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खुल गया राज! 11 सीनियर्स अफसरों के होते हुए भी राजीव कृष्ण कैसे बने DGP? जानिए कैसे हुआ ये कमाल

UP DGP Rajiv Krishna: 1 सीनियर IPS अफसरों को पीछे छोड़ राजीव कृष्ण कैसे बने UP के कार्यवाहक DGP? जानिए सीएम योगी के भरोसे, पेपर लीक कांड से लेकर पुलिस को मिली 'अभूतपूर्व' पावर तक की पूरी इनसाइड स्टोरी।

Harsh Srivastava
Published on: 4 Jun 2025 4:40 PM IST
UP DGP Rajiv Krishna
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UP DGP Rajiv Krishna

UP DGP Rajiv Krishna: जब उत्तर प्रदेश में सिपाही भर्ती का पर्चा लीक हुआ था, तो पूरा पुलिस महकमा सवालों के घेरे में था। युवाओं का आक्रोश सड़कों पर दिख रहा था और विपक्षी दल सत्ता को कोस रहे थे। ठीक ऐसे समय पर एक अफसर को आगे बढ़ाया गया नाम था राजीव कृष्ण। उस समय शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यही अफसर, कुछ ही महीनों में यूपी के कार्यवाहक डीजीपी की कुर्सी तक पहुंच जाएगा। लेकिन सियासत और प्रशासन का खेल अक्सर ऐसे ही मोड़ों से गुजरता है। 31 मई 2025 को प्रशांत कुमार के रिटायर होते ही योगी सरकार ने जिस तेज़ी से फैसला लिया, वह दर्शाता है कि राजीव कृष्ण के कंधों पर सरकार को पूरा भरोसा है लेकिन यह नियुक्ति सिर्फ एक प्रशासनिक बदलाव नहीं, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक संकेत भी है।

कानून व्यवस्था के नए सेनापति

राजीव कृष्ण ने पदभार ग्रहण करते ही जो बातें कहीं, वो किसी नौसिखिए अफसर की नहीं, बल्कि एक स्पष्ट रणनीति के तहत बोलने वाले अनुभवी प्रशासक की थीं। उन्होंने साफ कहा “अपराध और अपराधियों के खिलाफ अडिग रुख अपनाएंगे। संगठित अपराध के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई होगी। हमारा लक्ष्य है हर नागरिक को सुरक्षित माहौल देना।” इस बयान के पीछे छिपा संदेश साफ है अब कानून व्यवस्था को लेकर सरकार कोई समझौता नहीं करेगी, और न ही पुलिस में ढील सहन की जाएगी। खासकर जब प्रदेश में भीड़ हिंसा, सांप्रदायिक तनाव और गैंगवार की घटनाएं सुर्खियों में हों।

11 अफसरों को सुपरसीड कर बने 'खास'

राजीव कृष्ण का नाम अचानक नहीं उभरा। वे 1991 बैच के आईपीएस हैं, और कई महत्वपूर्ण जिलों में बतौर एसएसपी सेवाएं दे चुके हैं फिरोज़ाबाद, इटावा, मथुरा, गौतम बुद्ध नगर, लखनऊ और बरेली जैसे जिलों में उनका कार्यकाल रहा है। इसके अलावा STF और ATS जैसी स्पेशल यूनिट्स में भी वे काम कर चुके हैं पर दिलचस्प यह है कि इस नियुक्ति में उन्होंने 11 सीनियर अफसरों को पीछे छोड़ा जिनमें दलजीत सिंह चौधरी (BSF के DG), आदित्य मिश्रा, रेणुका मिश्रा, संदीप सालुंके, बीके मौर्य, तिलोत्तमा वर्मा जैसे नाम शामिल हैं। इसका मतलब साफ है यह नियुक्ति सिर्फ सीनियरिटी पर नहीं, भरोसे पर की गई है।

CM योगी की ‘भरोसे की जोड़ी’

राजीव कृष्ण को सीएम योगी आदित्यनाथ का करीबी माना जाता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण सिपाही भर्ती परीक्षा है। फरवरी 2024 में हुए पेपर लीक कांड ने यूपी सरकार को संकट में डाल दिया था। विरोधियों ने सरकार को घेर लिया था। तब योगी ने रेणुका मिश्रा को हटाकर राजीव कृष्ण को पुलिस भर्ती बोर्ड की जिम्मेदारी सौंपी। राजीव ने बेहद कम समय में पारदर्शी और शांतिपूर्ण ढंग से 60,233 पदों की भर्ती प्रक्रिया को पूरा कराया। यही काम उन्हें मुख्यमंत्री की "विश्वास सूची" में सबसे ऊपर ले गया।

राजनीति में गरमाया मामला

राजनीतिक गलियारों में इस नियुक्ति को लेकर हलचल है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक्स पर तंज कसा “दिल्ली-लखनऊ की लड़ाई में यूपी की जनता पिस रही है।” उन्होंने कार्यवाहक डीजीपी की निरंतरता पर भी सवाल उठाए। दरअसल, 2022 में मुकुल गोयल को हटाए जाने के बाद से यूपी को कोई स्थायी डीजीपी नहीं मिला है। प्रशांत कुमार, डीएस चौहान, आरके विश्वकर्मा और विजय कुमार सभी कार्यवाहक ही रहे। मायावती ने भी एक्स पर लिखा “यूपी में कानून का राज सही से नहीं चल रहा है। ऐसे माहौल में डीजीपी के सामने अपराध नियंत्रण और सर्वसमाज को सुरक्षा देना एक बड़ी चुनौती है।”

बयानों की बौछार और जवाब में सख़्ती

जब मीडिया ने गोमांस के शक में अलीगढ़ में हुई बर्बर पिटाई का मुद्दा उठाया, तो डीजीपी राजीव कृष्ण का जवाब साफ था “जो कानून हाथ में लेगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।” इससे यह भी संकेत मिला कि वे भीड़ के डर से कानून को तोड़ने वालों को बख्शने के मूड में नहीं हैं। राजनीतिक बयानों पर टिप्पणी करने से उन्होंने इनकार कर दिया, लेकिन यह जरूर कहा कि “कानून व्यवस्था को बिगाड़ने की किसी कोशिश को सहन नहीं किया जाएगा।

पारिवारिक पृष्ठभूमि भी खास

राजीव कृष्ण का परिवार प्रशासनिक सेवा से गहराई से जुड़ा है। उनकी पत्नी मीनाक्षी सिंह IRS अधिकारी हैं। साले राजेश्वर सिंह पहले ईडी में अफसर थे, अब सरोजिनी नगर से बीजेपी विधायक हैं। उनकी पत्नी लक्ष्मी सिंह नोएडा की पुलिस कमिश्नर हैं। ऐसे में राजीव कृष्ण न केवल व्यक्तिगत रूप से मजबूत पृष्ठभूमि से आते हैं, बल्कि उनका नेटवर्क भी प्रभावशाली है।

प्रशांत कुमार की विदाई, सम्मान या सवाल?

प्रशांत कुमार को सेवा विस्तार न मिलने से कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। उन्होंने एक्स पर भावुक संदेश लिखा “वर्दी अस्थायी है लेकिन ड्यूटी हमेशा के लिए है।” वहीं अखिलेश यादव ने उन पर तंज कसते हुए कहा “हर गलत को सही साबित करते रहे, आखिर में क्या मिला?” नवंबर 2024 में योगी सरकार ने डीजीपी चयन की नई गाइडलाइन को मंजूरी दी थी। इसके तहत छह सदस्यीय समिति का गठन होना था, जिसमें हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज से लेकर यूपीएससी के सदस्य तक शामिल होने थे। लेकिन इस समिति की प्रगति को लेकर अब भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन ने नई प्रक्रिया को “सरकार के अधीन और मनमानी” बताया था।

अब आगे क्या?

राजीव कृष्ण को कार्यवाहक डीजीपी तो बना दिया गया है, लेकिन क्या उन्हें स्थायी नियुक्ति भी मिलेगी? क्या वे उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था को स्थिर कर पाएंगे, या उनकी नियुक्ति भी अस्थायी बने रहने के लिए होगी? यह आने वाला वक्त बताएगा पर इतना तय है कि उनके कंधों पर अब न सिर्फ अपराध नियंत्रण की जिम्मेदारी है, बल्कि यह भी साबित करना है कि “सीएम का विश्वास” केवल एक पद की कुर्सी तक सीमित नहीं, बल्कि परिणामों में दिखना चाहिए। इस वर्दी की कीमत अब उनसे जवाब मांग रही है और पूरा प्रदेश देख रहा है कि क्या वे इस जिम्मेदारी का बोझ उठाने के काबिल साबित होंगे?

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Harsh Srivastava

News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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