Adhoori Bawdi Horror Story: मांडू की वो रहस्यमयी जगह, जहां है आत्माओं का बसेरा

Mandu Haunted Adhoori Bawdi: मांडू में जल के संरक्षण और उपयोग को लेकर जितनी बारीकी और सौंदर्य दृष्टि अपनाई गई, वह अद्वितीय है।

Jyotsna Singh
Published on: 30 Jun 2025 4:50 PM IST
Madhya Pradesh Mandu Haunted Adhoori Bawdi History
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Madhya Pradesh Mandu Haunted Adhoori Bawdi History

Madhya Pradesh Haunted Adhoori Bawdi History: मध्य प्रदेश का मांडू, मालवा पठार पर बसा हुआ एक ऐतिहासिक नगरी है। जो अपने खूबसूरत महलों, जल संरचनाओं और रोमांटिक कथाओं के लिए जाना जाता है। बाज बहादुर और रानी रूपमती की प्रेमकथा ने इसे अमर कर दिया। लेकिन यहां की स्थापत्य धरोहरें भी कम अदभुत नहीं हैं। मांडू में जल के संरक्षण और उपयोग को लेकर जितनी बारीकी और सौंदर्य दृष्टि अपनाई गई, वह अद्वितीय है। इसीलिए यहां आपको दर्जनों बावड़ियां, तालाब और हमाम देखने को मिलेंगे, जिनमें से एक है ‘चंपा बावड़ी’ जिसे आज 'अधूरी बावड़ी' के नाम से जाना जाता है।

चंपा बावड़ी- नाम, बनावट और उद्देश्य


यह बावड़ी मांडू के रॉयल एन्क्लेव क्षेत्र में स्थित है और इसे खासतौर से शाही महिलाओं के स्नान और गर्मियों में ठंडक पाने के उद्देश्य से बनाया गया था। इस बावड़ी को 'चंपा बावड़ी' इसलिए कहा गया क्योंकि कहा जाता है कि इसके पानी में चंपा फूल जैसी भीनी-भीनी सुगंध आती थी। इसकी बनावट कुछ इस तरह की गई थी कि भूमिगत कक्षों में ठंडी हवा का प्रवाह बना रहे। बावड़ी के चारों ओर बने तख्खाने एक प्रकार के प्राकृतिक वातानुकूलन प्रणाली की तरह काम करते थे। इसके नीचे गुप्त सुरंगें थीं, जो मुंज तालाब से जुड़ी थीं और युद्ध या आपात स्थिति में शाही महिलाओं को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए प्रयोग में लाई जा सकती थीं। स्थापत्य की दृष्टि से यह बावड़ी वर्गाकार योजना में बनी हुई है और अंदर उतरते ही इसकी दीवारों पर बनीं मेहराबें और गलियारे मध्यकालीन वास्तुकला का बेजोड़ उदाहरण पेश करते हैं।

आज भी यहां सूरज ढलते होती हैं अजीब घटनाएं

चंपा बावड़ी की सबसे बड़ा रहस्य है उसका अधूरा रह जाना नहीं। इतिहासकार कहते हैं कि मांडू के पतन और शासन परिवर्तन के कारण इस परियोजना को अधूरा छोड़ दिया गया। लेकिन लोक मान्यताओं में, इसे एक श्रापित जगह माना जाने लगा। जैसे ही मौतें शुरू हुईं, मजदूरों ने काम करने से इनकार कर दिया और पूरा निर्माण बीच में ही रुक गया।


उसके अधूरेपन के पीछे छिपी वो लोक कथाएं जो आज भी लोगों के मन में डर और रोमांच एक साथ भर देती हैं। पहली और सबसे प्रसिद्ध कथा यह है कि जब बावड़ी का निर्माण हो रहा था। तब कई मजदूर रहस्यमयी तरीके से मारे गए। जिनका मृत शरीर भी गायब हो गया। कई बार इस बावली के निर्माण को पूर्ण करने की कोशिश की गई। लेकिन लगातार हर बार एक के बाद एक हुई इन मौतों के बाद इसके निर्माण को अधूरा ही छोड़ दिया गया। जिसके बाद लोगों ने मान लिया कि इस जगह पर कोई बुरी आत्मा या यक्षिणी का साया है, जो नहीं चाहती कि यह निर्माण कार्य पूरा हो। ये यक्षिणी बावली के आस पास आने वालों को भ्रमित कर देती थी। कहा जाता है कि अगर कोई अकेला व्यक्ति गहराई में जाता था, तो उसे किसी स्त्री के रोने की आवाज़ें सुनाई देती थीं और वह कई बार बेहोश या पागल होकर लौटता था। इस बावली से जुड़ी एक और लोक कथा के अनुसार, एक दासी चंपा जो रोज इस बावड़ी में स्नान करने आती थी। एक दिन कुएं में गिर गई और उसकी मृत्यु हो गई। कहते हैं, उसके बाद से बावड़ी के पानी में वही चंपा की सुगंध आने लगी। तब से इस बावड़ी में चंपा की आत्मा भटकती है और उसके कारण ही आज तक बावड़ी अधूरी पड़ी है। लोग दावा करते हैं कि आज भी बावड़ी के पास से गुजरते समय उन्हें किसी के रोने या फुसफुसाने की आवाज़ें स्पष्ट आती हैं। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि गहराई में उतरने पर हवा एकदम ठंडी हो जाती है और वातावरण में एक अजीब-सा भय उत्पन्न हो जाता है। यही कारण है कि स्थानीय लोग सूरज ढलने के बाद यहां जाना पसंद नहीं करते।

क्यों रह गई अधूरी? इतिहास और अंधविश्वास में है टकराव

हालांकि लोक कथाएं अपनी जगह हैं, लेकिन इतिहासकारों की राय कुछ और है। उनका मानना है कि यह बावड़ी सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी के शासनकाल में बन रही थी लेकिन मांडू पर हुए मुगल आक्रमण और शासन परिवर्तन के चलते इसे अधूरा छोड़ना पड़ा। शाही संरक्षण खत्म होते ही संसाधनों की कमी और राजनीतिक अस्थिरता के चलते निर्माण कार्य रुक गया। कुछ इतिहासविद यह भी मानते हैं कि यह वास्तुशिल्प प्रयोग था। जिसे पूरा करने से पहले तकनीकी या प्राकृतिक बाधाओं ने रोक दिया। लेकिन जब ऐतिहासिक तथ्यों के साथ स्थानीय लोगों की पीढ़ियों से चली आ रही लोककथाएं मिलती हैं, तो अधूरी बावड़ी सिर्फ एक अधूरी इमारत नहीं बल्कि एक जीवित किंवदंती बन जाती है।

जल प्रबंधन और शाही जीवनशैली की उत्कृष्ट मिसाल


मांडू में जल संरक्षण की व्यवस्था अद्भुत थी। पूरे क्षेत्र में लगभग 1200 से अधिक जल स्रोत थे। यहां तालाब, बावड़ियां, चैनल और टैंकों का एक सुसंगठित नेटवर्क मौजूद था। चंपा बावड़ी भी इसी नेटवर्क का एक हिस्सा थी। इसके माध्यम से पानी भूमिगत सुरंगों से एकत्र कर शाही हमाम और महलों तक पहुंचाया जाता था। इस बावड़ी के नीचे मौजूद तहखाने केवल ठंडक के लिए नहीं थे, बल्कि गर्मियों में रानियों और दासियों के बैठने, विश्राम करने और स्नान करने के लिए बनाए गए थे। वास्तव में यह एक बहुस्तरीय जल प्रणाली थी, जो आज के वातानुकूलन प्रणाली (AC) जैसी सुविधा प्रदान करती थी। ताज्जुब की बात यह है कि इतने वर्षों बाद भी इन तहखानों में घुसते ही वातावरण अपने आप ठंडा हो जाता है।

वर्तमान में बावड़ी की स्थिति और पर्यटन का बढ़ता आकर्षण

आज अधूरी बावड़ी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित स्मारक है और पर्यटकों के लिए खुला है। मांडू आने वाले सैलानी इस रहस्यमयी बावड़ी को देखना नहीं भूलते। यहां का वातावरण, शांति और ठंडा अहसास एक अलग ही अनुभूति कराते हैं। बावड़ी की बनावट, उसकी गहराई और उसके चारों ओर फैली वीरानी उसे एक अलग ही पहचान देती है। कई लोग इसे प्री-वेडिंग शूट्स और फोटोग्राफी के लिए भी चुनते हैं, क्योंकि यहां रोशनी और छाया का संयोजन एकदम सिनेमाई अनुभव देता है।

हालांकि स्थानीय लोग अब भी यहां शाम के बाद नहीं जाते, लेकिन दिन में पर्यटकों की आवाजाही बनी रहती है। आस-पास मौजूद जहाज़ महल, हिंदोला महल और रूपमती महल जैसे आकर्षणों के कारण यह क्षेत्र एक समृद्ध ऐतिहासिक अनुभव देता है।

संरक्षण के प्रयास और चुनौतियां

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा बावड़ी की साफ-सफाई, दीवारों की मरम्मत और जल निकासी की व्यवस्था की जाती है। हालांकि समय और मौसम के साथ-साथ पर्यटकों की बढ़ती संख्या से संरचना पर दबाव भी बढ़ा है। बरसात के मौसम में बावड़ी में जलभराव और फिसलन की समस्या उत्पन्न होती है, जो इसके मूल स्वरूप को नुकसान पहुंचा सकती है।


इसके अलावा, नमी, काई और दीवारों पर जमी फफूंद से भी नुकसान होता है। कुछ संरक्षण विशेषज्ञों का मानना है कि यहां डिजिटल सूचना बोर्ड, सौर ऊर्जा से चलने वाली लाइटिंग और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने वाले उपाय अपनाए जाने चाहिए ताकि यह अनमोल धरोहर भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रह सके। अगर आप मांडू की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो अधूरी बावड़ी आपके यात्रा प्लान में जरूर होनी चाहिए। अक्टूबर से फरवरी तक का मौसम यहां घूमने के लिए सबसे उपयुक्त रहता है। सुबह-सुबह या शाम के समय यहां आने से आप इसकी शांति और ठंडक को और गहराई से महसूस कर सकते हैं। साथ में कैमरा, टॉर्च और आरामदायक जूते जरूर लेकर आएं, क्योंकि बावड़ी में कई स्थानों पर रोशनी कम होती है और नीचे उतरने के लिए कई सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मांडू की अधूरी बावड़ी केवल पत्थरों से बनी एक अधूरी संरचना नहीं है, बल्कि यह भावनाओं, कहानियों, शिल्प और रहस्य का विशाल संगम है।

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