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Asim Munir HIstory: ISI के साए से निकलकर पाकिस्तान की सबसे ताक़तवर कुर्सी तक का सफर, जानिए कौन हैं फील्ड मार्शल असीम मुनीर
Asim Munir HIstory: एक फौजी अफसर या पाकिस्तान की सियासत के सबसे रहस्यमयी खिलाड़ी? चलिए जानते हैं उस शख्स की पूरी कहानी, जो अब 'फील्ड मार्शल असीम मुनीर' के नाम से इतिहास में जाना जाएगा।
Asim Munir History
Asim Munir History: इस्लामाबाद से एक बड़ी खबर आई है जिसने पाकिस्तान की सियासत और फौज के गलियारों में हलचल मचा दी है। प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर को पाकिस्तान का नया 'फील्ड मार्शल' घोषित कर दिया है। यह वो ओहदा है जो पाकिस्तान की फौज में विरले ही किसी को नसीब होता है, और इसका मतलब सिर्फ एक पदोन्नति नहीं, बल्कि शक्ति के चरम पर बैठा एक चेहरा है, जिसकी हर बात अब इतिहास में दर्ज होगी। लेकिन आखिर ये असीम मुनीर हैं कौन? एक फौजी अफसर या पाकिस्तान की सियासत के सबसे रहस्यमयी खिलाड़ी? चलिए जानते हैं उस शख्स की पूरी कहानी, जो अब 'फील्ड मार्शल असीम मुनीर' के नाम से इतिहास में जाना जाएगा।
अंधेरे में चमकता सितारा: कौन हैं असीम मुनीर?
असीम मुनीर एक ऐसा नाम है जो वर्षों तक पर्दे के पीछे से पाकिस्तान की फौजी रणनीति का संचालन करता रहा, लेकिन अब वो नाम हर जुबां पर है। 2022 में जब उन्हें पाकिस्तान की थल सेना का प्रमुख (COAS) नियुक्त किया गया था, तब बहुत से लोगों के लिए वो एक अनजाना नाम थे। लेकिन फौज के गलियारों में, आईएसआई और मिलिट्री इंटेलिजेंस की दीवारों के भीतर, असीम मुनीर एक जाना-पहचाना और ताकतवर चेहरा रहे हैं।
शिक्षा और शुरुआती जीवन
असीम मुनीर का जन्म रावलपिंडी, पाकिस्तान में हुआ था। ये वही रावलपिंडी है जो पाकिस्तान की फौज का गढ़ माना जाता है। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूलों से प्राप्त की और फिर पाकिस्तान मिलिट्री अकैडमी (PMA), काकुल से जुड़ गए, जहां से उन्हें "स्वॉर्ड ऑफ़ ऑनर" से सम्मानित किया गया। उनकी प्रोफेशनल पढ़ाई में भी गहराई है—उन्होंने मदीना, सऊदी अरब के किंग अब्दुल्ला यूनिवर्सिटी से भी इस्लामिक स्टडीज में डिग्री हासिल की है और बाद में लंदन और जापान के सैन्य संस्थानों से भी ट्रेनिंग ली। उनका झुकाव इस्लामी मूल्यों और धार्मिक अनुशासन की ओर शुरू से रहा है, जो उनके नेतृत्व में अक्सर दिखता भी है।
फौज में करियर: MI से ISI तक का सफर
असीम मुनीर का फौजी करियर बेहद दिलचस्प और तेज़-तर्रार रहा है। उन्होंने पाकिस्तान की मिलिट्री इंटेलिजेंस (MI) के प्रमुख के रूप में काम किया, और फिर 2018 में पाकिस्तान की सबसे ताकतवर खुफिया एजेंसी ISI के डायरेक्टर जनरल बने। यही वो समय था जब उनकी और तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की राहें टकराईं। इमरान ख़ान को उनकी कड़क और ‘नो नॉनसेंस’ छवि रास नहीं आई। महज़ आठ महीने में ही उन्हें ISI चीफ के पद से हटा दिया गया। लेकिन यह घटना उनकी फौजी यात्रा को रोक नहीं सकी बल्कि इससे उनकी छवि एक मजबूत और ईमानदार अफसर के तौर पर उभरी।
कैसे बने आर्मी चीफ?
2022 के अंत में जब जनरल कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल खत्म हो रहा था, तब पाकिस्तान की राजनीति और फौज में खलबली मची थी। इमरान खान की पसंद कहीं और थी, लेकिन प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने राष्ट्रपति से सिफारिश कर असीम मुनीर को पाकिस्तान का नया आर्मी चीफ नियुक्त कर दिया। असीम मुनीर ऐसे पहले आर्मी चीफ बने जो पहले से क़ुरान हाफ़िज़ भी हैं, और उनकी नियुक्ति को फौज के भीतर अनुशासन और नैतिकता के प्रतीक के रूप में देखा गया।
प्रमुख काम: असीम मुनीर की रणनीतियां
1. आंतरिक सुधार: असीम मुनीर ने सेना के भीतर अनुशासन और पारदर्शिता लाने की दिशा में कई कदम उठाए। अफसरों की जवाबदेही, फंड्स के इस्तेमाल की निगरानी और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख उनकी प्राथमिकताओं में शामिल रहे हैं।
2. भारत नीति: असीम मुनीर के कार्यकाल में पाकिस्तान की भारत नीति में एक अजीब सा संतुलन रहा। एक ओर नियंत्रण रेखा पर तनाव को कम किया गया, वहीं दूसरी ओर कश्मीर पर पारंपरिक रुख को दोहराया गया।
3. आतंरिक आतंकवाद पर सख्ती: TTP और बलूच अलगाववादी गुटों के खिलाफ उन्होंने व्यापक ऑपरेशन्स चलाए। सेना को फिर से एक्शन मोड में लाने में उनकी रणनीति अहम रही।
4. राजनीति से दूरी की कोशिश: हालाँकि पाकिस्तान में सेना और राजनीति का रिश्ता पुराना है, असीम मुनीर ने बार-बार यह संदेश देने की कोशिश की कि सेना अब "न्यूट्रल" है। हालांकि आलोचकों का कहना है कि सेना अब भी परदे के पीछे से राजनीति को प्रभावित कर रही है।
परिवार और निजी जीवन
असीम मुनीर का परिवार धार्मिक और पारंपरिक पृष्ठभूमि से आता है। उनके परिवार के लोग सार्वजनिक मंचों से दूर रहते हैं। यह भी कहा जाता है कि उनका जीवन बेहद अनुशासित और सादा है। वे निजी जीवन में धार्मिक अनुष्ठानों और नमाज-रोज़े को पूरी ईमानदारी से निभाते हैं।
विवादों की परछाई
हालांकि असीम मुनीर का नाम बड़े घोटालों या जन-विरोधी नीतियों से नहीं जुड़ा है, लेकिन उनकी ISI से अचानक विदाई और इमरान ख़ान से टकराव को लेकर लगातार चर्चा होती रही है। 2023–24 के दौरान इमरान खान के खिलाफ हुई कार्रवाईयों को भी कई लोग उनकी "बैकिंग" के रूप में देखते हैं। हालांकि उन्होंने कभी भी खुलकर किसी राजनेता के खिलाफ बयान नहीं दिया।
फील्ड मार्शल की पदोन्नति: एक नया अध्याय
2025 में शहबाज़ शरीफ़ सरकार द्वारा उन्हें 'फील्ड मार्शल' की उपाधि देना कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह पद पाकिस्तान में अब तक सिर्फ एक ही व्यक्ति जनरल अयूब ख़ान को मिला था। इसका मतलब है कि असीम मुनीर अब सिर्फ आर्मी चीफ नहीं, बल्कि इतिहास रचने वाले 'फील्ड मार्शल' हैं। यह पद उन्हें ना केवल अधिक ताकत देगा, बल्कि भविष्य की सियासी दिशा को तय करने में उनकी भूमिका को और प्रबल बनाएगा। आलोचक इसे सेना की राजनीति में गहरी पैठ का संकेत मानते हैं, वहीं समर्थक इसे "ईमानदारी और देशभक्ति" की जीत बताते हैं।
क्या बदल जाएगा पाकिस्तान?
अब जब असीम मुनीर फील्ड मार्शल बन चुके हैं, तो सवाल उठता है कि क्या इससे पाकिस्तान में लोकतंत्र मजबूत होगा या सेना की पकड़ और मजबूत होगी? क्या वो पाकिस्तान को आर्थिक और आंतरिक संकटों से उबार पाएंगे? क्या उनके नेतृत्व में फौज वाकई न्यूट्रल होगी या फिर वही पुराना सत्ता का खेल जारी रहेगा? एक बात तय है असीम मुनीर अब पाकिस्तान की राजनीति और फौज की ऐसी शख्सियत बन चुके हैं, जिनसे हर कदम पर देश का भविष्य जुड़ा रहेगा। इतिहास उनके फैसलों को आंकने के लिए तैयार बैठा है।
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