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Jagannath Temple MahaPrasad: जगन्नाथ महाप्रसाद क्या सिर्फ भोग है या रहस्य, परंपरा और चमत्कार? जानिए सच्चाई

Jagannath Temple MahaPrasad:पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर में तैयार होने वाला यह दिव्य प्रसाद केवल भोग नहीं, हजारों वर्षों की परंपरा, चमत्कार और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। जानिए कैसे यह प्रसाद बना हर भक्त के लिए मोक्ष का द्वार।जानते है इसके बारे

Suman  Mishra
Published on: 24 Jun 2025 10:11 AM IST
Jagannath Temple MahaPrasad: जगन्नाथ महाप्रसाद क्या सिर्फ भोग है या रहस्य, परंपरा और चमत्कार? जानिए सच्चाई
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Jagannath Temple MahaPrasad: जगन्नाथ मंदिर ओडिशा के पुरी में स्थित भारत के सबसे पवित्र और प्रतिष्ठित हिंदू मंदिरों में से एक है। भगवान कृष्ण के एक रूप, भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा है। यह मंदिर महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। जगन्‍नाथ मंदिर में भगवान जगन्‍नाथ (भगवान कृष्‍ण), उनके बड़े भाई भगवान बलभद्र और उनकी बहन देवी सुभद्रा हैं।

जगन्नाथ मंदिर के प्रसाद को "महाप्रसाद" के रूप में जाना जाता है , जगन्नाथ मंदिर के महाप्रसाद को अत्यधिक पवित्र माना जाता है, जगन्नाथ मंदिर के महाप्रसाद जिसे स्वयं अन्न का ब्रह्मस्वरूप कहा गया है। यह वह प्रसाद है जो रसोई से नहीं, श्रद्धा और परंपरा की अग्नि से जन्म लेता है।पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर में भगवान को जो भोजन अर्पित किया जाता है, वह 'नायवेद्य' कहलाता है। जब वह नायवेद्य भगवान द्वारा स्वीकार किया जाता है और फिर भक्तों में बांटा जाता है, तो वह महाप्रसाद बन जाता है।इस महाप्रसाद को केवल श्रद्धा का साधन नहीं, मोक्षदायक अन्न माना जाता है। यह ऐसा प्रसाद है जिसे छूने या खाने से न तो जाति बंधन लगता है, न ही कोई शास्त्रीय निषेध।

कैसी होती है महाप्रसाद की तैयारी

महाप्रसाद मंदिर की रसोई में तैयार किया जाता है, जो दुनिया की सबसे बड़ी रसोई में से एक है। खाना पारंपरिक तरीकों से मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है। महाप्रसाद में विभिन्न प्रकार के शाकाहारी व्यंजन, मिठाइयाँ और स्नैक्स शामिल होते हैं। कुछ लोकप्रिय वस्तुएँ चावल, दाल, सब्जियाँ, खिचड़ी, खीर, विभिन्न लड्डू और बहुत कुछ हैं। मेनू अलग-अलग हो सकता है, और प्रसाद बड़ी श्रद्धा के साथ बनाया जाता है।

महाप्रसाद कैसे पकाये

महाप्रसाद पकाने का क्रम भोजन पारंपरिक तरीकों से पकाया जाता है, और मंदिर की रसोई का प्रबंधन समर्पित रसोइयों और पुजारियों की एक टीम द्वारा किया जाता है। महाप्रसाद के रूप में वितरित किए जाने से पहले, भोजन मंदिर में देवताओं को चढ़ाया जाता है। मान्यता यह है कि प्रसाद के दौरान दैवीय आशीर्वाद भोजन में स्थानांतरित हो जाता है। भक्त मंदिर परिसर के भीतर एक बाजार, आनंद बाजार से महाप्रसाद खरीद सकते हैं। यह बाज़ार पवित्र खाद्य पदार्थों की बिक्री के लिए जाना जाता है।यह अकेला ऐसा मंदिर है जहां ईश्वर को भोग चढ़ाने के बाद, वह अन्न सभी को समान रूप से वितरित किया जाता है — बिना किसी भेदभाव के।

'महा' शब्द यहां केवल आकार या प्रतिष्ठा के लिए नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है — जिसमें भगवान स्वयं समाहित हैं। जब हजारों लोग एक साथ इसे ग्रहण करते हैं, तो यह एक आध्यात्मिक यज्ञ जैसा प्रतीत होता है।

यहां हर दिन लकड़ी की आग पर मिट्टी के बर्तनों में भोजन पकाया जाता है।सबसे रोचक बात यह है कि 7 हांड़ियों को एक-दूसरे पर रखकर पकाया जाता है, लेकिन चमत्कार यह है कि ऊपर की हांड़ी पहले पकती है, नीचे की सबसे बाद में।यह किसी विज्ञान से परे प्रतीत होता है और इसे भगवान की इच्छा या देवी लक्ष्मी की कृपा माना जाता है।

महाप्रसाद में होता है छप्पन भोग

महाप्रसाद में छप्पन भोग तैयार किया जाता है। छप्पन भोग से तात्पर्य 56 खाद्य पदार्थों के विशेष प्रसाद से है जो भगवान जगन्नाथ को चढ़ाया जाता है। यह प्रसाद शुभ माना जाता है और विशेष अवसरों पर तैयार किया जाता है। महाप्रसाद को पवित्र माना जाता है और भक्तों का मानना ​​है कि इसे खाने से शरीर और आत्मा शुद्ध हो जाती है। इसे अक्सर दैवीय आशीर्वाद के प्रतीक के रूप में लिया जाता है और माना जाता है कि यह आध्यात्मिक कल्याण लाता है। रथ यात्रा के दौरान, पहांडी बिजे नामक एक विशेष अनुष्ठान होता है, जहां भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को मंदिर लौटने के बाद महाप्रसाद दिया जाता है।

मान्यता है कि जगन्नाथ महाप्रसाद को अंत समय में ग्रहण करने से आत्मा को मुक्ति मिलती है। कई घरों में मृत्यु के समय इस प्रसाद का कण मृतक के मुख में रखा जाता है, जिससे उसे ब्रह्म प्राप्ति की दिशा मिलती है।

रथयात्रा में प्रसाद का महत्व

जगन्नाथ मंदिर वार्षिक रथ यात्रा या रथ उत्सव के लिए प्रसिद्ध है, जो लाखों भक्तों को आकर्षित करता है। इस भव्य उत्सव के दौरान, देवताओं को विस्तृत रूप से सजाए गए रथों पर रखा जाता है और पुरी की सड़कों पर खींचा जाता है। रथयात्रा एकता और भक्ति का प्रतीक है। यह मंदिर एक वास्तुशिल्प चमत्कार है, जो अपनी कलिंग शैली की वास्तुकला के लिए जाना जाता है। मुख्य मंदिर संरचना, जिसे "देउला" के नाम से जाना जाता है, में एक विशिष्ट पिरामिड आकार का शिखर है। मंदिर परिसर एक ऊंची किलेदार दीवार से घिरा हुआ है। जगन्नाथ मंदिर की अनूठी विशेषताओं में से एक नीला चक्र है, जो मंदिर के शिखर के शीर्ष पर लगा एक पवित्र चक्र है। नीला चक्र मिश्र धातु से बना है और इसे अत्यधिक शुभ माना जाता है।पुरी की रथयात्रा में भगवान श्रीजगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीन रथों में नगर भ्रमण करते हैं। इन दिनों विशेष पकवान बनाए जाते हैं जो हजारों लोगों में बांटे जाते हैं।ऐसे अवसरों पर प्रसाद केवल ‘भोजन’ नहीं, भक्ति का उत्सव बन जाता है।

मंदिर से जुड़ी मान्यता

जगन्नाथ मंदिर का इतिहास किंवदंतियों और कहानियों से समृद्ध है। एक लोकप्रिय किंवदंती यह है कि मंदिर का निर्माण राजा इंद्रद्युम्न ने कराया था। मंदिर का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा से जुड़ा है। नवकलेबारा एक महत्वपूर्ण घटना है जो कई दशकों में एक बार होती है जब देवताओं की लकड़ी की मूर्तियों को नई मूर्तियों से बदल दिया जाता है। इसमें पुरानी मूर्तियों से आध्यात्मिक सार को नई मूर्तियों में स्थानांतरित करने का एक पवित्र अनुष्ठान शामिल है।

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Suman  Mishra

Suman Mishra

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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