Sonbhadra News: तहसील प्रशासन के लिए मायने नहीं रखते सूचना अधिकार से जुड़े नियम-निर्देश, मांगी गई सूचना तो मिली ये सलाह

Sonbhadra News: लेखपाल जिन्हें अधिकारी नहीं कर्मी का दर्जा प्राप्त है, उनसे आवेदक को मिलने और अनुतोष प्राप्त करने की सलाह, आरटीआई एक्ट के किस नियम, किस अनुच्छेद और किस धारा के तहत दी गई, यह सूचना अधिकार के जानकार भी नहीं समझ पा रहे हैं।

Kaushlendra Pandey
Published on: 24 Aug 2025 8:40 PM IST
Right to Information Related Rules and Regulations not considered for Tehsil Administration
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तहसील प्रशासन के लिए मायने नहीं रखते सूचना अधिकार से जुड़े नियम-निर्देश (Photo- Newstrack)

Sonbhadra News: सोनभद्र । सूचना अधिकार अधिनियम 2005 जहां एक तरफ सरकारी कार्यों में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए, नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरण के पास मौजूद सभी प्रकार की सूचना (राष्ट्रीय सुरक्षा या व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित मामलों को छोड़कर) मांगने और प्राप्त कराने का अधिकार प्रदान करती है। वहीं, जिले के सदर तहसील प्रशासन के लिए, इस अधिनियम से जुड़े नियम-निर्देश कुछ खास मायने नहीं रखते। जमीनों की जानकारी से जुड़े एक मामले में तहसील प्रशासन की तरफ से, सूचना उपलब्ध कराने की बजाय, आवेदक को, संबंधित ग्राम पंचायतां के लेखपालों से जाकर मिलने और उनसे संपर्क स्थापित कर अनुतोष प्राप्त करने की सलाह देकर, प्रकरण का निस्तारण कर दिया गया है।



हैरत में डालने की बात यह है कि सूचना प्राप्त कराने की जिम्मेदारी संबंधित विभागाध्यक्ष/अधिकारी की है लेकिन लेखपाल जिन्हें अधिकारी नहीं कर्मी का दर्जा प्राप्त है, उनसे आवेदक को मिलने और अनुतोष प्राप्त करने की सलाह, आरटीआई एक्ट के किस नियम, किस अनुच्छेद और किस धारा के तहत दी गई, यह सूचना अधिकार के जानकार भी नहीं समझ पा रहे हैं।

जमीनों से जुड़ा है मसला, बचाव को खेला गया लेखपाल से मिलने की सलाह का दांव

दरअसल मसला अनुसूचित जनजाति की जमीनों की गलत तरीके से बिक्री से जुड़ा हुआ है। बताते हैं कि आवेदन ने वीआईपी सर्किल का दर्जा रखने वाले ग्राम पंचायतों-संबंधित एरिया में 20 वर्ष पूर्व अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के नाम दर्ज रही जमीन, उसकी वर्तमान स्थिति, अनुसूचित जाति-जनजाति की जमीन के विक्रय, अन्य पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग को विक्रय के लिए जिलाधिकारी की तरफ से दी गई अनुमति के बारे में जानकारी चाही गई थी। सूचना अधिकार के तहत उपलब्ध कराए गए आवेदन को जिलाधिकारी कार्यालय से, तहसील को संदर्भित किया गया था। इस पर तहसील प्रशासन की तरफ से जो जवाब आया, उसमें यह कहते हुए प्रकरण को निस्तारित कर दिया गया कि कृपया संबंधित क्षेत्रीय लेखपाल से संपर्क स्थापित कर अनुतोष प्राप्त करने का कष्ट करें।

लेखपालों की भूमिका पर ही सवाल और ...अब उन्हीं से मिलने की सलाह

सवाल उठता है कि आरटीआई के जवाब के लिए, तहसीलदार के नोडल अधिकारी के रूप में नामित किया गया है। इस अधिकार को लेखपाल को कब और किसके जरिए स्थानांतरित कर दी गई और आरटीआई एक्ट के किस धारा या अनुच्छेद में इस बात की व्यवस्था दी गई है कि लेखपाल से रिपोर्ट लेकर सूचना उपलब्ध कराने की बजाय, आवेदनकर्ता को लेखपाल से मिलकर अनुतोष यानी जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करने की सलाह देते हुए, मामले से पल्ला झाड़ लिया जाए। उल्लेखनीय है कि ऐसी जमीनों की बिक्री और धारा 80 और इससे पहले धारा 143 के जरिए अनुसूचित जनजाति की जमीनों को औने-पौने दामों पर हथियाने के खेले गए खेल में लेखपालों की भूमिका सीधे तौर पर सवालों के घेरे में हैं।

प्रतिबंधों को दरकिनार कर दी गई रिपोटों की हुई जांच तो होंगे बड़े खुलासे

क्योंकि किसी जमीन की बिक्री के बाद दाखिल खारिज के लिए लेखपाल की तरफ से यह रिपोर्ट दी जाती है कि संबधित जमीन के क्रेता-विक्रेता दोनों अनुसूचित या अनुसूचित जनजाति के नहीं हैं। अगर हैं तो इसके लिए अनुमति की समुचित प्रक्रिया अपनाई गई है। अगर ऐसा नहीं है तो बैनामा नियम विरूद्ध होने की रिपोर्ट दी जाती है लेकिन कई मामले ऐसे बताए जा रहे हैं जहां अनुसूचित जाति की जमीनों को या तो पिछड़ा वर्ग का दिखाकर दाखिल खारिज करवा दी गई या फिर धारा 80/143 के जरिए, प्रतिबंध से बचाव का रास्ता तैयार किया गया। फिलहाल तहसील प्रशासन की तरफ से लेखपाल से मिलने की सलाह देकर, सूचना अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी देने से इंकार कर दिया गया है। अब यह प्रकरण आगे क्या मोड़ लेता है? इस पर लोगों की निगाहें बनी हुई हैं।



राजस्वकर्मियों के तैनाती की सूचना देने से भी किया गया इंकार

इसी तरह, विभिन्न क्षेत्रों में तैनात राजस्वकर्मियों की तैनाती के बारे में भी सूचना अधिकार के जरिए जानकारी मांगी गई है। तहसील प्रशासन की तरफ से इसकी भी सूचना देने से इंकार कर दिया गया है। सवाल उठता है कि शासन की तरफ से किसी भी लेखपाल को एक क्षेत्र में अधिकतम तीन साल और दोबारा तैनाती के लिए कम से कम पांच साल का गैर अनिवार्य रूप से रखने के निर्देश है। प्रमुख सचिव स्तर से इसको लेकर अनुस्मारक भी जारी किए जा चुके हैं। सोनभद्र की स्थिति भी सवाल उठाए गए हैं। ऐसे में किसी क्षेत्र में किसी राजस्वकर्मी की तैनाती कितने समय तक रही? सूचना अधिकार के जरिए इसकी जानकारी देने में कौन सी तकनीकी अड़चन आ रही, इसको लेकर भी चर्चाएं बनी हुई हैं।

जानिए क्या है सूचना का अधिकार और सूचना देने का नियम

सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरण के पास मौजूद सभी प्रकार की सूचनाओं को मांगने का अधिकार प्राप्त है। इसमें रिकॉर्ड, दस्तावेज़, ईमेल, रिपोर्ट, सलाह, रिपोर्ट, प्रेस विज्ञप्ति, परिपत्र सहित अन्य सामग्री, जानकारियां शामिल हैं। इलेक्ट्रॉनिक डेटा को भी प्रिंट या अन्य प्रारूपों में भी प्राप्त कराए जाने का प्रधान है। यदि कोई सार्वजनिक प्राधिकरण के लिए किसी कानून के तहत, निजी निकाय की जानकारी देने का नियम है तो कोई भी नागरिक उससे जुड़ी जानकारी भी मांग सकता है।

इन सूचनाओं को प्रदान करने पर लगाया गया है प्रतिबंध

बताते चलें कि आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1) भारत की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा को प्रभावित करने वाली जानकारी, किसी भी आपराधिक या कानून के प्रवर्तन के संबंध में जांच या विचाराधीन मामलों से संबंधित जानकारी, व्यक्तिगत जीवन की निजता को प्रभावित करने वाली जानकारी, संसद या राज्य विधानमंडलों को गोपनीय रूप से प्रदान की गई जानकारी, जो उनके लिए गोपनीय है, को प्रदान करने से प्रतिबंधित करती है। वहीं ऐसी जानकारी जो किसी सार्वजनिक प्राधिकरण के पास है, वह अधिनियम के तहत अपवादों में नहीं आती। प्रत्येक नागरिक को उसे सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मांगने का हकदार है।

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