हनुमान जी से डरा अकबर! सुने मुगल दरबार और बजरंगबली के मंदिरों की अनसुनी दास्तान

Bada Mangal Untold Story: ज्येष्ठ माह में हर मंगलवार को बजरंगबली के मंदिरों में आपको भक्तों की भीड़ नज़र आ जाएगी ऐसे में प्रयागराज के मशहूर लेटे हनुमानजी मंदिर की खूब चर्चा हो रही है।

Jyotsna Singh
Published on: 14 May 2025 12:40 PM IST
Bada Mangal Untold Story Mughal Emperor Akbar Bowed Before Lord Hanuman
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Bada Mangal Untold Story Mughal Emperor Akbar Bowed Before Lord Hanuman (Image Credit-Social Media)

Bada Mangal Untold Story: ज्येष्ठ माह के प्रथम बड़े मंगल के आरंभ के साथ ही बजरंगबली हनुमान के मंदिरों के घंटों और घड़ियालों की करतल गूंज से पवित्र होती चारों दिशाएं और मंदिरों की चौखटों पर अपार श्राद्ध से झुकते असंख्य मस्तकों का क्रम समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा। ऐसे में देश और दुनिया भर में मौजूद हनुमान मंदिरों की रौनकों में चार चांद लग गए हैं। प्रथम बड़े मंगल पर अपने कई गौरवशाली इतिहास और किस्सों के चलते कई हनुमान मंदिर ऐसे भी हैं जो बेहद लोकप्रिय हैं। जिनमें से प्रयागराज का मशहूर लेटे हनुमानजी मंदिर एक बार फिर सुर्खियों में है। यहां ज्येष्ठ माह के दौरान मंदिर प्रसार की फूलों से की गई खास साज सज्जा और लगने वाले मेले से यहां की चकाचौंध देखते ही बनती है। असल में इस मंदिर का अपना एक लंबा इतिहास है। बादशाह अकबर कभी इस मंदिर को अपने किले में लेना चाहता था, लेकिन वो कामयाब नहीं हो सका था। आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी पूरी कहानी।

क्या है कहानी

प्रयागराज के मशहूर लेटे हनुमानजी के मंदिर के पीछे एक पुराना किस्सा है, जो बादशाह अकबर से जुड़ा है। दरअसल, बात 1582 की है. तब प्रयागराज में बादशाह अकबर किला बनाना चाहता था। बंगाल, अवध, मगध सहित पूर्वी भारत में अक्सर होने वाले विद्रोह पर सशक्त दबिश रखने की गरज से प्रयाग सबसे सटीक जगह थी, जहां किला बनाकर सेना की पलटन रखी जा सकती थी। किला चूंकि संगम तट पर था, लिहाजा अकसर गंगा-यमुना के मनमाने कटाव की वजह से संगम की जगह बदलती रहती थी।


लिहाज़ा नक्शे के मुताबिक निर्माण नहीं हो पा रहा था। इतिहास बताता है कि फिर अकबर ने संगम पर यमुना किनारे की ऊंची भूमि और लेटे हनुमानजी के स्थान को भी किले के घेरे में लेने की योजना बनाई, तब संन्यासियों ने इसका विरोध किया। तब बादशाह ने प्रस्ताव दिया कि लेटे हनुमानजी को गंगाजी के पास शिफ्ट कर दिया जाए। अकबर के विशेषज्ञों ने पूरा जोर लगा लिया, सब तिकड़म भिड़ा ली लेकिन लेटे हनुमानजी टस से मस नहीं हुए। जब सब थक हार गए तो अकबर ने भी हनुमानजी के आगे हाथ खड़े कर किले की दीवार पीछे ही बनाई।

अकबर ने बाद में दी काफी ज़मीन

इसके बाद हनुमानजी की शक्ति से चमत्कृत अकबर ने कई जगहों पर बीघों जमीन हनुमान जी को समर्पित की। प्रयागराज का नाम जब इलाहाबाद हुआ तो अल्लापुर इलाके में बाघंबरी मठ बना और उसकी जमीन भी तत्कालीन शासन ने ही भेंट की। बाघंबरी मठ को अकबर द्वारा दान में दी गई जमीन, जायदाद, खेत, खलिहान का संचालन एक अर्से तक ठीक रहा, लेकिन उसके बाद बाघंबरी मठ अक्सर विवादों में घिरा रहा। कभी गद्दी पर दावेदारी को लेकर तो कभी जमीन जायदाद बेचने को लेकर तो कभी खूनखराबे और रहस्यमय मौतों को लेकर।

बाघंबरी मठ का इतिहास


बाघंबरी मठ की स्थापना राजा अकबर के समय में बाबा बालकेसर गिरि महाराज के द्वारा की गई थी। अकबर द्वारा बाघंबरी मठ के साथ प्रयागराज जिले में अन्य स्थानों पर भी जमीन दान दी गई थी। सूत्र बताते हैं कि कुछ समय पूर्व तक अखाड़े में जमीन से संबंधित ताम्रपत्र मौजूद थे। बाघंबरी मठ के पहले महंत बाबा बाल केसर गिरि महाराज थे। उसके बाद से बाघंबरी मठ की परम्परा चली। बता दें कि बाघंबरी मठ दशनाम संन्यासी परंपरा के गिरि नामा संन्यासियों की गद्दी है। बाबा बाल केसर गिरि महाराज के बाद अनेक संत इस गद्दी पर विराजमान हुए। वर्ष 1978 में महंत विचारानंद गिरि महाराज इस गद्दी के महंत थे, यात्रा के दौरान दिल का दौरा पड़ने से उन्होंने शरीर त्याग दिया। उनसे पूर्व महंत पुरूषोत्तमानंद इस गद्दी पर थे। महंत विचारानंद की मृत्यु के बाद श्रीमहंत बलदेव गिरि इस बाघंबरी गद्दी के उत्तराधिकारी हुए। ऐसे ही कई हनुमान जी से जुड़े मंदिरों के निर्माण के पीछे मुगल शासकों का योगदान रहा है।

मुगल और मंदिर नफ़रत नहीं, संरक्षण भी दर्ज है इतिहास में

मुगल काल को लेकर आम धारणा यह है कि उन्होंने मंदिरों को नुकसान पहुंचाया। कुछ हद तक यह सत्य है, लेकिन इतिहास के कुछ अध्याय यह भी बताते हैं कि कुछ मुगल शासकों ने मंदिरों को दान व संरक्षण दिया। आइए, ऐसे ही कुछ उदाहरणों पर नज़र डालते हैं जहां हनुमान जी के मंदिरों को मुग़ल काल में समर्थन मिला:-

1. हनुमान गढ़ी, अयोध्या मुस्लिम राजा का आस्था से रिश्ता


यह प्रसिद्ध मंदिर अयोध्या में स्थित है और कथा प्रचलित है कि एक मुस्लिम शासक सुल्तान मंसूर अली, जब अपने पुत्र की बीमारी से व्यथित हुआ, तो उसने हनुमान जी की शरण ली। पुत्र के स्वस्थ होने पर उसने यह मंदिर बनवाया। यह घटना बताती है कि कैसे मुगल या मुस्लिम शासक भी आस्था के आगे नतमस्तक हुए।

2. दाऊजी महाराज मंदिर, वृंदावन: औरंगज़ेब का चौंकाने वाला पक्ष

इतिहास में अत्याचारी कहे जाने वाले औरंगज़ेब ने भी कुछ मंदिरों को संरक्षण दिया। वृंदावन का दाऊजी महाराज मंदिर इसका उदाहरण है। इतिहासनामा डॉट कॉम के अनुसार, औरंगज़ेब ने इस मंदिर को भूमि और आर्थिक सहायता दी थी।

क्या है इस मंदिर से जुड़ी कहानी


दाऊजी महाराज मंदिर, वृंदावन से जुड़ी औरंगज़ेब की कहानी वास्तव में इतिहास और लोककथाओं के मिश्रण का उदाहरण है, जो मुग़ल काल की धार्मिक और सांस्कृतिक जटिलताओं को उजागर करती है। दाऊजी महाराज, बलराम जी (भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई) का एक रूप माने जाते हैं। वृंदावन और मथुरा क्षेत्र में इनका बड़ा धार्मिक महत्व है। दाऊजी महाराज का प्राचीन मंदिर बलदेव (मथुरा ज़िले में) स्थित है, जिसे लगभग 5000 वर्षों से अधिक प्राचीन माना जाता है। मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब को प्रायः कट्टर इस्लामी शासक के रूप में जाना जाता है, जिसने कई हिंदू मंदिरों को नष्ट किया था। लेकिन दाऊजी मंदिर से जुड़ी कथा उसके एक अप्रत्याशित और विचित्र पक्ष को सामने लाती है:

प्रशिक्षित लोककथा अनुसार

कहा जाता है कि जब औरंगज़ेब ने वृंदावन और मथुरा के मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया, तब उसकी सेना दाऊजी महाराज मंदिर की ओर बढ़ी।लेकिन जैसे ही सैनिक मंदिर के पास पहुंचे, वे रहस्यमय रूप से अंधे हो गए या उनके हाथ कांपने लगे, जिससे वे मूर्ति को छू भी नहीं सके। यह देखकर औरंगज़ेब ने इसे दैवीय चेतावनी मानकर मंदिर को छोड़ देने का आदेश दिया। कुछ मान्यताओं के अनुसार, औरंगज़ेब ने दाऊजी की शक्ति के आगे झुकते हुए मंदिर को नुकसान न पहुंचाने का आदेश दिया और इसे “अद्भुत चमत्कार” कहा।

ऐतिहासिक संदर्भ

हालांकि औरंगज़ेब द्वारा कई मंदिरों को ध्वस्त किए जाने का ऐतिहासिक रिकॉर्ड है (जैसे काशी विश्वनाथ और केशवदेव मंदिर, मथुरा), लेकिन कुछ मंदिर जैसे दाऊजी महाराज का मंदिर या गोविंददेव मंदिर (आंशिक रूप से ही सही) बचे रहे। यह भी माना जाता है कि स्थानीय लोगों ने मूर्तियों को पहले ही छुपा दिया था या उन्हें राजस्थान के सुरक्षित क्षेत्रों में पहुंचा दिया गया था।

औरंगज़ेब का यह "चौंकाने वाला पक्ष" उसकी कट्टर छवि के उलट एक ऐसी घटना दिखाता है, जहां उसने किसी मंदिर को चमत्कार या डर के कारण नष्ट नहीं किया। यह किस्सा धार्मिक विश्वास, लोक आस्था और ऐतिहासिक घटनाओं का मिश्रण है, जिसे आज भी श्रद्धालु भाव से सुनते हैं। यह घटना दर्शाती है कि राजनीति और धर्म की धारा हमेशा एक जैसी नहीं रही।

3. कनॉट प्लेस हनुमान मंदिर, दिल्ली: इस्लामी चिह्न के साथ हिंदू मंदिर


दिल्ली के ह्रदय में स्थित यह हनुमान मंदिर एक विशेष वास्तुशिल्पीय प्रयोग का उदाहरण है। इसका शिखर अर्धचंद्र (इस्लामी प्रतीक) से सुशोभित है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह संकेत करता है कि संस्कृतियों का मिलन किस तरह धार्मिक स्थलों में भी झलकता है।

4. कैंप हनुमान मंदिर, अहमदाबाद: छावनी क्षेत्र में बसी आस्था

अहमदाबाद के छावनी क्षेत्र में स्थित यह मंदिर भी एक सैन्य पृष्ठभूमि में बसी हुई धार्मिक संस्था है। यह भारत के सबसे बड़े हनुमान मंदिरों में से एक माना जाता है। यह मंदिर लगभग 100 से 250 वर्ष पुराना माना जाता है और इसे पंडित गजानन प्रसाद द्वारा स्थापित किया गया था। कुछ स्रोतों के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना मराठा सैनिकों द्वारा की गई थी, जो भगवान हनुमान को अपने रक्षक और शक्ति के स्रोत के रूप में पूजते थे।


मंदिर का इतिहास ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से भी जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि ब्रिटिश अधिकारियों ने इस मंदिर को स्थानांतरित करने का प्रयास किया था, लेकिन उन्हें स्थानीय भक्तों और पुजारियों के विरोध का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब ब्रिटिश अधिकारियों ने मंदिर को हटाने की कोशिश की, तो लाखों काले और पीले रंग के ततैयों ने मंदिर की दीवारों को घेर लिया और मजदूरों पर हमला किया, जिससे ब्रिटिश अधिकारियों को अपने निर्णय से पीछे हटना पड़ा। यह दिखाता है कि आस्था ने युद्धभूमियों में भी स्थान बनाया।

5.लखनऊ के अलीगंज में स्थित पुराना हनुमान मंदिर

लखनऊ के अलीगंज में स्थित पुराना हनुमान मंदिर (जिसे "अलीगंज हनुमान मंदिर" या "पुराना हनुमान मंदिर" कहा जाता है) का इतिहास बेहद रोचक और अद्भुत है, क्योंकि यह एक मुगल रानी द्वारा बनवाया गया था, जो एक हिंदू मंदिर के निर्माण से जुड़ी एक अनोखी मिसाल है।


मंदिर का इतिहास और कथा

इस मंदिर का निर्माण 1757 ई. में मुगल सम्राट अहमद शाह बहादुर के शासनकाल के दौरान उनकी बेगम जानाबे आलिया (या कुछ स्थानीय मान्यताओं के अनुसार रानी आलिया बेगम) द्वारा कराया गया था।

कहानी:

कहा जाता है कि एक बार रानी आलिया बेगम गर्भवती थीं और उन्हें लगातार परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। तब उन्होंने एक स्वप्न देखा जिसमें हनुमान जी स्वयं प्रकट हुए और उन्हें एक विशेष स्थान पर खुदाई करने को कहा। जब उस स्थान पर खुदाई की गई, तो वहां हनुमान जी की एक मूर्ति प्राप्त हुई। रानी ने उस मूर्ति को सम्मानपूर्वक उसी स्थान पर स्थापित करवा दिया और वहीं एक भव्य मंदिर बनवाया, जिसे आज हम अलीगंज हनुमान मंदिर के रूप में जानते हैं।

लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अलीगंज हनुमान मंदिर के निर्माण के बाद रानी आलिया बेगम की संतान से जुड़ी समस्या का समाधान हो गया था। यह मान्यता है कि जब रानी ने हनुमान जी की मूर्ति प्राप्त होने के बाद भक्ति भाव से मंदिर के निर्माण के उपरांत उसमें नियमित पूजा-अर्चना प्रारंभ करवाई, तब उनकी संतान संबंधी पीड़ा समाप्त हो गई और उन्होंने सुखपूर्वक संतान प्राप्त की।इस घटना को एक दैवीय चमत्कार माना जाता है और इसी कारण यह मंदिर लोगों की मनोकामना पूर्ण करने वाले हनुमान मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हो गया।

धार्मिक महत्व

यह मंदिर नवमी, हनुमान जयंती और मंगलवार को विशेष रूप से भीड़ से भरा होता है। यहां से हर साल भव्य हनुमान जयंती शोभा यात्रा निकलती है, जो उत्तर भारत की सबसे बड़ी शोभा यात्राओं में से एक मानी जाती है।

स्थापत्य और विशेषता

  • मंदिर का स्थापत्य पारंपरिक हिंदू मंदिर शैली में है, लेकिन इसमें मुगलकालीन प्रभाव भी देखने को मिलता है।
  • यह हिंदू-मुस्लिम सांस्कृतिक समन्वय का एक शानदार उदाहरण है।

मंदिरों के प्रति मुग़ल नीति एक संपूर्ण सच

भारत की जमीन पर सैकड़ों वर्षों तक शासन करने वाले मुगल शासकों की नीतियां एकरूप नहीं थी। जहां बाबर और औरंगज़ेब जैसे शासकों पर मंदिर तोड़ने के आरोप हैं, वहीं अकबर, जहांगीर और कुछ स्थानीय मुस्लिम राजाओं ने मंदिरों को संरक्षण भी दिया।

अकबर के 'सुलेह-कुल' (सर्वधर्म समभाव) की नीति के अंतर्गत मंदिरों को भूमि, अनुदान और संरक्षण मिला। हनुमान मंदिरों के साथ यह संबंध कहीं-न-कहीं इसी नीति का विस्तार था।

इतिहास केवल जंग नहीं, सह-अस्तित्व भी है

लेटे हनुमान जी का मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, धर्म, सत्ता और आस्था के संघर्ष और सामंजस्य की प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि जब सत्ता की सीमाएं आस्था से टकराईं, तो जीत आस्था की ही हुई और वह आस्था आज भी जीवित है। हर बार आरती में उठती ध्वनि में, हर बार जब श्रद्धालु माथा टेकते हैं। इतिहास को केवल तलवार की धार से नहीं, पूजा की थाली से भी समझा जाना जरूरी है।

हनुमान जी के मंदिरों और मुग़ल इतिहास का यह अध्याय, एक ऐसा सन्देश है, जिसे आज की पीढ़ी को जानना और समझना आवश्यक है।

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