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Martand Sun Temple: जम्मू-कश्मीर के मार्तंड सूर्य मंदिर का रहस्य, इस मंदिर को तोड़ने में सिकंदर को भी आ गया था पसीना

Martand Sun Temple: कश्मीर में स्थित मार्तंड सूर्य मंदिर आज भले ही खंडहर में तब्दील हो चुका हो लेकिन ये अपने अंदर कई रहस्य लिए हुए हैं, कहा जाता है कि शाह मिरी वंश के सुल्तान सिकंदर शाह मीरी को इस मंदिर को नष्ट करने में महीनों लग गए थे।

Akshita Pidiha
Published on: 6 Jun 2025 7:31 AM
Martand Sun Temple
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Martand Sun Temple (Image Credit-Social Media)

Martand Sun Temple: कश्मीर की वादियों में बसा मार्तंड सूर्य मंदिर आज खंडहरों में सिमट चुका है, लेकिन इसकी भव्यता और रहस्य आज भी इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और यात्रियों को अपनी ओर खींचते हैं। अनंतनाग जिले के मट्टन गांव के पास एक ऊंचे पठार पर बना ये मंदिर सूर्य देव को समर्पित है। इसका निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था और इसे कश्मीर के सबसे शक्तिशाली राजवंशों में से एक, करकोट वंश के राजा ललितादित्य मुक्तापीड़ ने बनवाया था। इस मंदिर की कहानी सिर्फ पत्थरों और वास्तुकला तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें इतिहास, संस्कृति, आस्था और विनाश की गाथा भी छिपी है। आइए इस मंदिर के रहस्यों को खोलते हैं और जानते हैं कि क्यों ये आज भी लोगों के दिलों में बस्ता है।

मंदिर की भव्यता और उसका इतिहास

मार्तंड सूर्य मंदिर का नाम सूर्य देव के एक रूप "मार्तंड" से आता है। हिंदू मान्यताओं में सूर्य को जीवनदाता माना जाता है और मार्तंड सूर्य मंदिर इसका प्रतीक था। इसे 725-756 ईस्वी के बीच बनाया गया, हालांकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इसकी नींव 370-500 ईस्वी में रखी गई थी, जिसका श्रेय राजा रणदित्य को दिया जाता है। मंदिर का निर्माण ललितादित्य ने करवाया, जो करकोट वंश के सबसे शक्तिशाली राजा थे। उनकी सैन्य विजयों और समृद्ध शासनकाल ने कश्मीर को उस समय स्वर्ण युग में पहुंचा दिया था।


मंदिर एक ऊंचे पठार पर बनाया गया, जहां से पूरी कश्मीर घाटी का मनोरम नजारा दिखता है। इसकी वास्तुकला में गंधार, गुप्त और चीनी शैलियों का मिश्रण है, जो इसे अनोखा बनाता है। मंदिर का प्रांगण 220 फीट लंबा और 142 फीट चौड़ा है, जिसमें 84 छोटे मंदिर मुख्य मंदिर को घेरे हुए थे। इसका प्रवेश द्वार पश्चिम की ओर है, जो हिंदू वास्तुकला के हिसाब से सूर्य की पहली किरणों को मंदिर में प्रवेश करने देता था। मंदिर के स्तंभों में ग्रीक शैली की झलक दिखती है, जो उस समय के व्यापारिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को दर्शाती है।

मार्तंड मंदिर की वास्तुकला

मार्तंड मंदिर कश्मीरी वास्तुकला का एक शानदार नमूना है। इसे चूने के पत्थर की चौकोर ईंटों से बनाया गया, जो उस समय की इंजीनियरिंग का कमाल दिखाता है। मंदिर का मुख्य ढांचा एक बड़े प्रांगण के बीच में था, जिसके चारों ओर छोटे-छोटे मंदिर थे। ये छोटे मंदिर सूर्य के विभिन्न रूपों और अन्य देवताओं को समर्पित थे। मंदिर की दीवारों पर नक्काशी इतनी बारीक थी कि आज भी खंडहरों में उसकी झलक दिखती है। मंदिर का प्रवेश द्वार इतना भव्य था कि इसे देखकर राजा ललितादित्य की समृद्धि और उनके कला प्रेम का अंदाजा लगता है।

मंदिर के पास एक बड़ा सरोवर भी था, जिसमें मछलियां आज भी देखी जा सकती हैं। इस सरोवर को तीर्थयात्रियों के लिए पवित्र माना जाता था। मंदिर की बनावट ऐसी थी कि सूर्य की पहली किरणें सीधे गर्भगृह में पड़ती थीं, जिससे सूर्य देव की पूजा और भी खास हो जाती थी। ऐसा कहा जाता है कि ललितादित्य हर सुबह सूर्य की पहली किरण के साथ पूजा करके अपनी दिनचर्या शुरू करते थे।

मंदिर का विनाश: एक दुखद अध्याय

मार्तंड सूर्य मंदिर की कहानी में सबसे दर्दनाक हिस्सा है इसका विनाश। 15वीं शताब्दी में कश्मीर पर शाह मिरी वंश के सुल्तान सिकंदर शाह मीरी, जिन्हें सिकंदर बुतशिकन (मूर्तिभंजक) भी कहा जाता है, ने इस मंदिर को भारी नुकसान पहुंचाया। सिकंदर को सूफी संत मीर मोहम्मद हमदानी ने प्रभावित किया था, जो उस समय कश्मीर में इस्लाम का प्रचार कर रहे थे। सिकंदर ने धार्मिक कट्टरता के चलते हिंदू मंदिरों को नष्ट करने का अभियान चलाया। मार्तंड मंदिर, जो उस समय कश्मीर का सबसे भव्य मंदिर था, उसका निशाना बना।


ऐसा कहा जाता है कि मंदिर को पूरी तरह नष्ट करने के लिए सिकंदर की सेना को एक साल तक मेहनत करनी पड़ी। इतिहासकारों के अनुसार, इस भव्य मंदिर को तोड़ना आसान नहीं था। इसके पत्थरों को तोड़ा गया, मूर्तियों को खंडित किया गया और गर्भगृह को नष्ट कर दिया गया। इस विनाश ने न सिर्फ मंदिर को खंडहर बना दिया, बल्कि कश्मीरी हिंदुओं की सांस्कृतिक विरासत को भी गहरा आघात पहुंचाया।

रहस्यमयी कहानियां और किंवदंतियां

मार्तंड सूर्य मंदिर से जुड़ी कई कहानियां और रहस्य आज भी लोगों को हैरान करते हैं। एक किंवदंती के अनुसार, मंदिर का निर्माण कश्यप ऋषि के तीसरे बेटे मार्तंड के जन्म स्थान पर हुआ था। हिंदू मान्यताओं में मार्तंड को सूर्य का एक रूप माना जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि मंदिर की बनावट ऐसी थी कि सूर्य की किरणें गर्भगृह में एक खास कोण पर पड़ती थीं, जिससे मूर्ति और भी जीवंत लगती थी।


एक और रहस्य है मंदिर की वास्तुकला का। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि मंदिर में गंधार और चीनी शैली का मिश्रण दर्शाता है कि उस समय कश्मीर का बाहरी दुनिया से कितना गहरा जुड़ाव था। मंदिर के खंडहरों में आज भी कुछ नक्काशियां ऐसी हैं, जो उस समय की उन्नत तकनीक और कला को दर्शाती हैं। एक और कहानी है कि मंदिर के पास का सरोवर चमत्कारी था और इसमें स्नान करने से रोग ठीक हो जाते थे। हालांकि, ये कहानियां कितनी सच हैं, ये आज भी रहस्य ही है।

मार्तंड मंदिर और कश्मीरी पंडित

मार्तंड सूर्य मंदिर कश्मीरी पंडितों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल था। ये मंदिर न सिर्फ धार्मिक महत्व रखता था, बल्कि ये कश्मीरी हिंदू संस्कृति का प्रतीक भी था। सिकंदर बुतशिकन के समय में मंदिर के विनाश के साथ ही कश्मीरी पंडितों पर भी भारी अत्याचार हुए। कई लोगों को जबरन धर्म बदलने के लिए मजबूर किया गया, जबकि कुछ ने कश्मीर छोड़ दिया।

90 के दशक में कश्मीरी पंडितों के पलायन की त्रासदी ने भी इस मंदिर की कहानी को और गहरा कर दिया। आज भी कश्मीरी पंडित इस मंदिर को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़कर देखते हैं। हाल के वर्षों में मंदिर के जीर्णोद्धार की बातें उठी हैं, जो कश्मीरी पंडितों के लिए उम्मीद की किरण है।

वर्तमान स्थिति और जीर्णोद्धार की उम्मीद

आज मार्तंड सूर्य मंदिर खंडहरों में है, लेकिन इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित किया है। मंदिर के खंडहर आज भी इसकी भव्यता की कहानी कहते हैं। हाल के वर्षों में जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने मंदिर के जीर्णोद्धार की योजना बनाई है, जिससे इसकी खोई हुई शान को वापस लाने की कोशिश हो रही है। 2024 में इस दिशा में कुछ अहम बैठकें भी हुईं, जो इस मंदिर के पुनर्जनन की उम्मीद जगाती हैं।

मंदिर के पास मट्टन में एक आधुनिक हिंदू मंदिर परिसर भी है, जिसमें सूर्य को समर्पित एक मंदिर शामिल है। ये परिसर प्राचीन मंदिर का उत्तराधिकारी माना जाता है और स्थानीय ब्राह्मण पंडितों द्वारा इसका संचालन होता है।

मंदिर का सांस्कृतिक महत्व

मार्तंड सूर्य मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं था, बल्कि ये कश्मीर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक था। ये मंदिर उस समय की कला, वास्तुकला और इंजीनियरिंग का नमूना है। इसके खंडहर आज भी कश्मीर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की कहानी कहते हैं। कुछ लोग इसे "शैतान की गुफा" कहकर बदनाम करते हैं, लेकिन ये कश्मीरी हिंदुओं की आस्था और गर्व का प्रतीक है।


मार्तंड सूर्य मंदिर एक ऐसा खजाना है, जो कश्मीर की समृद्ध विरासत को दर्शाता है। इसके खंडहर आज भी उस भव्यता की कहानी कहते हैं, जो कभी कश्मीर का गौरव थी। सिकंदर बुतशिकन के विनाश ने इसे खंडहर बना दिया, लेकिन इसकी कहानी आज भी जिंदा है। मंदिर की वास्तुकला, उससे जुड़े रहस्य और कश्मीरी पंडितों की आस्था इसे खास बनाती है। जीर्णोद्धार की नई उम्मीदों के साथ, ये मंदिर फिर से अपनी खोई शान को हासिल कर सकता है। अगली बार जब आप कश्मीर की वादियों में जाएं, तो इस मंदिर के खंडहरों को जरूर देखें। ये सिर्फ पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि इतिहास, आस्था और कला का एक अनमोल नगीना है।

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