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Premanand Ji Maharaj Satsang: इंसान का सबसे बड़ा शत्रु उसका डर और आत्मविश्वास की कमी: प्रेमानंद महाराज

Premanand Ji Maharaj Satsang: आइये जानते हैं कि\आखिर क्यों प्रेममंद जी महाराज ने इंसान का सबसे बड़ा शत्रु उसका डर और आत्मविश्वास की कमी बताया।

Jyotsna Singh
Published on: 3 July 2025 7:35 PM IST
Premanand Ji Maharaj
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Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)

Premanand Ji Maharaj Satsang: प्रेमानंद महाराज जी ने अपने नियमित प्रवचन में आत्म-शांति, भक्ति, सकारात्मक सोच और मनोबल की शक्ति पर विशेष रूप से जोर दिया। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में इंसान का सबसे बड़ा शत्रु उसका डर और आत्मविश्वास की कमी है। यह प्रवचन सिर्फ धार्मिक उपदेश नहीं था, बल्कि जीवन को संतुलित, स्थिर और सुखद बनाने की प्रेरणा देने वाला एक सशक्त संदेश था। आइए जानते हैं उनके इस प्रवचन से मिले उन प्रमुख संदेशों को, जो किसी भी उम्र, जाति, धर्म और पृष्ठभूमि के व्यक्ति के लिए अमूल्य मार्गदर्शन हैं।

चिंता छोड़ो, आत्मबल बढ़ाओ

चिंता और परेशानियों में जूझ रही आज लोगों की जिंदगी को सरल मार्ग दिखाते हुए कहा कि, महाराज जी ने कहा कि, 'चिंता करने से कुछ नहीं होगा। चिंता करने से काम और भी बिगड़ जाते हैं।'


आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हर व्यक्ति किसी न किसी चिंता से घिरा हुआ है। नौकरी, रिश्ते, भविष्य, स्वास्थ्य या धन जैसे विषयों को लेकर। लेकिन महाराज जी ने सरल भाषा में बताया कि चिंता करना हमारे मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है, जबकि ईश्वर में विश्वास और स्वयं पर भरोसा ही समाधान की कुंजी है। चिंता हमें कमज़ोर बनाती है, समाधान नहीं देती। जब तक हम अपनी चिंता को प्रभु के चरणों में समर्पित नहीं करते, शांति नहीं मिलेगी। 'सब प्रभु कर रहे हैं' यह भावना रखने वाला व्यक्ति अंदर से मजबूत बनता है।

घर से निकलने से पहले जपें यह चमत्कारी मंत्र

महाराज जी ने विशेष रूप से बताया कि घर से निकलने से पहले 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का 21 बार जप करना चाहिए। उन्होंने कहा कि, यह छोटा सा उपाय आपके दिन को शुभ बना सकता है और बड़ी से बड़ी दुर्घटना से बचा सकता है।' इस मंत्र जाप से मानसिक संतुलन और एकाग्रता बढ़ती है। यात्रा या किसी काम में सफलता की संभावना बढ़ जाती है। व्यक्ति सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। मन को शांत करता है और शरीर को ऊर्जावान बनाता है।

आत्मनिर्भरता का संदेश- किसी की मत सुनो, खुद पर काम करो

प्रेमानंद महाराज जी ने युवाओं से खासतौर पर कहा कि हर कोई कुछ न कुछ कहेगा। लेकिन आपको अपनी आत्मा की आवाज़ सुननी है। आज की पीढ़ी सबसे ज़्यादा दूसरों की राय, सोशल मीडिया की अपेक्षाओं और समाज के दबाव में जी रही है। महाराज जी ने स्पष्ट किया कि, यदि आप बार-बार दूसरों की बातों में उलझते हैं, तो आप कभी अपने जीवन का वास्तविक उद्देश्य नहीं समझ पाएंगे। 'लोग क्या कहेंगे' से बाहर निकलो। 'प्रभु क्या चाहते हैं' यह सोचो। यह सीख व्यक्ति को आंतरिक रूप से मुक्त करती है और आत्मनिर्भर बनाती है।

भक्ति का अर्थ केवल पूजा नहीं, बल्कि सेवा, त्याग और साधना


महाराज जी ने समझाया कि आज भक्ति को केवल मंदिर में जाकर पूजा करना मान लिया गया है। लेकिन सच्ची भक्ति क्या है? प्रेमानंद जी के अनुसार भक्ति का मतलब है 'अपने जीवन के प्रत्येक कर्म को प्रभु को समर्पित करना।'

रोज़ सुबह उठकर प्रभु को धन्यवाद देना भी भक्ति है।

अपने माता-पिता की सेवा करना भी भक्ति है।

अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाना भी भक्ति है।

उन्होंने कहा, 'अगर तुम ईमानदारी से काम करते हो, झूठ नहीं बोलते, दूसरों की मदद करते हो, तो तुम भक्त हो, चाहे मंदिर जाओ या न जाओ।'

मृत्यु का भय छोड़ो, प्रभु पर भरोसा रखो

प्रवचन का एक भावुक लेकिन गहरा हिस्सा था अकाल मृत्यु या दुर्घटना से भय। महाराज जी ने कहा कि मनुष्य जितना मृत्यु से डरता है, उतना ही वह जीवन को खो देता है। उन्होंने आश्वासन दिया कि, अकाल मृत्यु का भय प्रभु भक्ति से समाप्त हो सकता है। जब मन शांत होता है, कर्म शुद्ध होते हैं, और विचार सकारात्मक होते हैं तो मृत्यु भी साधारण हो जाती है। दुर्घटनाएं, रोग या आपदाएं ये सभी प्रभु की लीला हैं और इनसे डरने की आवश्यकता नहीं है।

इसके साथ उन्होंने यह उपाय सुझाया कि 'हर दिन 5 मिनट के लिए आंख बंद करके ‘राम राम बोलो’।

यह अभ्यास नकारात्मकता को नष्ट करता है और जीवन को ऊर्जा प्रदान करता है।

जीवन में कुछ बड़ा करना है तो 3 बातों को पकड़े रहो

1. साधना (अभ्यास)

कुछ भी एक दिन में नहीं होता। रोज़ थोड़ा-थोड़ा करके अभ्यास करो चाहे वह ध्यान हो, पढ़ाई हो या संयम।

2. संयम

शब्दों में, भावनाओं में और व्यवहार में संयम बहुत आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि 'तुम्हारे बोल तुम्हारा भविष्य बनाते हैं।'

3. संतोष

लोभ, ईर्ष्या और तुलना जीवन में अशांति लाते हैं।

जो है, उसमें खुश रहना ही सबसे बड़ी सफलता है।

अपने घर को मंदिर बनाओ - वातावरण पवित्र बनाओ


महाराज जी ने एक बहुत ही व्यवहारिक सलाह दी कहा कि, घर में एक स्थान तय करें जहां प्रतिदिन दीपक जलाएं। पूरे घर में सात्विक वातावरण बनाए रखें। टीवी, मोबाइल, निंदा से दूरी रखें।

बच्चों को रोज़ रामायण, गीता या धार्मिक कहानियां सुनाएं।

उन्होंने कहा कि 'जब घर में प्रभु का नाम गूंजता है, तब वहां दरिद्रता, अशांति और क्लेश नहीं टिकते।'

प्रेम का भाव रखें- कटुता नहीं

उन्होंने अंत में प्रेम और करुणा का संदेश देते हुए कहा कि, आप दूसरों के लिए क्या कर सकते हैं, यही आपका वास्तविक धर्म है।

किसी को क्षमा कर देना, किसी के लिए मुस्कुरा देना यह सबसे ऊंची साधना है।

उन्होंने कहा कि, प्रेम से बड़ा कोई तीर्थ नहीं, सेवा से बड़ा कोई व्रत नहीं। प्रेमानंद महाराज जी का यह प्रवचन केवल आध्यात्मिक बातों का संग्रह नहीं था, यह वर्तमान समय के लोगों के लिए एक जीवन मंत्र था। उन्होंने समझाया कि आध्यात्मिकता कोई रहस्यमयी बात नहीं है यह तो हमारे जीवन की शैली होनी चाहिए।

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