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Srikalahasti Temple : श्रीकालहस्ती मंदिर को दक्षिण का काशी कहा जाता है, जानिए क्या है यहाँ की खासियत
Srikalahasti Temple: श्रीकालहस्ती एक सुप्रसिद्ध शिव मंदिर आंध्र प्रदेश राज्य में चित्तूर जिले में तिरुपति के पास स्वर्णमुखी नदी के तट पर स्थित है। आइये जानें यहाँ तक कैसे पहुंच सकते हैं और क्या है इस मंदिर की पौराणिक कथा।
Srikalahasti Temple (Image Credit-Social Media)
Kalhasti Shiv Mandir: भारत देश के आंध्र प्रदेश राज्य में चित्तूर जिले में तिरुपति के पास स्वर्णमुखी नदी के तट पर स्थित श्रीकालहस्ती एक सुप्रसिद्ध शिव मंदिर है। पल्लव काल के दौरान बनाया गया यह मंदिर अपने वास्तुकला, धार्मिक महत्व और दक्षिण के पंचतत्व लिंगों में वायु तत्व लिंग के लिए दुनिया भर में मशहूर है। इस मंदिर को 'दक्षिण कैलाश या काशी' भी कहा जाता है। यह मंदिर पांच तत्वों यानि पंच तत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश में से एक वायु के लिए प्रसिद्ध है। वहीं अन्य चार में चिदंबरम (अंतरिक्ष यानी आकाश), कांचीपुरम (पृथ्वी), तिरुवणिक्कवल (जल) और तिरुवन्नामलाई (अग्नि) के सूचक हैं। ऐसी मान्यता है कि इस श्रीकालहस्ती स्थान का नाम तीन जीवों - श्री यानि मकड़ी, काल यानि सर्प तथा हस्ती यानि हाथी के नाम पर पड़ा। इस मंदिर की सालाना आय करोड़ों में है।
दक्षिण भारतीय द्रविड़ शैली वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना वाले इस श्रीकालहस्ती मंदिर का निर्माण पल्लव काल में हुआ था। इस मंदिर को दक्षिण के लोग राहु-केतु मंदिर के नाम से भी जानते हैं। इस मंदिर में लोग राहु केतु ग्रह की शांति और पूजा के लिए आते हैं। वायु तत्व लिंग के कारण मंदिर पूजारी भी गर्भगृह के लिंग को स्पर्श नहीं कर सकते। इस शिवलिंग के पास स्वर्ण लगे हैं जिसपर फूल-माला चढ़ाई जाती है। इस मंदिर में लिंग की ऊंचाई लगभग चार फीट है और उस पर मकड़ी और हाथी की आकृति जैसा कुछ बना हुआ प्रतीत होता है। इस श्रीकालहस्ती का जिक्र स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण में भी किया गया है।
दक्षिण भारतीय शैली में बने हुए इस मंदिर के बाहर सफेद रंग का आवरण रखा गया है। इस मंदिर में तीन भव्य गोपुरम और सौ स्तंभों वाला मंडप है जिसकी कला अद्वितीय है। श्रीकालहस्ती मंदिर के अंदर कई शिवलिंग स्थापित हैं, इसके अलावा यहां भगवान कालहस्तीश्वर और देवी ज्ञानप्रसूनअंबा की भी मूर्तियां हैं जिसकी पूजा की जाती है।
पौराणिक कथा :
पौराणिक कथा अनुसार एक मकड़ी ने तपस्या करते हुए शिवलिंग पर जाल बनाया था और उसी लिंग से लिपटकर एक सांप ने भगवान शिव की आराधना की थी। उसी जगह उस शिवलिंग को प्रतिदिन एक हाथी अपनी सूंड में जल भरकर लाता था और भगवान को स्नान कराता था। इसलिए ये तीनों की मूर्तियां इस लिंग में समाहित हैं।
ऐसी भी मान्यता है कि महाभारत काल में इस स्थान पर अर्जुन ने भगवान कालहस्ती के दर्शन किए थे। एक और कहावत के अनुसार संसार के निर्माण के दौरान वायु देवता ने इस कर्पूर लिंगम को प्रसन्न करने के लिए हजारों वर्षों तक तपस्या की थी। वायु देवता की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें तीन वर दिए थे। पहला वर पूरी दुनिया में उपस्थित रहने का था, दुनिया के हर प्राणी के लिए आनिवार्य हिस्सा बनाया और कर्पूर वायु लिंग के रूप में पूजा जाए।
एक और कथा के अनुसार भगवान शिव ने देवी पार्वती को किसी कारणवश श्राप दिया था और उसके बाद भगवान शिव ने अपना दिव्य रूप त्याग कर मानव रूप ले लिया था। अपने को श्राप से मुक्त करने के लिए देवी पार्वती ने कई वर्षों तक श्रीकालहस्ती में तपस्या की जिससे भगवान शिव प्रसन्न होकर फिर से पार्वती को प्राप्त किया। यहां देवी पार्वती को प्रसूनम्बिका देवी के रूप में पूजा जाता है।
मंदिर की वास्तुकला :
5 वीं शताब्दी में पल्लव शासकों द्वारा द्रविड़ शैली में बना यह मंदिर वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। यह मंदिर परिसर एक पहाड़ी पर स्थित है और इसका प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा में है लेकिन मुख्य मंदिर पश्चिम दिशा की ओर है। मंदिर के भीतर शिवलिंग सफेद पत्थर का बना है और दिखने में हाथी के सूंड के आकार का है। इस मंदिर परिसर में विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय के शासनकाल के दौरान बनाया गया करीब 100 नक्काशीदार स्तंभ हैं और 120 फीट ऊंचा मुख्य गोपुरम है। इस मंदिर परिसर में एक खास आकर्षण 9 फीट ऊंची एक चट्टान से काट कर भगवान गणेश का मंदिर है। इसके अलावा यहां काशी विश्वनाथ, सूर्यनारायण, सुब्रमण्यम स्वामी, अन्नपूर्णा देवी मणिकर्णिका के भी मंदिर हैं। एक और शयदोगणपति मंदिर जिसमें गणपति, महालक्ष्मी गणपति, वल्लभ गणपति और सहस्र लिंगेश्वर की मूर्तियां सुशोभित हैं। इस मंदिर परिसर में सादोगी और जलकोटि नामक दो मंडप भी हैं। यहां चंद्र और सूर्य पुष्कर्णी नाम के दो जल निकाय भी देख सकते हैं।
इस मंदिर के पास एक झरना है जिसका प्रकृतिप्रेमी आनंद उठा सकते हैं। यहां के स्थानीय बाजार से पर्यटक पुरानी हस्तशिल्प और धातु की वस्तुएं खरीद सकते हैं। तिरुपति से लौटते समय इस मंदिर के दर्शन करना कोई नहीं भूलता।
कैसे पहुंचें ?
- हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा तिरुपति हवाई अड्डा है। यहां से मंदिर करीब 43 किमी की दूरी पर स्थित है।
- बस या टैक्सी के माध्यम से आप यहां पहुंच सकते हैं।
- रेल मार्ग से श्रीकालहस्ती पहुंचने के लिए निकटम स्टेशन श्रीकालहस्ती रेलवे स्टेशन है जो मंदिर परिसर से करीब 3 किमी की दूरी पर है।
- सड़क मार्ग से भी यहां बस या टैक्सी के जरिए पहुंच सकते हैं।
यहां घूमने के लिए वैसे तो अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी तक का रहता है। लेकिन जब भी आप तिरुपति जाने का कार्यक्रम बना रहे हों तो वहां से दर्शन कर लौटते समय श्रीकालहस्ती मंदिर घूमने जा सकते हैं। यहां मंदिर में दर्शन के लिए पारंपरिक परिधान पहनकर जाना सही है, महिलाएं साड़ी या सलवार सूट पहन सकती हैं वहीं दूसरी ओर पुरुष धोती और कुर्ता या शर्ट पहन सकते हैं।
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