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Lucknow City: सृजनात्मक पाक-कला का नगर बना नवाबों का शहर
लखनऊ को यूनेस्को ने Creative City of Gastronomy घोषित किया। नवाबी पाक-कला, कबाब, बिरयानी और अवधी स्वाद की विश्व पहचान — लखनऊ बना स्वाद की राजधानी।
Lucknow Gets UNESCO Creative City of Gastronomy Status:
Lucknow City: नवाबों का शहर लखनऊ अब विश्व मानचित्र पर एक नई पहचान के साथ उभरा है। यूनेस्को ने लखनऊ को ‘क्रिएटिव सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी’ — अर्थात सृजनात्मक पाक-कला का नगर — घोषित किया है। यह सम्मान लखनऊ की समृद्ध, विविध और सैकड़ों वर्षों पुरानी अवध की पाक परंपरा को सम्मानित करता है।
यूनेस्को ने यह घोषणा विश्व नगर दिवस (World Cities Day) पर की। इस सूची में अब लखनऊ का नाम विश्व के प्रसिद्ध खाद्य नगरों — चीन के चेंगडू, इटली के पार्मा और मैक्सिको के पुएब्ला — के साथ जुड़ गया है। भारत में यह सम्मान पाने वाला यह केवल दूसरा नगर है। इससे पहले हैदराबाद को यह प्रतिष्ठा मिली थी। यह मान्यता यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज नेटवर्क (UCCN) के अंतर्गत प्रदान की जाती है।
नवाबों के शहर की पाक विरासत
लखनऊ का भोजन अपने स्वाद, नफ़ासत और रचनात्मकता के लिए सदियों से प्रसिद्ध है। कबाब की लजीज़ महक से लेकर दम बिरयानी की सुगंध तक, हर पकवान में मुगलई, फ़ारसी और स्थानीय स्वादों का अद्भुत संगम झलकता है।
मांसाहारी व्यंजन तो यहाँ की पाक पहचान बन चुके हैं — जिनकी ख्याति देश ही नहीं, विदेशों तक फैली है। लखनऊ के कबाब और कोरमे की चर्चा जहाँ शाही खानदानों में होती थी, वहीं आज वही स्वाद चौक, अमीनाबाद, आलमबाग और हजरतगंज की गलियों में आम लोगों की थाली तक पहुँच चुका है।
संरक्षण और संवर्धन की दिशा में पहल
यूनेस्को के इस सम्मान के बाद नगर प्रशासन और पर्यटन विभाग ने कई योजनाएँ शुरू करने की घोषणा की है।
अब हर वर्ष लखनऊ फूड फेस्टिवल, हेरिटेज फूड वॉक और स्थानीय रसोइयों व विक्रेताओं के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इसके साथ ही पारंपरिक पाक ज्ञान, पुराने भोजनालयों, लुप्त होती रसोई तकनीकों और ऐतिहासिक व्यंजनों के दस्तावेजीकरण पर भी विशेष बल दिया जाएगा।
इस पहल का उद्देश्य न केवल लखनऊ के स्वाद को विश्व पटल पर लाना है, बल्कि उन पीढ़ियों को सम्मान देना भी है जिन्होंने अपने हाथों और हुनर से इस परंपरा को जीवित रखा।
अवधी रसोई की जड़ें
लखनऊ की पाक परंपरा, जिसे विश्व में अवधी व्यंजन के रूप में जाना जाता है, अवध के नवाबों के संरक्षण में फली-फूली।
18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान, जब मुगल साम्राज्य का पतन हो रहा था, कई कलाकार, शायर और शाही बावर्ची पूर्व की ओर लखनऊ आ बसे। उस समय नवाब आसफ़-उद-दौला के शासन में लखनऊ एक उभरता हुआ सांस्कृतिक केंद्र था।
नवाबों ने भोजन को केवल भोग नहीं, एक कला का रूप दिया। उनकी शाही रसोई प्रयोगशालाएँ बन गईं — जहाँ फ़ारसी, मुगलई और उत्तर भारतीय स्वाद मिलकर एक नई पाक पहचान रच रहे थे।
कबाब, कोरमा, निहारी, शीरमाल और बिरयानी जैसे व्यंजन इसी प्रयोगशील परंपरा के नतीजे हैं।
समय बीतने के साथ यह शाही रसोई शहर के हर कोने तक फैल गई।
लखनऊ की गलियों में चाट, कुलचा, खस्ता, कचौड़ी, समोसा, बिरयानी और मलाई मक्खन जैसे व्यंजन आम स्वाद बन गए। हर मोहल्ले ने अपनी अलग पाक पहचान बनाई — कहीं टुंडे के कबाब तो कहीं रहीम की निहारी, कहीं रत्ती लाल की चाट तो कहीं मखान लाल की खस्ता।
लखनऊ : स्वाद की राजधानी
यूनेस्को की यह मान्यता लखनऊ की सांस्कृतिक प्रतिष्ठा को और ऊँचाई देती है। यह शहर अब केवल तहज़ीब और अदब का प्रतीक नहीं, बल्कि दुनिया के नक्शे पर स्वाद की राजधानी के रूप में भी स्थापित हो गया है।
यह सम्मान उन हाथों को सलाम है जिन्होंने स्वाद को संस्कृति बनाया, और उन गलियों को सम्मान है जहाँ भोजन केवल पेट नहीं, बल्कि आत्मा को तृप्त करता है
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