Siliguri Corridor History: उत्तर-पूर्व को भारत से जोड़ने वाला जीवनरेखा, जानिए सिलीगुड़ी कॉरिडोर की कहानी, चुनौती और उम्मीदें

Siliguri Corridor Ka Itihas: सिलीगुड़ी कॉरिडोर भारत की एक सामरिक जीवनरेखा है एक ऐसी भौगोलिक वास्तविकता जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

Shivani Jawanjal
Published on: 4 Jun 2025 12:27 PM IST
History Of Siliguri Corridor
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History Of Siliguri Corridor

History Of Siliguri Corridor: भारत एक विशाल और विविधतापूर्ण राष्ट्र है, जिसकी भौगोलिक स्थिति उसे वैश्विक स्तर पर रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है। देश का उत्तर-पूर्वी हिस्सा जिसे 'सात बहनें' कहा जाता है अपने सांस्कृतिक वैभव और प्राकृतिक संपदाओं के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन यह क्षेत्र भारत के मुख्य भूभाग से केवल एक संकीर्ण गलियारे, सिलीगुड़ी कॉरिडोर या 'चिकन नेक', के माध्यम से जुड़ा हुआ है। लगभग 22 किलोमीटर चौड़ा और 200 किलोमीटर लंबा यह गलियारा भारत के लिए एक सामरिक जीवनरेखा के समान है।

इस भू-भाग की भौगोलिक संकीर्णता और सामरिक संवेदनशीलता इसे भारत की सुरक्षा और अखंडता के लिहाज़ से एक जटिल चुनौती भी बनाती है। यह सवाल अत्यंत प्रासंगिक हो जाता है कि क्या यह कॉरिडोर भारत की रणनीतिक ताकत है या उसकी कमजोरी? इस लेख में हम सिलीगुड़ी कॉरिडोर के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, भू-राजनीतिक महत्व और इससे जुड़े सामरिक पहलुओं का विश्लेषण करेंगे।

सिलीगुड़ी कॉरिडोर का परिचय


सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे 'चिकन नेक' भी कहा जाता है, भारत की भौगोलिक और सामरिक संरचना में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह संकीर्ण गलियारा पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी शहर के पास स्थित है और लगभग 20 - 22 किलोमीटर चौड़ा तथा 200 किलोमीटर लंबा है। इसकी भौगोलिक स्थिति इसे विशेष रूप से संवेदनशील बनाती है पश्चिम में नेपाल, पूर्व में बांग्लादेश, उत्तर में भूटान और उत्तर-पूर्व में कुछ ही दूरी पर चीन (तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र) की सीमाएँ इसे घेरती हैं। यह गलियारा भारत के सात उत्तर-पूर्वी राज्यों जिन्हें 'सात बहनें' कहा जाता है, को देश के मुख्य भाग से जोड़ने वाला एकमात्र मुख्य मार्ग है। सड़क, रेल, बिजली, पाइपलाइन, और संचार जैसी सभी आवश्यक सेवाएँ इसी मार्ग से होकर गुजरती हैं। भारतीय सेना की त्वरित तैनाती, रसद आपूर्ति और रणनीतिक संचालन के लिए भी यही गलियारा प्रमुख है। यदि यह मार्ग बाधित होता है, तो उत्तर-पूर्वी भारत शेष देश से कट सकता है, जिससे यह क्षेत्र न केवल भौगोलिक रूप से बल्कि सामरिक दृष्टि से भी एक अत्यंत संवेदनशील जीवनरेखा बन जाता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

1947 से पहले भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से और शेष भारत के बीच कोई अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं थी, जिससे बंगाल और असम के बीच आवागमन और प्रशासनिक संपर्क सहज और निर्बाध था। लेकिन भारत के विभाजन के बाद जब पूर्वी बंगाल पाकिस्तान (पूर्वी पाकिस्तान) का हिस्सा बना, तब स्थिति में बड़ा बदलाव आया। इस विभाजन के परिणामस्वरूप भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों और मुख्य भूमि के बीच का सीधा भू-मार्ग टूट गया और केवल एक संकीर्ण गलियारा सिलीगुड़ी कॉरिडोर संपर्क का माध्यम बचा, जो नेपाल और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के बीच से होकर गुजरता है। इस गलियारे की रणनीतिक महत्ता इसी कारण अत्यधिक बढ़ गई, क्योंकि यह क्षेत्र भारत की उत्तर-पूर्वी सीमाओं तक सैन्य और नागरिक पहुँच का एकमात्र माध्यम बन गया। 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद भारत-बांग्लादेश संबंधों में सुधार जरूर हुआ, लेकिन सिलीगुड़ी कॉरिडोर की भौगोलिक संकीर्णता और सामरिक संवेदनशीलता अब भी बरकरार है। यह क्षेत्र आज भी भारत की एक कमजोर कड़ी माना जाता है, जिसे विशेषकर चीन जैसे विरोधी देश संकट की स्थिति में रणनीतिक लक्ष्य बना सकते हैं।

सामरिक दृष्टिकोण - खतरे और चुनौतियाँ

चीन की दृष्टि - सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा भारत के समग्र सामरिक परिदृश्य में एक अत्यंत संवेदनशील और प्रमुख विषय है, विशेषकर चीन के संदर्भ में। 2017 का डोकलाम विवाद इस खतरे की गंभीरता को उजागर करता है, जब चीन ने भारत, भूटान और चीन के त्रिकोणीय जंक्शन पर सड़क निर्माण शुरू किया था। यह क्षेत्र सिलीगुड़ी कॉरिडोर के बेहद समीप है, और यदि भविष्य में चीन इस गलियारे को काटने में सफल होता है, तो भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों का संपर्क शेष देश से पूरी तरह टूट सकता है। यह स्थिति न केवल सैन्य दृष्टि से बल्कि राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी भारत के लिए एक अत्यंत गंभीर संकट होगी।

बांग्लादेश और नेपाल की भूमिका - साथ ही, बांग्लादेश और नेपाल की भूमिका भी इस क्षेत्र की सुरक्षा में निर्णायक है। हालाँकि भारत-बांग्लादेश संबंधों में सुधार हुआ है, फिर भी किसी भू-राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति में यह क्षेत्र संवेदनशील बन सकता है। नेपाल के साथ सीमा विवादों के चलते भारत को अपनी रणनीति को पुनः परिभाषित करना पड़ा है।

आंतरिक अस्थिरता - इसके अतिरिक्त, उत्तर-पूर्व भारत में दशकों से चली आ रही आंतरिक अस्थिरता जैसे उग्रवाद और जातीय संघर्ष भी सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा के लिए एक निरंतर चुनौती है। हालाँकि स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन पूर्ण स्थायित्व अब भी नहीं आया है, और किसी भी आंतरिक असंतोष का लाभ बाहरी ताकतें उठा सकती हैं। अतः यह स्पष्ट है कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर केवल एक भौगोलिक गलियारा नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय एकता की रीढ़ है।

भारत की तैयारियाँ और रणनीति

सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सामरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने और उत्तर-पूर्व भारत की कनेक्टिविटी को सुदृढ़ करने के लिए भारत सरकार ने सड़क, रेल, सैन्य और कूटनीतिक मोर्चों पर बहुआयामी प्रयास किए हैं। सड़क और रेल नेटवर्क के क्षेत्र में बोगीबील ब्रिज जैसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट ने असम में ब्रह्मपुत्र नदी पार करना आसान और तेज़ बना दिया है, जिससे सैन्य और नागरिक आवाजाही दोनों में गति आई है। अरुणाचल प्रदेश में बन रही सेला टनल तवांग जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को साल भर सड़क संपर्क से जोड़े रखेगी, जिससे किसी भी आपात स्थिति में सेना की त्वरित तैनाती संभव हो सकेगी। साथ ही, चारधाम सड़क परियोजना और ऑल-वेदर रोड्स जैसी योजनाएँ हिमालयी सीमाओं तक रणनीतिक पहुँच को और अधिक सक्षम बनाती हैं। इसके साथ-साथ भारतीय सेना ने सिलीगुड़ी कॉरिडोर सहित पूरे उत्तर-पूर्व में विशेष ब्रिगेड की तैनाती की है, और एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड्स (ALGs) जैसे पासीघाट, मेचुका और तवांग की स्थापना से वायुसेना की प्रतिक्रिया क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सीमा पर निगरानी और गश्त भी अब पहले से अधिक सघन और तकनीकी रूप से उन्नत हो गई है। कूटनीतिक स्तर पर भारत ने भूटान, बांग्लादेश और नेपाल के साथ द्विपक्षीय सहयोग को गहरा किया है। बांग्लादेश के साथ व्यापार, ट्रांजिट और संयुक्त इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएँ, तथा भूटान और नेपाल के साथ संपर्क और सुरक्षा सहयोग, सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता को संतुलित करने की दिशा में अहम कदम हैं। इन सभी पहलों का उद्देश्य न केवल इस गलियारे की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, बल्कि वैकल्पिक मार्गों की संभावनाओं को भी मजबूत करना है, जिससे भारत की रणनीतिक स्थिति और अधिक सुदृढ़ हो सके।

सिलीगुड़ी का सामरिक और भू-राजनीतिक महत्व

सिलीगुड़ी कॉरिडोर भारत के लिए सामरिक और भू-राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि यही एकमात्र स्थल-मार्ग है जिससे भारतीय सेना, रसद और नागरिक आपूर्ति उत्तर-पूर्वी राज्यों तक पहुँचती है। इसकी भौगोलिक संकीर्णता और सीमावर्ती स्थिति इसे बेहद संवेदनशील बनाती है। विशेष रूप से चीन के चुम्बी घाटी और डोकलाम जैसे क्षेत्रों की निकटता के कारण यह गलियारा किसी भी संभावित सैन्य संघर्ष में प्राथमिक लक्ष्य बन सकता है। यदि यह गलियारा बाधित होता है या दुश्मन के नियंत्रण में चला जाता है, तो भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य शेष भारत से कट सकते हैं, जिससे देश की राष्ट्रीय अखंडता, क्षेत्रीय एकता और सुरक्षा व्यवस्था को गहरा आघात पहुँच सकता है। यही कारण है कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर भारत की सामरिक रणनीति में सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा गया है।

यह ताकत कैसे बन सकता है?

सिलीगुड़ी कॉरिडोर न केवल एक रणनीतिक गलियारा है, बल्कि भारत की क्षेत्रीय एकता और अखंडता का भी जीवंत प्रतीक है। यह संकीर्ण भू-भाग देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों को शेष भारत से जोड़ता है, भले ही इसके मार्ग में कठिन भौगोलिक परिस्थितियाँ और कई अंतरराष्ट्रीय सीमाएँ हों। यह 'विविधता में एकता' के भारतीय आदर्श को मूर्त रूप देता है, क्योंकि उत्तर-पूर्व की सांस्कृतिक, भाषाई और जातीय विविधता के बावजूद यह क्षेत्र भारतीय मुख्यधारा से गहराई से जुड़ा हुआ है। सामरिक दृष्टि से भी सिलीगुड़ी कॉरिडोर भारत की सुरक्षा नीति और रणनीतिक जागरूकता का केंद्र बन चुका है। इसकी संवेदनशीलता के कारण भारत को अपनी पूर्वी सीमाओं पर निरंतर सतर्क रहना पड़ता है, जिससे रक्षा संरचना, निगरानी तंत्र और सैन्य तैनाती में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं। इसके साथ ही, इस गलियारे में आर्थिक संभावनाएँ भी निहित हैं। यदि भारत बांग्लादेश, नेपाल और भूटान के साथ व्यापार, ट्रांजिट और संपर्क बढ़ाने में सफल होता है, तो यह क्षेत्र एक प्रभावशाली आर्थिक गलियारे में परिवर्तित हो सकता है। भारत सरकार की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ इसी लक्ष्य को लेकर काम कर रही है, जिससे उत्तर-पूर्व भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ते हुए व्यापक क्षेत्रीय समृद्धि सुनिश्चित की जा सके।

भविष्य की राह

भारत को सिलीगुड़ी कॉरिडोर की कमजोरियों को ताकत में बदलना होगा। इसके लिए जरूरी है:

सीमा प्रबंधन में आधुनिक तकनीक का उपयोग

स्थानीय समुदायों को सुरक्षा तंत्र में भागीदार बनाना

आर्थिक विकास के माध्यम से क्षेत्रीय संतुलन कायम करना

बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के साथ भरोसेमंद रिश्ते बनाए रखना

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