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Premanand Ji Maharaj Satsang: भय पर जीत से होकर गुजरती है आत्मबल की राह - प्रेमानंद महाराज
Premanand Ji Maharaj Satsang: जीवन में कई बार हम ऐसी परिस्थितियों से गुजरते हैं जहां भय, संशय और समाज का दबाव हमें अपने रास्ते से भटकाने की कोशिश करता है।
Premanand Ji Maharaj Satsang: जीवन में कई बार हम ऐसी परिस्थितियों से गुजरते हैं जहां भय, संशय और समाज का दबाव हमें अपने रास्ते से भटकाने की कोशिश करता है। ऐसे समय में संतों और महापुरुषों के विचार हमारी आत्मा को सम्बल देते हैं और अंधकार में दीपक का काम करते हैं। प्रेमानंद महाराज जी का यह प्रेरक संदेश -'डरना नहीं, झुकना नहीं और किसी के भी धमकाने से आप कभी अपना निर्णय बदलना नहीं' सिर्फ एक वाक्य नहीं, बल्कि जीवन जीने की संपूर्ण दिशा है। आइए प्रवचन के मूल तत्वों को सरल भाषा में समझें और जानें कि किस तरह यह हमारे आत्मविश्वास और निर्णय क्षमता को सशक्त करता है।
डर को पहचानो, लेकिन उसे खुद पर हावी मत होने दो
डर मानव स्वभाव का हिस्सा है। यह हमें सतर्क करता है, लेकिन जब यह हमें जकड़ लेता है तो हमारी सोच, आत्मविश्वास और निर्णय लेने की शक्ति कमजोर हो जाती है। प्रेमानंद महाराज समझाते हैं कि डर से भागो मत, उसका सामना करो। डर के कारण कोई गलत निर्णय न लें। जीवन में सफल वही होता है जो डर को जीतकर आगे बढ़ता है।
झुकना नहीं-आत्मसम्मान ही सच्चा बल है
महाराज जी के प्रवचनों में आत्मसम्मान की बात गूंजती है। उनका कहना है कि किसी भी व्यक्ति या परिस्थिति के आगे ऐसा झुकाव जो आपकी आत्मा को चोट पहुंचाए, वह स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। समाज, परिवार या व्यवस्था के नाम पर यदि कोई आपके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाए, तो उसके आगे झुकना कमजोरी नहीं, अन्याय के साथ समझौता है। अपने सिद्धांतों और सत्य पर अडिग रहना ही सच्चा सम्मान है।
धमकी से निर्णय न बदलना- भीतर के सत्य की सुनो
जीवन में कई बार दबाव में आकर हम वो फैसले ले लेते हैं जो हमारे मन के नहीं होते। प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि, बाहरी दबाव, चाहे वह किसी बड़े पद पर बैठे व्यक्ति का हो या किसी नजदीकी का, यदि वह आपकी अंतरात्मा के विरुद्ध है, तो वह दबाव नहीं, एक छुपा हुआ डर है। आपको वही निर्णय लेना चाहिए जो आपके मन, विवेक और आत्मा को स्वीकार हो।
निडर निर्णय ही जीवन की दिशा तय करते हैं
कई लोग सोचते हैं कि समझौता कर लेने में ही बुद्धिमानी है, लेकिन महाराज जी स्पष्ट करते हैं कि, हर बार झुकना सही नहीं होता। निडर होकर लिया गया निर्णय चाहे तत्काल सफलता न दे, लेकिन वह दीर्घकाल में आपको मजबूत बनाता है। आत्मा की आवाज पर लिया गया निर्णय कभी धोखा नहीं देता।
धैर्य और सत्य का मार्ग कठिन जरूर होता है, लेकिन फलदायी होता है
सच्चाई की राह कभी आसान नहीं होती। रास्ते में आलोचना, उपहास और धमकियां मिलेंगी। लेकिन महाराज जी कहते हैं कि जो धैर्य रखता है और अपने सत्य पर अडिग रहता है, अंत में वही विजयी होता है। जब आप सच्चाई पर टिके रहते हैं। तो समय स्वयं आपके पक्ष में खड़ा हो जाता है।
समाज से नहीं, अपनी आत्मा से मार्गदर्शन लो
हम अक्सर अपने निर्णय समाज की सोच से प्रभावित होकर लेते हैं 'लोग क्या कहेंगे?' इस सवाल ने न जाने कितनों के सपनों को रोक दिया। प्रेमानंद महाराज इस मानसिकता को बदलने की बात करते हैं। वह कहते हैं, 'लोग तो हमेशा कुछ न कुछ कहेंगे, लेकिन आपकी आत्मा जानती है कि क्या सही है।' इसलिए अपने भीतर की आवाज सुनें, वही सबसे बड़ा गुरु है।
असफलता से मत डरो, डरना तो प्रयास न करने से चाहिए
महाराज जी का यह संदेश अत्यंत प्रभावशाली है कि, असफलता कोई शर्म की बात नहीं, बल्कि डर के कारण सफर की ओर दोबारा कोई कदम न उठाना सबसे बड़ी हार है। असफलता से हम सीखते हैं, संवरते हैं और फिर से उठ खड़े होते हैं। लेकिन जो केवल डर के कारण बैठ जाता है, वह कभी निखर नहीं पाता।
विरोध से घबराना नहीं, क्योंकि वह आपकी प्रगति का प्रमाण है
जब आप सही दिशा में आगे बढ़ते हैं, तो विरोध होना स्वाभाविक है। महाराज जी कहते हैं कि जहां कोई विरोध नहीं है, वहां कोई विशेषता भी नहीं है।' जो लोग निडर होकर अपने निर्णयों पर अडिग रहते हैं, समाज कभी न कभी उनके मूल्य को समझता है। इसलिए आलोचना और विरोध से डरिए मत, उसे अपने साहस की परीक्षा मानिए।
सही निर्णय के लिए ध्यान और आत्मचिंतन जरूरी
प्रेमानंद महाराज के प्रवचनों में ध्यान और आत्मचिंतन का विशेष महत्व है। जब मन शांत होता है, तभी आप सही निर्णय ले सकते हैं। महाराज जी कहते हैं कि डर या गुस्से की स्थिति में लिया गया निर्णय अक्सर गलत होता है। इसलिए हर निर्णय से पहले स्वयं से एक सवाल जरूर करें क्या यह निर्णय मुझे भीतर से शांति देगा?
संतों की वाणी से प्रेरणा लो, अंधविश्वास से नहीं
महाराज जी सदैव भक्ति में अंधविश्वास नहीं, बल्कि आत्मज्ञान और विवेक को महत्व देते हैं। उनका संदेश है कि, संतों की वाणी से प्रेरणा लें, लेकिन आंख बंद करके किसी भी बात पर विश्वास न करें। विवेक, आत्मबल और निर्णय क्षमता को जागृत करना ही सच्चा अध्यात्म है।
डर को नहीं, अपने उद्देश्य को साथी बनाओ
जीवन में जब लक्ष्य स्पष्ट हो, तो डर स्वयं ही रास्ते से हट जाता है। प्रेमानंद महाराज बार-बार कहते हैं कि 'डर और विश्वास एक साथ नहीं रह सकते। जहां विश्वास होगा, वहां भय टिक नहीं सकता।' इसलिए अपने जीवन के उद्देश्य पर विश्वास करें और उसके लिए जो भी निर्णय लें, उसमें पूरे आत्मबल के साथ आगे बढ़ें।
युवाओं के लिए विशेष संदेश - आत्मबल ही सबसे बड़ा बल है
महाराज जी का यह प्रवचन विशेष रूप से युवाओं के लिए अत्यंत उपयोगी है। आज की पीढ़ी अक्सर बाहरी दिखावे, सोशल मीडिया की तुलना और पारिवारिक दबाव में उलझी रहती है। ऐसे में यह विचार डरना नहीं, झुकना नहीं और धमकी से निर्णय न बदलना उनके लिए आत्मनिर्भर बनने का मूलमंत्र है। आपका एक साहसी कदम, एक आत्मबल से भरा निर्णय आपके पूरे जीवन की दिशा बदल सकता है। महाराज जी उदाहरण देते हुए समझाते हैं कि, बड़े-बड़े महान कार्यों की शुरुआत एक दृढ़ निश्चय से होती है। इसलिए छोटे निर्णयों को भी हल्के में न लें, क्योंकि वही आपको नई ऊंचाईयों तक ले जा सकते हैं।
डर नहीं, विश्वास रखो -अपने अंदर और ईश्वर के न्याय पर
अंत में प्रेमानंद महाराज का मुख्य संदेश था कि, ईश्वर ने आपको जो विवेक, आत्मा और साहस दिया है, उसका उपयोग कीजिए। किसी भी प्रकार की धमकी, डर या दबाव से कभी अपने निर्णय को न बदलें। जब आप सच्चाई, आत्मबल और ईश्वर पर विश्वास रखकर निर्णय लेंगे, तब आपके कदम कभी नहीं लड़खड़ाएंगे। इस प्रवचन को जीवन में यदि उतारें तो न केवल आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा, बल्कि आपकी पहचान भी एक दृढ़, निडर और विवेकवान व्यक्ति के रूप में बनेगी। ' डरो मत, झुको मत और सच्चे रास्ते पर डटे रहो क्योंकि सत्य ही तुम्हारा सबसे बड़ा रक्षक है।'
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