अपोलो हॉस्पिटल्स के डॉक्टरों ने किया कमाल ! 9 साल की चोट के बाद 16 वर्षीय किशोर को मिली दर्द से मुक्ति, मिला नया जीवन..

Apollo Hospitals : अपोलो हॉस्पिटल्स ने चिकित्सा क्षेत्र में एक अहम मुकाम हासिल किया है। अस्पताल की विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम ने सिर्फ 16 वर्षीय किशोर की टोटल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम देकर उसे एक नया जीवन दिया है।

Virat Sharma
Published on: 4 Jun 2025 5:39 PM IST (Updated on: 4 Jun 2025 5:41 PM IST)
Lucknow News
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Apollo Hospitals Lucknow 

Lucknow Today News: लखनऊ के अपोलो हॉस्पिटल्स ने चिकित्सा क्षेत्र में एक अहम मुकाम हासिल किया है। अस्पताल की विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम ने सिर्फ 16 वर्षीय किशोर की टोटल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम देकर उसे एक नया जीवन दिया है। यह किशोर अपने क्षेत्र का सबसे कम उम्र का मरीज है, जिसकी इस तरह की जटिल सर्जरी की गई।

दरअसल, यह किशोर महज 9 वर्ष की उम्र में कूल्हे की हड्डी (फीमर) में फ्रैक्चर का शिकार हुआ था। दुर्भाग्यवश, आर्थिक कारणों के चलते उसका सही समय पर उपचार नहीं हो पाया, जिसके चलते हड्डी धीरे-धीरे गलने लगी और आखिरकार फीमर हेड पूरी तरह नष्ट हो गया। इसके चलते किशोर को न केवल लगातार असहनीय दर्द झेलना पड़ा, बल्कि उसका एक पैर छोटा हो गया और मांसपेशियों की सिकुड़न से वह सामान्य रूप से चल भी नहीं पा रहा था।

दर्द के चलते तत्काल सर्जरी करना अनिवार्य

डॉ. कुमार के मुताबिक ऑपरेशन से पहले किशोर के परिजनों को इस प्रक्रिया से जुड़ी सभी संभावनाओं और जोखिमों के बारे में पूरी जानकारी दी गई। बावजूद इसके, टीम ने चुनौती स्वीकार की और जटिल परिस्थिति में सर्जरी को सफलता के साथ अंजाम दिया। वहीं डायरेक्टर, ऑर्थोपेडिक्स एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट विभाग के कर्नल (डॉ.) नरेंद्र कुमार ने बताया कि जब यह किशोर अस्पताल पहुंचा, वह लंगड़ाकर चलता था और तीव्र दर्द से पीड़ित था। उसकी चाल की समस्या का असर दूसरे कूल्हे और रीढ़ की हड्डी पर भी पड़ रहा था। आमतौर पर हिप रिप्लेसमेंट का निर्णय अधिपक्व हड्डियों वाले बुजुर्गों में लिया जाता है, लेकिन मरीज की गंभीर शारीरिक स्थिति और लगातार हो रहे दर्द के चलते तत्काल सर्जरी करना अनिवार्य हो गया।

उन्नत तकनीक और अनुभवी टीम ने बनाई यह सर्जरी संभव

अपोलो हॉस्पिटल्स लखनऊ के एमडी और सीईओ डॉ. मयंक सोमानी ने बताया कि यह सफलता उनकी अत्याधुनिक चिकित्सा तकनीक और अनुभवी सर्जनों की टीम की देन है। इस विशेष केस में टाइटेनियम सॉकेट और स्टेम के साथ लेटेस्ट डेल्टा सिरैमिक बॉल इम्प्लांट का इस्तेमाल किया गया। यह इम्प्लांट अधिक टिकाऊ, लचीला और जटिल मामलों में अधिक प्रभावी होता है। उन्होंने बताया कि सर्जरी को करीब डेढ़ घंटे में पूरा किया गया, और मरीज को सिर्फ पांच दिनों में अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई। उल्लेखनीय है कि सर्जरी के कुछ ही हफ्तों में किशोर बिना किसी सहारे के चलने लगा, जो इस प्रक्रिया की सफलता को दर्शाता है।

कम उम्र में सर्जरी, लेकिन मिला दीर्घकालिक समाधान

डॉ. कुमार ने बताया कि मरीज की स्थिति को चिकित्सकीय भाषा में फीमर नेक फ्रैक्चर के कारण फीमर हेड का एब्सॉर्प्शन कहा जाता है, जो अत्यंत दुर्लभ है। इतनी कम उम्र में हिप रिप्लेसमेंट सामान्यतः नहीं किया जाता क्योंकि उस समय तक हड्डियों का विकास पूर्ण नहीं होता। साथ ही, इस अवस्था में हड्डी कमजोर, डिफॉर्म्ड होती है, और जोड़ के आसपास की मांसपेशियां व लिगामेंट भी सिकुड़ चुके होते हैं, जिससे सर्जरी और अधिक जटिल हो जाती है।

फिर भी आधुनिक चिकित्सा में अब ऐसे मामलों में हिप रिप्लेसमेंट को एक सशक्त उपाय माना जा रहा है, क्योंकि इससे मरीज को दोनों पैरों पर संतुलन के साथ खड़ा होने की क्षमता मिलती है, जिससे उसकी लंबाई, चाल और रीढ़ की संरचना में सुधार होता है।

यह सफलता न केवल मरीज और उसके परिवार के लिए जीवन बदलने वाला अनुभव है, बल्कि चिकित्सा क्षेत्र के लिए भी एक प्रेरक मिसाल है, जो दिखाती है कि तकनीक, विशेषज्ञता और समय पर लिए गए निर्णय कैसे एक युवा जीवन को अंधकार से आशा की ओर मोड़ सकते हैं।

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