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रामायण के पन्नों से आज तक: वह मंदिर जहां आज भी जीवित है प्रभु श्रीराम से जुड़ी स्मृतियां
रामायण के पन्नों से लेकर आज तक, जानिए भारत के उन प्राचीन मंदिरों के बारे में जहां आज भी जीवित हैं प्रभु श्रीराम से जुड़ी स्मृतियां। अयोध्या से चित्रकूट, भद्राचलम से केरल तक — हर मंदिर रामायण काल की कथा का साक्षी है।
Lord Rama Temples India (Image Credit-Social Media)
Lord Rama Temples India: भारत की धरती पर भगवान श्रीराम केवल एक देवता नहीं, बल्कि लोगों के दिल में धर्म, मर्यादा और आदर्श के प्रतीक के तौर पर विराजमान रहते हैं। इनका माहात्म्य तो पूरे जगत में व्याप्त है। तभी चारों दिशाओं में राम के जीवन काल और उस कथानक से जुड़े अनेक साक्ष्य आज भी धरती पर मौजूद मिलते हैं। परंतु यह भी उतना ही सच है कि मध्यकाल में विदेशी आक्रमणकारियों ने राम और हनुमान से जुड़े अनेक मंदिरों, तीर्थों और आश्रमों को ध्वस्त किया। अनेक स्थानों का अस्तित्व मिटा दिया गया, परिणामस्वरूप हमें आज फिर से उन पवित्र स्मृतियों और मंदिरों की खोज करनी पड़ रही है जो त्रेतायुग की कथाओं से जुड़े हैं। अयोध्या का भव्य राम मंदिर तो विश्व-प्रसिद्ध है ही, लेकिन इसके अलावा भी देश के कई कोनों में ऐसे अद्भुत मंदिर हैं जहां प्रभु श्रीराम के चरणों की छाप आज भी जीवित है। आइए जानते हैं प्राचीन काल के भगवान राम से जुड़े उन मंदिरों के बारे में विस्तार से -
तीन ओर से स्वर्ण परत से आच्छादित हैं ये रघुनाथ मंदिर, जम्मू
उत्तर भारत के प्रमुख राम मंदिरों में जम्मू स्थित रघुनाथ मंदिर का विशेष स्थान है। इसका निर्माण 1835 में डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह ने आरंभ कराया था और इसे उनके पुत्र महाराजा रणजीत सिंह के समय में पूर्ण किया गया। इस विशाल परिसर में सात ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों का समूह है। जिनकी दीवारें तीन ओर से स्वर्ण परत से आच्छादित हैं। रघुनाथ मंदिर की भव्यता केवल उसकी स्थापत्य कला में नहीं, बल्कि इस बात में भी है कि इसके आसपास बने अनेक छोटे-बड़े देवालय रामायण काल के पात्रों और देवताओं को समर्पित हैं।
ब्रह्मा, विष्णु और शिव तत्वों से निहित है यहां स्थापित राम की त्रिमूर्ति,त्रिप्रायर श्रीराम मंदिर, केरल
दक्षिण भारत में केरल के त्रिशूर जिले के त्रिप्रायर नगर में स्थित श्रीराम मंदिर अपनी अनूठी मान्यता के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि समुद्र तट पर एक स्थानीय मुखिया को भगवान राम की मूर्ति मिली थी और उसी मूर्ति की प्रतिष्ठा यहाँ की गई। दिलचस्प बात यह है कि इस मूर्ति में ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों के तत्व माने जाते हैं। इसलिए इसे त्रिमूर्ति की उपासना का प्रतीक भी कहा जाता है। मंदिर की दीवारों और लकड़ी की नक्काशियों में रामायण काल की कथाएं जीवंत दिखाई देती हैं। अरट्टूपुझा पूरम उत्सव के दौरान जब पारंपरिक कलाएं और कोट्टू नृत्य यहां प्रस्तुत होते हैं, तो पूरा परिसर भक्तिरस में डूब जाता है।
भक्त रामदास के नाम से प्रसिद्ध है भद्राचलम श्री सीतारामचंद्र स्वामी मंदिर, आंध्रप्रदेश
आंध्रप्रदेश के खम्मम जिले में गोदावरी नदी के तट पर स्थित भद्राचलम का यह मंदिर भक्त रामदास के नाम से प्रसिद्ध है। कथा है कि जब भगवान राम लंका की यात्रा पर निकले थे, तब उन्होंने गोदावरी पार करने से पहले यहीं विश्राम किया था। इसी स्थल पर बाद में स्थानीय तहसीलदार कंचली गोपन्ना ने बांस के पुराने मंदिर के स्थान पर पत्थर का भव्य मंदिर बनवाया। भक्ति से ओत-प्रोत गोपन्ना को ही आगे चलकर 'भक्त रामदास' कहा गया। इस मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व इतना है कि आज भी हजारों श्रद्धालु हैदराबाद और विजयवाड़ा से यहां दर्शन के लिए आते हैं।
वैष्णव परंपरा का केंद्र है श्री तिरुनारायण स्वामी मंदिर, मेलकोट (कर्नाटक)
कर्नाटक के मांड्या जिले के छोटे से कस्बे मेलकोट, जिसे तिरुनारायणपुरम भी कहा जाता है, में स्थित यह मंदिर दक्षिण भारत की वैष्णव परंपरा का केंद्र है। यह मंदिर यदुगिरि नामक पहाड़ी पर स्थित है। जहां भगवान नृसिंह और चेलुवा नारायण के दो प्रमुख देवालय हैं। कहा जाता है कि यहां भगवान राम ने भी अपने वनवास काल में निवास किया था। मैसूर से लगभग 50 किलोमीटर और बेंगलुरु से 130 किलोमीटर दूर स्थित यह स्थान आज भी शांति और भक्ति का अद्भुत संगम है।
जहां श्रीराम ने विश्राम किया- हरिहरनाथ मंदिर, सोनपुर (बिहार)
गंगा और गंडक के संगम पर बसे सोनपुर का हरिहरनाथ मंदिर त्रेतायुग की कथा से जुड़ा माना जाता है। किंवदंती है कि सीता स्वयंवर के लिए जाते समय भगवान राम ने यहां पूजा-अर्चना की थी और उसी समय यह मंदिर स्थापित किया गया। बाद में राजा मानसिंह और राजा राम नारायण ने इसका पुनर्निर्माण कराया। आज भी सोनपुर का यह तीर्थ स्थल 'हरिहर क्षेत्र' के नाम से विख्यात है,जहां रामभक्त दूर-दूर से आते हैं।
दो हजार वर्षों पुरानी विरासत है - थिरुवंगड श्रीरामस्वामी मंदिर, केरल
केरल के उत्तरी भाग थालास्सेरी में स्थित थिरुवंगड श्रीरामस्वामी मंदिर का इतिहास लगभग दो हजार वर्ष पुराना माना जाता है। कहा जाता है कि यहां सबसे पहले भगवान परशुराम ने विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया था। बाद में अगस्त्य मुनि के समय से यह स्थान रामभक्ति का प्रमुख केंद्र बना। यह मंदिर केवल आस्था का नहीं, बल्कि स्थापत्य की दृष्टि से भी अनमोल धरोहर है। समीप ही स्थित कालीकट एयरपोर्ट से यह स्थान 90 किलोमीटर दूर है और कन्नूर जिला प्रशासन द्वारा इसे संरक्षित तीर्थ घोषित किया गया है।
त्रेतायुगीन कथाओं की झलक देता है रामभद्रस्वामी मंदिर, तिरुविल्वमल (त्रिशूर, केरल)
त्रिशूर जिले के तिरुविल्वमल में स्थित यह मंदिर अपनी भव्यता और कलात्मक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि यहां भगवान राम को 'रामभद्रस्वामी' रूप में पूजा जाता है। लकड़ी पर की गई नक्काशियां और भित्तिचित्र त्रेतायुगीन कथाओं की झलक देते हैं। यह स्थल केरल के प्रमुख धार्मिक केंद्रों में से एक है और यहां हर साल हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
चित्रकूट जहां आज भी मौजूद हैं रामायण कथा के जीवंत प्रतीक
प्रयागराज से दक्षिण की ओर बढ़ते हुए श्रीराम ने यमुना पार कर चित्रकूट की धरती पर कदम रखा था। यही वह स्थान है जहां उन्होंने महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के आश्रम में कुछ समय बिताया। चित्रकूट के वाल्मीकि आश्रम, भरतकूप, रामघाट, जानकी कुंड और हनुमानधारा जैसे स्थल आज भी उस कथा के जीवंत प्रतीक हैं। लोककथाओं में चित्रकूट को 'दूसरी अयोध्या' भी कहा गया है। यहां की पर्वत-श्रृंखलाएं और गोदावरी की सहायक नदियां रामायण काल की कथाएं आज भी सुनाती हैं।
राम ने वनवास के दौरान जहां कई दिन बिताए - रामवन, सतना (मध्यप्रदेश)
मध्यप्रदेश के सतना जिले के समीप ‘रामवन’ नामक स्थान पर कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के दौरान कई दिन बिताए। आसपास के क्षेत्रों में ऋषियों के आश्रम जैसे अत्रि, श्रृंगी, सुतीक्ष्ण और मांडव्य मुनि के आश्रम स्थित हैं। यहां की गुफाएं 'लक्ष्मण बोंगरा' और 'सीता बोंगरा' उन दिनों की याद दिलाती हैं जब भगवान ने दंडकारण्य में साधु-संतों से मुलाकातें कीं। अमरकंटक, पन्ना, शहडोल और बस्तर तक फैले इन स्थलों का धार्मिक महत्व आज भी बना हुआ है।
गोदावरी तट पर जहां आज भी राम के वनवास की अमर गाथा बहती है-पंचवटी, नासिक
महाराष्ट्र के नासिक जिले में गोदावरी नदी के किनारे स्थित पंचवटी वह स्थान है जहाँ भगवान राम, लक्ष्मण और सीता ने अपने वनवास के कुछ वर्ष बिताए थे। यही वह क्षेत्र है जहां शूर्पणखा प्रसंग और मारीच-स्वर्णमृग की कथा घटित हुई थी। पंचवटी में आज भी कालाराम मंदिर, गोदावरी तट, सीता गुफा और अन्य अनेक स्थल इस दैवी कथा के साक्षी हैं।
बिहार में मौजूद है भारत का सबसे पुराना राम मंदिर हाजीपुर का रामचौरा मंदिर
जब हम भारत के सबसे प्राचीन राम मंदिर की बात करते हैं तो अधिकांश लोककथाएं बिहार के हाजीपुर स्थित रामचौरा मंदिर की ओर इशारा करती हैं। कहा जाता है कि भगवान राम ने मिथिला यात्रा के दौरान यहां अपने मुण्डन संस्कार कराए थे। इसी स्थान पर उनके पदचिह्न आज भी सुरक्षित हैं। यद्यपि ऐतिहासिक प्रमाण सीमित हैं, फिर भी लोकमान्यता इसे रामायण काल का अवशेष मानती है। इसीलिए कई विद्वान भी इसे 'भारत का सबसे पुराना राम मंदिर” मानते हैं। रामायण केवल एक महाकाव्य नहीं, बल्कि भारत की मिट्टी में बसा जीवन-दर्शन है। देश के अलग-अलग हिस्सों में फैले ये मंदिर इस बात का प्रमाण हैं कि समय, सत्ता और आक्रमण कुछ भी श्रीराम की स्मृति को मिटा नहीं सका।
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