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तेज प्रताप तेजस्वी और सम्राट चौधरी से बेहतर, क्या है इसमें खास
लालू यादव के पुत्र तेजप्रताप ने कहा—जननायक लोहिया, कर्पूरी ठाकुर और लालू यादव हैं; भगत सिंह के गीतों को बताया प्रेरणा का स्रोत।
Tej Pratap Yadav (Image from Social Media)
मैंने श्री लालू यादव के ज्येष्ठ पुत्र प्रिय तेजप्रताप यादव की दो बातों को रेखांकित किया जिससे लिए उनकी सार्वजनिक प्रशंसा करता हूं । एक उन्होंने बयान दिया कि जननायक श्रद्धेय लोहिया और कर्पूरी ठाकुरजी हो सकते हैं , पुत्रधर्म का पालन करने हुए उन्होंने इस संदर्भ में लालू यादवजी का भी नाम लिया ।
दूसरा, एक साक्षात्कार में उनसे पत्रकार ने पूछा कि आपको कौन सा गाना अच्छा लगता है तो उन्होंने कहा कि मुझे भगत सिंह का गाना अच्छा लगता है जैसे मेरा रंग दे बसंती चोला और सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। उनके अनुसार वो बात सिंह को बहुत लाइक और लव करते हैं ।
अच्छा है कोई नई पीढ़ी का नौजवान हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सेनानी भगत सिंह का उल्लेख तो कर रहा है और लोहिया सदृश त्यागमूर्ति को जननायक तो बता रहा है, वरना इस उम्र के नेता जो सत्ता की मादक मदिरा पी चुके हों , वास्तविक महानायकों का नाम लेने में शर्माते हैं ।
मेरा रंग दे बसंती चोला गीत माना जाता है पंडित रामप्रसाद बिस्मिल ने लिखा था जो 1927 में पहली बार प्रकाश में आया । भगत सिंह का अंतिम गान शीर्षक से यह गीत अभ्युदय साप्ताहिक में 1931 में छपा था । कहीं कहीं उल्लेख मिलता है कि अंतिम समय में किताब पढ़ते समय शहीद-ए - आजम इस प्रेरक गीत को गाने लगते थे । दूसरा गीत सरफरोशी की तमन्ना भले ही रामप्रसाद बिस्मिल के गीत के रूप में प्रसिद्ध हो पर इसकी रचना बिस्मिल अज़ीमाबादी ने की है जो पहली बार उनकी पुस्तक हिकायत - ए - हस्ती में प्रकाशित हुई थी । यह पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, आजाद, भगत, अशफाक उल्ला खान सदृश सेनानियों का प्रेरक गान था । जब गोरखपुर में बिस्मिल को फांसी हो रही थी, उनके लबों इस गजल का पहला मिसरा (जिसे मतला कहते हैं ) था । पूरी गजल इस प्रकार है -
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
वाए क़िस्मत पाँव की ऐ ज़ोफ़ कुछ चलती नहीं
कारवाँ अपना अभी तक पहली ही मंज़िल में है
रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत रह न जाना राह में
लज़्ज़त-ए-सहरा-नवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है
शौक़ से राह-ए-मोहब्बत की मुसीबत झेल ले
इक ख़ुशी का राज़ पिन्हाँ जादा-ए-मंज़िल में है
आज फिर मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार बार
आएँ वो शौक़-ए-शहादत जिन के जिन के दिल में है
मरने वालो आओ अब गर्दन कटाओ शौक़ से
ये ग़नीमत वक़्त है ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है
माने-ए-इज़हार तुम को है हया, हम को अदब
कुछ तुम्हारे दिल के अंदर कुछ हमारे दिल में है
मय-कदा सुनसान ख़ुम उल्टे पड़े हैं जाम चूर
सर-निगूँ बैठा है साक़ी जो तिरी महफ़िल में है
वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है
अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में
पुनश्च- पीके ने तेजप्रताप यादव को सम्राट चौधरी और तेजस्वी से जिस आधार पर बेहतर बताया है, मैं बहुत हद तक सहमत हूं.....
(लेखक समाजवादी विचारक हैं)
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