मौन: जहाँ शब्द थमते हैं, वहाँ आत्मा बोलती है

The Power of Silence: भोजपुरी में एक कहावत कही जाती है — “सौ बोलता को एक चुप्पा हरा देता है।” हालाँकि चुप होना और मौन ओढ़ना दो अलग-अलग बातें हैं, दो अलग स्तर हैं।

Yogesh Mishra
Published on: 14 Oct 2025 7:08 PM IST
The Power of Silence
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The Power of Silence

The Power of Silence: भोजपुरी में एक कहावत कही जाती है — “सौ बोलता को एक चुप्पा हरा देता है।” हालाँकि चुप होना और मौन ओढ़ना दो अलग-अलग बातें हैं, दो अलग स्तर हैं। मौन की शुरुआत भले ही ज़ुबान के चुप होने से होती है, बोलना बंद करने से होती है —

पर यह उससे बहुत आगे की स्थिति है।धीरे-धीरे जुबान के बाद आपका मन भी चुप होने लगता है।जब मन में चुप्पी गहराती है, तो आँखें, चेहरा और पूरा शरीर शांत होने लगता है।मौन से आपको यह एहसास होता है कि शोर विचारों का आकार कितना बिगाड़ देता है।बाहर के शोर के लिए तो शायद हम कुछ नहीं कर सकते,लेकिन अपने भीतर के शोर को मौन ज़रूर कर सकते हैं।

मौन विचारों को आकार देने में मदद करता है।तब आप संसार को नए सिरे से देखना शुरू करते हैं —जैसे कोई नवजात शिशु पहली बार दुनिया को देखता है।मौन के दौरान केवल श्वासों के आवागमन को महसूस करना और उसका आनंद लेना पर्याप्त है।

मौन से मन की शक्ति बढ़ती है।शक्तिशाली मन में भय, क्रोध, चिंता या व्यग्रता नहीं रहती।मौन का अभ्यास करने से सभी प्रकार के मानसिक विकार समाप्त हो जाते हैं। मनुष्य के जीवन में एक क्षण ऐसा आता है जब शब्द पर्याप्त नहीं रहते —वहीं से मौन आरंभ होता है।वह मौन जो केवल बोलने से रुक जाना नहीं, बल्कि भीतर सुनना आरंभ करना है।

सदियों से कवियों, संतों और दार्शनिकों ने मौन को आध्यात्मिक अनुशासन और जीवन की सबसे गहरी अनुभूति कहा है।जब आप मौन धारण करना शुरू करते हैं,तो जान पाते हैं कि बसंत की हवा और सर्दियों की हवा की आवाज़ भी अलग-अलग होती है,

क्योंकि मौन हमें प्रकृति के और करीब लाता है।तब आप पाते हैं कि प्रकृति के पास आपको देने के लिए बहुत कुछ है।

साहित्य में मौन अक्सर शब्दों से अधिक प्रभावशाली होता है।कवि, उपन्यासकार या नाटककार तब मौन का प्रयोग करते हैं जब शब्दों से अनुभूति का संप्रेषण असंभव हो जाता है।मौन भावनाओं का चरम बिंदु है —जहाँ भाषा की सीमाएँ समाप्त हो जाती हैं और संवेदना स्वयं बोलने लगती है।

महादेवी वर्मा के काव्य में स्त्री की चुप्पी समाज की व्यवस्था पर करारा व्यंग्य है।

कवि रवींद्रनाथ ठाकुर ने लिखा —


“जब शब्द चुप हो जाते हैं, तब आत्मा बोलती है।”

शेक्सपियर की कोर्डेलिया का मौन उसके पिता के अहंकार के सामने सत्य की गरिमा है।भारतीय काव्य में भी ‘मौन’ वहाँ आता है जहाँ भावनाएँ शब्दों से आगे निकल जाती हैं।शोक के क्षणों में मनुष्य की वाणी स्वयं मौन हो जाती है —वहाँ मौन शब्दों से अधिक गूंजता है।

शमशेर बहादुर सिंह ने लिखा —“शब्द से अधिक अर्थवान है मौन — क्योंकि उसमें निहित है सम्पूर्ण अनकहा।”

कबीर कहते हैं —“मौन कहै जो कह सके, वाणी कहै जो मौन न कहे।”

अर्थात सच्चा ज्ञान और प्रेम मौन से ही उपजते हैं।मौन वह संगीत है जो बिना वाद्य के बजता है, वह कविता है जो बिना शब्दों के कही जाती है, वह प्रार्थना है जो बिना आवाज़ के ईश्वर तक पहुँचती है।

प्रेम में मौन की भाषा सबसे प्रबल होती है।प्रेमी की चुप्पी, प्रेमिका की आँखों में मौन संकेत —ये सब संवाद से अधिक प्रभावशाली होते हैं।कवि निराला ने लिखा —“ मौन भी भाषा है, जहाँ शब्द असफल हो जाते हैं।” रवींद्रनाथ ठाकुर ने भी मौन को प्रेम का शुद्धतम रूप कहा —“ Love’s deepest expression lies not in words but in silence.”

दर्शन में मौन केवल वाणी का त्याग नहीं,बल्कि मन, इंद्रियों और अहंकार का शांत होना है।यह ध्यान, आत्मचिंतन और सत्य की ओर पहला कदम है।

उपनिषदों में कहा गया है —

“यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह।”

(जहाँ वाणी और मन पहुँच नहीं पाते, वही ब्रह्म है — पूर्ण, परम और अनंत।)

शंकराचार्य ने कहा — “मौनं व्याख्या।” —अर्थात मौन ही सर्वोत्तम व्याख्या है।बुद्ध का ‘मौन उपदेश’ इसी का विस्तार है — जब शब्द भ्रम पैदा करें, तब मौन ही सत्य का मार्ग बनता है।

वेदांत और सूफी दर्शन दोनों मानते हैं —जब मनुष्य बाहरी कोलाहल से हटकर मौन होता है,तभी वह स्वयं से संवाद कर पाता है।मौन आत्मा का दर्पण है,जहाँ मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानता है।

मौन केवल नकारात्मक नहीं,बल्कि अस्तित्व की सकारात्मक अवस्था है।

यह व्यक्ति को भीतर से सुनने की क्षमता देता है।जब कोई व्यक्ति मौन होता है,तो वह संसार की बाहरी गूंज से हटकरअपने अस्तित्व की प्रतिध्वनि सुनता है।यही मौन ‘ज्ञान’ का आरंभ है।

जर्मन दार्शनिक विट्गेंस्टाइन ने कहा —“ Whereof one cannot speak, thereof one must be silent.”

(जिसके बारे में हम बोल नहीं सकते, उसके विषय में मौन रहना चाहिए।)

यह वाक्य दर्शन में मौन की बौद्धिक सीमा और विनम्रता का प्रतीक बन गया।

आधुनिक मनोविज्ञान के अनुसार,मौन मनुष्य को आत्म-संवाद की स्थिति में लाता है।

जब व्यक्ति बाहरी शोर से दूर होकर मौन में प्रवेश करता है,तब मस्तिष्क की Theta Waves सक्रिय होती हैं — जो ध्यान, सृजनशीलता और अंतर्ज्ञान के दौरान उत्पन्न होती हैं।

इस अवस्था में मस्तिष्क का Default Mode Network —जो लगातार विचारों का शोर चलाता रहता है —शांत हो जाता है,और व्यक्ति वर्तमान क्षण में पूर्ण रूप से उपस्थित होता है।योग और ध्यान में इसे ‘प्रत्याहार’ कहा गया है —इंद्रियों का आत्म की ओर लौटना।

अब विज्ञान भी स्वीकार करता है कि मौन धारण करना केवल आध्यात्मिक साधना नहीं, बल्कि शरीर और मस्तिष्क दोनों के लिए औषधि है।

Frontiers in Human Neuroscience (2013) में प्रकाशित शोध के अनुसार —केवल दो घंटे का पूर्ण मौन भी मस्तिष्क के hippocampus क्षेत्र मेंनई कोशिकाओं (neurons) की उत्पत्ति को बढ़ाता है।यह क्षेत्र स्मृति, एकाग्रता और भावनात्मक नियंत्रण से जुड़ा होता है। अर्थात मौन मस्तिष्क को पुनर्जीवित करता है।

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के अध्ययन बताते हैं कि नियमित ‘मौन ध्यान’ cortisol (तनाव हार्मोन) के स्तर को घटाता है। मौन के दौरान parasympathetic nervous system सक्रिय होता है,जिससे हृदयगति धीमी पड़ती है, रक्तचाप घटता है और शरीर विश्राम की अवस्था में प्रवेश करता है।

Johns Hopkins University के अध्ययन में पाया गया कि मौन साधना शरीर में immune-modulatory genes को सक्रिय करती है, जिससे प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है।मौन का अभ्यास शरीर को संक्रमण और बीमारियों से बचाने में भी सहायक है।

जब व्यक्ति दिन में कुछ समय पूर्ण मौन में बिताता है,तो नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है।Melatonin (sleep hormone) का स्तर संतुलित रहता है। डॉक्टरों ने इसे “Restorative Silence Effect” कहा है —एक ऐसी अवस्था जिसमें शरीर स्वयं को ठीक करने की प्रक्रिया में प्रवेश करता है।

योग विज्ञान में मौन धारण को ‘मौन साधना’ कहा गया है।यह मन की ऊर्जा को बाह्य से आंतरिक दिशा में मोड़ता है।जब हम बोलते हैं, ऊर्जा बाहर जाती है।जब हम मौन होते हैं, वही ऊर्जा भीतर लौटकर प्राणशक्ति बनती है।

यह ‘आत्मचेतना का पुनरुत्थान’ है।गुरु गोरखनाथ ने कहा —“मौन मनुष्य की अग्नि को भीतर जलाता है, और वही तेज़ धीरे-धीरे प्रकाश बन जाता है।” मौन का एक सामाजिक अर्थ भी है। कभी-कभी अन्याय के सामने मौन रहना अपराध होता है,

और कभी शब्दों की भीड़ में मौन रहना विवेक।इसलिए संतों ने कहा —“मौन का अर्थ परिस्थितियों से पलायन नहीं,बल्कि संयमित अभिव्यक्ति है।”

मौन मनुष्य को सुनना सिखाता है — स्वयं को भी, और दूसरों को भी।क्योंकि जहाँ सब बोलते हैं, वहाँ कोई नहीं सुनता;और जहाँ मौन होता है, वहाँ सच्चा संवाद जन्म लेता है।

मौन शून्यता नहीं, पूर्णता का प्रतीक है।वह वह गर्भ है जहाँ से शब्द जन्म लेते हैं,

जहाँ से विचारों का बीज अंकुरित होता है।कविता की आत्मा, दर्शन का स्रोत और विज्ञान का संतुलन —तीनों मौन में एकत्र होते हैं।मौन का अभ्यास केवल कुछ समय चुप रहने का नहीं, बल्कि भीतर जागने का साधन है।यह शरीर को संतुलन देता है,

मस्तिष्क को पुनर्जनन, और आत्मा को शांति।

झूठे व्यक्ति की ऊँची आवाज़ सच्चे व्यक्ति को चुप करवा देती है,लेकिन सच्चे व्यक्ति का मौन झूठे व्यक्ति की नींव तक हिला देता है।

महर्षि रमण का वाक्य याद आता है —

“When one is established in silence,

the universe itself becomes his speech.”

(जब कोई मौन में स्थित हो जाता है, तब पूरा ब्रह्मांड उसकी वाणी बन जाता है।)

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