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सूखे की दस्तक! बूंद-बूंद के लिए तरसाएगा भगवान, मौसम पर वैज्ञानिकों की बड़ी चेतावनी
Uttar Pradesh Faces Possible Drought in 2025: उत्तर भारत सहित देश के कई हिस्सों में सूखे की आधिकारिक घोषणा हो सकती है।
Weather Alert: सावन के आगमन में महज कुछ ही दिन शेष हैं, लेकिन अब तक मानसून ने उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में दस्तक नहीं दी है। मानसून की देरी और बारिश की कमी ने आम लोगों के जनजीवन को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया है। उत्तर प्रदेश के कई जिले ऐसे हैं जहां अब तक सिर्फ एक-दो बार ही हल्की बारिश हुई है, जिससे भीषण गर्मी और लू का असर जारी है।
मानसून की सुस्ती से बढ़ा चिंता का माहौल
मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, इस वर्ष मानसून के आगमन में तय समय से 10 दिन तक की देरी संभव है। एक तरफ हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में भारी बारिश और भूस्खलन की समस्याएं सामने आ रही हैं, वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में बरसात की कमी से सूखे का खतरा मंडरा रहा है।
सावन से पहले सावन की बारिश नहीं
हर साल सावन से पहले झमाझम बारिश होती है, जो गर्मी से राहत देती है। लेकिन इस बार लोग जुलाई की भीषण गर्मी और चुभती धूप झेलने को मजबूर हैं। तापमान सामान्य से ऊपर बना हुआ है और वर्षा की कोई ठोस संभावना नजर नहीं आ रही है।
फसलें सूखे की चपेट में, किसानों की चिंता बढ़ी
देशभर में बारिश की कमी और बढ़ते तापमान ने कृषि क्षेत्र को गंभीर संकट में डाल दिया है। विशेषज्ञों के मुताबिक, यदि हालात जल्द नहीं सुधरे तो इसका सीधा असर देश की खाद्य सुरक्षा और किसानों की आजीविका पर पड़ेगा।
सबसे ज्यादा असर धान पर
धान की फसल, जो अधिक मात्रा में पानी की मांग करती है, सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। सिंचाई की कमी के चलते पौधों की बढ़वार रुक गई है और उत्पादन में भारी गिरावट की आशंका है। इससे न केवल किसानों की आय घटेगी, बल्कि चावल की कीमतों में भी उछाल आ सकता है।
गन्ना और अन्य फसलें भी झुलसीं
गन्ना, जो लंबी अवधि की फसल है, सूखे से झुलस रही है। खेतों में गन्ने के पौधे सूखने लगे हैं, जिससे चीनी की मात्रा भी घट रही है। मक्का और गेहूं जैसी प्रमुख फसलें भी सूखे की मार झेल रही हैं। मक्का के दाने नहीं बन पा रहे और गेहूं की उपज में भी भारी गिरावट दर्ज की जा रही है।
2024 में भारी बारिश और बाढ़, अब सूखे की बारी?
पिछले साल यानी 2024 में देशभर में सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई थी। भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, जून से सितंबर के बीच 934.8 मिमी बारिश हुई, जो औसतन 868.6 मिमी से अधिक थी। हालांकि, जून महीने में अल-नीनो के प्रभाव के कारण 11% कम बारिश दर्ज की गई थी। जुलाई से सितंबर के बीच कई राज्यों में अचानक बाढ़ और भारी वर्षा की घटनाएं भी देखने को मिली थीं।
बढ़ रही है मानसून की अनिश्चितता
मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि हाल के वर्षों में मानसून के व्यवहार में तेजी से बदलाव देखा गया है। कहीं अचानक बाढ़, तो कहीं सूखा, इस जलवायु असंतुलन का सबसे बड़ा प्रभाव किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है।
अगर अगले कुछ दिनों में मानसून सक्रिय नहीं हुआ तो उत्तर भारत सहित देश के कई हिस्सों में सूखे की आधिकारिक घोषणा हो सकती है। ऐसे में सरकारी राहत योजनाओं को तेज करने और जल प्रबंधन रणनीतियों को तत्काल लागू करने की आवश्यकता है।
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