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Saharanpur News: साजिद रशीदी के बयान पर क़ारी इसहाक़ गोरा का करारा जवाब, मस्जिद में महिला उपस्थिति को लेकर छिड़ा सियासी विवाद
Saharanpur News: एक तस्वीर में समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव और अन्य नेता संसद भवन के सामने स्थित मस्जिद में बैठक करते नजर आए, जिससे एक नई बहस छिड़ गई है।
Saharanpur News Sajid Rashidi Statement
Saharanpur News: एक तस्वीर, एक टिप्पणी और उसके बाद धार्मिक और राजनीतिक हलकों में उबाल। हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुई एक तस्वीर में समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव और अन्य नेता संसद भवन के सामने स्थित मस्जिद में बैठक करते नजर आए, जिससे एक नई बहस छिड़ गई है। चूंकि मस्जिद एक पाक और इबादत की जगह मानी जाती है, तस्वीर में महिला नेताओं की उपस्थिति पर मौलाना साजिद रशीदी ने आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी,
जिसने विवाद को और उग्र बना दिया।रशीदी के बयान में डिंपल यादव को लेकर जो भाषा इस्तेमाल की गई, उसे न केवल सामाजिक दृष्टिकोण से अमर्यादित बताया गया बल्कि इस्लामी अदब और शरीअत के खिलाफ भी माना गया। उनका यह बयान महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला और मस्जिद की पवित्रता पर सवाल खड़ा करने वाला था।
क़ारी इसहाक़ गोरा का दो टूक जवाब
इस विवाद पर सबसे संतुलित और सख्त प्रतिक्रिया आई देवबंद के प्रसिद्ध उलेमा मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा की ओर से। उन्होंने कहा, “जिस व्यक्ति के नाम के साथ मौलाना जुड़ा हो,
उससे ऐसी गैर-अख़लाक़ी भाषा की उम्मीद नहीं की जा सकती। यह न केवल महिलाओं की तौहीन है बल्कि इस्लाम की बुनियादी तालीमात के भी खिलाफ है।”क़ारी गोरा ने यह भी मांग की कि साजिद रशीदी को सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगनी चाहिए, क्योंकि उनका बयान मज़हबी तहज़ीब को नुक़सान पहुँचाता है और महिलाओं के खिलाफ दुर्भावना को बढ़ावा देता है।
मस्जिद और राजनीति: सीमाएं तय होनी चाहिए?
इस पूरे घटनाक्रम ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या किसी सार्वजनिक धार्मिक स्थल पर महिलाओं की उपस्थिति को लेकर सवाल उठाना जायज़ है? और अगर कोई महिला राजनेता किसी मस्जिद में चर्चा करती है, तो क्या उसके सम्मान को कुचला जाना चाहिए?सार्वजनिक और धार्मिक जीवन में मर्यादा की आवश्यकता हमेशा रही है।
ऐसे बयानों से न केवल सामाजिक सौहार्द को ठेस पहुँचती है, बल्कि धर्म की छवि भी धूमिल होती है।अब यह देखना होगा कि साजिद रशीदी अपने बयान पर माफ़ी मांगते हैं या अपनी ज़िद पर अड़े रहते हैं, लेकिन इस मुद्दे ने यह जरूर बता दिया कि इस्लामी समाज में महिलाएं भी सम्मान और भागीदारी की बराबर हकदार हैं।
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