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सुनामी के पीछे छुपा विज्ञान: कैसे बनती है विनाशकारी लहर?
Science Behind Tsunami: भारत समेत विश्व के कई हिस्सों में सुनामी से भारी जान-माल का नुकसान हुआ है। यह लेख आपको सुनामी के इतिहास, कारण, प्रकृति, प्रभाव और बचाव के तरीकों के बारे में पूरी जानकारी देगा।
Science Behind Tsunami (Image Credit-Social Media)
Science Behind Tsunami: सुनामी यानी समुद्री तूफ़ान, एक प्राकृतिक आपदा है जो अपने साथ भयंकर विनाश लेकर आती है। जापानी भाषा से लिया गया यह शब्द ‘सू’ अर्थात समुद्र तट और ‘नामी’ अर्थात लहर मिलकर बना है। आम लहरों से बहुत अलग, सुनामी लहरें इतनी विशाल और ताकतवर होती हैं कि ये सैकड़ों किलोमीटर चौड़ी हो सकती हैं और जब ये तट पर पहुंचती हैं तो भारी तबाही मचाती हैं। भारत समेत विश्व के कई हिस्सों में सुनामी से भारी जान-माल का नुकसान हुआ है। यह लेख आपको सुनामी के इतिहास, कारण, प्रकृति, प्रभाव और बचाव के तरीकों के बारे में पूरी जानकारी देगा।
सुनामी क्या होती है और इसकी प्रकृति कैसी होती है
सुनामी एक ऐसी समुद्री लहर होती है जो बहुत लंबी होती है और कई सौ किलोमीटर दूरी तक फैल सकती है। समुद्र की सतह पर सामान्य लहरों की तुलना में सुनामी की लहरें बहुत बड़ी और व्यापक होती हैं। खुले समुद्र में इन लहरों की ऊंचाई अपेक्षाकृत कम होती है, लेकिन जब ये तट के करीब आती हैं तो लहरों का निचला हिस्सा समुद्र तट को छूने लगता है, जिससे इनकी गति धीमी हो जाती है और ऊंचाई तेजी से बढ़ जाती है। इनकी गति 420 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो सकती है और ऊंचाई 10 से 18 मीटर तक पहुंच जाती है। ये विशाल लहरें खारे पानी की चलती दीवार के समान होती हैं, जो तट से टकराते ही भारी तबाही मचाती हैं।
सुनामी कैसे बनती है जानिए इसकी प्रक्रिया का विज्ञान
जब समुद्र के भीतर अचानक कोई बड़ी हलचल होती है, जैसे समुद्र के नीचे किसी ज़मीन का खिसकना या भूकंप आना, तो समुद्र में तेज़ हलचल पैदा होती है। इस तेज़ हलचल के कारण समुद्र में लंबी और ऊंची लहरें बनती हैं, जो ज़बरदस्त ऊर्जा के साथ आगे बढ़ती हैं। पहले इसे समुद्र में उठने वाले ज्वार के रूप में समझा जाता था, लेकिन हकीकत यह है कि सामान्य ज्वार-भाटा चंद्रमा, सूरज और ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण से उत्पन्न होते हैं, जबकि सुनामी का कारण समुद्र के भीतर की भूकंपीय हलचल होती है।
सुनामी लहरें उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारणों में समुद्री भूकंप सबसे प्रभावी है। इसके अतिरिक्त ज़मीन धंसने, समुद्र के नीचे ज्वालामुखी फटने, किसी विस्फोट या उल्कापिंड के समुद्र में गिरने से भी सुनामी उत्पन्न हो सकती है।
भूकंप और सुनामी का गहरा संबंध
जब भूकंप समुद्र के नीचे आता है, तो समुद्र की ऊपरी परत अचानक खिसक जाती है। इसे समझने के लिए इसे एक फुटबॉल की परतों से जोड़ सकते हैं, जो आपस में जुड़ी होती हैं, पर जब इनमें दरारें पड़ती हैं तो हलचल पैदा होती है। जैसे अंडे के खोल के भीतर का पदार्थ लिजलिजा और गीला होता है, वैसे ही भूकंप की हलचल जमीन के नीचे पदार्थ को तेज़ी से ऊपर की ओर धकेलती है, जिससे समुद्र का जलस्तर असामान्य रूप से ऊपर उठ जाता है। इसी प्रक्रिया से सुनामी लहरें बनती हैं।
हालांकि यह जरूरी नहीं कि हर भूकंप से सुनामी बने, इसके लिए भूकंप का केंद्र समुद्र के भीतर या उसके पास होना अनिवार्य है।
सुनामी के तट पर पहुंचने पर प्रभाव कितना भयंकर होता है
जब सुनामी की लहरें तट के निकट पहुंचती हैं तो उनका निचला हिस्सा ज़मीन को छूने लगता है, जिससे उनकी गति कम होती है पर ऊंचाई तेजी से बढ़ती है। ये लहरें तट पर एक भयंकर पानी की दीवार की तरह टूटती हैं, जो लोगों और संपत्तियों को बर्बाद कर देती हैं।
जान-माल की भारी हानि के अलावा, जमीन के कटाव, सड़कों और पुलों के टूटने, फसलें नष्ट होने जैसे गंभीर परिणाम सामने आते हैं। वैज्ञानिक भूकंप की तरह सुनामी की भी सटीक भविष्यवाणी नहीं कर पाते, इसलिए सुनामी की चेतावनी मिलना बहुत महत्वपूर्ण है, ताकि तटवर्ती क्षेत्र समय रहते सुरक्षित हो सकें।
सुनामी के अधिक जोखिम वाले क्षेत्र और कारण
धरती की जो टेक्टोनिक प्लेटें जहां मिलती हैं, वहां समुद्र में सुनामी का खतरा अधिक होता है। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलियाई और यूरेशियाई प्लेट के मिलने वाला क्षेत्र सुमात्रा के आसपास स्थित है, जहां सुनामी का कहर बार-बार देखा गया है।
प्रशांत महासागर में सुनामी घटनाएं आम हैं, लेकिन बंगाल की खाड़ी, हिन्द महासागर और अरब सागर में कम होती हैं। इसलिए इन क्षेत्रों की भाषाओं में सुनामी के लिए विशिष्ट शब्द भी कम मिलते हैं।
इतिहास में सुनामी की घातक घटनाएं और उनका मानव समाज पर प्रभाव
सुनामी का सबसे पुराना रिकॉर्ड 479 ईसा पूर्व का है, जब यूनानी उपनिवेश पोटिडिया में भूकंप के कारण सुनामी आई थी। कहा जाता है कि इस सुनामी ने उस उपनिवेश को अचमेनिद साम्राज्य के आक्रमण से बचा लिया।
रोमन इतिहासकार अम्मियानस मार्सेलिनस ने 365 ईस्वी में अलेक्जेंड्रिया को तबाह करने वाली सुनामी का वर्णन किया है, जिसमें भूकंप के बाद समुद्र का अचानक पीछे हटना और विशाल लहरें शामिल थीं।
1755 के लिस्बन भूकंप और उससे उत्पन्न सुनामी ने कई यूरोपीय देशों में भारी जान-माल का नुकसान किया। 1783 के कैलाब्रियन भूकंप और 1908 के मेसिना भूकंप एवं सुनामी भी इतिहास में दर्ज हैं, जिनमें हजारों लोग मरे।
2004 हिंद महासागर भूकंप और सुनामी - आधुनिक समय की सबसे विनाशकारी आपदा
26 दिसंबर 2004 को हिंद महासागर में 9.1 तीव्रता के भूकंप ने सुनामी को जन्म दिया, जिसमें लगभग 2,30,000 लोगों की जान गई। यह सुनामी इंडोनेशिया, भारत, श्रीलंका, थाईलैंड समेत कई देशों को प्रभावित किया। भारत में तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भारी तबाही हुई। यह घटना सुनामी के विनाशकारी प्रभाव की सबसे भयावह मिसाल बनी।
30 जुलाई 2025 में रूस में भी सुनामी आई - क्या हैं नए खतरे के संकेत?
एक बार फिर 30 जुलाई 2025 को रूस के तट के पास सुनामी दर्ज की गई। यह संकेत हो सकता है कि समुद्री भूकंप और भूगर्भीय हलचल अब और अधिक तीव्र हो रही है।
आज सुबह रूस के दूरपूर्वी क्षेत्र, विशेषकर काम्चात्का प्रायद्वीप के पास आए 8.8 तीव्रता वाले भूकंप के बाद यह सुनामी आई, जिसने स्थानीय स्तर पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला तथा सुरक्षा चेतावनी जारी करने की आवश्यकता उत्पन्न कर दी।
प्रभावित क्षेत्र: सेवेरो-कुरील्स्क (Severo‑Kurilsk) नामक बंदरगाह शहर में सबसे तीव्र प्रभाव दिखा, जहां तीन से पांच मीटर ऊंची लहरों ने बाढ़ फैला दी। इसके कारण फ्लडिंग के साथ-साथ संरचनात्मक क्षति भी हुई। हालांकि, समय पर बचाव कार्य और पूर्व सूचना के चलते कोई गंभीर मृत्यु या व्यापक हताहत की स्थिति नहीं बनी।
सेवेरो-कुरील्स्क रूस के सखालिन क्षेत्र (Sakhalin Oblast) में स्थित एक छोटा सा कस्बा है, जो कुरील द्वीपसमूह (Kuril Islands) के परमुशिर द्वीप पर बसा हुआ है। यह क्षेत्र भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए संवेदनशील माना जाता है, क्योंकि यह प्रशांत महासागर के ‘रिंग ऑफ फायर’ (Ring of Fire) पर स्थित है।
रूस की आपात सेवा मंत्रालय ने बताया कि बड़े स्तर पर कोई घातक चोटें नहीं हुईं, जबकि कुछ लोग हल्की चोटों और मामूली संरचनात्मक नुकसान की रिपोर्ट मिली, जैसे एक किंडरगार्टन भवन में दरारें आना और कुछ नागरिकों का मेडिकल सहायता लेना।
वैज्ञानिक लगातार ऐसे घटनाओं पर नजर रखे हुए हैं और अधिक आधुनिक चेतावनी प्रणालियां विकसित कर रहे हैं, ताकि भविष्य में जान-माल की हानि को कम किया जा सके। आज विश्व भर में सुनामी चेतावनी प्रणाली विकसित हो चुकी है, जो समुद्री भूकंप के तुरंत बाद लहरों की निगरानी करती है और तटवर्ती क्षेत्रों को अलर्ट भेजती है। भारत में INCOIS (इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशेन इनफॉर्मेशन सर्विसेज) सुनामी चेतावनी प्रणाली संचालित करता है।
फिर भी, तकनीक के बावजूद लोगों की जागरूकता, तटीय इलाकों में उचित आपदा प्रबंधन, बचाव अभ्यास और समय पर सतर्कता बेहद जरूरी हैं, ताकि सुनामी की क्षति को न्यूनतम किया जा सके।
सुनामी से निपटने के लिए क्या करें - सुरक्षित रहने के सुझाव
अगर समुद्र तट से पानी अचानक पीछे हट जाए या ज़मीन में तेज़ कंपन महसूस हो, तो तुरंत ऊंची जगहों की ओर जाएं। सुनामी की चेतावनी मिलने पर अपनी सभी जरूरी वस्तुएं लेकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचें।
स्कूलों, कार्यालयों और तटीय गांवों में मॉक ड्रिल करना, बचाव किट तैयार रखना, रेडियो और मोबाइल के जरिए सूचनाओं पर ध्यान देना और सरकार द्वारा जारी निर्देशों का पालन करना जरूरी है।
सुनामी जैसी आपदाओं से जीवन बचाने के लिए सतर्कता, विज्ञान और जागरूकता सबसे बड़े हथियार हैं। सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं को रोका नहीं जा सकता, लेकिन इनके प्रकोप को कम करने के लिए आधुनिक तकनीक, चेतावनी प्रणालियां और जनसामान्य की जागरूकता जरूरी है। हमें प्रकृति के संकेतों को समझना होगा और समय रहते सावधानी बरतनी होगी, ताकि हम अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा कर सकें।
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