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Premanand Ji Maharaj Satsang: चिंता, अनिद्रा, अवसाद से निजात दिलाता है 'आजपा जाप'- प्रेमानंद जी महाराज द्वारा बताया गया आत्मशांति का सबसे सरल मार्ग
Premanand Ji Maharaj Satsang: प्रेमानंद जी महाराज ने बताया कि 'आजपा जाप' ऐसा ही एक गूढ़ होते हुए भी अत्यंत सरल ध्यान पथ है।
Aajapa Jaap (Image Credit-Social Media)
Premanand Ji Maharaj Satsang: हर युग में जब मनुष्य बाहरी शोर-शराबे से थकता है, तब वह भीतर की ओर लौटने की लालसा करता है। ऐसे में, जब कोई मार्गदर्शक संत किसी साधना को न तो जटिल बनाता है, न रहस्यमय बल्कि इसे हमारी सांसों से जोड़ देता है तो वह साधना हर किसी के लिए सुलभ हो जाती है। प्रेमानंद जी महाराज द्वारा बताया गया 'आजपा जाप' ऐसा ही एक गूढ़ होते हुए भी अत्यंत सरल ध्यान पथ है। जो न केवल आत्मिक शांति देता है बल्कि जीवन में स्थिरता और संयम भी लाता है।
आजपा जाप क्या है, और इसका रहस्य सांसों में कैसे छिपा है
‘आजपा’ शब्द का अर्थ है ऐसा जाप जिसे बोलना न पड़े। यानी यह वह मंत्र है जो हमारी हर सांस के साथ स्वतः चलता रहता है, भले ही हम उसे सुन या देख न सकें। यह जप 'सोऽहम्' पर आधारित है, जिसमें 'सो' श्वास अंदर जाते समय और 'हं' बाहर आते समय अनुभव होता है। प्रेमानंद महाराज इसे सांसों में समाहित आत्मस्मरण कहते हैं। उनका कहना है कि यह मंत्र हमारे भीतर पहले से ही चल रहा है, बस हमें सुनने और अनुभव करने की कला विकसित करनी है।
कैसे करें आजपा जाप और क्यों इसे किसी बाहरी विधि की आवश्यकता नहीं
आजपा जाप करने के लिए किसी माला, मंत्र या धार्मिक स्थान की आवश्यकता नहीं होती। यह एक भीतर की साधना है। जिसमें बस अपनी सांस पर ध्यान देना होता है। शांत जगह पर बैठें, आंखे बंद करें और सांस को आते-जाते हुए अनुभव करें। जब सांस अंदर जा रही हो, तो मानसिक रूप से 'सो' और जब बाहर निकले तो 'हं' की ध्वनि को भीतर अनुभव करें। इसे बोलना नहीं है, केवल मानसिक रूप से ध्यान देना है। यह अभ्यास जितना सहज लगता है, उतना ही गहरा प्रभाव छोड़ता है। शर्त सिर्फ इतनी है कि इसे नियमित और निष्ठापूर्वक किया जाए।
प्रेमानंद जी महाराज की दृष्टि में आजपा जाप आत्मसाक्षात्कार का अनमोल साधन
प्रेमानंद जी महाराज मानते हैं कि आत्मा तक पहुंचने के लिए किसी बाहरी गुरु या तंत्र की आवश्यकता नहीं है। उनका कहना है कि सांस ही सबसे सच्चा गुरु है। यह कभी झूठ नहीं बोलती, शरीर में प्राण रहते कभी साथ नहीं छोड़ती। वे समझाते हैं कि जब हम 'सोऽहम्' मंत्र पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो धीरे-धीरे मन शांत होता है, विचार रुकते हैं और अंततः हम अपने भीतर के दिव्य स्वरूप से जुड़ने लगते हैं। प्रेमानंद जी इसे 'साक्षात् ब्रह्म का दर्शन' कहते हैं, जो सांसों की साधना से सम्भव है।
आजपा जाप के नियमित अभ्यास से कैसे बदल जाती है पूरी जीवनशैली
इस साधना का प्रभाव केवल ध्यान के क्षणों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह हमारे जीवन की हर गतिविधि को बदलने लगता है। जब मन सांसों के साथ एकरूप हो जाता है, तो वह कम भटकता है, कम उत्तेजित होता है और ज्यादा स्थिर, संयमी तथा शांत रहता है। प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि ऐसा साधक कम बोलता है, पर ज्यादा समझता है। वह जीवन में प्रतिक्रियाओं की जगह जवाब देने की योग्यता विकसित करता है। इससे न केवल मानसिक स्वास्थ्य सुधरता है, बल्कि पारिवारिक, सामाजिक और व्यक्तिगत संबंध भी संतुलित होने लगते हैं।
ब्रह्मचर्य वर्धन और ऊर्जा संरक्षण में आजपा जाप की अद्भुत भूमिका
प्रेमानंद जी बार-बार इस बात पर जोर देते हैं कि आजपा जाप से ब्रह्मचर्य की रक्षा सहज होती है। उनका मानना है कि जब ऊर्जा बाहर की बजाय भीतर बहती है, तो वह न केवल बचती है, बल्कि ऊर्ध्वगामी होकर साधक को आध्यात्मिक स्तर पर ऊंचा उठाती है। यह जाप ना सिर्फ वासना पर नियंत्रण देता है, बल्कि संकल्प शक्ति को भी मजबूत करता है। इसीलिए वे इसे 'ऊर्जा संरक्षण का सबसे सशक्त माध्यम' मानते हैं।
आजपा जाप के अभ्यास से कैसे दूर होते हैं तनाव, चिंता और मानसिक अशांति
वर्तमान समय में चिंता, अनिद्रा, अवसाद और आत्मसंघर्ष हर उम्र के लोगों में आम समस्याएं हैं। प्रेमानंद महाराज बताते हैं कि आजपा जाप से सांसें लयबद्ध होती हैं और इससे मस्तिष्क शांत होता है। यह धीरे-धीरे तंत्रिका तंत्र को स्थिर करता है और मन की हलचल को शांत करता है। वे कहते हैं कि यह कोई मानसिक तकनीक नहीं, बल्कि आत्मिक स्पर्श है। जो भीतर के घावों को भी भर देता है।
आजपा जाप न तो धर्म से जुड़ा है, न जाति या मत से यह सबके लिए है
आजपा जाप की सबसे सुंदर बात यही है कि यह किसी भी व्यक्ति द्वारा, किसी भी स्थान और परिस्थिति में किया जा सकता है। न इसमें विशेष दीक्षा की आवश्यकता होती है, न किसी धर्म, पंथ या परंपरा की। प्रेमानंद जी इस जाप को 'सार्वभौमिक साधना' कहते हैं। जो श्वास जैसी ही सबमें समान है, एक सी, निरंतर और मौन। यही इसकी व्यापकता और महानता है।
सोऽहम् की ध्वनि क्यों कहलाती है आत्मा की मौन भाषा
'सोऽहम्' का अर्थ है है 'मैं वही हूं।' यानी जो यह सारा ब्रह्मांड है, जो चेतना है, जो जीवन है...वही मैं हूं। यह अनुभव जब सांसों में गूंजता है, तो साधक का अहंकार धीरे-धीरे नष्ट होता है और वह अद्वैत भाव की ओर बढ़ता है। प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि यह मंत्र केवल शब्द नहीं, बल्कि 'चेतना का स्पंदन' है। जो आत्मा की मौन भाषा बनकर साधक को सत्य से जोड़ता है।
आजपा जाप कहीं भी, कभी भी किया जा सकता है यही इसकी शक्ति है
प्रेमानंद जी हमेशा कहते हैं कि आजपा जाप ऐसा साधन है जो चलते-फिरते, काम करते, खाते-पीते हर समय किया जा सकता है। बस मन सांसों पर स्थिर होना चाहिए। वे बताते हैं कि यदि किसी ने इस जाप को भीतर गहरा बिठा लिया, तो फिर उसे माला, मंत्र, या मंदिर की आवश्यकता नहीं रहती। वह हर पल एक चलती-फिरती तपश्चर्या बन जाता है।
क्या आजपा जाप से आध्यात्मिक उन्नति संभव है?
प्रेमानंद जी बताते हैं कि यह जाप साधक को सबसे पहले स्व-निरीक्षण की ओर ले जाता है। फिर वह मन की गहराइयों में उतरता है, जहां विचारों का शोर कम होता जाता है। इसके बाद वह अपने अहम और इच्छाओं से ऊपर उठता है और अंततः अपने शुद्ध स्वरूप का अनुभव करने लगता है। यही आत्म-साक्षात्कार है, जो प्रेमानंद जी के अनुसार, इसी जीवन में सम्भव है आजपा जाप से।
हर सांस में बसता है ईश्वर, उसे सुनना ही आजपा है
प्रेमानंद जी महाराज का संदेश साफ है कि, ईश्वर को मंदिरों या ग्रंथों में नहीं, बल्कि अपनी सांसों में खोजो। आजपा जाप वह मार्ग है जो हमें हमारे भीतर छिपे शांति, संयम और समर्पण तक पहुंचाता है। यह साधना न दिखती है, न गूंजती है, पर इसकी अनुभूति अमिट होती है। यदि आप भी जीवन में स्थिरता, साधना और संतुलन पाना चाहते हैं, तो आज से ही अपनी सांसों पर ध्यान देना शुरू कीजिए।
क्योंकि हमारी हर सांस में
सोऽहम्…यानी ईश्वर का वास होता है।
आजपा जाप के नियम
- जाप मौन होना चाहिए- श्वास आधारित और मानसिक
प्रेमानंद जी कहते हैं कि आजपा जाप को बोलकर नहीं करना है, यह केवल मानसिक रूप से और सांसों के साथ किया जाता है। जब आप सो...और हं...का ध्यान सांस के साथ करते हैं, तो यह भीतर की मौन साधना बन जाती है। यह श्रवण का नहीं, अनुभव का जाप है।
- बिना किसी दिखावे के, भीतर ही भीतर करें जाप
आजपा जाप एकांत में, मौन और बिना किसी आडंबर के किया जाना चाहिए। इसे दूसरों को दिखाने या बताने की जरूरत नहीं है। यह आंतरिक यात्रा है, जो तब सफल होती है जब साधक सच्चे भाव से अपने भीतर उतरता है।
- नियमितता सबसे ज़रूरी है- रोज एक निश्चित समय पर करें
प्रेमानंद जी बताते हैं कि साधना में सबसे बड़ा मंत्र है नियमितता। चाहे 5 मिनट करें या 50 मिनट, लेकिन हर दिन एक ही समय पर जाप करें। जैसे ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4–6 बजे) सबसे उत्तम समय माना गया है। इस समय वातावरण भी शांत होता है और ऊर्जा भी सात्त्विक होती है।
- स्थिर और सीधी रीढ़ की हड्डी के साथ आसन में बैठें
जाप करते समय शरीर स्थिर और सीधा होना चाहिए। मेरुदंड सीधा रखने से ऊर्जा ऊपर उठती है। प्रेमानंद जी पद्मासन, सुखासन या वज्रासन में बैठकर करने की सलाह देते हैं। यदि स्वास्थ्य ठीक न हो तो कुर्सी पर पीठ सीधी रखकर भी किया जा सकता है।
- बिना इच्छा, बिना कल्पना के केवल श्वास पर ध्यान दें
जाप के समय कोई मनोकामना, कल्पना, भूत या भविष्य की सोच न करें। प्रेमानंद जी कहते हैं कि,
सांस को पकड़ो, विचारों को नहीं।
सिर्फ श्वास को आते-जाते हुए देखना है और उसके साथ 'सो… हं…' का अनुभव करना है।
- भोजन सात्त्विक और संयमित हो
आजपा जाप से ऊर्जा ऊपर उठती है, लेकिन यदि खानपान में विकृति या जीवनशैली में असंयम हो, तो वह ऊर्जा नीचे की ओर गिर सकती है। प्रेमानंद जी सात्त्विक भोजन, संयम, और ब्रह्मचर्य की सलाह देते हैं, ताकि साधना टिके और बढ़े।
- कभी समय खाली मिले तो जाप करना शुरू कर दें
आजपा जाप की सुंदरता ही यह है कि इसे कभी भी, कहीं भी किया जा सकता है। सोने से पहले, सुबह उठते ही, यात्रा में या जब भी मन अशांत हो। प्रेमानंद जी इसे 'चलती-फिरती साधना' कहते हैं।
- शरीर को स्थिर रखो, आंखें बंद कर मन को सांस में डुबो दो
जाप करते समय शरीर हिले-डुले नहीं। आंखें बंद हों और ध्यान केवल सांस पर केंद्रित रहे। मन कहीं और न भटके। बस सांस के साथ सो...हं...के कंपन को भीतर अनुभव करें।
- जप को कभी जबरन न करें, सहजता और श्रद्धा बनी रहे
प्रेमानंद जी चेतावनी देते हैं कि आजपा जाप कोई अनुष्ठान या प्रतियोगिता नहीं है। इसे जबरन या तनाव से न करें। यह तो प्रेम और सहजता से ईश्वर से जुड़ने का प्रयास है। जैसे कोई मां अपने बच्चे की सांस सुनती है ठीक वैसे ही।
- किसी से तुलना न करें, अनुभव को गोपनीय रखें
अपने जाप का अनुभव किसी से न बताएं और न ही दूसरों से तुलना करें कि कौन कितना कर रहा है। यह यात्रा केवल आप और आपकी आत्मा के बीच है। अनुभवों को गोपनीय रखना ही आध्यात्मिक ऊर्जा को सुरक्षित रखने का उपाय है।
- जप के बाद कुछ क्षण मौन में बैठें- उसे भीतर उतरने दें
जब जाप पूरा हो जाए, तो तुरन्त न उठें। प्रेमानंद जी सलाह देते हैं कि कुछ क्षण आंखें बंद रखकर, भीतर की शांति को महसूस करें। जैसे कोई संगीत सुनने के बाद उसकी गूंज बनी रहती है। वैसे ही इस जाप के कंपन को भीतर उतरने दें।
- जप के साथ जीवन भी पवित्र बनाएं
प्रेमानंद जी कहते हैं कि यदि हम आजपा जाप कर रहे हैं लेकिन दिन में असत्य बोलते हैं, छल-कपट करते हैं या वासनाओं में डूबे हैं, तो जाप केवल शब्दों का खेल बनकर रह जाता है। इसलिए उनका विशेष आग्रह है कि आचरण, वाणी और विचारों में भी पवित्रता लानी चाहिए।
सेवा न लेना- आत्मनिर्भरता और अहं को गलाने की गूढ़ साधना
प्रेमानंद जी महाराज का यह नियम सुनने में छोटा लग सकता है, लेकिन यह आध्यात्मिक साधना की मूल जड़ को छूता है। वे बार-बार कहते हैं कि, सच्चा साधक वह है जो न किसी से कुछ चाहता है, न किसी से सेवा कराता है।
आजपा जाप करने वाले साधक को चाहिए कि वह किसी भी परिस्थिति में दूसरों पर निर्भर न रहे। विशेष रूप से दैनिक जीवन में भोजन, वस्त्र, कार्य और आत्म-सेवा के मामलों में वह स्वयं को स्वावलंबी बनाए। उनकी दृष्टि में जब कोई साधक बार-बार दूसरों की सेवा लेता है। विशेषकर उन कार्यों में जिन्हें वह स्वयं कर सकता है। तो वह अपने भीतर 'सेवक' के भाव की जगह 'सेवित होने' के अहंकार को जगह देता है। इससे साधना की ऊर्ध्वगति रुक जाती है और ब्रह्मचर्य का क्षय भी सम्भव होता है। सेवा लेना मन के सूक्ष्म अहं को पालता है और सेवा देना आत्मा की विनम्रता को बढ़ाता है। यही उनका संदेश है।
इस नियम का आशय यह नहीं कि कभी सहायता न लें, बल्कि यह है कि जो काम आप स्वयं कर सकते हैं। उसे आलस्य या अभिमान के कारण दूसरों से न कराएं।
प्रेमानंद जी महाराज द्वारा बताए गए आजपा जाप के ये नियम न केवल इस साधना को प्रभावशाली बनाते हैं, बल्कि साधक को एक पूर्ण और संतुलित जीवन जीने की दिशा भी देते हैं। यह जाप जब इन नियमों के साथ किया जाता है, तो यह साधक को आत्मा, परमात्मा और ब्रह्म की गहराइयों से जोड़ देता है।
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