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जहां दिवाली पर मां लक्ष्मी बदलती हैं रूप और भक्तों को देती हैं धन का आशीर्वाद
दिवाली पर मां लक्ष्मी के उन चमत्कारी मंदिरों की यात्रा करें, जहां देवी अपने विभिन्न रूपों में प्रकट होकर भक्तों को धन, सौभाग्य और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। पद्मावती देवी मंदिर तिरुपति से लेकर कोल्हापुर, वेल्लोर और उज्जैन के गज लक्ष्मी मंदिर तक—जानें भारत के उन पवित्र स्थलों के रहस्य, जहां दीपावली पर लक्ष्मी मां स्वयं बदलती हैं रूप।
Goddess Lakshmi Temples (Image Credit-Social Media)
Goddess Lakshmi Temples: रोशनी और समृद्धि का पर्व दीपावली, जब हर घर में लक्ष्मी मां का स्वागत असंख्य दीपों, मनमोहक सुगंध, भजन और भोग से किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी की आराधना से धन वैभव और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के कई प्राचीन और अद्भुत मंदिर हैं जहां मां लक्ष्मी का चमत्कारिक आशीर्वाद प्राप्त होता है। जहां ये विशिष्ट रूपों में पूजी जाती हैं। कहीं मां अलवेलु मंगम्मा के रूप में, कहीं अंबाबाई या सर्वमंगला के रूप में। आइए दिवाली से पहले एक आध्यात्मिक यात्रा पर चलें, देश के उन प्रसिद्ध लक्ष्मी मंदिरों की ओर जहां हर दीपावली भक्तों की आस्था से दीप्यमान होती है -
मां लक्ष्मी का पद्मावती देवी मंदिर, तिरुपति (आंध्र प्रदेश)
इस लक्ष्मी मंदिर की खूबी है कि हर दिन यहां सुबह कल्याणोत्सव का भव्य आयोजन होता है। जिसके बाद भक्त देवी दर्शन कर पाते हैं। तिरुपति से तकरीबन 5 किमी की दूर पर यह पद्मावती देवी मंदिर स्थित है। इसे अलरमेलमंगपुरम मंदिर के नाम से भी जाना जाता। अलरमेलमंगपुरम का शाब्दिक अर्थ है - अलर का अर्थ कमल, मेल का मतलब ऊपर, मंग यानी देवी और पुरम को स्थान कहा जाता है। यानी कमल पर विराजमान देवी का स्थान। इस मंदिर को लेकर लोकप्रिय प्राचीन कथा के मुताबिक यहां मौजूद पद्मसरोवर से देवी महालक्ष्मी एक स्वर्ण कमल पर विराजित होकर प्रकट हुई थीं। महर्षि भृगु ने श्री विष्णु की छाती पर पैर रखा था। जिससे देवी नाराज हुईं और वैकुंठ छोड़ पाताल लोक में आ गईं। वे 12 सालों तक इस पुष्करिणी में रहीं और 13वें साल में कार्तिक पंचमी को पद्मावती के रूप में देवी यहां प्रकट हुईं थीं। तिरुपति के चिंतानूर क्षेत्र में स्थित श्री पद्मावती देवी मंदिर देवी लक्ष्मी के सबसे प्रसिद्ध रूपों में से एक को समर्पित है। मंदिर के निकट स्थित पथ्य सरोवर में स्नान को अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस सरोवर के जल से स्नान करने से नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है और सुख समृद्धि की वृद्धि होती है। दीपावली के दौरान यहां विशेष पूजा और दीपोत्सव का आयोजन होता है, जिसमें हजारों भक्त शामिल होते हैं।
गज लक्ष्मी माता मंदिर, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
महाकाल की नगरी उज्जैन न केवल भगवान शिव बल्कि मां लक्ष्मी की कृपा से भी धन्य मानी जाती है। नई पेठ, सर्राफा बाजार में स्थित गज लक्ष्मी मंदिर में देवी का अद्भुत रूप विराजमान है। कहा जाता है कि माता कुंती और राजा विक्रमादित्य भी यहां पूजा करते थे। यहां शुक्रवार के दिन विशेष आराधना और दीपदान का आयोजन होता है। दिवाली के अगले दिन सुहाग पड़वा उत्सव पूरे वैभव से मनाया जाता है। मान्यता है कि यहां मां लक्ष्मी दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं। यह चमत्कार भक्तों के लिए आज भी रहस्य बना हुआ है।
महालक्ष्मी मंदिर, रतलाम (मध्य प्रदेश)
रतलाम का महालक्ष्मी मंदिर अपनी अनूठी परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर के कपाट सिर्फ धनतेरस से दीपावली तक ही खुलते हैं। इन पांच दिनों में मंदिर को नोटों की गड्डियों, सोना, चांदी, हीरा, पन्ना, मोती से सुसज्जित कीमती आभूषणों, वस्त्रों और सुगंधित फूलों से सजाया जाता है। सबसे खास बात कि भक्तों को प्रसाद के रूप में कभी-कभी छोटे गहने भी भेंट किए जाते हैं। माना जाता है कि यहां मां लक्ष्मी की पूजा से धन की वृद्धि और व्यापार में उन्नति होती है।
श्रीलक्ष्मी कुबेर मंदिर- चेन्नई
श्रीलक्ष्मी कुबेर मंदिर चिन्नई के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में शामिल है। हिन्दू धर्मग्रंथों व पुराणों में लक्ष्मी जी को धन और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। वहीं कुबेरजी को भी धन स्वामी माना जाता है। इस मंदिर में इन दोनों की प्रतिमा एक साथ विराजमान है। ये भी मान्यता है कि दुनिया में सिर्फ यह एक इकलौता मंदिर है, जहां कुबेर लक्ष्मी संग विराजे हैं। तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के श्रीलक्ष्मी कुबेर मंदिर में दिवाली के मौके पर दीपोत्सव का भव्य आयोजन देखने के लिए दुनियाभर से भक्त यहां पहुंचते हैं। इस मंदिर में लक्ष्मी और कुबेर की काले पत्थर से निर्मित प्रतिमाएं हैं। ऐसी मान्यता है कि कुबेरजी को हरा रंग पसंद है। इस वजह से मंदिर में और इसके आस-पास हरे रंग का प्रयोग किया गया है। यहां भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित है। यहां कुबेर गजराज पर विराजमान हैं। कुबेर अपनी पत्नी सिद्धरानी के साथ विराजित हैं। पीछे मां लक्ष्मी उन्हें आशीर्वाद देते हुए मुद्रा में दिखाई देती हैं। इस मूर्ति के पास मछली की दो प्रतिमा रखी गई हैं और ऐसी ही मछली यहां के मंदिर प्रांगण में रखी गई है जिस के साथ एक कछुआ भी रखा गया है।
देवी लक्ष्मी का स्वर्ण मंदिर - वेल्लोर (तमिलनाडु)
तमिलनाडु के वेल्लोर में मौजूद श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर देश के बड़े लक्ष्मी तीर्थ में से एक हैं। ये अपने आप में अनोखा मंदिर है, क्योंकि इस मंदिर को बनाने में तकरीबन 15 हजार किलो शुद्ध सोने का इस्तेमाल हुआ है और ये तकरीबन 100 एकड़ में फैला मंदिर है। माना जाता है कि दुनिया में किसी भी मंदिर में इतना सोना इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसमें देवी लक्ष्मी की मूर्ति भी पूरी तरह सोने से बनी है। ये मंदिर गोलाकार है। मंदिर परिसर में बाहर की तरफ एक सरोवर है। जिसमें भारत की सभी मुख्य नदियों का पानी लाया गया है। इसलिए इसे सर्वतीर्थम सरोवर कहते हैं। मंदिर के बाहरी परिसर को श्रीयंत्र के रूप में बनाया है। जिसके बीच में महालक्ष्मी मंदिर है। मुख्य मंदिर तक जाने के लिए कई तोरणद्वार वाला रास्ता है। देवी अभिषेक के लिए मंदिर ब्रह्ममुहूर्त में खुलता है और दर्शन के लिए सुबह आठ बजे बाद लोगों को प्रवेश दिया जाता है।
अष्टलक्ष्मी मंदिर, एक नहीं, पूरी आठ लक्ष्मियों का निवास - चेन्नई (तमिलनाडु)
समुद्र किनारे मौजूद इस लक्ष्मी मंदिर में एक नहीं बल्कि पूरी आठ लक्ष्मी रूपों की प्रतिमाएं मौजूद हैं। इसलिए इसे अष्टलक्ष्मी मंदिर कहते हैं। चिन्नई में मौजूद इस मंदिर का मुख समुद्र की ओर है क्योंकि पौराणिक कथा के मुताबिक समुद्र मंथन के बाद देवी लक्ष्मी का प्रादुर्भाव समुद्र से ही हुआ था। इस अष्टलक्ष्मी मंदिर में आदि लक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, राजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी और विद्यालक्ष्मी आदि की जीवंत प्रतिमाएं हैं। इन सभी लक्ष्मी मूर्तियों की बनावट एक-दूसरे से पूरी तरह अलग हैं। विभिन्न तल वाले इस मंदिर के मुख्य गुंबद पर देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। मंदिर में अष्टलक्ष्मी की मनभावन मूर्तियों के साथ विष्णु के दशावतार के विग्रह भी हैं। मंदिर में आठ मंदिरों के बाद एक नवां मंदिर है। जिसमें देवी लक्ष्मी विष्णु जी के साथ विराजी हैं। खास बात ये है कि मंदिर का निर्माण ॐ के आकार में हुआ है।
महालक्ष्मी मंदिर, दहाणू (महाराष्ट्र)
पालघर जिले के दहाणू में स्थित यह मंदिर ग्रामीण महाराष्ट्र की भक्ति परंपरा का केंद्र है। यहां भक्त अपनी पहली फसल देवी को अर्पित करते हैं। पितृ अमावस्या पर यहां का वार्षिक महालक्ष्मी उत्सव अत्यंत प्रसिद्ध है, जिसमें गांव-गांव से किसान देवी को अन्न, फल और सब्जियां समर्पित करते हैं।
अंबाबाई मंदिर, कोल्हापुर (महाराष्ट्र)
भारत के 108 शक्तिपीठों में 59वें स्थान पर स्थित कोल्हापुर का अंबाबाई मंदिर मां लक्ष्मी के प्रमुख देवपीठों में गिना जाता है। इसे चालुक्य राजा कर्णदेव ने बनवाया था। यहां मां को 'करवीर निवासिनी महालक्ष्मी' कहा जाता है। दीपावली पर मंदिर में पारंपरिक नृत्य, वाद्ययंत्रों और आरती से पूरा वातावरण दिव्य हो उठता है।
सर्वमंगला देवी मंदिर, जगन्नाथपुरी (ओडिशा)
जगन्नाथपुरी में स्थित सर्वमंगला देवी को महालक्ष्मी का ही रूप माना गया है। इस मंदिर का विशेष संबंध भगवान जगन्नाथ के मंदिर से है। कहा जाता है कि भगवान की रथ यात्रा के लिए लकड़ी किस दिशा से मिलेगी, इसका संकेत यहीं से मिलता है। दीपावली पर यहां देवी की विशेष पूजा के साथ जलते हुए असंख्य दीपों का एक विशाल समुद्र सा नजारा यहां देखने वाला होता है। देश विदेश से सैलानी इस दृश्य को देखने के लिए यहां एकत्र होते हैं।
महालक्ष्मी मंदिर, मथुरा (उत्तर प्रदेश)
श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में स्थित लाल दरवाजे के निकट महालक्ष्मी देवी मंदिर, जिसे 'गूजरी देवी मंदिर' भी कहा जाता है, भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। यहां दिवाली पर मां को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। मान्यता है कि इसी भोग से देवी प्रसन्न होकर भक्तों को धन और सुख देती हैं। वृंदावन के बेलवन स्थित महालक्ष्मी मंदिर में माना जाता है कि देवी आज भी गोपी भाव पाने के लिए तपस्या कर रही हैं, जबकि श्रीकृष्ण बाल रूप में उनके पास विराजमान हैं।
मंगलागौरी महालक्ष्मी मंदिर, गया (बिहार)
गया की प्रसिद्ध मंगलागौरी मंदिर में मां लक्ष्मी, महाकाली और सरस्वती तीनों स्वरूपों में विराजित हैं। यह मंदिर विष्णुपद मंदिर से लगभग आधे योजन की दूरी पर भीष्मकूट पर्वत पर स्थित है। दीपावली के समय यहां वैभव-पूजा और दीपमालाओं से पूरा क्षेत्र आलोकित हो उठता है। पास ही दौलतपुर और आरा की अरण्या देवी को भी महालक्ष्मी स्वरूपा माना जाता है।
देवी कामाक्षी मंदिर, जहां सिंदूर लगाकर होती है पूजा - कांचीपुरम (तमिलनाडु)
मां लक्ष्मी के इस मंदिर का मुख्य गुंबद 76 किलो सोने से बना है। नवरात्रि और कई मौकों पर जिस रथ पर देवी सवार होती हैं। वो 20 किलो सोने से बनाया गया है। देवी कामाक्षी का ये रूप आठ साल की कन्या का है। इस मंदिर में मां लक्ष्मी की पूजा सिंदूर लगाकर होती है। इसके पीछे मान्यता है कि किसी विवाद के चलते विष्णु ने लक्ष्मी जी को कुरूप होने का श्राप दिया था। मां कामाक्षी की पूजा कर उन्होंने पाप से मुक्ति पाई थी। उसी समय मां कामाक्षी ने कहा था कि वह यहां लक्ष्मी के साथ विराजेंगी। उन्हें चढ़ने वाले प्रसाद से लक्ष्मी की भी पूजा होगी, मगर लक्ष्मी को यहां आने वाले की मनोकामना पूरी करनी होगी। कामाक्षी को प्रसाद में सिंदूर चढ़ता है जो लक्ष्मी को चरणों से शीश तक लगाया जाता है।
मंदिर के मुख्य पुजारी के मुताबिक 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा के बेशकीमती गहनों से देवी का साज श्रृंगार होता है। साथ ही केसर, बादाम, काजू, कमल, चमेली, ऑर्किड, गुलाब से बनी मालाएं चढ़ाई जाती हैं। 15-20 किलों की ये मालाएं 5 लाख रुपए में तैयार होती हैं।
भारत में मां लक्ष्मी की उपासना केवल धन प्राप्ति का साधन नहीं, बल्कि संपूर्ण जगत के लिए सुख शांति और समृद्धि का उत्सव है। दिवाली पर इन पवित्र स्थलों के दर्शन करने के साथ ही साथ इनका स्मरण भर करने से भी व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा और सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है।
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