद्ध के विरोध में 1939 के अंत में प्रांतीय सरकारों से इस्तीफा दे दिया। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने कोई गंभीर कदम नहीं उठाया और भारत की जनता पर युद्ध का आर्थिक और सामाजिक बोझ बढ़ता चला गया। इस बीच महात्मा गांधी और कांग्रेस नेतृत्व ने स्पष्ट कर दिया कि भारत अब अधूरी आजादी या डोमिनियन स्टेटस की बात स्वीकार नहीं करेगा।


युद्ध के दौरान ब्रिटेन की स्थिति कमजोर हो रही थी और उसे भारत में समर्थन की जरूरत थी। इसी कोशिश में मार्च 1942 में क्रिप्स मिशन भारत आया। मिशन ने युद्ध के बाद भारत को सीमित प्रशासन और डोमिनियन स्टेटस (औपनिवेशिक स्वराज्य)देने का प्रस्ताव रखा। लेकिन इसमें तत्काल स्वतंत्रता का कोई प्रावधान नहीं था। गांधी ने इस 'मृत जन्मा प्रस्ताव' कहा और भारत छोड़ो का विचार कांग्रेस के भीतर तेजी से मजबूत हुआ।

When the decisive call for independence arose from Gwalior Tank Maidan in Mumbai
जब मुंबई के ग्वालियर टैंक मैदान से उठी स्वाधीनता की निर्णायक पुकार

8 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वालियर टैंक मैदान (आज का अगस्त क्रांति मैदान) में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक हुई। जहां गांधी जी ने अपने ऐतिहासिक भाषण में जनता से कहा कि 'हम केवल एक मंत्र देते हैं करो या मरो। यह किसी हिंसक क्रांति का आवाहन नहीं था, बल्कि अहिंसा प्रतिरोध का सबसे प्रखर रूप था। गांधी जी का आशय था कि या तो हम अपनी आजादी हासिल करेंगे या फिर इस कोशिश में प्राण न्योछावर कर देंगे। यह भाषण देश भर में बिजली की तरह फैल गया। सभा में उपस्थित लोगों के आंसू में आंखों में आंसू और दिल में जोश था। उन्हें लगने लगा के अब आजादी का सूरज ज्यादा दूर नहीं।

British rule's immediate response and suppression of leadership

ब्रिटिश शासन की तत्काल प्रतिक्रिया और नेतृत्व का दमन

गांधी जी का भाषण खत्म होने के कुछ घंटे के भीतर ही ब्रिटिश सरकार हरकत में आ गई। 9 अगस्त की सुबह गांधी जी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, राजेंद्र प्रसाद समेत कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। गांधी जी और कस्तूरबा गांधी को पुणे के आगा खान पैलेस में नजर बंद किया गया। बाकी नेताओं को अलग-अलग जेल में भेज दिया गया। समूचे नेतृत्व के अचानक जेल जाने से आंदोलन एक तरह से 'नेताहीन' हो गया। लेकिन यही इसकी सबसे बड़ी ताकत भी बनी अब यह आंदोलन पूरी तरह से जनता के हाथ में था। यह स्वतः स्फूर्त विद्रोह की तरफ फैलने लगा और देश के हर कोने में अंग्रेजी शासन के खिलाफ गुस्सा फूट पड़ा।

Public revolt and expansion of the movement


जनता का विद्रोह और आंदोलन का विस्तार

नेताजी की गिरफ्तारी के बाद आंदोलन बेकाबू हो गया। गांव-गांव और शहर शहर लोग सड़क पर उतर आए। जगह-जगह सरकारी दफ्तरों पर तिरंगा फहराया जाने लगा। रेलवे स्टेशन और डाकघर निशाना बनने लगे। रेलवे की पटरिया उखाड़ दी गई। डाक-तार की लाइनें काट दी गईं। ताकि सरकारी संचार ठप हो जाए। बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल महाराष्ट्र और उड़ीसा जैसे राज्यों में आंदोलन ने सबसे उग्र रूप लिया। कई जगह किसान आंदोलन से जुड़े और उन्होंने लगान देने से इनकार कर दिया। छात्र पढ़ाई छोड़कर सड़कों पर आ गए। महिलाएं भी पीछे नहीं रहीं। वे पर्चे बांटने, संदेश पहुंचाने और यहां तक की पुलिस थानों पर तिरंगा पर आने तक में आगे रही।

Underground movement and secret activities remained strong

भूमिगत आंदोलन और गुप्त गतिविधियां का रहा जोर


नेताओं के जेल में होने के बावजूद आंदोलन की लड़ाई धीमी नहीं हुई। जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और उषा मेहता जैसे युवा नेता भूमिगत हो गए। उषा मेहता ने एक गुप्त रेडियो स्टेशन आजाद हिंद रेडियो शुरू किया। जो अंग्रेजों की सेंसरशिप से बचकर पूरे देश में आंदोलन का संदेश प्रसारित करता था। गांव गांव में गुप्त सभाएं होती थीं। जहां योजनाएं बनती की सरकार तंत्र को कैसे कमजोर किया जाए। तांबे के पतले पत्रों पर संदेश लिखकर एक गांव से दूसरे गांव भेजे जाते ताकि अंग्रेजों के हाथ न लगें। यह दौर ब्रिटिश सरकार के लिए सबसे चुनौती पूर्ण था। क्योंकि आंदोलन को पूरी तरह कुचलना के बावजूद वह उसे समाप्त नहीं कर पा रही थी।

There are countless inspiring stories of sacrifice and courage associated with the Quit India Movement

भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ी है बलिदान और साहस की अनगिनत प्रेरक कहानियां

भारत छोड़ो आंदोलन में कई ऐसी घटनाएं घटींं जो आज भी प्रेरणा देती हैं। मुंबई में अरुणा आसफ अली ने कांग्रेस का झंडा फहराकर यह दिखा दिया कि महिलाएं इस संघर्ष में बराबर की हिस्सेदारी है। बिहार के कई जिलों में किसानों ने सरकारी नीलामी रोक दी और अपने खेतों को बचाने के लिए ब्रिटिश पुलिस का सामना किया।


कई जगहों पर छोटे-छोटे गांवों ने खुद को 'स्वतंत्र' घोषित कर दिया। महाराष्ट्र के सतारा में 'प्रति सरकार' (समानांतर सरकार) की स्थापना हुई। जिसने 2 साल तक स्थानीय स्तर पर प्रशासन चलाया।

British repression and panic attack

ब्रिटिश दमन और दहशत का दौरा

ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। पुलिस और सेना को गोली चलाने के आदेश दे दिए गए। हजारों लोग गिरफ्तार हुए सैकड़ो मारे गए और असम के घायल हुए। कई गांवों में घरों को आग लगा दी गई। महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया और लोगों की संपत्ति जप्त कर ली गई। प्रेस पर पूरी तरह सेंसरशिप लगा दी गई ताकि आंदोलन की खबरें बाहर ना जा सकें। लेकिन दमन के बावजूद जनता के मन से आजादी की लौ माध्यम नहीं हुई बल्कि यह और प्रज्वलित हो गई। लोगों को या साफ समझ आ गया कि अब केवल पूर्ण स्वतंत्रता ही भारत का भविष्य है।

The slow end of the movement had a profound effect

आंदोलन का धीमा अंत पर गहरा असर

भारत छोड़ो आंदोलन का अंत कोई तय नहीं था। 1942 के अंत तक इसका बड़ा उग्र रूप खत्म हो गया, लेकिन भूमिगत गतिविधियां 1944 तक जारी रहीं। गांधी जी 1944 में जेल से रिहा हुए। 'भारत छोड़ो' आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किया गया था। तब तक यह आंदोलन अपने पीछे एक अटूट संकल्प छोड़ चुका था कि, अब भारत में ब्रिटिश राज अधिक दिनों तक टिकने वाला नहीं। हालांकि आंदोलन अपने तात्कालिक उद्देश्य- तुरंत आजादी को हासिल नहीं कर सका। लेकिन इसने ब्रिटिश सरकार को यह एहसास कर दिया कि भारतीय जनता अब किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करेगी। यही कारण है कि 1947 में जब ब्रिटेन द्वितीय विश्व युद्ध से कमजोर होकर उभरा तो उसे भारत छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं दिखा। भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में शुरू हुआ और यह 1944 तक काफी हद तक समाप्त हो गया था। हालांकि, 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद यह आंदोलन औपचारिक रूप से समाप्त हो गया। भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अंतिम और निर्णायक दस्तक थी। गांधी जी का 'करो या मरो' नारा केवल एक राजनीतिक घोषणा नहीं था बल्कि यह करोड़ भारतीयों की आत्मा की आवाज बन गया। इस आंदोलन ने साबित कर दिया की जनता की सामूहिक इच्छा और साहस किसी भी साम्राज्य को झुका सकता है। आज अगस्त 1942 कि उस आजादी की लहर को याद करते हुए हम समझ सकते हैं कि, स्वतंत्रता का रास्ता केवल कागजी समझौतों से नहीं बल्कि जन आंदोलनों, बलिदानों और अटूट विश्वास से बनता है...भारत छोड़ो आंदोलन की सच्चाई का सबसे प्रबल उदाहरण है।

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Shivam Srivastava

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