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Ghum Railway Station: भारत का ‘क्लाउड स्टेशन’, घुम जहां रेल और बादल करते हैं मुलाक़ात
भारत में ये एक ऐसा स्टेशन है, जहां पहुंचते ही लगता है कि आप किसी स्वप्न लोक की यात्रा कर रहें हो।
India's Cloud Station (Image Credit-Social Media)
India's Cloud Station: छुक-छुक करती पटरियों पर दौड़ती रेल की खिड़कियों से प्राकृतिक दृश्यों को निहारना बेहद सुखद अनुभव होता है। कभी रेल के साथ ही साथ भागते हुए से प्रतीत होते खेत, आसमान, नदियां ये सारे प्राकृतिक नज़ारे हर सफर को एक यादगार किस्सा बना देते हैं। इसी तरह की स्वप्न जैसी यात्रा को हकीकत में तब्दील करने का हुनर रखती है दार्जिलिंग की यात्रा। भारत में ये एक ऐसा स्टेशन है, जहां पहुंचते ही लगता है कि आप किसी स्वप्न लोक की यात्रा कर रहें हो। जहां ऐसा महसूस होता कि आप हाथ बढ़ाकर आसमान को छू रहे हैं और बादल आपके साथी बन गए हैं। यह जगह है दार्जिलिंग का घुम रेलवे स्टेशन, जो समुद्र तल से करीब 7,400 फुट (2,258 मीटर) की ऊंचाई पर बसा है। यहां की खूबसूरती और इतिहास मिलकर इसे हर यात्री के लिए एक यादगार यात्रा अनुभव प्रदान करते हैं।
इंजीनियरिंग का चमत्कार है ये पुरानी विरासत
घुम रेलवे स्टेशन दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे का वह हिस्सा है, जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया है। घुम रेलवे स्टेशन सिर्फ ऊँचाई का रिकॉर्ड ही नहीं रखता, बल्कि अपने भीतर 150 साल पुराना इतिहास भी समेटे हुए है। 1878 में अंग्रेज़ों ने दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे का काम शुरू किया था। उनका मक़सद था कि चाय और व्यापारिक गतिविधियों से भरे दार्जिलिंग को सीधे कोलकाता से जोड़ा जाए। मुश्किल भरे पहाड़ी रास्तों और मौसम की चुनौतियों के बावजूद, यह परियोजना एक इंजीनियरिंग चमत्कार साबित हुई। धीरे-धीरे रेल लाइन घुम तक पहुंची और यह स्टेशन लोगों की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन गया। यह केवल परिवहन का साधन नहीं था, बल्कि इसने पहाड़ी इलाक़ों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने का सपना भी पूरा किया।
टॉय ट्रेन की जादुई सवारी
इस सफर का सबसे अनोखा अनुभव साबित होती है घुम की मशहूर टॉय ट्रेन। यह एक छोटी-सी ट्रेन है। पहाड़ी रास्तों पर धीरे-धीरे चढ़ती-उतरती यह ट्रेन जिसके रंग-बिरंगे डिब्बे हर किसी के चेहरे पर मुस्कान ले आते हैं। धुंध के बीच जब ट्रेन घुम स्टेशन की ओर बढ़ती है तो ऐसा लगता है मानो वह बादलों के बीच से रास्ता बनाती जा रही हो। यह सफर और भी खास हो जाता है जब स्टेशन पहुंचकर यात्री दूर से चमकती कंचनजंगा पर्वत श्रृंखला को देखते हैं। यहां की खूबसूरती में चारचंद लगाती बर्फ़ से ढकी चोटियों पर सुबह-सुबह जब सूरज की सुनहरी किरणें पड़ती हैं, तो दृश्य इतना मनमोहक होता है जिसे हर कोई जीवन में बार-बार जीना चाहता है।
रेलवे म्यूज़ियम में आज भी मौजूद हैं भाप के इंजन जैसी दुर्लभ वस्तुएं
अगर आप इतिहास को पढ़ना और देखना पसंद करते हैं तो आपको घुम रेलवे स्टेशन में मौजूद संग्रहालय जरूर देखना चाहिए। घुम में मौजूद रेलवे म्यूज़ियम आपके लिए किसी ख़ज़ाने से कम नहीं। यहां पुराने ज़माने के भाप इंजन, रेलवे उपकरण और दुर्लभ तस्वीरें रखी गई हैं। यह म्यूज़ियम इन ऐतिहासिक मशीनों के संग्रह के साथ ही उस दौर की कहानी कहता है जब टेक्नोलॉजी इतनी ज्यादा विकसित नहीं हुई थी। ऐसे में दुर्गम पथरीले रास्तों के बीच खड़े पहाड़ों को काटकर रेलवे ट्रैक बनाना एक अचंभित करने वाली बात साबित होती है।
यह रेववे म्यूजियम बच्चों और छात्रों के लिए बेहद रोचक जगह साबित होती है। जहां वे पढ़ाई के साथ-साथ इतिहास से जुड़ी वस्तुओं को छूकर महसूस भी कर सकते हैं। इस संग्रहालय में ‘बेबी सीडलर’ नाम का पुराना इंजन यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण है, जिसे देखकर लोग हैरान रह जाते हैं।
बेबी सीडलर इंजन की खूबी
यह इंजन दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (DHR) के शुरुआती इंजनों में से एक था। जब 19वीं शताब्दी के अंत में पहाड़ों में ट्रेन चलाने का सपना पूरा हुआ, तब ऐसे ही छोटे लेकिन ताक़तवर इंजनों ने यह काम संभव बनाया गया था।
‘बेबी सीडलर’ इंजन का निर्माण जर्मनी की Seigel Locomotive Works कंपनी ने किया था। उस दौर में इस तरह के कॉम्पैक्ट (छोटे आकार के) लेकिन उच्च क्षमता वाले इंजन दुनिया में बेहद कम थे।
इसका नाम ‘बेबी’ इसलिए रखा गया क्योंकि यह आकार में छोटा था, लेकिन पहाड़ी ढलानों और तीखे मोड़ों पर चलाने के लिए पर्याप्त ताक़तवर था। यह इंजन संकरी पटरियों (Narrow Gauge) के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया था।
यह इंजन दिखने में भले ही छोटा लगे, लेकिन इसकी डिजाइन और तकनीक उस समय की इंजीनियरिंग का कमाल है। यह भाप (steam) से चलता था और पहाड़ी रेल मार्ग की चुनौतियों के हिसाब से तैयार किया गया था।
यह इंजन केवल मशीन नहीं, बल्कि उस दौर का गवाह है जब दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे को बनाने और चलाने में हर दिन नए प्रयोग किए जाते थे। आज यह संग्रहालय में पर्यटकों को उस समय की मेहनत और तकनीकी क्षमता की याद दिलाता है।
तिब्बती बौद्ध परंपरा का अहम केंद्र
केवल रेलवे ही नहीं, घुम अपने धार्मिक महत्व के लिए भी जाना जाता है। यहां स्थित घुम मठ (Ghoom Monastery) तिब्बती बौद्ध परंपरा का अहम केंद्र है। इस मठ में भगवान बुद्ध की लगभग 15 फुट ऊंची प्रतिमा है, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करती है। इस मठ का शांत वातावरण मन को गहरी शांति प्रदान करता है। यही वजह है कि बड़ी संख्या में सैलानियों का बसेरा बना हुआ है मठ।
घुम केवल एक रेलवे स्टेशन नहीं, बल्कि प्रकृति और संस्कृति का संगम है। पहाड़ों से घिरा यह इलाक़ा पूरे साल बादलों की चादर ओढ़े रहता है। बरसात के मौसम में तो इसका रूप और भी निखर जाता है, जब हर ओर हरियाली और धुंध का जादू छा जाता है। जो लोग दार्जिलिंग घूमने आते हैं, वे घुम स्टेशन घूमना कभी नहीं भूलते। सुबह-सुबह टॉय ट्रेन में बैठकर इस सफर की शुरुआत करना और फिर स्टेशन पहुँचकर हिमालय की चोटियों को निहारना हर किसी के लिए यादगार अनुभव होता है।
इसके अलावा दार्जिलिंग की चाय, यहां के बाज़ार, तिब्बती हस्तशिल्प और स्थानीय भोजन यात्रियों को बार-बार यहां आने के लिए मजबूर करते हैं।
घुम की खासियत
भारत का सबसे ऊँचा रेलवे स्टेशन होने का गौरव घुम को एक अलग पहचान देता है। यहां से कंचनजंगा का नज़ारा साफ़ दिखाई देता है, जो इसे और भी आकर्षक बनाता है। दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे का हिस्सा होने के कारण यह विश्व धरोहर स्थल में शामिल है। इसके अलावा टॉय ट्रेन की जादुई यात्रा, घुम रेलवे म्यूज़ियम और पास का घुम मठ इसे एक साथ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व प्रदान करते हैं। यह यात्रा आपके दिल में ऐसी यादें छोड़ जाएगी, जो ज़िंदगी भर साथ रहेंगी।
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