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बाढ़ में डूबते पंजाब को अब नरेंद्र मोदी की आई याद! बाकी नेता कहाँ हैं... ?
राज्य सरकार ने अपने स्तर पर आपदा प्रबंधन की कितनी तैयारी की थी या ये कहना उचित होगा कि तैयारी की भी थी या नहीं...
Punjab flood tragedy
Punjab flood tragedy: पंजाब इन दिनों भयंकर बाढ़ से मची तबाही से जूझ रहा है। वहां लाखों नागरिक बुरी तरह से प्रभावित हैं, हजारों घर तबाह हो चुके हैं और अब तक करीब 46 लोगों की जान जा चुकी है। तकरीबन 1,74,000 हेक्टेयर फसल पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है। यह बड़ी आपदा पंजाब के नागरिकों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। ऐसे मुश्किल वक़्त में जहाँ केंद्र सरकार, सेना और NDRF पूरी मजबूती के साथ राहत और बचाव कार्य में तेज़ी से लगी हुई है, वहीं राज्य की राजनीति ने एक बार फिर लोगों को बुरी तरह से हिलाकर रख दिया है।
त्रासदी के बीच नेता गायब!
इस वक़्त पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है और मुख्यमंत्री भगवंत मान सत्ता में हैं। लेकिन... आज जब राज्य बाढ़ की समस्या से बुरी तरह जूझ रहा है, तब मुख्यमंत्री मान मोहाली के एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं। जानकारी में सामने आया है कि उन्हें तेज बुखार और पेट में संक्रमण की शिकायत थी, जिसके बाद उन्हें फोर्टिस अस्पताल में एडमिट कराया गया। इस बीच अब सवाल यह उठता है कि जो नेता पंजाब को 'वर्ल्ड क्लास स्वास्थ्य व्यवस्था' देने का दावा ठोकते थे, वे आज खुद इलाज के लिए निजी अस्पतालों का रुख क्यों कर रहे हैं?
इधर, दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल की बात करें तो वो पंजाब में फिलहाल कहीं भी नज़र नहीं आए। वे पहले दिल्ली लौटे और फिर दो दिन के गुजरात दौरे पर चुनाव के प्रचार-प्रचार के लिए रवाना हो गए। इस वक़्त कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी विदेश दौरे पर हैं। ऐसे में पंजाब की जनता को लगा कि जिन नेताओं को उन्होंने वोट देकर अपने राज्य के हित के लिए चुना था, वे संकट की घड़ी में साथ छोड़ घूम रहे हैं।
इस बीच दिखी मोदी सरकार की सक्रियता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरुआती दिनों में ही केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पंजाब के दौरे के लिए भेजा। चौहान ने बाढ़ से बनी स्थिति का जायज़ा लिया और बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा कर केंद्र सरकार की तरफ़ से हर संभव सहातया उपलब्ध कराने का विश्वास भी दिलाया। सेना और NDRF की कई टीमें लगातार राहत कार्यों में तेज़ी से लगी हुई हैं।
- सेना की 27 टुकड़ियां अलग-अलग इलाकों में राहत-बचाव का काम तेजी से जुटी हुई हैं।
- NDRF की 23 टीमें बाढ़ग्रस्त इलाकों में तैनात हैं।
- जबकि पंजाब सरकार की SDRF की मात्र 2 टीमें ही मैदान में उतरी हैं।
ध्यान देने योग्य: पंजाब सरकार केंद्र से 60,000 करोड़ रुपये का राहत पैकेज मांग रही है। लेकिन इस बीच सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि राज्य सरकार ने अपने स्तर पर आपदा प्रबंधन की कितनी तैयारी की थी या ये कहना उचित होगा कि तैयारी की भी थी या नहीं... फिलहाल पंजाब में जो मौजूदा स्थिति बनी हुई है उसे देखकर तो यही लगता है...
पानी न छोड़ने का विवाद और बाढ़ का प्रकोप
बाढ़ की भयावह स्थिति का एक सबसे बड़ा कारण सरकार का समय पर सही फैसला न कर पाना भी है। गौर करें तो कुछ महीने पहले हरियाणा सरकार ने पानी की कमी की गंभीरता को देखते हुए पंजाब से अतिरिक्त पानी छोड़ने की अपील की थी। लेकिन उस वक़्त मुख्यमंत्री भगवंत मान ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर दिया था कि "पंजाब का एक बूंद पानी भी हरियाणा को नहीं देंगे"।
इसके बाद जब भारी वर्षा हुई और बांध अपनी क्षमता से ज़्यादा भर गए, तब अचानक अतिरिक्त पानी छोड़ना ही पड़ गया पड़ा। इससे नदियों का जलस्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ गया और पंजाब के कई जिले जलप्रलय की चपेट में आ गए। ऐसे हालातों को देखते हुए विशेषज्ञों का कहना है कि अगर समय पर पानी छोड़ा जाता और बांधों की सिल्ट (गाद) स्वस्छ की जाती तो नुकसान इतना बुरी तरह से नहीं होता।
केंद्र पर जनता का विश्वास
पंजाब की जनता अब केंद्र सरकार और पीएम नरेंद्र मोदी की तरफ उम्मीद भरी नज़रों से देख रही है। अब 9 सितंबर यानी मंगलवार को प्रधानमंत्री मोदी के बाढ़ग्रस्त इलाकों के दौरे की संभावना जताई जा रही है। लोगों का मानना है कि संकट की इस घड़ी में मोदी सरकार ही वास्तविक रूप से सहायता करेगी, क्योंकि राज्य सरकार और उसके नेता मैदान से इस वक़्त गायब हैं।
राजनीति बनाम जनसेवा
ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि बाढ़ जैसी त्रासदी में जनता को सिर्फ सरकार की सहायता की आवश्यकता होती है... बल्कि नेताओं की उपस्थिति भी जनता के मनोबल के लिए बहुत ही बड़ी भूमिका निभाता है। लेकिन... देखा जाए तो आज पंजाब की हालत यह है कि वहां न तो मुख्यमंत्री मैदान में कहीं दिख रहे हैं और न ही कोई विपक्षी नेता। ऐसी मुश्किल घड़ी में अरविंद केजरीवाल गुजरात में चुनाव के प्रचार व्यस्त हैं और राहुल गांधी मलेशिया घूम रहे। अब लोग सवाल खड़े कर रहे हैं कि क्या नेताओं की प्राथमिकता सत्ता और चुनाव प्रचार है या फिर जनता की जान-माल की सुरक्षा?
पंजाब के लिए सबक
आज यह त्रासदी पंजाब की जनता के लिए भी आत्ममंथन का विषय बनकर सामने खड़ा है। नेताओं द्वारा किये गए तमाम वादों और ज़मीनी सच्चाई के बीच का अंतर स्पष्ट रूप से अब दिखने लगा है। राज्य सरकार के पास आपदा प्रबंधन की कोई ठोस योजना नहीं है। देखा जाए तो इस वक़्त SDRF की मात्र दो टीमें इस गंभीर संकट की पोल खोल रही हैं।
इसके उलट, केंद्र सरकार ने सेना, वायुसेना और NDRF को राहत कार्य में झोंक दिया है। हेलीकॉप्टरों की सहायता से फंसे हुए लोगों को सुरक्षित निकाला जा रहा है और आवश्यक सामान पहुँचाया जा रहा है।
आज पंजाब की हालत का जिम्मेदार कौन?
पंजाब की बाढ़ सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा ही नहीं, बल्कि यह राज्य की राजनीतिक विफलताओं का भी एक साफ़ आईना है। नेताओं ने संकट के समय गायब हैं और जनता केंद्र की तरफ उम्मीद भरी नज़रों से देख रही है। आगामी चुनावों में यह सवाल जरूर खड़ा होगा कि जब जनता को नेताओं की सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब वे कहाँ थे?
फिलहाल पूरा देश पंजाब के साथ खड़ा है और केंद्र सरकार तथा सेना निरंतर तेज़ी से राहत कार्यों में जुटी हुई है। लेकिन पंजाब की मौजूदा स्थिति राजनीति और प्रशासन के लिए एक गहरा सबक है कि सिर्फ भाषणों और वादों से नहीं... बल्कि कठिन परिस्थितियों में जनता के बीच खड़े रहकर ही असली नेतृत्व साबित होता है।
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