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Omkareshwar Mandir Ka Itihas: आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी होंगी यहाँ, भगवान शिव का सबसे पवित्र धाम ओंकारेश्वर, नर्मदा के तट पर है स्थित

Omkareshwar Mandir Ka Itihas: नर्मदा नदी के तट पर बसा ओंकारेश्वर मंदिर अपनी आध्यात्मिकता प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक महत्व के लिए मशहूर है।

Akshita Pidiha
Published on: 15 July 2025 9:00 AM IST (Updated on: 15 July 2025 9:00 AM IST)
Omkareshwar Temple History and Mystery
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Omkareshwar Temple History and Mystery 

Omkareshwar Mandir Ka Itihas: मध्य प्रदेश का ओंकारेश्वर मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे भगवान शिव के सबसे पवित्र स्थानों में गिना जाता है। नर्मदा नदी के तट पर बसा यह मंदिर अपनी आध्यात्मिकता प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक महत्व के लिए मशहूर है। यह मंदिर मंदहाता द्वीप पर स्थित है जो नर्मदा नदी के बीच एक ओंकार (ॐ) आकार का टापू है। सावन का महीना और खासकर सावन के सोमवार इस मंदिर में भक्ति का अनूठा रंग लेकर आते हैं। यहाँ की शाही सवारी और सावन सोमवार से जुड़ी चमत्कारी कहानियाँ भक्तों के दिलों में गहरी छाप छोड़ती हैं।

ओंकारेश्वर मंदिर का इतिहास

ओंकारेश्वर मंदिर का उल्लेख शिव पुराण स्कंद पुराण और अन्य प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। इसका नाम ओंकार यानी ॐ के पवित्र अक्षर से लिया गया है जो भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। किंवदंती के अनुसार इस मंदिर का शिवलिंग स्वयंभू है यानी यह स्वयं प्रकट हुआ था। एक प्राचीन कथा के अनुसार मंदहाता नाम के एक राजा ने यहाँ कठोर तपस्या की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास करने का वरदान दिया। तभी से यह स्थान ओंकारेश्वर के नाम से जाना जाता है।


एक अन्य कथा के अनुसार विंध्य पर्वत ने भगवान शिव की तपस्या की और उनसे इस स्थान पर हमेशा के लिए रहने की प्रार्थना की। शिव ने उनकी इच्छा पूरी की और इस द्वीप को ॐ की आकृति दी। यह मंदिर नर्मदा और कावेरी नदियों के संगम पर बसा है जो इसे और भी पवित्र बनाता है। मंदिर का इतिहास 7वीं शताब्दी से माना जाता है जब परमार वंश के राजाओं ने इसका निर्माण और जीर्णोद्धार करवाया। मराठा शासकों विशेषकर अहिल्याबाई होल्कर ने 18वीं शताब्दी में मंदिर को और भव्य बनाया।

ओंकारेश्वर का एक और महत्वपूर्ण पहलू इसका ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग से संबंध है। कुछ विद्वानों का मानना है कि ओंकारेश्वर और ममलेश्वर एक ही ज्योतिर्लिंग के दो हिस्से हैं। ममलेश्वर मंदिर नर्मदा के दक्षिणी तट पर है जबकि ओंकारेश्वर उत्तरी तट पर। दोनों मंदिरों की पूजा एक साथ की जाती है और भक्त नर्मदा पार करके दोनों के दर्शन करते हैं।

मंदिर की वास्तुकला

ओंकारेश्वर मंदिर मंदहाता द्वीप पर एक पहाड़ी की चोटी पर बसा है। इसकी वास्तुकला नागर शैली को दर्शाती है जिसमें ऊँचा शिखर और जटिल नक्काशीदार खंभे शामिल हैं। मंदिर का गर्भगृह छोटा और पवित्र है जहाँ स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। यह शिवलिंग काले पत्थर से बना है और इसकी सतह पर प्राकृतिक रूप से ॐ की आकृति दिखाई देती है। गर्भगृह के ऊपर चाँदी का जलाधारी है जो शिवलिंग को और आकर्षक बनाता है।


मंदिर का शिखर 60 फीट ऊँचा है और इसकी नक्काशी में शिव-पार्वती गणेश और अन्य पौराणिक चित्र उकेरे गए हैं। मंदिर के चारों ओर खुला प्रांगण है जो नर्मदा नदी के शानदार दृश्य को सामने लाता है। मंदिर तक पहुँचने के लिए 270 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं जो भक्तों के लिए एक तपस्या का प्रतीक है। नर्मदा के दक्षिणी तट पर ममलेश्वर मंदिर भी है जो छोटा लेकिन उतना ही पवित्र है। मंदिर परिसर में अन्य छोटे मंदिर जैसे अन्नपूर्णा मंदिर और गौरी सोमनाथ मंदिर भी हैं।

नर्मदा नदी का संगम और मंदहाता द्वीप की ॐ आकृति इस मंदिर को अनूठा बनाती है। मंदिर के आसपास की हरियाली और नदी का शांत प्रवाह इसे एक आध्यात्मिक और प्राकृतिक आकर्षण का केंद्र बनाते हैं। सावन में जब नर्मदा उफान पर होती है तो यहाँ का दृश्य और भी मनोरम हो जाता है।

सावन सोमवार की विशेष कहानी

सावन का महीना ओंकारेश्वर मंदिर में भक्ति और उत्साह का समय होता है। हर सोमवार को यहाँ भक्तों की भीड़ उमड़ती है और नर्मदा के जल से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। सावन के सोमवार को यहाँ की शाही सवारी निकलती है जिसमें भगवान शिव की पालकी को नर्मदा तट तक ले जाया जाता है। लेकिन सावन 2024 में एक ऐसी घटना हुई जो भक्तों के बीच आज भी चर्चा का विषय है।

यह कहानी एक स्थानीय किसान की है जो कई सालों से सावन के पहले सोमवार को ओंकारेश्वर मंदिर में जल चढ़ाने आता था। उस साल उसका बेटा गंभीर बीमारी से जूझ रहा था और डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था। किसान ने नर्मदा तट पर बैठकर भगवान शिव से अपने बेटे की सलामती की प्रार्थना की। उसने कसम खाई कि वह सावन के पहले सोमवार को नर्मदा का जल लेकर मंदिर में चढ़ाएगा। आश्चर्यजनक रूप से उस दिन भारी बारिश के बावजूद वह मंदिर पहुँचा और जलाभिषेक किया। जब वह घर लौटा तो उसका बेटा धीरे-धीरे ठीक होने लगा। यह खबर गाँव में फैल गई और भक्तों ने इसे भगवान ओंकारेश्वर का चमत्कार माना।

एक अन्य कहानी मंदिर के पुजारी से जुड़ी है। सावन 2023 में एक सोमवार को अभिषेक के दौरान शिवलिंग पर एक विशेष चमक देखी गई। पुजारी ने बताया कि यह चमक कुछ पल तक रही और उस दौरान मंदिर में एक अजीब सी शांति छा गई। भक्तों ने इसे शिव की उपस्थिति का संकेत माना। ये कहानियाँ सावन सोमवार को यहाँ की आध्यात्मिकता को और गहरा करती हैं।

शाही सवारी और पूजा


ओंकारेश्वर मंदिर में सावन के सोमवार को शाही सवारी निकलती है जो मंदिर से शुरू होकर नर्मदा तट तक जाती है। इस सवारी में भगवान शिव की पालकी को फूलों से सजाया जाता है और भक्त हर हर महादेव के उद्घोष के साथ साथ चलते हैं। सवारी के दौरान स्थानीय लोग भजन और कीर्तन करते हैं। यह परंपरा मराठा काल से चली आ रही है और इसे भगवान शिव के राजा के रूप में सम्मान देने का प्रतीक माना जाता है।

मंदिर में रोजाना सुबह 4 बजे मंगल आरती होती है जिसमें शिवलिंग को दूध और जल से स्नान कराया जाता है। सावन में यह आरती और भी खास हो जाती है क्योंकि भक्त बेलपत्र धतूरा और फूल चढ़ाते हैं। रुद्राभिषेक और सहस्त्रनाम का पाठ भी यहाँ विशेष रूप से किया जाता है। मंदिर सुबह 5 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है और सावन में भक्तों की भीड़ को देखते हुए अतिरिक्त व्यवस्था की जाती है।

सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

ओंकारेश्वर मंदिर न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहाँ का नर्मदा तट तीर्थ स्नान के लिए प्रसिद्ध है। सावन और महाशिवरात्रि के दौरान यहाँ विशेष उत्सव होते हैं। सावन में काँवड़ यात्रा का आयोजन होता है जिसमें भक्त नर्मदा से जल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। महाशिवरात्रि पर यहाँ नौ दिनों तक शिव नवरात्रि मनाई जाती है जो देश में कहीं और नहीं होती।

मंदिर का महत्व वैज्ञानिक दृष्टि से भी है। यहाँ की भौगोलिक स्थिति और ॐ आकृति का टापू इसे एक अनूठा स्थान बनाता है। नर्मदा नदी को मोक्षदायिनी माना जाता है और यहाँ अस्थि विसर्जन और तर्पण की परंपरा भी है। मंदिर में हर साल लाखों रुपये का दान आता है जिसमें सोना-चाँदी और नकद शामिल होता है।

पर्यटन के दृष्टिकोण से


ओंकारेश्वर मंदिर पर्यटकों के लिए एक बड़ा आकर्षण है। यह इंदौर से 77 किलोमीटर और खंडवा रेलवे स्टेशन से 8 किलोमीटर दूर है। मंदिर तक सड़क और नाव दोनों से पहुँचा जा सकता है। नर्मदा पर बना निलेश्वर घाट और ममलेश्वर मंदिर तक नाव की सवारी एक अलग अनुभव देती है। सावन में यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य और भक्तिमय माहौल पर्यटकों को खींचता है।

आसपास के दर्शनीय स्थल जैसे सिद्धनाथ मंदिर गौरी सोमनाथ मंदिर और नर्मदा तट पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। मंदिर के पास धर्मशालाएँ और होटल उपलब्ध हैं। सावन और माघ महीना यहाँ घूमने का सबसे अच्छा समय है जब नर्मदा का प्रवाह और हरियाली अपने चरम पर होती है।

मंदिर का प्रबंधन और वर्तमान स्थिति

ओंकारेश्वर मंदिर का प्रबंधन मध्य प्रदेश सरकार और मंदिर समिति करती है। यहाँ ऑनलाइन दर्शन और पूजा की बुकिंग की सुविधा है। सावन में भक्तों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त पुलिस और सुरक्षा व्यवस्था की जाती है। 2023 में मंदिर परिसर में सीसीटीवी और डिजिटल स्क्रीन लगाए गए ताकि भक्तों को दर्शन में आसानी हो। मंदिर की साफ-सफाई और संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

ओंकारेश्वर मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में एक अनमोल रत्न है जो अपनी आध्यात्मिकता प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। सावन के सोमवार को यहाँ की शाही सवारी और चमत्कारी कहानियाँ जैसे किसान के बेटे की सलामती और शिवलिंग की चमक भक्तों की आस्था को और गहरा करती हैं। नर्मदा का संगम और ॐ आकृति का टापू इसे अनूठा बनाता है। अगर आप भगवान शिव की भक्ति और प्रकृति का आनंद लेना चाहते हैं तो सावन के सोमवार को ओंकारेश्वर मंदिर जरूर जाएँ। यहाँ का हर पल आपको भक्ति शांति और चमत्कार का अनुभव देगा।

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