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IMF Ka Itihas: अरबों रुपयों का अनुमान देने वाली संस्था IMF क्या है और कैसे काम करती है?
IMF Ka Itihas: इस लेख में हम IMF की भूमिका, इतिहास, कार्यप्रणाली और उसकी मौजूदा प्रासंगिकता को सरल और प्रभावशाली भाषा में समझने का प्रयास करेंगे।
History Of IMF
History Of IMF: यह बात किसी से छुपी नहीं है कि आज की दुनिया आपस में जुड़ी हुई है - चाहे बात व्यापार की हो, निवेश की हो या फिर आर्थिक सहयोग की। किसी एक देश की आर्थिक उथल-पुथल का असर दूसरे देशों की आर्थिक स्थिति पर भी पड़ता है। ऐसे में वैश्विक अर्थव्यवस्था को संतुलित बनाए रखने के लिए कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की भूमिका बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाती है। इन्हीं में से एक प्रमुख संस्था है अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund - IMF)। हाल ही में IMF ने ब्रिटेन की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान बढ़ाया है, जिसके बाद यह संस्था एक बार फिर सुर्खियों में है।
लेकिन सवाल यह है कि IMF आखिर है क्या? इसका गठन क्यों और कैसे हुआ? यह किन सिद्धांतों पर काम करता है? और सबसे ज़रूरी बात - दुनिया की अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका कितनी महत्त्वपूर्ण है? इन सवालों के जवाब जानना हर उस व्यक्ति के लिए जरूरी है जो वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को समझना चाहता है।
IMF क्या है?
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) - एक ऐसी वैश्विक वित्तीय संस्था, जिसका उद्देश्य है दुनिया भर में मौद्रिक सहयोग को बढ़ावा देना, वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना, अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सुचारू बनाना, रोजगार के अवसर बढ़ाना और आर्थिक विकास को टिकाऊ बनाना।
जब किसी देश को भुगतान संतुलन की समस्या होती है या आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है, तब IMF वित्तीय सहायता, नीतिगत सलाह और वैश्विक सहयोग के माध्यम से उस देश को स्थिरता प्रदान करने की कोशिश करता है । मुद्रा विनिमय दरों को संतुलित रखना और विश्व व्यापार को गति देना भी इसके प्रमुख कार्यों में शामिल है। इस तरह IMF न केवल एक आर्थिक संस्था है, बल्कि वैश्विक विश्वास और सहयोग की एक मजबूत कड़ी भी है।
IMF का इतिहास
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब पूरी दुनिया आर्थिक अस्थिरता से जूझ रही थी, तब यह एहसास हुआ कि अब वैश्विक अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए मिलकर प्रयास करना जरूरी है। और इसी सोच के साथ अमेरिका के न्यू हैम्पशायर राज्य के ब्रेटन वुड्स शहर में 1944 में एक ऐतिहासिक सम्मेलन आयोजित किया गया जिसे ब्रेटन वुड्स सम्मेलन नाम से जाना गया । इस सम्मेलन में 44 देशों ने सहभाग लिया और एक ऐसी संस्था की नींव रखी गई जो आने वाले वर्षों में दुनिया की आर्थिक दिशा तय करने वाली थी । 27 दिसंबर 1945 को आवश्यक सदस्य देशों ने इसके Articles of Agreement को मंजूरी दी और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) आधिकारिक रूप से अस्तित्व में आई। IMF का मुख्यालय अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डी.सी. में है और वर्त्तमान समय में इसके 190 सदस्य देश हैं।
खास बात यह है कि भारत IMF का संस्थापक सदस्य है और उसने भी 27 दिसंबर 1945 को ही इस संस्था की सदस्यता ग्रहण की थी - यह तथ्य अक्सर लोगों को चौंका देता है क्योंकि कई लोग इसे 1947 से जोड़ते हैं। IMF न केवल आर्थिक संकट से जूझ रहे देशों को ऋण सहायता देता है, बल्कि यह सदस्य देशों की आर्थिक नीतियों की निगरानी करता है, उन्हें परामर्श देता है और वैश्विक वित्तीय स्थिरता बनाए रखने की दिशा में सतत कार्य करता है। यह संस्था अब सिर्फ एक आर्थिक मंच नहीं, बल्कि देशों के बीच सहयोग, समर्थन और साझा विकास का प्रतीक बन चुकी है।
IMF की कार्यप्रणाली
IMF मुख्यत तीन कार्य करता है:
आर्थिक निगरानी (Economic Surveillance) - IMF केवल एक वित्तीय संस्था नहीं है, बल्कि यह देशों के लिए एक मार्गदर्शक, संकट के समय सहारा, और क्षमता निर्माण का साझेदार है। इसका पहला और सबसे महत्वपूर्ण कार्य है आर्थिक निगरानी (Economic Surveillance)। यह संस्था अपने सदस्य देशों की आर्थिक और वित्तीय नीतियों की बारीकी से समीक्षा करती है जिसे Article IV consultations कहा जाता है ताकि संभावित जोखिमों की पहचान की जा सके और समय रहते सुधार के सुझाव दिए जा सकें। यह निगरानी केवल एक देश तक सीमित नहीं रहती, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर भी की जाती है, जिससे IMF को दुनिया की आर्थिक सेहत पर नजर बनाए रखने में मदद मिलती है।
वित्तीय सहायता (Financial Assistance) - दूसरा अहम पहलू है वित्तीय सहायता (Financial Assistance)। जब कोई देश आर्थिक संकट में घिर जाता है और उसके पास विदेशी मुद्रा भंडार या वित्तीय संसाधन कम पड़ जाते हैं, तब IMF उसकी मदद को आगे आता है। हालांकि यह सहायता आमतौर पर कुछ सुधारात्मक शर्तों के साथ दी जाती है जैसे कि सरकारी खर्चों की समीक्षा या कर प्रणाली में बदलाव ताकि देश लंबे समय तक आर्थिक स्थिरता बनाए रख सके।
तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण (Technical Assistance & Capacity Development) - इसके अलावा, IMF का एक और बेहद मानवीय पहलू है तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण (Technical Assistance & Capacity Development)। यह संस्था अपने सदस्य देशों को वित्तीय प्रबंधन, कर नीति, केंद्रीय बैंकिंग और सांख्यिकी के क्षेत्र में तकनीकी मार्गदर्शन और प्रशिक्षण प्रदान करती है, जिससे देश अपनी संस्थाओं को मजबूत बना सकें और संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल कर सकें। ये तीनों पहलू मिलकर IMF को केवल एक ऋणदाता नहीं, बल्कि एक भरोसेमंद आर्थिक सहयोगी के रूप में स्थापित करते हैं।
IMF का ढांचा और संचालन
IMF का ढांचा इस तरह से तैयार किया गया है कि हर सदस्य देश की आवाज़ सुनी जाए और निर्णय प्रक्रिया में संतुलन बना रहे। इसका नेतृत्व प्रबंध निदेशक (Managing Director) करते हैं, जिन्हें IMF के कार्यकारी बोर्ड (Executive Board) द्वारा चुना जाता है यह चयन या तो मतदान के ज़रिए होता है या सर्वसम्मति से। प्रबंध निदेशक का कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है और वे न केवल संस्था के प्रमुख होते हैं, बल्कि कार्यकारी बोर्ड की बैठकों के अध्यक्ष भी रहते हैं।
IMF की सर्वोच्च नीति-निर्माण इकाई 'बोर्ड ऑफ गवर्नर्स' (Board of Governors) होती है, जिसमें हर सदस्य देश से आमतौर पर उसका वित्त मंत्री या केंद्रीय बैंक का गवर्नर शामिल होता है। यह बोर्ड साल में एक बार बैठक करता है और उन प्रमुख फैसलों पर मुहर लगाता है जो वैश्विक आर्थिक दिशा को प्रभावित करते हैं।
IMF में निर्णय प्रक्रिया को कोटा प्रणाली (Quota System) से संतुलित रखा गया है। हर देश की वोटिंग शक्ति इस बात पर निर्भर करती है कि उसका कोटा कितना है और यह कोटा देश की अर्थव्यवस्था के आकार पर आधारित होता है। यही कोटा तय करता है कि कोई देश IMF से कितनी वित्तीय सहायता ले सकता है और वैश्विक नीतियों के निर्माण में उसकी भूमिका कितनी प्रभावशाली होगी। इस तरह IMF एक ऐसी संरचना के साथ कार्य करता है, जिसमें नेतृत्व, सहभागिता और निर्णय का सामंजस्य बना रहता है और हर देश को वैश्विक आर्थिक मंच पर उचित स्थान मिलता है।
IMF द्वारा आर्थिक अनुमान कैसे लगाया जाता है?
IMF साल में दो बार World Economic Outlook (WEO) रिपोर्ट जारी करता है जिसमें विभिन्न देशों की जीडीपी वृद्धि दर, मुद्रास्फीति, बेरोजगारी आदि का अनुमान लगाया जाता है। IMF हर साल दो बार अप्रैल और अक्टूबर में जारी करता है। इस रिपोर्ट में दुनिया भर के देशों की GDP वृद्धि दर, मुद्रास्फीति, बेरोजगारी और अन्य महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतकों का विश्लेषण होता है। यह रिपोर्ट न केवल अर्थशास्त्रियों के लिए बल्कि नीति-निर्माताओं, निवेशकों और आम लोगों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि यह उन्हें आगामी आर्थिक चुनौतियों और संभावनाओं के बारे में सचेत करती है।
इसके अलावा, IMF समय-समय पर क्षेत्रीय रिपोर्टें, ऋण स्थायित्व रिपोर्ट (Debt Sustainability Reports) और अन्य विशिष्ट आर्थिक अध्ययन भी प्रकाशित करता है। इन रिपोर्टों के ज़रिए वह देशों की आर्थिक स्थिति का गहराई से विश्लेषण करता है और उन्हें नीतिगत सुझाव देता है। इन विश्लेषणों का उपयोग देश अपने आर्थिक ढांचे को मजबूत करने और संकटों से निपटने की तैयारी में करते हैं। इस तरह IMF की रिपोर्टें एक तरह से आर्थिक दिशा-सूचक बन चुकी हैं, जो दुनिया को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाती हैं।
IMF की ब्रिटेन को लेकर हालियां रिपोर्ट
मई 2025 में IMF की ताज़ा रिपोर्ट ने ब्रिटेन की आर्थिक दिशा को लेकर एक सकारात्मक संकेत दिया है। IMF ने देश की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को 1.1% से बढ़ाकर 1.2% कर दिया है, जो यह दर्शाता है कि ब्रिटेन ने पहली तिमाही में उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है। यह बढ़ोतरी महज आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि मजबूत उपभोक्ता खर्च, व्यापार निवेश और सरकार की संतुलित राजकोषीय रणनीति का परिणाम है। ऊर्जा की कीमतों में आई स्थिरता और आर्थिक अनुशासन ने भी इस विश्वास को मजबूती दी है।
IMF ने न केवल आंकड़ों को संशोधित किया, बल्कि ब्रिटेन सरकार की आर्थिक रणनीति की सराहना भी की जिसे उसने स्थिरता और वृद्धि के बीच संतुलन साधने वाला बताया। यह रुख न केवल ब्रिटेन की नीतियों पर वैश्विक भरोसे को दर्शाता है, बल्कि निवेशकों और बाजारों के लिए भी एक सकारात्मक संकेत है। हालांकि IMF ने वैश्विक व्यापार तनाव, अमेरिकी टैरिफ, और धीमी आर्थिक गतिविधियों को जोखिम के तौर पर चिन्हित किया है, लेकिन ब्रिटेन की रिकवरी को एक सकारात्मक अपवाद की तरह रेखांकित किया गया है। यूरोपीय देशों के धीरे-धीरे पटरी पर लौटने की बात भी रिपोर्ट में सामने आई है जिससे यह स्पष्ट होता है कि आर्थिक बादल अब छँटने लगे हैं और उम्मीद की नई किरणें दिख रही हैं।
IMF और आलोचनाएं
भले ही IMF ने दुनिया भर के कई देशों को आर्थिक संकट से उबरने में अहम भूमिका निभाई हो, लेकिन इसकी कार्यप्रणाली हमेशा प्रशंसा के घेरे में नहीं रही। कई देशों ने यह महसूस किया है कि IMF की ओर से मिलने वाली वित्तीय सहायता कुछ सख्त शर्तों के साथ आती है, जो उनकी आर्थिक संप्रभुता पर प्रभाव डालती हैं। इन शर्तों में अक्सर सरकारी खर्चों में कटौती, सब्सिडी हटाना, या बाजार खोलने की नीतियाँ शामिल होती हैं, जो कभी-कभी आम जनता विशेषकर गरीब और कमजोर वर्गों के लिए कठिनाइयाँ पैदा कर देती हैं।
इसके अलावा, IMF के भीतर पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका के प्रभाव को लेकर भी समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। कई विकासशील देशों का मानना है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में यह प्रभाव असंतुलन पैदा करता है, जिससे उनकी आवाज़ अपेक्षाकृत कमजोर पड़ जाती है। इसीलिए, IMF की पारदर्शिता, न्यायसंगत प्रतिनिधित्व, और सामाजिक दृष्टिकोण को लेकर सुधार की मांगें लगातार उठती रही हैं। सहायता की यह प्रणाली, जहाँ एक ओर देशों को राहत देती है, वहीं दूसरी ओर नए सामाजिक-आर्थिक दबाव भी उत्पन्न करती है।
भारत और IMF का संबंध
भारत का IMF के साथ संबंध कोई नया नहीं है दरअसल, भारत तो IMF का एक संस्थापक सदस्य रहा है और 27 दिसंबर 1945 को ही उसने इसकी सदस्यता ली थी। समय के साथ इस रिश्ते में कई मोड़ आए, जिनमें सबसे अहम था 1991 का भुगतान संतुलन संकट, जब भारत ने आर्थिक आपातकाल की स्थिति में IMF से मदद ली थी। उस दौर में भारत को कड़े फैसले लेने पड़े, जैसे आर्थिक उदारीकरण और संरचनात्मक सुधार, जो आज की मजबूत और स्थिर भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव बने।
वर्तमान में भारत IMF के भीतर एक प्रभावशाली भागीदार बन चुका है। उसका वोटिंग अधिकार अब 2.6% तक पहुँच चुका है, जो उसकी बढ़ती आर्थिक ताकत और वैश्विक भूमिका को दर्शाता है। भारत सिर्फ एक लाभार्थी नहीं, बल्कि IMF की नीतियों के निर्धारण में सक्रिय योगदानकर्ता बन गया है।
साथ ही, भारत यह भी सुनिश्चित करना चाहता है कि IMF में विकासशील देशों की आवाज़ और भागीदारी और मजबूत हो। कोटा प्रणाली में सुधार की दिशा में भारत ने लगातार आवाज़ उठाई है, ताकि वैश्विक अर्थव्यवस्था के नए केंद्र बन रहे देश भी निर्णय-प्रक्रिया में बराबरी से हिस्सा ले सकें। IMF के साथ भारत का संबंध आज सहयोग, आत्मनिर्भरता और वैश्विक न्याय की दिशा में साझेदारी का प्रतीक बन चुका है।
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