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चित्रकूट की लोकपरंपरा में श्रीराम: रामनाम से गूंजते गीत, पर्व और संस्कृति की व्याप्ति"
Ram in Chitrakoot: चित्रकूट की लोकसंस्कृति में राम: परंपरा, लोकगीत और सांस्कृतिक पहचान
Ram in Chitrakoot
Ram in Chitrakoot: चित्रकूट की पावन भूमि, जहाँ अभिवादन की शुरुआत “राम राम” से होती है, आज भी राममय है। यह क्षेत्र न केवल ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहा है, बल्कि यहाँ के कण-कण में श्रीराम की छाप मिलती है। चित्रकूट की विविध लोकपरंपराएँ, विशेषकर कोल समुदाय की परंपराएं, आज भी श्रीराम के वनवास जीवन की स्मृति को संजोए हुए हैं।
बुन्देलखण्ड, जो किसी राज्य, जिले या तहसील की आधिकारिक परिभाषा में नहीं आता, एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक क्षेत्र है जो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में फैला है। इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुषमा और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का उल्लेख अनेक ऋषि-मुनियों, संतों और कवियों ने किया है।
चित्रकूट अंचल में वनवास के समय श्रीराम ने लगभग ग्यारह वर्ष सात माह बिताए। यहाँ का हर स्थल — कामदगिरि, जानकीकुंड, स्फटिक शिला, लक्ष्मण पहाड़ी, भरतमिलाप स्थल, कोटितीर्थ, हनुमानधारा, गुप्त गोदावरी, सीतारसोई — श्रीराम की पदचापों का साक्षी है।
लोकपरंपराओं में राम की उपस्थिति
चित्रकूट के पाठा क्षेत्र की लोकसंस्कृति में श्रीराम की गूंज आज भी सुनाई देती है। यहाँ के विवाह गीत, मौसमी पर्व, लोककथाएँ, नामकरण परंपरा, सभी में राम का उल्लेख मिलता है। विशेषकर महिलाएं गेहूं कूटते, मसाले पीसते, पूड़ी बनाते समय राम से जुड़े नेग गीत गाती हैं।
विवाह के गीतों में राम
लगुन गीत:
"सो आज मोरे राम जू खों लगन चढ़त है। लगुन चढ़त है आनंद बढ़त है..."
वर की खोज
कौन देश के तुम दोनों भैया, कहा तुमरौ नाम मोरे लाल..."
गारी गीत
बारातियों की आमद पर वर पक्ष की माताओं और बहनों को संबोधित करती व्यंग्यपूर्ण लोकगीतों की परंपरा।
चित्रकूट की प्रमुख लोकपरंपराएँ
चैत्र नवमी पूजा – कुल देवी-देवताओं की पूजा।
अक्षय तृतीया (अक्ति) – नए बर्तनों की स्थापना और शर्बत वितरण।
अगिहाई – पहली वर्षा के बाद बाहर भोजन बनाने की परंपरा।
राई – खेतों की बुआई के समय गीत गाने की परंपरा।
कुड़ी भरना – बीजों की पूजा।
अंजुरी – पहली फसल देवता व ब्राह्मणों को अर्पण।
हरछठ – संतान की दीर्घायु हेतु माताओं का व्रत।
महबूलिया – पितृ पक्ष में फूल सजाने की परंपरा।
देवारी – दीपावली की रात लोकनृत्य व गायन।
त्रिवेणी मेला – कोल आदिवासियों का सांस्कृतिक मेला।
मार्कंडेय मेला – मकर संक्रांति पर ऋषि तपोभूमि में आयोजन।
फाग – होली पर विशेष फाग गीत।
शैलचित्रों में राम – कोल समुदाय द्वारा पूजित शैलाश्रय।
बुन्देलखण्ड में राम का वाचिक प्रभाव
संबोधन में राम
“कहौ रामजी!”, “हमार बापराम कहिन ता।”
अभिवादन में:
“जय राम जी की”, “राम राम भइया।”
श्रम या आश्चर्य में:
“राम भजो भई राम भजो”, “हे राम!”, “हाय राम!”
नामकरण में:
रामकुमार, रामचंद्र, रामनिहोरे, रामप्यारी, रामवती आदि।
गाँव-बस्तियों के नाम:
रामपुर, रमगढ़वा, रामटेकरी आदि।
वन, पहाड़, जल, मिट्टी, खाद्य, परिधान:
रामवन, रामगिरि, रामकुंड, रामरस (नमक), रामनामी (वस्त्र), रामरज (मिट्टी) आदि।
रामकथा का वैश्विक प्रसार
रामायण केवल भारत तक सीमित नहीं रही। इंडोनेशिया, जापान, थाईलैंड, मंगोलिया, कंबोडिया, श्रीलंका, त्रिनिडाड और मारीशस जैसे देशों में भी यह गाई और जानी जाती है। बाली द्वीप के भित्तिचित्रों में भारत की सांस्कृतिक छवि स्पष्ट झलकती है।
इतिहास और लोक परंपराएँ
आज का इतिहास, विशेषकर मुख्यधारा इतिहास, विजेताओं द्वारा लिखा गया और शासकों की मंशा के अनुसार ढाला गया है। लोकपरंपराएँ ही वे माध्यम हैं जो उस भूले-बिसरे सत्य को अब तक जीवित रखे हुए हैं। रामकथा इसका ज्वलंत उदाहरण है।
आज की पीढ़ी और लोकविरासत
दुर्भाग्य से आज की पीढ़ी न दादी-नानी की कहानियाँ सुनती है, न पारिवारिक कथा-वाचन की परंपरा शेष है। बच्चे प्रकृति, लोकगीत, छंद, और अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में लोकपरंपराओं का संरक्षण और दस्तावेजीकरण अत्यंत आवश्यक है।
राम का नाम, चरित्र और आचरण चित्रकूट के लोकजीवन में केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और व्यक्तिगत पहचान का आधार बन चुका है। यहाँ राम केवल पूजे नहीं जाते, बल्कि जिए जाते हैं।चित्रकूट की लोकपरंपराएँ हमें यह सिखाती हैं कि संस्कृति तभी जीवित रहती है जब वह जनमानस के जीवन में रम जाती है। राम लोक के आलोक हैं — और चित्रकूट इस आलोक की पावन स्थली है।
लेखक: अनुज हनुमत
(इतिहास एवं पुरातत्व विषयों के जानकार)
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