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सड़क पर नमाज़ नहीं, साजिश पर सवाल उठाओ! लखनऊ में चंद्रशेखर आज़ाद के ऐलान से कांपी सियासत, कहा- 'ये सिर्फ संवाद नहीं, आंदोलन की शुरुआत है'
लखनऊ में चंद्रशेखर आज़ाद के मुस्लिम संवाद कार्यक्रम ने सियासी भूचाल मचाया। सड़क पर नमाज़ नहीं, साजिश पर सवाल उठाओ... इस हुंकार से शुरू हुआ नया आंदोलन! क्या दलित, मुस्लिम और पिछड़े मिलकर बदलेंगे 2027 का राजनीतिक समीकरण?
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Lucknow News: लखनऊ की धड़कनों को तेज़ कर देने वाली दोपहर थी। अटल बिहारी वाजपेयी साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर की दीवारें आज शब्दों से नहीं, बल्कि आग से तप रही थीं। मंच पर चढ़े एक ऐसे चेहरे की आवाज़ गूंज रही थी, जिसे न तो सत्ता का डर है, न ही साजिशों का खौफ। वो बोले, तो लगता है जैसे कोई क्रांति दस्तक दे रही हो। चंद्रशेखर आज़ाद, नगीना से सांसद और आज़ाद समाज पार्टी काशीराम के राष्ट्रीय अध्यक्ष, जब लखनऊ की धरती पर बोले – तो लगा जैसे दलित, पिछड़े और मुसलमानों के लिए एक नया सूरज उगने वाला है।
'ये सिर्फ संवाद नहीं… ये आंदोलन का आग़ाज़ है'
कार्यक्रम का नाम था 'मुस्लिम संवाद', लेकिन मंच से जो लफ्ज़ निकले वो सिर्फ बात नहीं, बल्कि बगावत का ऐलान थे। चंद्रशेखर आज़ाद ने नारा नहीं लगाया, बल्कि आग लगा दी... उस सिस्टम में, उस सोच में, जो अल्पसंख्यकों के हक को कुचलने की कोशिश कर रही है। उन्होंने साफ कहा कि देश में मुसलमानों को शूद्र बनाया जा रहा है, उनकी धार्मिक आज़ादी छीनी जा रही है। एक तरफ कांवड़ियों के लिए हेलीकॉप्टर से फूल बरसते हैं और दूसरी तरफ कोई मुस्लिम सड़क पर नमाज़ पढ़े तो एफआईआर हो जाती है। इस बयान ने न सिर्फ सत्ता के गलियारों को हिला दिया बल्कि उन लाखों-करोड़ों लोगों के दिलों को भी झकझोर दिया जो आज खुद को हाशिए पर महसूस करते हैं।
'मुस्कुराने की नहीं, लड़ने की घड़ी है'
चंद्रशेखर की आवाज़ में दर्द था, लेकिन उससे भी ज़्यादा क्रोध था। उन्होंने कहा 'आज कोई मुस्कुरा नहीं सकता। जो सत्ता के साथ नहीं है, उसका जीना हराम कर दिया गया है। यादव, कुर्मी, लोधी, साहू कोई नहीं बचा है। सबका शोषण हो रहा है।' उन्होंने मंच से साफ ऐलान किया कि अब वक्त आ गया है जब दलित, पिछड़े और मुसलमान मिलकर एक राजनीतिक गठबंधन बनाएं, 'ये नारा नहीं, जरूरत है। उन्होंने कहा कि क्योंकि अब हम एक-एक कर मारे जा रहे हैं और अगर अब भी नहीं जागे तो इतिहास हमसे सवाल करेगा।
धामपुर में बंद हुईं नाई और चाय की दुकानें… ये कैसा न्याय?
अपने भाषण में चंद्रशेखर ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने पूछा कि मुख्यमंत्री बताएं कि धामपुर में मुसलमानों की दुकानें क्यों बंद कराई गईं? ये मीट की दुकानें नहीं थीं, ये तो चाय और नाई की दुकानें थीं। यह सवाल केवल प्रशासन से नहीं था, यह पूरे समाज से था कि क्या अब रोज़गार भी मजहब से तय होगा? क्या अब चाय बेचने के लिए भी धर्म देखा जाएगा?
'हमारी लड़ाई संविधान से है, सत्ता से नहीं'
चंद्रशेखर ने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी लड़ाई किसी धर्म, किसी पार्टी या किसी व्यक्ति से नहीं, बल्कि उस सोच से है जो संविधान को ताक पर रखती है। उन्होंने कहा कि जो बाबा साहब ने हमें अधिकार दिए हैं, वो छीने जा रहे हैं और हम चुप रहे तो ये खामोशी हमारी कब्र बनेगी। उन्होंने युवाओं से अपील की है कि तुम्हें केवल नौकरी नहीं चाहिए, तुम्हें इज्जत भी चाहिए और वो इज्जत किसी की खैरात से नहीं बल्कि हक की लड़ाई से मिलती है।
चंद्रशेखर की हुंकार से क्या बनेगा नया गठबंधन?
कार्यक्रम के अंत में जो सवाल हवा में गूंज रहा था, वो यह था कि क्या चंद्रशेखर आज़ाद दलित, मुसलमान और पिछड़े तबकों को एकजुट करने में कामयाब होंगे? क्या यह मुस्लिम संवाद एक बड़े राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत है? क्या सत्ता की चाबी अब वंचितों के हाथ में जाएगी? इस संवाद में केवल भाषण नहीं था, बल्कि भविष्य की पटकथा थी। एक ऐसी पटकथा, जो शायद 2027 के राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह बदल सकती है। अब देखना ये है कि चंद्रशेखर की यह आवाज़ कितनी दूर तक जाती है और क्या वो देश के हाशिए पर खड़े लोगों को एकजुट करके सत्ता के केंद्र तक पहुंचाने की क्रांति का चेहरा बन पाएंगे?
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