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आखिर कैसे बदला ब्रिटेन का मन! 50 साल बाद चागोस द्वीप मॉरीशस को क्यों सौंपा, कैसे है भारत की भूमिका इतनी अहम
Britain Handover Chagos Islands: हिंद महासागर के बीच में बसे चागोस द्वीप पिछले 50 सालों से ब्रिटेन और मॉरीशस के बीच तकरार का कारण बने हुए हैं। लेकिन अब ब्रिटेन ने कुछ ऐसा फैसला लिया है जिसने सभी को हैरान कर दिया है।
Britain Handover the Chagos Islands (Image Credit-Social Media)
Britain Handover Chagos Islands: हिंद महासागर के बीच में बसे चागोस द्वीपों की कहानी सुनने में जितनी छोटी लगती है, उतनी ही मजेदार और पेचीदा है। ये छोटे-छोटे टापू, जो मालदीव के पास चमकते हैं, पिछले 50 साल से ब्रिटेन और मॉरीशस के बीच तकरार का कारण बने हुए थे। इसमें डिएगो गार्सिया जैसा बड़ा और खास द्वीप भी शामिल है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर इतने सालों बाद ब्रिटेन ने दिल इतना बड़ा कैसे कर लिया? और इस डील में भारत ने क्या कमाल किया? चलो, इस कहानी को आसानी से समझते हैं.
चागोस द्वीप हैं क्या बला?
चागोस द्वीप समूह हिंद महासागर में मालदीव से थोड़ा नीचे, करीब 500 किलोमीटर दूर, एक खूबसूरत जगह है। इसमें 60 से ज्यादा छोटे-छोटे टापू हैं, जिनमें डिएगो गार्सिया सबसे बड़ा और सबसे खास है। इन द्वीपों की कहानी 200 साल पुरानी है। पहले ये फ्रांस के पास थे, फिर 1814 में फ्रांस ने ब्रिटेन को सौंप दिए। उस वक्त चागोस को मॉरीशस के साथ जोड़ा गया था, जो ब्रिटेन का गुलाम देश था।
1968 में जब मॉरीशस को आजादी मिली, तो ब्रिटेन ने चालाकी दिखाई। उसने चागोस को मॉरीशस से अलग कर लिया और इसे "ब्रिटिश इंडियन ओशन टेरिटरी" (बीआईओटी) नाम दे दिया। फिर क्या, ब्रिटेन और अमेरिका ने डिएगो गार्सिया पर मिलकर एक बड़ा सैन्य अड्डा बना लिया, जो हिंद महासागर में उनकी ताकत का बड़ा ठिकाना बन गया। मॉरीशस तब से चिल्ला रहा था, “ये हमारे द्वीप हैं, वापस करो!” लेकिन ब्रिटेन टस से मस न हुआ—2024 तक!
ब्रिटेन ने अचानक द्वीप क्यों सौंप दिए?
ब्रिटेन ने 50 साल बाद चागोस को मॉरीशस को देने का फैसला लिया। लेकिन ऐसा हुआ क्यों? आइए, इसे समझें:
दुनिया का दबाव: मॉरीशस ने चागोस के लिए बरसों लड़ाई लड़ी। 2019 में अंतरराष्ट्रीय कोर्ट (ICJ) ने कहा, “ब्रिटेन का चागोस पर कब्जा गलत है। इसे मॉरीशस को सौंप देना सही है।” इसके बाद संयुक्त राष्ट्र (UN) ने भी ब्रिटेन को लताड़ लगाई। दुनिया के ढेर सारे देश मॉरीशस के साथ खड़े हो गए। ब्रिटेन को लगा, अब ज्यादा बेइज्जती नहीं झेली जाएगी।
पुराने गुनाह सुधारने की कोशिश: चागोस की कहानी में ब्रिटेन का एक बड़ा गलत काम था। 1960-70 में उसने चागोस के करीब 2000 लोगों को उनके घरों से जबरन निकाल दिया, ताकि डिएगो गार्सिया पर सैन्य अड्डा बन सके। इन लोगों को मॉरीशस और सेशेल्स में फेंक दिया गया। वो आज भी अपने घर लौटने की लड़ाई लड़ रहे हैं। ये उपनिवेशवाद का काला अध्याय था। ब्रिटेन ने अब इस गलती को ठीक करने की कोशिश की।
स्मार्ट डील: इस समझौते में ब्रिटेन ने मॉरीशस को चागोस का मालिकाना हक तो दे दिया, लेकिन डिएगो गार्सिया का सैन्य अड्डा अगले 99 साल तक ब्रिटेन और अमेरिका के पास रहेगा। बदले में ब्रिटेन मॉरीशस को हर साल करीब 13 करोड़ डॉलर देगा। मतलब, ब्रिटेन ने अपना ठिकाना भी बचाया और मॉरीशस को भी खुश कर दिया।
चीन का डर: हिंद महासागर में चीन की ताकत बढ़ रही है। मॉरीशस और चीन के रिश्ते भी गहरे हो रहे हैं। ब्रिटेन को लगा कि अगर मॉरीशस को नाराज रखा, तो वो और चीन के करीब चला जाएगा। इस समझौते से ब्रिटेन ने मॉरीशस को अपने पाले में रखने की कोशिश की।
भारत ने क्या जादू किया?
इस डील में भारत का रोल ऐसा था, जैसे कोई दोस्त पर्दे के पीछे से दोनों झगड़ने वालों को मनाता हो। मॉरीशस के बड़े-बड़े नेता, जैसे नवीन रामगुलाम और प्रविंद जुगनाथ, भारत और पीएम नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दे रहे हैं। भारत ने कैसे मदद की, चलो देखते हैं:
मॉरीशस का साथ: भारत हमेशा से मॉरीशस के साथ खड़ा रहा। भारत को पता है कि उपनिवेशवाद ने कितना नुकसान किया। 2019 में UN में भारत ने मॉरीशस के हक में वोट और 116 देशों के साथ ब्रिटेन को ललकारा। यह भारत की सॉलिड दोस्ती थी।
चुपके-चुपके दबाव: भारत ने ब्रिटेन और मॉरीशस को बातचीत के लिए तैयार किया। हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मॉरीशस के नेताओं से कई बार गपशप की।
बीच का रास्ता: भारत ने मॉरीशस और ब्रिटेन के बीच दोस्त की तरह काम किया। उसने सुनिश्चित किया कि डील ऐसी हो, जिसमें सबका फायदा हो। मॉरीशस को हक मिला, और ब्रिटेन-अमेरिका का सैन्य अड्डा भी सेफ रहा।
मॉरीशस से पक्की दोस्ती: भारत और मॉरीशस की दोस्ती गहरी है। मॉरीशस में ज्यादातर लोग भारतीय मूल के हैं। भारत ने मॉरीशस को नावें, हथियार और टेक्नोलॉजी दी, जिससे उनका भरोसा और बढ़ा। इस भरोसे ने भारत को इस डील में बड़ा रोल निभाने का मौका दिया।
हिंद महासागर की चाल: चागोस भारत से 1700 किलोमीटर दूर है। हिंद महासागर भारत की सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी है। भारत ने इस डील से मॉरीशस के साथ अपनी दोस्ती को और पक्का किया, ताकि इस इलाके में शांति और ताकत बनी रहे।
इस डील में क्या-क्या हुआ?
- चागोस अब मॉरीशस का है, लेकिन डिएगो गार्सिया का सैन्य अड्डा 99 साल तक ब्रिटेन-अमेरिका के पास रहेगा।
- मॉरीशस डिएगो गार्सिया को छोड़कर बाकी द्वीपों पर चागोस के लोगों को फिर से बसा सकता है।
- ब्रिटेन ने चागोस के लोगों के लिए एक फंड बनाया, ताकि उनकी मदद हो।
- चागोस के कुछ लोग इस डील से नाराज हैं, क्योंकि उनकी बात नहीं सुनी गई। दो चागोस महिलाओं ने ब्रिटेन की कोर्ट में केस भी किया, लेकिन कोर्ट ने डील को हरी झंडी दे दी।
ये डील इतनी खास क्यों?
चागोस का झगड़ा सिर्फ दो देशों का मसला नहीं था। यह उस जमाने की याद दिलाता था, जब ब्रिटेन ने लोगों को उनके घरों से निकाल दिया। इस डील ने मॉरीशस को उसका हक दिलाया और चागोस के लोगों को उम्मीद दी कि वो अपने टापू वापस जा सकते हैं। भारत ने बिना ढोल-नगाड़े के इस डील को अंजाम तक पहुंचाया। यह भारत की स्मार्ट कूटनीति का कमाल था।
चागोस की कहानी भी त्रासदी से भरी थी, लेकिन अब इसमें एक नया रंग जुड़ा है। भारत ने मॉरीशस का साथ देकर दिखाया कि दोस्ती और समझदारी से बड़े-बड़े मसले हल हो सकते हैं। अगली बार जब हिंद महासागर का जिक्र हो, तो चागोस की इस कहानी को याद करना। यह एक ऐसी डील है, जिसमें इतिहास बदल गया और भारत ने अपनी कूटनीति का झंडा गाड़ दिया!
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