×

Tsunami Kya Hai: सुनामी क्या है और क्यों लाती है इतना बड़ा विनाश? आसान भाषा में समझिए पूरा विज्ञान

Tsunami Kya Hai: सुनामी सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि समुद्र की गहराई में छिपी एक क्रूर लेकिन वैज्ञानिक रूप से स्पष्ट भौतिक घटना है।

Shivani Jawanjal
Published on: 4 July 2025 4:33 PM IST
What is a Tsunami
X

What is a Tsunami

What is a Tsunami: शांत और स्थिर दिखाई देने वाला समुद्र जब अपनी सीमाएँ लांघता है तो वह प्रकृति की सबसे विनाशकारी आपदा सुनामी का रूप ले लेता है। किनारे पर बैठकर लहरों की मधुर गूंज हमें सुकून देती है लेकिन इन्हीं लहरों में कहीं छिपी होती है अपार ऊर्जा और विनाश की ताकत। सुनामी केवल एक बड़ी लहर नहीं बल्कि समुद्र के गर्भ में उत्पन्न हुई उस विस्फोटक शक्ति का परिणाम है, जो पलक झपकते ही तटों को निगल जाती है। इस भयावह घटना की जड़ें केवल भूगर्भीय हलचलों में नहीं, बल्कि भौतिकी (Physics) के गहरे सिद्धांतों में छिपी हैं - ऊर्जा संचरण, वेग, घनत्व और दबाव जैसे तत्व यह तय करते हैं कि यह विनाश कब, कहां और कितनी तीव्रता से दस्तक देगा।

आइये समुद्र की विनाशकाय स्वरुप को नजदीक से जाने!

सुनामी क्या है?


'सुनामी' शब्द की जड़ें जापानी भाषा में हैं जहाँ 'सु' (tsu) का अर्थ होता है 'बंदरगाह' और 'नामी' (nami) का अर्थ 'लहर' और इस प्रकार इसका शाब्दिक अर्थ होता है 'बंदरगाह की लहरें'। यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि जापान जैसे देशों में इन लहरों का असर अक्सर बंदरगाहों पर सबसे पहले और सबसे ज्यादा देखा गया। सुनामी आम समुद्री लहरों की तुलना में कहीं अधिक लंबी, ऊँची और तीव्र होती हैं। इनकी रफ्तार 800 किलोमीटर प्रति घंटे से भी अधिक हो सकती है और ये लहरें कई मीटर ऊँचाई तक उठ सकती हैं। सुनामी का जन्म समुद्र के भीतर अचानक हुए किसी ऊर्जा विस्फोट से होता है। इसका सबसे सामान्य कारण समुद्र के नीचे आया भूकंप होता है लेकिन समुद्री ज्वालामुखी का विस्फोट, समुद्र में विशाल भूस्खलन, या कभी-कभार कोई उल्कापिंड का समुद्र में गिरना भी इसकी वजह बन सकता है।

सुनामी के पीछे की भौतिकी (Physics Behind Tsunami)


ऊर्जा का अचानक विस्फोट (Sudden Energy Displacement)

सुनामी की उत्पत्ति समुद्र की गहराइयों में छिपे भूगर्भीय आंदोलनों से होती है, जो पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेट्स के बीच होने वाली हलचलों का परिणाम है। जब ये प्लेट्स आपस में टकराती हैं, खिसकती हैं या एक-दूसरे के नीचे धंसती हैं (जिसे सबडक्शन या स्लिप कहते हैं) तब समुद्र की सतह के नीचे भारी मात्रा में ऊर्जा संचित हो जाती है। जैसे ही यह संचित ऊर्जा अचानक मुक्त होती है, वह समुद्र के पानी के स्तंभ को ऊपर की ओर बलपूर्वक धकेलती है। यही विस्फोटक बल सतह पर विशाल लहरों को जन्म देता है जिन्हें हम सुनामी के रूप में जानते हैं। इस घटना के पीछे भौतिकी का गहरा सिद्धांत कार्य करता है। जहाँ स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy) अचानक गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) में परिवर्तित हो जाती है। यह ऊर्जा जब पानी को ऊपर और बाहर की दिशा में धकेलती है तो वह विशाल और तीव्र गति वाली लहरों का रूप ले लेती है।

तरंग गति (Wave Propagation)

सुनामी की लहरें केवल ऊँचाई के कारण ही खतरनाक नहीं होतीं बल्कि इनकी अविश्वसनीय गति भी इन्हें बेहद विनाशकारी बनाती है। गहरे समुद्र में ये लहरें लगभग 700 से 800 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती हैं जो एक जेट विमान के वेग के बराबर होती है। लेकिन जैसे ही ये लहरें उथले पानी की ओर बढ़ती हैं, उनकी गति धीरे-धीरे कम होने लगती है, जबकि उनकी ऊँचाई तेजी से बढ़ जाती है। जिससे वे किनारों पर पहुँचने के बाद जानलेवा रूप ले लेती हैं। इस पूरी प्रक्रिया के पीछे भौतिकी का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र कार्य करता है:

v = √(g × d)

यहाँ v लहर की गति, g गुरुत्वाकर्षण त्वरण (9.8 m/s²), और d समुद्र की गहराई होती है। दिलचस्प बात यह है कि सुनामी की लहरें इतनी लंबी होती हैं कि उन्हें हमेशा 'shallow water waves' की श्रेणी में रखा जाता है - चाहे समुद्र कितना भी गहरा क्यों न हो। उदाहरण के लिए अगर समुद्र की गहराई 4000 मीटर है, तो लहर की गति लगभग 713 किमी/घंटा होगी। इसका अर्थ यह है कि गहराई जितनी अधिक होगी लहरें उतनी ही तेज दौड़ेंगी।

तरंगदैर्ध्य और आवृत्ति (Wavelength and Frequency)


सुनामी की लहरों की एक खास बात यह है कि इनमें तरंगदैर्ध्य (wavelength) और आवृत्ति (frequency) का अनुपात सामान्य लहरों से बिल्कुल अलग होता है। जहाँ आम समुद्री लहरों की तरंगदैर्ध्य कुछ मीटर से लेकर अधिकतम 100 मीटर तक होती है वहीं सुनामी की लहरें 100 से 500 किलोमीटर तक फैली हो सकती हैं - कभी-कभी इससे भी ज्यादा। इसके साथ ही इनकी आवृत्ति बेहद कम होती है यानी दो लहरों के बीच का समय 5 से 60 मिनट तक हो सकता है। जबकि सामान्य लहरों का यह अंतर केवल कुछ सेकंड या मिनटों का होता है। भौतिकी के अनुसार ऐसी तरंगें जिनकी आवृत्ति कम और तरंगदैर्ध्य लंबी होती है वे बहुत कम ऊर्जा खोती हैं। इसलिए वे समुद्र में हजारों किलोमीटर तक यात्रा कर सकती हैं और तब भी उनकी ताकत में कोई खास कमी नहीं आती। जैसे ही ये लहरें उथले किनारे तक पहुँचती हैं इनकी गति तो धीमी हो जाती है लेकिन ऊँचाई (amplitude) बहुत बढ़ जाती है, जिससे ये लहरें तबाही का रूप ले लेती हैं।

किनारे की ओर ऊर्जा का संकेंद्रण (Wave Shoaling Effect)


गहरे समुद्र में जब सुनामी की लहरें जन्म लेती हैं तो वे देखने में बेहद साधारण लगती हैं। उनकी ऊँचाई आमतौर पर केवल 1 से 2 फीट (लगभग 30–60 सेंटीमीटर) होती है। जिससे न तो जहाजों को इनका अहसास होता है और न ही सतह पर कोई खास हलचल दिखती है। लेकिन जैसे-जैसे ये लहरें उथले पानी की ओर बढ़ती हैं, समुद्र की गहराई कम होती जाती है। भौतिकी के नियम v = √(g×d) के अनुसार जब गहराई घटती है तो तरंग की गति भी घट जाती है। हालांकि कुल ऊर्जा लगभग स्थिर बनी रहती है (ऊर्जा संरक्षण सिद्धांत) और यही ऊर्जा अब क्षैतिज की बजाय ऊर्ध्वाधर दिशा में परिवर्तित होने लगती है। इस प्रक्रिया को wave shoaling कहते हैं जिसमें धीरे-धीरे लहर की ऊँचाई कई मीटर तक बढ़ जाती है। यह ऊर्जा संकेंद्रण (energy concentration) लहर को अधिक ऊँचा और विनाशकारी बना देता है जिससे तटीय क्षेत्रों में भारी तबाही मचती है।

द्रव गतिकी (Fluid Dynamics) और रिफ्लेक्शन

सुनामी के दौरान समुद्र की लहरों का व्यवहार बेहद जटिल और वैज्ञानिक दृष्टि से रोचक होता है। जब ये शक्तिशाली तरंगें किसी बाधा जैसे द्वीप, बंदरगाह या समुद्री दीवार से टकराती हैं तो वे अक्सर वापस समुद्र की ओर लौट जाती हैं, जिसे प्रतिबिंबन (reflection) कहा जाता है। वहीं अगर समुद्र की गहराई या तटरेखा में बदलाव आता है, तो तरंगों की दिशा भी बदल सकती है जिसे इसे अपवर्तन (refraction) कहते हैं। कुछ स्थितियों में जब तरंगें किसी बाधा के किनारे से घूमती हैं या किसी संकरी जगह से होकर गुजरती हैं तब विकिरण (diffraction) की प्रक्रिया होती है। इसके अलावा जब दो या अधिक तरंगें एक ही स्थान पर मिलती हैं, तो उनकी ऊँचाई आपस में जुड़ सकती है इसे constructive interference कहते हैं। इस कारण लहर की ऊँचाई कई गुना बढ़ जाती है और वह अत्यधिक विनाशकारी रूप ले लेती है खासकर तब जब यह घटना तट के पास या बंदरगाहों में होती है।

सुनामी की शक्ति का परिणाम

भौतिकी के सिद्धांतों के चलते सुनामी की लहरें इतनी लंबी तरंगदैर्ध्य और इतनी कम ऊर्जा ह्रास के साथ आगे बढ़ती हैं कि वे हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर सकती हैं - बिना अपनी ताकत खोए। यह विशेषता उन्हें अत्यंत खतरनाक बनाती है क्योंकि वे किसी एक स्थान पर उत्पन्न होकर दुनिया के किसी भी हिस्से के समुद्री तट तक पहुँच सकती हैं। जब ये लहरें तट से टकराती हैं तो उनकी गति तो कम हो जाती है लेकिन उनकी ऊँचाई कई मीटर तक बढ़ जाती है। इनके साथ आने वाले पानी की विशाल मात्रा और गति इतनी अधिक होती है कि ये पूरे गाँव, शहर, इमारतें, पुल, सड़कें, वाहन और पेड़ तक बहा सकती हैं। इसका सबसे भयावह उदाहरण 2004 की हिंद महासागर सुनामी थी।

इतिहास में भौतिकी से उपजा विनाश


2004 हिंद महासागर सुनामी - 26 दिसंबर 2004 को इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप के समीप समुद्र की गहराई में आए 9.1–9.3 तीव्रता के भूकंप ने इतिहास की सबसे भयानक सुनामियों में से एक को जन्म दिया। इस विनाशकारी लहर ने भारत, श्रीलंका, थाईलैंड सहित कुल 14 देशों में भीषण तबाही मचाई। कुछ क्षेत्रों में सुनामी की ऊँचाई 30 मीटर (करीब 100 फीट) तक दर्ज की गई जिसने समुद्री तटों को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया। अनुमानित 2.3 लाख लोगों की जान गई और लाखों परिवार बेघर हो गए। यह त्रासदी न केवल जानमाल की दृष्टि से विनाशकारी थी बल्कि इसने दुनियाभर में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की तैयारियों और चेतावनी प्रणालियों की गंभीर खामियों को भी उजागर कर दिया।


2011 जापान फुकुशिमा सुनामी - 11 मार्च 2011 को जापान के तट के पास समुद्र की गहराई में आए 9.0 तीव्रता के शक्तिशाली भूकंप ने एक विशाल सुनामी को जन्म दिया, जिसने पूरे विश्व को हिला कर रख दिया। इस सुनामी का सबसे भयानक असर जापान के फुकुशिमा दाइची न्यूक्लियर प्लांट पर पड़ा, जहाँ लहरों की ऊँचाई सुरक्षा दीवारों से कहीं अधिक थी। वैज्ञानिक विश्लेषण में सामने आया कि प्लांट की सुरक्षा संरचनाएँ इतनी बड़ी आपदा के लिए तैयार नहीं थीं जिसके चलते न्यूक्लियर संयंत्र से रेडियोधर्मी रिसाव हुआ जो अपने आप में एक अलग आपदा बन गया। यह घटना प्राकृतिक तबाही के साथ-साथ तकनीकी विफलता का भी प्रतीक बन गई और यह स्पष्ट कर गई कि मानव निर्मित संरचनाएँ प्रकृति की शक्ति के सामने कितनी असहाय हो सकती हैं।

भविष्य में चेतावनी और बचाव

आज के दौर में विज्ञान और तकनीक ने सुनामी जैसी विनाशकारी आपदाओं से समय रहते चेतावनी देने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है। समुद्र की गहराई में लगाए गए सिस्मोग्राफ और दबाव सेंसर इस चेतावनी प्रणाली की रीढ़ हैं। जैसे ही समुद्र के नीचे कोई भूकंप या दबाव में अचानक बदलाव होता है। ये सेंसर उसे तुरंत रिकॉर्ड कर लेते हैं और रीयल-टाइम डेटा चेतावनी केंद्रों तक भेजते हैं। इससे यह निर्धारित किया जा सकता है कि ऊर्जा का विस्फोट कहाँ हुआ है और सुनामी की लहरें कितने समय में किनारे तक पहुँच सकती हैं। इसके साथ ही भौतिकी के सिद्धांतों जैसे तरंग गति और ऊर्जा संरक्षण के आधार पर कम्प्यूटर सिमुलेशन और मॉडलिंग की जाती है। इससे लहर की दिशा, गति, ऊँचाई और संभावित प्रभावों का सटीक पूर्वानुमान लगाया जाता है। इस आधुनिक प्रणाली के कारण आज लाखों लोगों की जान समय रहते बचाई जा सकती है जो पहले संभव नहीं था।

Start Quiz

This Quiz helps us to increase our knowledge

Admin 2

Admin 2

Next Story