Lakhimpur Medhak Mandir: आखिर क्यों कहा जाता है इसे मेंढक वाला शिव मंदिर?

Lakhimpur Kheri Frog Temple: मांडूक तंत्र पर आधारित यह मंदिर अपनी रहस्यमयी वास्तुकला, दिव्य शक्ति और रोचक कहानियों के लिए प्रसिद्ध है।

Akshita Pidiha
Published on: 2 Aug 2025 12:08 PM IST
Lakhimpur Kheri Famous Medhak Mandir History
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Lakhimpur Kheri Famous Medhak Mandir History

Lakhimpur Kheri Medhak Mandir History: उत्तर प्रदेश का लखीमपुर खीरी जिला अपने हरे-भरे खेतों, नदियों और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। लेकिन इस जिले के ओयल कस्बे में एक ऐसा मंदिर है, जो अपनी अनोखी बनावट और मान्यताओं के लिए न सिर्फ स्थानीय लोगों, बल्कि देश-विदेश के पर्यटकों और शिव भक्तों के बीच मशहूर है। यह है मेंढक मंदिर, जहां भगवान शिव मेंढक की पीठ पर विराजमान हैं। यह मंदिर भारत का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां मेंढक की पूजा होती है। मांडूक तंत्र पर आधारित यह मंदिर अपनी रहस्यमयी वास्तुकला, दिव्य शक्ति और रोचक कहानियों के लिए प्रसिद्ध है। आइए, इस अनोखे मंदिर की कहानी को और करीब से जानते हैं।

मेंढक मंदिर का परिचय

लखीमपुर खीरी के ओयल कस्बे में स्थित मेंढक मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इसे नर्मदेश्वर महादेव मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यह एक विशाल मेंढक की मूर्ति की पीठ पर बना है। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में खुलता है, और दूसरा द्वार दक्षिण में है। मंदिर का गर्भगृह एक ऊंची संगमरमर की शिला पर बना है, जहां नर्मदेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित है। इस शिवलिंग की खासियत यह है कि यह दिन में कई बार अपना रंग बदलता है, जो भक्तों के लिए एक चमत्कार से कम नहीं है।



मंदिर की वास्तुकला तंत्रवाद पर आधारित है, और इसे मांडूक तंत्र के सिद्धांतों के अनुसार बनाया गया है। मंदिर की दीवारों पर तांत्रिक प्रतीकों, देवी-देवताओं की मूर्तियों और विचित्र चित्रों की नक्काशी है, जो इसे और भी आकर्षक बनाती है। मंदिर के सामने एक विशाल मेंढक की मूर्ति है, जिसके पीछे शिवलिंग स्थापित है। यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

मंदिर का इतिहास

मेंढक मंदिर का इतिहास लगभग 200 साल पुराना है। इसे 19वीं शताब्दी में चाहमान वंश के राजा बख्श सिंह ने बनवाया था। कुछ स्रोतों के अनुसार, मंदिर का निर्माण राजा बख्श सिंह के उत्तराधिकारी राजा अनिरुद्ध सिंह के समय में पूरा हुआ। यह मंदिर ओयल शैव संप्रदाय का प्रमुख केंद्र था, जहां के शासक भगवान शिव के परम भक्त थे। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सूखे और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से क्षेत्र की रक्षा के लिए किया गया था।

मंदिर की वास्तु परिकल्पना एक महान तांत्रिक कपिला ने की थी। तंत्रवाद पर आधारित इस मंदिर की संरचना इतनी अनोखी है कि यह उत्तर प्रदेश के अन्य शिव मंदिरों से बिल्कुल अलग है। मंदिर का निर्माण 18 x 25 वर्ग मीटर के क्षेत्र में हुआ है, और यह एक अष्टकोणीय कमल के बीच में बनाया गया है। मंदिर के आधार पर मगरमच्छ के मुंह में मछली, फिर मेंढक, और उसके ऊपर चार वेदों का प्रतीक चार सीढ़ियां हैं। इसके बाद आठ पंखुड़ियों वाला कमल और अष्टकोणीय तांत्रिक पूजन यंत्र है, जो मंदिर की तांत्रिक विशेषता को दर्शाता है।

मंदिर के शीर्ष पर एक अष्टधातु से बना चक्र है, जिसके बीच में नटराज की मूर्ति स्थापित है। कहा जाता है कि यह चक्र पहले सूर्य की रोशनी के साथ घूमता था, लेकिन अब यह क्षतिग्रस्त हो चुका है। मंदिर के पास एक अनोखा कुआं भी है, जो जमीन से 50 फीट ऊपर बना है, और उसमें पानी जमीन के स्तर से भी ऊपर रहता है। यह कुआं भक्तों के लिए एक आश्चर्य का विषय है।

मेंढक मंदिर की खासियतें


मेंढक मंदिर की कई ऐसी विशेषताएं हैं, जो इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती हैं।

रंग बदलता शिवलिंग: मंदिर के गर्भगृह में स्थापित नर्मदेश्वर महादेव का शिवलिंग दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है। यह चमत्कार भक्तों को आकर्षित करता है और इसे भगवान शिव की divine शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

खड़ी नंदी की मूर्ति: आमतौर पर शिव मंदिरों में नंदी की मूर्ति बैठी हुई होती है, लेकिन इस मंदिर में नंदी खड़े हुए हैं। यह अपने आप में एक दुर्लभ विशेषता है, जो दुनिया के किसी अन्य शिव मंदिर में नहीं मिलती।

मेंढक की पूजा: मंदिर में भगवान शिव के साथ मेंढक की भी पूजा की जाती है। मंदिर के सामने स्थापित विशाल मेंढक की मूर्ति को भक्त विशेष श्रद्धा के साथ पूजते हैं। मान्यता है कि मेंढक की पूजा करने से सुख-समृद्धि और प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा मिलती है।

तांत्रिक वास्तुकला: मंदिर की दीवारों पर तांत्रिक प्रतीकों और शव साधना करती मूर्तियों की नक्काशी है। यह मंदिर मांडूक तंत्र पर आधारित है, जो इसे तंत्र साधकों के लिए भी खास बनाता है।

ऐतिहासिक महत्व: ओयल क्षेत्र 11वीं से 19वीं शताब्दी तक चाहमान शासकों के अधीन था। यह मंदिर उस समय की शैव परंपराओं और तांत्रिक साधना का एक जीवंत उदाहरण है।

मंदिर से जुड़ी मान्यताएं और कथाएं

मेंढक मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं और कथाएं इसे और भी रोचक बनाती हैं।

प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा: स्थानीय लोगों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण सूखे और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से क्षेत्र की रक्षा के लिए किया गया था। मेंढक को जल और जमीन दोनों का प्रतीक माना जाता है, और इसकी पूजा से प्रकृति का संतुलन बना रहता है।

चमत्कारी शिवलिंग: मंदिर के शिवलिंग को नर्मदा नदी से लाया गया था, और इसे नर्मदेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। भक्तों का मानना है कि इस शिवलिंग की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। खासकर सावन और महाशिवरात्रि के दौरान यहां जलाभिषेक करने वालों की भीड़ लगी रहती है।

तांत्रिक साधना का केंद्र: मंदिर का निर्माण मांडूक तंत्र पर आधारित है, और प्राचीन काल में यह तांत्रिक साधकों का प्रमुख केंद्र था। कुछ लोग मानते हैं कि मंदिर के आसपास रात में विचित्र आवाजें सुनाई देती हैं, जो तांत्रिक शक्तियों का संकेत हैं।

मेंढक की कथा: एक कथा के अनुसार, एक तांत्रिक साधु ने इस स्थान पर कठिन साधना की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मेंढक के रूप में दर्शन दिए और इस मंदिर की स्थापना का आदेश दिया। यही कारण है कि मेंढक को यहां पूजनीय माना जाता है।

पर्यटन स्थल के रूप में महत्व

मेंढक मंदिर लखीमपुर खीरी का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह न सिर्फ धार्मिक यात्रियों, बल्कि इतिहास और वास्तुकला प्रेमियों को भी आकर्षित करता है। मंदिर की अनोखी बनावट और तांत्रिक महत्व इसे एक खास स्थान बनाते हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए लखीमपुर शहर से ओयल कस्बा, जो लगभग 11 किलोमीटर दूर है, आसानी से बस या टैक्सी से जाया जा सकता है। लखनऊ, जो सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा है, मंदिर से 135 किलोमीटर की दूरी पर है।


मंदिर के आसपास का क्षेत्र हरा-भरा और शांत है, जो पर्यटकों को प्रकृति के करीब लाता है। मंदिर के पास छोटी-छोटी दुकानें हैं, जहां से भक्त प्रसाद, फूल और पूजा सामग्री खरीद सकते हैं। स्थानीय व्यंजनों जैसे कचौड़ी, जलेबी और पकौड़े का स्वाद भी पर्यटक ले सकते हैं। मंदिर के पास ही दुधवा नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व है, जो प्रकृति प्रेमियों के लिए एक अतिरिक्त आकर्षण है।

महाशिवरात्रि और दीपावली के दौरान मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। सावन के महीने में हर सोमवार को यहां जलाभिषेक के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। मंदिर का नजारा इन अवसरों पर देखने लायक होता है, जब भक्त भजन-कीर्तन और पूजा-अर्चना में डूबे रहते हैं।

मंदिर की वर्तमान स्थिति

मेंढक मंदिर उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा चिह्नित है, और इसे विश्व पर्यटन मानचित्र पर लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि, मंदिर की कुछ संरचनाएं, जैसे शीर्ष पर लगा चक्र, समय के साथ क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। फिर भी, मंदिर की देखरेख स्थानीय समिति और भक्तों द्वारा की जाती है। मंदिर का परिसर साफ-सुथरा रखा जाता है, और भक्तों के लिए सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हैं।

मंदिर के पुजारी और स्थानीय लोग इसे एक जागृत स्थल मानते हैं। वे कहते हैं कि यहां आने वाला हर भक्त भगवान शिव की कृपा से अपनी मनोकामनाएं पूरी करता है। मंदिर की दिव्यऊर्जा और शांत वातावरण भक्तों को बार-बार यहां खींच लाता है।

मेंढक मंदिर और स्थानीय संस्कृति

मेंढक मंदिर लखीमपुर खीरी की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह मंदिर न सिर्फ शिव भक्ति का प्रतीक है, बल्कि तंत्र साधना और प्राचीन भारतीय वास्तुकला का भी एक उदाहरण है। मंदिर के आसपास होने वाले मेले और उत्सव स्थानीय संस्कृति को और जीवंत बनाते हैं। इन मेलों में स्थानीय कलाकार, हस्तशिल्प और खान-पान की दुकानें पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।

मंदिर के पास होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भजन-कीर्तन और नृत्य की प्रस्तुतियां होती हैं, जो भक्तों को भक्ति के रंग में डुबो देती हैं। यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए एक गर्व का विषय है, और वे इसे अपनी सांस्कृतिक धरोहर मानते हैं।

लखीमपुर खीरी का मेंढक मंदिर एक ऐसी जगह है, जहां आस्था, इतिहास और रहस्य का अनोखा संगम देखने को मिलता है। मेंढक की पीठ पर बने इस मंदिर का शिवलिंग, खड़ी नंदी की मूर्ति और तांत्रिक वास्तुकला इसे देश के अन्य मंदिरों से अलग बनाती है। मांडूक तंत्र पर आधारित यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। अगर आप शिव भक्त हैं या अनोखे मंदिरों की सैर करना पसंद करते हैं, तो मेंढक मंदिर आपके लिए एक अविस्मरणीय अनुभव होगा। लखनऊ से कुछ घंटों की यात्रा करके आप इस चमत्कारी मंदिर के दर्शन कर सकते हैं और भगवान शिव की दिव्य शक्ति का अनुभव कर सकते हैं।

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