Trishund Ganapati Temple: त्रिशुंड गणपति मंदिर का रहस्य, जहां मौजूद हैं तीन सूंडों वाले गणेश

Trishund Ganapati Temple: भगवान गणेश तीन सूंडों और छह भुजाओं के साथ मोर पर सवार हैं।

Jyotsna Singh
Published on: 2 Sept 2025 12:56 PM IST (Updated on: 2 Sept 2025 12:56 PM IST)
Trishund Ganapati Temple
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Trishund Ganapati Temple (Image Credit-Social Media)

Mystery of Trishund Ganapati Temple: भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरती पर कई ऐसे कई मंदिर हैं जिनकी भव्यता और रहस्य सदियों से लोगों के बीच रोमांच का विषय बनते आए हैं। ऐसा ही एक मंदिर पुणे के सोमवार पेठ में स्थित है। त्रिशुंड गणपति मंदिर नाम से मशहूर यह मंदिर लगभग ढाई सौ साल पुराना यह मंदिर देखने में जितना अद्वितीय है। इस मंदिर में मौजूद उतना ही इसकी प्रतिमा भी। यहां भगवान गणेश तीन सूंडों और छह भुजाओं के साथ मोर पर सवार हैं, जो सामान्य मूषक पर विराजमान गणेश प्रतिमाओं से बिल्कुल अलग दृश्य प्रस्तुत करती है।

त्रिशुंड गणपति की अनोखी है ये प्रतिमा


मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता इसकी मूर्ति है। काले बेसाल्ट पत्थर से बनी यह प्रतिमा कीमती रत्नों से सजाई गई है। यह अपने स्वरूप में अत्यंत दुर्लभ मानी जाती है है। तीन सूंडों वाले इस स्वरूप को 'त्रिशुंड' कहा गया, जिसका अर्थ है तीन सूंडों वाला गणपति। प्रतिमा में भगवान की छह भुजाएं हैं। प्रत्येक भुजा में वे अलग-अलग प्रतीकात्मक अस्त्र धारण किए हुए हैं। गणेश जी की यह आकृति त्रिकाल भूत, वर्तमान और भविष्य पर नियंत्रण का प्रतीक मानी जाती है।

सामान्य मूषक पर सवारी करने वाले गणेश जी यहां अपने भाई कार्तिकेय के वाहन मोर पर विराजमान हैं। मोर ज्ञान, पवित्रता और विजय का प्रतीक माना जाता है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि इस मंदिर में मौजूद त्रिशुंड गणेश जी का यह स्वरूप बताता है कि गणपति न केवल इंद्रियों पर विजय के देवता हैं बल्कि वे वासनाओं और अहंकार को भी अपने अधीन कर लेते हैं।

क्या है इस मंदिर का इतिहास

इस मंदिर का इतिहास भी उतना ही रोचक है जितनी इसकी प्रतिमा। इसका निर्माण सन् 1754 में आरंभ हुआ और 1770 में जाकर पूर्ण हुआ। इस पूरे कार्य में सोलह वर्ष लगे। मंदिर की स्थापना भीमगीरजी गोसावी ने की थी। जो गिरि गोसावी संप्रदाय के एक प्रसिद्ध तपस्वी थे। प्रारंभ में यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित माना जाता था। क्योंकि यहां मौजूद यज्ञ शालाओं की छत पर कई शिवलिंगों की उपस्थिति मिलती है। समय के साथ इसमें गणेश प्रतिमा स्थापित की गई और यह गणपति उपासना का प्रमुख स्थल बन गया।

18वीं शताब्दी में यह स्थान केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं था। यहां साधु-संत जी समाधि साधना करते थे। यह हठयोगियों के लिए अभ्यास का भी केंद्र माना जाता था। आज भी भीमगीर जी गोसावी की समाधि मंदिर के परिसर में मौजूद है। इस प्रकार यह स्थल धार्मिक, आध्यात्मिक और योग साधना का अद्वितीय संगम रहा है।

बेहद आकर्षक है स्थापत्य और नक्काशी की अद्भुत कला


त्रिशुंड गणपति मंदिर की वास्तुकला कई शैलियों का अद्भुत मिश्रण है। दक्कन बेसाल्ट पत्थर से निर्मित यह मंदिर आयताकार आकार में बना हुआ है। इसका स्वरूप प्राचीन गुफा मंदिरों की याद दिलाता है। इसके अग्रभाग और मंडप में राजस्थानी और मालवा शैली की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। जबकि खंभों और आंतरिक संरचना में दक्षिण भारतीय शिल्प का प्रभाव मिलता है। मराठा शैली की सादगी और व्यावहारिकता भी इसमें झलकती है।

मंदिर की दीवारों पर तराशकर उकेरी गई आकृतियों में गैंडे और हाथी, पौराणिक जीव-जंतु, द्वारपाल देवता और युद्ध जैसे आकर्षक दृश्य देखने को मिलते हैं। यहां विशेष रूप से ऐतिहासिक महत्व के रूप में 1757 के प्लासी युद्ध के बाद की झलक मिलती है। इसमें अंग्रेज सैनिक और जंजीरों में कैद एक गैंडा दर्शाया गया है, जो उस कालखंड की राजनीतिक घटनाओं का भी संकेत देता है।

शिलालेखों के माध्यम से मिलती है इतिहास और साहित्य की झलक

मंदिर के अंदर जाने पर न केवल मूर्ति का अद्भुत स्वरूप देखने को मिलता है। बल्कि शिलालेखों के माध्यम से इतिहास और साहित्य की झलक भी मिलती है। यहां संस्कृत, देवनागरी और फ़ारसी लिपियों में अभिलेख अंकित हैं। दीवारों पर भगवद्गीता के श्लोक खुदे हुए दिखाई देते हैं, जो भक्तों को जीवन का मार्गदर्शन देते हैं। यह मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं बल्कि ज्ञान और संस्कृति का केंद्र भी रहा है।

मंदिर से जुड़ी मान्यताएं और रहस्य

त्रिशुंड गणपति मंदिर से कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि तीन सूंड गणपति त्रिगुणात्मक शक्तियों सत्त्व, रज और तम पर नियंत्रण का प्रतीक हैं। यह भी माना जाता है कि गणेश जी का मोर पर सवार होना अहंकार और वासनाओं पर विजय का प्रतीक है।मंदिर में मौजूद शिवलिंग और गणेश प्रतिमा का संगम इस स्थान की अद्वितीयता को और गहरा कर देता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि यह स्थल योग और तांत्रिक साधना के प्रयोगों के लिए भी प्रयोग में लाया जाता था। इसलिए इस मंदिर का स्वरूप साधारण नहीं बल्कि रहस्यमय और गूढ़ है।

मंदिर का संरक्षण और वर्तमान स्वरूप


समय के साथ मंदिर की संरचना पर प्राकृतिक और मानवीय प्रभाव पड़े हैं। लेकिन पुणे नगर निगम ने इसके संरक्षण और पुनर्स्थापन पर विशेष ध्यान दिया। आज मंदिर न केवल पूजा का केंद्र है बल्कि इतिहास और कला प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का स्थल है। इसके पुनर्निर्माण और संरक्षण कार्य ने इसकी सुंदरता और ऐतिहासिक महत्त्व को बनाए रखा है। यहां आने वाले श्रद्धालु भगवान गणेश के दर्शन के साथ-साथ कला और स्थापत्य की विरासत को भी निहारते हैं।

कैसे पहुंचे

पुणे के सोमवार पेठ क्षेत्र में स्थित यह मंदिर कमला नेहरू अस्पताल के पास है। यहां पहुंचना सरल है। पुणे जंक्शन रेलवे स्टेशन से ऑटो रिक्शा या बस लेकर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है, हालांकि अंतिम दूरी पैदल चलकर तय करनी होती है। स्थानीय लोग अक्सर यहां नियमित दर्शन के लिए आते हैं और श्रद्धालुओं की भीड़ खासतौर पर गणेश चतुर्थी के समय उमड़ती है।

त्रिशुंड गणपति मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि इतिहास, कला और रहस्य का अनूठा संगम है।

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