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भारत के वो रेलवे स्टेशन जहाँ ट्रेनें तो रुकती हैं, मगर समय नहीं

Mysterious of Indian Railway Stations: आज हम आपको भारत के उन रहस्यमई रेलवे स्टेशनों के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ से जुड़ी हैं कोई न कोई खतरनाक कहानी जिसकी वजह से इन्हे भूतिया कहा जाता है।

Akshita Pidiha
Published on: 26 Jun 2025 12:44 PM IST
Most Haunted Railway Stations in India
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Most Haunted Railway Stations in India (Image Credit-Social Media)

Mysterious of Indian Railway Stations: भारतीय रेलवे, जिसे देश की जीवनरेखा कहा जाता है, न सिर्फ़ लाखों लोगों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाती है, बल्कि अपने साथ इतिहास, रहस्य और अनकही कहानियों का खजाना भी लिए हुए है। कुछ रेलवे स्टेशन ऐसे हैं, जो अपनी अनोखी कहानियों और रहस्यमयी माहौल के लिए मशहूर हैं। ये वो स्टेशन हैं, जहाँ ट्रेनें तो रुकती हैं, मगर समय जैसे ठहर सा जाता है। इन स्टेशनों की दीवारें, पटरियाँ और खामोशी सैकड़ों साल पुरानी कहानियाँ सुनाती हैं, जो सुनने वाले को अतीत की सैर कराती हैं। आइए, ऐसे ही कुछ रेलवे स्टेशनों की कहानियों में खो जाएँ, जो न सिर्फ़ यात्रियों को ठहरने पर मजबूर करते हैं, बल्कि समय को भी जैसे जकड़ लेते हैं।

भारतीय रेलवे: एक जीवंत इतिहास

भारतीय रेलवे का इतिहास 1853 से शुरू होता है, जब पहली ट्रेन मुंबई के बोरीबंदर से थाने तक चली थी। तब से लेकर आज तक, रेलवे ने देश के कोने-कोने को जोड़ा है। 7,000 से ज्यादा स्टेशन और 1.5 लाख किलोमीटर से अधिक रेलवे ट्रैक के साथ, यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। लेकिन कुछ स्टेशन अपनी बनावट, इतिहास या रहस्यों के लिए अलग ही पहचान रखते हैं। ये स्टेशन सिर्फ़ यात्रा का पड़ाव नहीं, बल्कि समय के ठहरे हुए पल हैं।


भारतीय रेलवे प्रतिदिन 13,000 से ज्यादा यात्री ट्रेनें चलाती है, जो 2.5 करोड़ से अधिक लोगों को उनकी मंजिल तक पहुँचाती हैं।

कई स्टेशन ब्रिटिश काल से चले आ रहे हैं, जिनकी वास्तुकला और इतिहास आज भी हमें उस दौर की याद दिलाते हैं।

कुछ स्टेशन अपनी भूतिया कहानियों के लिए मशहूर हैं, जो यात्रियों को रोमांच और डर दोनों का एहसास कराते हैं।

इन स्टेशनों की खामोशी और पुरानी इमारतें समय को जैसे रोक लेती हैं, जिससे लगता है कि यहाँ अतीत अभी भी जिंदा है।

बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन, पश्चिम बंगाल: भूतों का ठिकाना

पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन एक ऐसी जगह है, जहाँ ट्रेनें रुकती तो हैं, मगर समय जैसे 1967 में ही ठहर गया। इस स्टेशन की कहानी डर और रहस्य से भरी है।


1967 में यहाँ के स्टेशन मास्टर ने दावा किया कि उन्होंने एक भूतिया साया देखा, जिसके बाद उनकी अचानक मृत्यु हो गई। इसके बाद रेलवे ने इस स्टेशन पर ट्रेनों का रुकना बंद कर दिया।

स्थानीय लोगों का मानना है कि यहाँ एक सफेद साड़ी वाली महिला की आत्मा भटकती है, जो पटरियों पर दौड़ती दिखाई देती है। कई बार लोग उसे देखकर डर से भाग खड़े हुए।

42 साल तक इस स्टेशन पर कोई ट्रेन नहीं रुकी। ड्राइवर ट्रेन की स्पीड बढ़ा देते थे, ताकि जल्दी से यहाँ से निकल जाएँ।

2009 में ममता बनर्जी के रेल मंत्री बनने के बाद इस स्टेशन को फिर से खोला गया, लेकिन आज भी लोग यहाँ रात में जाने से डरते हैं।

बेगुनकोडोर की खामोश पटरियाँ और पुरानी इमारतें आज भी उस डरावनी कहानी को ज़िंदा रखती हैं। यहाँ रात में सन्नाटा ऐसा होता है कि जैसे समय रुक सा गया हो।

लोधी कॉलोनी रेलवे स्टेशन, दिल्ली: बँटवारे की सिसकियाँ

दिल्ली का लोधी कॉलोनी रेलवे स्टेशन आज एक छोटा सा स्टेशन है, मगर 1947 के बँटवारे के दौरान यहाँ का माहौल दिल दहलाने वाला था। यह स्टेशन उन दर्दनाक पलों का गवाह है, जब हजारों लोग अपने वतन को अलविदा कहकर पाकिस्तान जा रहे थे।


1947 में यहाँ से लाहौर के लिए विशेष ट्रेनें चलती थीं, जो सुबह 7 बजे, 9 बजे और दोपहर 12 बजे तक रवाना होती थीं। ये ट्रेनें दिन के उजाले में लाहौर पहुँचती थीं, ताकि दंगों से बचा जा सके।

यहाँ सिसकियों और बिछड़ने के दर्द की आवाज़ें गूँजती थीं। लोग अपनों से गले मिलकर रोते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि शायद ये आखिरी मुलाकात हो।

स्टेशन के पास बने सरकारी फ्लैट और पुरानी घड़ी उस दौर की कहानियाँ सहेजे हुए हैं। भास्कर राममूर्ति, जिनके पिता ने उस समय के दृश्य देखे थे, बताते हैं कि बँटवारा दक्षिण भारत में नहीं हुआ, इसलिए उनके पिता को ये सब बहुत अजीब लगता था।

आज यह स्टेशन शांत है, मगर इसकी दीवारें उस दर्द को याद करती हैं, जब समय जैसे ठहर गया था।

लोधी कॉलोनी स्टेशन आज भी उस दौर की स्मृतियों को संजोए हुए है, जहाँ ट्रेनें रुकीं, मगर समय जैसे रुककर उन दुखद पलों को देखता रहा।

सिंगाबाद रेलवे स्टेशन, पश्चिम बंगाल: समय का सन्नाटा

भारत-बांग्लादेश सीमा पर मालदा जिले में स्थित सिंगाबाद रेलवे स्टेशन एक ऐसी जगह है, जहाँ ट्रेनें अब नहीं रुकतीं, मगर इसका इतिहास समय को जैसे जकड़ लेता है।


ब्रिटिश काल में यह स्टेशन कोलकाता और ढाका को जोड़ने वाली महत्वपूर्ण कड़ी था। महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेता यहाँ से गुजर चुके हैं।

1947 के बँटवारे के बाद इस स्टेशन का सामरिक महत्व बढ़ गया, मगर धीरे-धीरे यह सुनसान हो गया। आज यहाँ टिकट काउंटर बंद हैं और प्लेटफॉर्म खाली पड़े हैं।

इसकी औपनिवेशिक वास्तुकला, पुराने सिग्नल सिस्टम और टिकट काउंटर आज भी उस दौर की याद दिलाते हैं, जब यह स्टेशन चहल-पहल से भरा था।

स्थानीय लोग इसे भारत का आखिरी स्टेशन कहते हैं, जहाँ समय जैसे रुक सा गया है। यहाँ का सन्नाटा और पुरानी इमारतें अतीत की कहानियाँ सुनाती हैं।

सिंगाबाद स्टेशन की खामोशी आज भी उस समय को याद करती है, जब यहाँ ट्रेनों की आवाजाही थी और समय गतिमान था।

नैनी रेलवे स्टेशन, उत्तर प्रदेश: स्वतंत्रता संग्राम की गूँज


नैनी रेलवे स्टेशन, जो इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के पास स्थित है, अपनी भूतिया कहानियों के लिए मशहूर है। यह स्टेशन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुए अत्याचारों का गवाह है।

नैनी जेल, जहाँ कई स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेजों ने यातनाएँ दीं, इस स्टेशन के पास ही है। माना जाता है कि यहाँ उन सेनानियों की आत्माएँ भटकती हैं।

स्थानीय लोग बताते हैं कि यहाँ एक सफेद साड़ी वाली महिला की आत्मा दिखाई देती है, जो पटरियों पर दौड़ती है और अचानक गायब हो जाती है।

कुछ लोगों का मानना है कि यह आत्मा किसी ऐसी महिला की है, जो ट्रेन से कटकर मर गई थी। इस डर के चलते स्टेशन कई सालों तक बंद रहा, लेकिन 2009 में इसे फिर से खोला गया।

यहाँ रात में अजीब सी आवाज़ें सुनाई देती हैं, जो यात्रियों को डराने के लिए काफ़ी हैं।

नैनी स्टेशन की पटरियाँ और पुरानी इमारतें आज भी उस दौर की कहानियाँ सुनाती हैं, जब स्वतंत्रता सेनानियों की चीखें यहाँ गूँजती थीं। यहाँ समय जैसे उन आंदोलनों में ठहर सा गया है।

रैनानगर रेलवे स्टेशन, पश्चिम बंगाल: बेनाम स्टेशन


पश्चिम बंगाल में एक ऐसा रेलवे स्टेशन है, जिसका कोई नाम ही नहीं है। इसे पहले रैनानगर रेलवे स्टेशन कहा जाता था, मगर अब यह बेनाम है।

रैना और रैनानगर गाँवों के बीच विवाद के कारण इस स्टेशन का नाम बोर्ड हटा दिया गया। रैना गाँव की ज़मीन पर बने इस स्टेशन का नाम रैनानगर रखा गया, जिससे दोनों गाँवों में टकराव शुरू हो गया।

ट्रेनें यहाँ रुकती हैं, मगर यात्रियों को नहीं पता कि वे किस स्टेशन पर हैं। ये अनोखी स्थिति इसे और रहस्यमयी बनाती है।

स्टेशन की सादगी और खामोशी समय को जैसे रोक देती है। यहाँ न कोई भीड़ है, न चहल-पहल, बस एक ठहरा हुआ माहौल।

स्थानीय लोग बताते हैं कि यहाँ का सन्नाटा और बेनाम स्टेशन यात्रियों को अजीब सा एहसास देता है, जैसे समय यहाँ रुक गया हो।

यह स्टेशन अपनी अनाम पहचान के साथ समय को जैसे चुनौती देता है।

इन स्टेशनों का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व

ये रेलवे स्टेशन सिर्फ़ यात्रा के पड़ाव नहीं, बल्कि भारत के इतिहास और संस्कृति का हिस्सा हैं। इनकी कहानियाँ हमें उस दौर की याद दिलाती हैं, जब रेलवे ने देश को जोड़ा और आज़ादी की लड़ाई में भी योगदान दिया।

कई स्टेशन ब्रिटिश काल की वास्तुकला का नमूना हैं, जो उस समय के इंजीनियरिंग कौशल को दर्शाते हैं।

बँटवारे के दौरान इन स्टेशनों ने लाखों लोगों के दर्द और उम्मीदों को देखा, जो आज भी उनकी दीवारों में बस्ता है।

भूतिया कहानियाँ, चाहे सच हों या अफवाह, इन स्टेशनों को एक अलग पहचान देती हैं। ये कहानियाँ स्थानीय लोककथाओं का हिस्सा बन चुकी हैं।

ये स्टेशन आज भी पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों को आकर्षित करते हैं, जो इनके रहस्यों को जानना चाहते हैं।

इन स्टेशनों का संरक्षण: समय को सहेजने की ज़रूरत

आज कई ऐसे रेलवे स्टेशन खंडहर में तब्दील हो रहे हैं या भुला दिए गए हैं। इन्हें बचाना सिर्फ़ इमारतों को बचाना नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजना है।

सरकार और रेलवे ने कुछ स्टेशनों को हेरिटेज साइट घोषित किया है, जैसे छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है।

स्थानीय समुदायों को इन स्टेशनों के महत्व के बारे में जागरूक करना ज़रूरी है, ताकि वे इन्हें संरक्षित रखें।

पर्यटन को बढ़ावा देकर इन स्टेशनों को फिर से जीवंत किया जा सकता है, जैसा कि हावड़ा और चेन्नई सेंट्रल जैसे स्टेशनों के साथ हुआ है।

भूतिया कहानियों को लोककथाओं के रूप में प्रचारित कर इन स्टेशनों को पर्यटकों के लिए और आकर्षक बनाया जा सकता है।

भारत के ये रेलवे स्टेशन सिर्फ़ ईंट-पत्थर की इमारतें नहीं, बल्कि इतिहास, रहस्य और संस्कृति का संगम हैं। बेगुनकोडोर की भूतिया कहानियाँ, लोधी कॉलोनी का बँटवारे का दर्द, सिंगाबाद का सन्नाटा, नैनी की स्वतंत्रता संग्राम की गूँज और रैनानगर की बेनाम पहचान – ये सभी स्टेशन समय को जैसे अपने अंदर समेटे हुए हैं। यहाँ ट्रेनें तो रुकती हैं, मगर समय जैसे अतीत में खोया हुआ है।

अगली बार जब आप ट्रेन से सफर करें और किसी पुराने, खामोश स्टेशन पर रुकें, तो एक पल ठहरकर उसकी कहानी सुनने की कोशिश करें। शायद वो आपको कोई ऐसी कहानी सुनाए, जो समय के साथ भुला दी गई हो।

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Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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