Shravasti News: छठी मैया के जयघोषों से गुंजायमान रहा पौराणिक सीताद्वार झील

Shravasti News: श्रावस्ती में छठ पर्व की संध्या पर श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत संगम, सीताद्वार झील समेत घाटों पर गूंजे छठी मईया के जयघोष, उमड़ा आस्था का सैलाब।

Radheshyam Mishra
Published on: 27 Oct 2025 8:40 PM IST
Shravasti News: छठी मैया के जयघोषों से गुंजायमान रहा पौराणिक सीताद्वार झील
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Shravasti News: श्रावस्ती में सूर्योपासना के महापर्व छठ की संध्या पर सोमवार को लोक आस्था अपने चरम पर दिखाई दी। जब अस्ताचलगामी भगवान भास्कर बादलों की ओट में छिपे थे, तब भी व्रतधारी भक्तों के श्रद्धाभाव में तनिक भी विचलन नहीं आया। वे करबद्ध हाथों और विनयपूर्ण नेत्रों से अदृश्य सूर्यदेव को छठपूजा का पहला अर्घ्य निवेदित करते रहे।

भक्तों ने अपने अर्घ्य से यह सिद्ध किया कि सूर्य केवल आकाश में नहीं, विश्वास के अंतरिक्ष में भी उदित होता है। उस क्षण गंगा की तरंगें, व्रतियों की प्रार्थनाएँ और आकाश की निस्तब्धता, सब मिलकर एक अद्भुत सांध्य-संगीत रच रही थीं। जहां भक्ति, प्रकृति और प्रकाश एक ही भाव में समाहित हो गए थे।


ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो आस्था स्वयं प्रकृति के पार जाकर उसे पुकार रही हो। यह दृश्य उस अलौकिक संगम का साक्षी बना, जहां प्रकृति की परीक्षा के बीच मानव की भक्ति ने अपनी पूर्णता प्राप्त की। सूर्य की अनुपस्थिति में भी श्रद्धा का प्रकाश आलोकित रहा। गंगा तटों से लेकर पोखरों और सरोवरों तक भक्ति की लहरें उमड़ती रही।


इकौना थाना अन्तर्गत गांव टंडवा महंत स्थित सीताद्वार झील पर सैकड़ों व्रती महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सुसज्जित होकर जब बांस की सूप और टोकरी में पूजा सामग्री लिए जल में उतरीं, तो वातावरण छठी मईया के गीतों और जयघोषों से गूंज उठा। गोधूलि बेला में गंगा की लहरों पर बिखरी आस्था की अरुणिमा और श्रद्धालुओं के समर्पण का दृश्य इतना मोहक था कि मानो प्रकृति स्वयं इस लोकपर्व का हिस्सा बन गई हो। दौरान व्रतियों ने सूर्य समान तेजस्वी संतान और परिवार के मंगल की कामना के साथ परंपरा अनुसार पहला अर्घ्य अर्पित किया। सीताद्वार झील और हरिहरपुररानी विकास खंड के भखला गंगा घाट व भिनगा तहसील अन्तर्गत लक्ष्मण बैराज राप्ती नदी तट समेत जिले के तमाम सरोवर व पोखरे पर सुबह से ही श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा रहा। दोपहर होते-होते नगर की गलियों में ढोल-नगाड़ों की थाप पर गूंजते छठ गीतों के बीच व्रतियों के जत्थे घाटों की ओर बढ़ने लगे।


“कांच ही बांस के बहंगिया...” और “छठी मईया के ऊँची रे अररिया...” जैसे लोकगीतों की मधुर लहरें गंगा की धारा में घुलकर श्रद्धा का संगीत रच रही थीं। व्रती महिलाओं ने घाटों पर वेदियाँ बनाकर गन्ने, नारियल, केले, नींबू, ठेकुआ, चना और अन्य प्रसाद अर्पित कर छठी मईया की आराधना की।, महिलाएं समूह में भक्ति भाव से गीत गातीं और स्वजन श्रद्धापूर्वक सेवा में लगे रहे। देर रात तक नगर की गलियों में श्रद्धालुओं की भीड़ और वाहनों की कतारें थमने का नाम नहीं ले रही थीं।सुरक्षा और व्यवस्था के मद्देनजर पुलिस अधीक्षक राहुल भाटी, उपजिलाधिकारी , पुलिस क्षेत्राधिकारी , तहसीलदार तथा कोतवाल पुलिस बल और के साथ घाट पर डटे रहे।वहीं जगह जगह समाजसेवी भी छठ व्रतियों की व्यवस्था में लगे रहे। भक्तों ने अपने अर्घ्य से यह सिद्ध किया कि सूर्य केवल आकाश में नहीं, विश्वास के अंतरिक्ष में भी उदित होता है। उस क्षण गंगा की तरंगें, व्रतियों की प्रार्थनाएँ और आकाश की निस्तब्धता, सब मिलकर एक अद्भुत सांध्य-संगीत रच रही थीं। जहां भक्ति, प्रकृति और प्रकाश एक ही भाव में समाहित हो गए थे।


इस दौरान सीताद्वार मंदिर में भी दर्शनार्थी महिलाओं की भीड़ लगी रही। मंदिर के महंत पंडित संतोष दास तिवारी ने बताया कि अब मंदिर पर कार्तिक पूर्णिमा तक ऐसे ही श्रद्धालुओं की भीड़ दर्शन को लेकर लगे रहेंगे। पंडित संतोष दास तिवारी ने षठ पूजा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मान्यता के अनुसार, सूर्य पुत्र अंगराज कर्ण प्रतिदिन जल में खड़े होकर सूर्य की उपासना करते थे। कहा जाता है कि उनकी उपासना के बाद कोई भी याचक खाली हाथ नहीं लौटता था। इसी परंपरा के साथ कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को भगवान सूर्य की उपासना की जाती है। जगपति माता मंदिर की महंत कुमारी रिता गिरि बताती है कि पौराणिक कथा के अनुसार, जब पांडव कठिन समय से गुजर रहे थे, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखकर सूर्य देव से परिवार के कल्याण की प्रार्थना की थी। उनकी कृपा से पांडवों को शक्ति और समृद्धि प्राप्त हुई थी।

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