TRENDING TAGS :
काँप उठेगा पाकिस्तान: भारत की थल सेना के आगे कुछ भी नहीं, आइए जाने दोनों की ताकत
India VS Pakistan Army: भारत और पाकिस्तान की थल सेनाएं अपने-अपने देशों की सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा के लिए कटिबद्ध हैं।
India VS Pakistan Army Power
India VS Pakistan Army Power: भारत और पाकिस्तान(India & Pakistan) - दो ऐसे पड़ोसी देश जिनका जन्म 1947 के विभाजन के साथ हुआ, लेकिन उनके बीच की कड़वाहट समय के साथ और भी गहरी होती चली गई। विभाजन के बाद से लेकर आज तक, ये दोनों राष्ट्र तीन पूर्ण युद्धों, एक कारगिल संघर्ष और नियंत्रण रेखा (LoC) पर लगातार होने वाली झड़पों के साक्षी रहे हैं। इन संघर्षों का सबसे बड़ा भार दोनों देशों की थल सेनाओं पर पड़ा है, जो न केवल सीमाओं की रक्षा करती हैं, बल्कि राष्ट्रीय गौरव और सुरक्षा की पहली पंक्ति भी हैं। ऐसे में यह जानना न केवल सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि आम नागरिक की जिज्ञासा के लिहाज से भी जरूरी है कि भारत और पाकिस्तान की थल सेनाओं(Army) में कौन-सी सेना कितनी सक्षम है, किन पहलुओं में एक दूसरे से बेहतर है, और किसका दबदबा अधिक है।
सेना की जनसंख्या और आकार
2025 की नवीनतम रिपोर्टों और ग्लोबल फायरपावर इंडेक्स के अनुसार भारत और पाकिस्तान की थल सेनाओं की तुलना में स्पष्ट रूप से भारत को सैन्य रूप से अधिक सशक्त पाया गया है। भारत के पास वर्तमान में लगभग 14.4 से 14.6 लाख सक्रिय सैनिक और करीब 11.5 लाख रिजर्व सैनिक हैं, जो इसे सक्रिय सैनिकों की संख्या के आधार पर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी स्थायी सेना बनाते हैं। हालांकि कुल सैन्य शक्ति में भारत का स्थान चौथा है। दूसरी ओर, पाकिस्तान के पास लगभग 6.4 से 6.54 लाख सक्रिय सैनिक और लगभग 5.5 लाख रिजर्व सैनिक हैं। ग्लोबल रैंकिंग में पाकिस्तान की सेना 12वें स्थान पर है। भारत न केवल सैनिकों की संख्या में, बल्कि सैन्य संसाधनों, तकनीकी क्षमता और रणनीतिक प्रभाव में भी पाकिस्तान से कहीं आगे है। हालांकि पाकिस्तान की जनसंख्या अपेक्षाकृत कम होने के बावजूद उसमें प्रति व्यक्ति सैन्य भागीदारी अधिक पाई जाती है, फिर भी समग्र सैन्य ताकत के मामले में भारत की स्थिति कहीं अधिक मज़बूत और प्रभावशाली है।
सैन्य ढांचा और संगठन
भारतीय और पाकिस्तानी थल सेनाओं की संरचना और संगठनात्मक दृष्टिकोण में स्पष्ट अंतर देखा जा सकता है। भारतीय थल सेना सात प्रमुख कमांड्स में विभाजित है, जिनमें से छह ऑपरेशनल कमांड्स (उत्तरी, दक्षिणी, पूर्वी, पश्चिमी, मध्य और दक्षिण-पश्चिमी) हैं, जबकि एक ट्रेनिंग कमांड सैनिकों के प्रशिक्षण और युद्ध तैयारी की जिम्मेदारी संभालती है। यह संरचना न केवल रणनीतिक दृष्टिकोण से मजबूत है, बल्कि क्षेत्रीय चुनौतियों का सामना करने में भी सहायक है। भारतीय सेना में पैदल सेना, तोपखाना, बख्तरबंद रेजीमेंट, इंजीनियरिंग कोर और सिग्नल कोर जैसी विशिष्ट शाखाएं शामिल हैं, जो सेना को हर प्रकार के युद्ध परिदृश्य के लिए तैयार करती हैं।
इसके विपरीत, पाकिस्तान की थल सेना छह प्रमुख कोर या क्षेत्रीय कमांड्स (रावलपिंडी, लाहौर, कराची, क्वेटा, पेशावर और मंगला) में संगठित है। हालांकि इनका ढांचा भारतीय सेना जितना व्यापक और विविध नहीं है, फिर भी ये कमांड्स पाकिस्तान की सुरक्षा जरूरतों के अनुरूप कार्य करती हैं। पाकिस्तान की सेना का मुख्य फोकस भारत के साथ संभावित संघर्ष की तैयारी और देश के भीतर आंतरिक सुरक्षा, विशेष रूप से आतंकवाद और बलूचिस्तान जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में शांति बनाए रखने पर रहता है। इस प्रकार, दोनों सेनाओं की कमांड संरचना उनके सामरिक उद्देश्यों और भू-राजनीतिक परिस्थितियों के अनुरूप विकसित हुई है।
हथियार और तकनीक
2025 के ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारतीय थल सेना अपनी युद्धक क्षमताओं और तकनीकी विकास में पाकिस्तान की तुलना में कहीं अधिक उन्नत और आत्मनिर्भर है। भारत के पास लगभग 4,200 टैंक हैं, जिनमें देश में निर्मित अर्जुन, रूस से आयातित और भारत में उन्नत T-90 भीष्म, तथा व्यापक रूप से प्रयुक्त T-72 टैंक शामिल हैं। वहीं, पाकिस्तान के पास लगभग 2,600–2,700 टैंक हैं, जिनमें चीन के सहयोग से बने VT-4 और अल-खालिद टैंक प्रमुख हैं। भारत की तोपखाना शक्ति में बोफोर्स, K9 वज्र, होवित्जर, और देश में विकसित पिनाका मल्टीपल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम जैसे आधुनिक हथियार शामिल हैं, जो उसकी मारक क्षमता को अत्याधुनिक बनाते हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तान के पास भी तोपखाना शक्ति मौजूद है, लेकिन उसकी अधिकांश प्रणाली अपेक्षाकृत पुरानी है, हालांकि चीन से हथियार और तकनीक लेकर उसमें आंशिक आधुनिकीकरण हुआ है।
इन्फैंट्री या पैदल सेना के मोर्चे पर भारत अपनी सेना को आधुनिक असॉल्ट राइफल्स, बुलेटप्रूफ जैकेट्स, ड्रोन तकनीक और नाइट विजन जैसी अत्याधुनिक सुविधाएं प्रदान कर रहा है। इसके विपरीत, पाकिस्तान भी अपने सैनिकों को आधुनिक हथियार देने का प्रयास करता है, लेकिन उसकी हथियार प्रणाली में आत्मनिर्भरता की कमी और चीन पर भारी निर्भरता देखी जाती है। निगरानी और साइबर क्षमताओं के मामले में भारत पाकिस्तान से बहुत आगे है, जिसमें ISRO द्वारा संचालित सैन्य सैटेलाइट्स और रक्षा अनुसंधान में निवेश की अहम भूमिका है। जबकि पाकिस्तान निगरानी और ड्रोन तकनीक के लिए मुख्यतः चीन और तुर्की पर निर्भर करता है, उसकी तकनीकी क्षमता भारत के समकक्ष नहीं मानी जाती। संक्षेप में, हथियार, तकनीक और आत्मनिर्भरता के सभी प्रमुख क्षेत्रों में भारत की थल सेना पाकिस्तान पर स्पष्ट बढ़त बनाए हुए है।
रक्षा बजट
भारत और पाकिस्तान के 2024–25 के रक्षा बजट की तुलना स्पष्ट रूप से दोनों देशों की आर्थिक स्थिति और सैन्य प्राथमिकताओं को दर्शाती है। भारत का रक्षा बजट वर्ष 2024–25 में ₹6.22 लाख करोड़ (₹6,21,941 करोड़) है, जो उसके कुल केंद्रीय बजट का लगभग 13% और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का करीब 1.9% है। इस बजट में थल सेना, वायु सेना, नौसेना, रक्षा अनुसंधान, पेंशन और अन्य संबंधित व्यय शामिल हैं, जिनमें से थल सेना को सबसे बड़ा हिस्सा आवंटित किया जाता है। हालांकि पहले इसे दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा रक्षा बजट कहा जाता था, लेकिन SIPRI और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के अनुसार, 2025 में भारत का रक्षा बजट दुनिया में पांचवें स्थान पर आता है; अमेरिका, चीन, रूस और सऊदी अरब/यूके इस सूची में भारत से ऊपर हैं।
दूसरी ओर, पाकिस्तान का रक्षा बजट 2024–25 में लगभग 2.12 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपये है, जो उसकी GDP का लगभग 1.7% है। भारत की तुलना में पाकिस्तान का रक्षा बजट लगभग नौ गुना कम है। यह अंतर न केवल आर्थिक संसाधनों की उपलब्धता को दर्शाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि पाकिस्तान की सैन्य तैयारी आर्थिक संकटों और संसाधनों की सीमाओं से बाधित रहती है। यद्यपि पाकिस्तान अपनी रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने की कोशिश करता है, लेकिन सीमित बजट और बढ़ती आंतरिक समस्याओं के कारण उसकी क्षमता भारत के मुकाबले बहुत पीछे है। कुल मिलाकर, बजट के मोर्चे पर भी भारत स्पष्ट रूप से पाकिस्तान से कहीं अधिक सशक्त और संगठित स्थिति में है।
आत्मनिर्भरता और उत्पादन क्षमता
भारत और पाकिस्तान के रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रयासों की तुलना से दोनों देशों की रणनीतिक क्षमता और दृष्टिकोण का स्पष्ट अंतर सामने आता है। भारत ने ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहलों के तहत रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण को प्राथमिकता दी है। वर्ष 2025 तक भारत का रक्षा उत्पादन ₹1.60 लाख करोड़ से अधिक हो गया है, और इसे 2029 तक ₹3 लाख करोड़ तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है। रक्षा खरीद बजट का 75% हिस्सा अब घरेलू कंपनियों के लिए आरक्षित कर दिया गया है, जिससे देश के भीतर हथियार और रक्षा उपकरणों का निर्माण तेजी से बढ़ रहा है। HAL, DRDO, BEL और BDL जैसी प्रमुख संस्थाएं भारत में स्वदेशी रक्षा तकनीक के विकास में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। 2025 तक भारत में 509 सैन्य वस्तुएं और 5,012 अन्य रक्षा उत्पाद स्वदेशी रूप से विकसित किए जा चुके हैं। इसके अलावा, भारत का रक्षा निर्यात भी लगातार बढ़ रहा है और वर्ष 2024–25 में ₹23,622 करोड़ के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया है।
इसके विपरीत, पाकिस्तान अभी भी अपने रक्षा क्षेत्र में चीन, अमेरिका और तुर्की जैसे देशों पर अत्यधिक निर्भर है। उसके रक्षा उपकरणों और हथियारों का अधिकांश हिस्सा आयात पर आधारित है। पाकिस्तान में Heavy Industries Taxila (HIT) और Pakistan Ordnance Factories (POF) जैसे संस्थान रक्षा उत्पादन में कार्यरत हैं, लेकिन उनकी उत्पादन क्षमता सीमित है और तकनीकी आत्मनिर्भरता भारत की तुलना में काफी कम है। पाकिस्तान अब भी उन्नत मिसाइल, निगरानी प्रणालियों और ड्रोन तकनीक के लिए बाहरी सहायता पर निर्भर है, जिससे उसकी रणनीतिक स्वतंत्रता सीमित रहती है। कुल मिलाकर, भारत आत्मनिर्भरता और रक्षा निर्यात दोनों मोर्चों पर पाकिस्तान से कहीं अधिक आगे है।
परमाणु शक्ति और सामरिक क्षमता
भारत और पाकिस्तान की परमाणु नीति में महत्वपूर्ण अंतर हैं, जो दोनों देशों के सुरक्षा दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। भारत ने 1999 से "No First Use" (NFU) नीति अपनाई है, जिसका मतलब है कि भारत कभी भी किसी अन्य देश पर पहले परमाणु हमला नहीं करेगा। भारत के अनुसार, यदि उसे परमाणु हमला झेलना पड़े, तो वह उस पर भारी और निर्णायक जवाब देने का अधिकार सुरक्षित रखता है। यह नीति भारत की आक्रामकता से परहेज़ करते हुए आत्मरक्षा पर केंद्रित है, और भारत ने इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई बार दोहराया है।
वहीं, पाकिस्तान ने "No First Use" नीति को कभी स्वीकार नहीं किया है। उसकी परमाणु नीति अधिक लचीली और आक्रामक मानी जाती है, क्योंकि पाकिस्तान ने हमेशा अपनी सुरक्षा के लिए जरूरत पड़ने पर पहले परमाणु हमले की संभावना को खुला रखा है। इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान ने सामरिक (टैक्टिकल) परमाणु हथियार जैसे 'नस्र' मिसाइल विकसित किए हैं, जिनका उद्देश्य सीमित युद्ध की स्थिति में भी परमाणु हथियार का उपयोग करना है। पाकिस्तान की नीति को 'फुल स्पेक्ट्रम डिटरेंस' कहा जाता है, जिसमें सामरिक और रणनीतिक दोनों तरह के परमाणु हथियारों का विकल्प मौजूद रहता है। कुल मिलाकर, भारत की नीति आत्मरक्षा पर केंद्रित है, जबकि पाकिस्तान की नीति अधिक आक्रामक और युद्ध की स्थितियों में पहले परमाणु हथियार के इस्तेमाल को लेकर खुली रहती है।
युद्ध अनुभव और प्रशिक्षण
भारत और पाकिस्तान दोनों ने 1947, 1965, 1971, और 1999 के युद्धों में सक्रिय भाग लिया, लेकिन इन युद्धों में उनकी सेनाओं के प्रदर्शन और परिणाम में महत्वपूर्ण अंतर थे। भारतीय सेना ने 1947-48 में जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित कबायलियों और पाकिस्तानी सेना के खिलाफ सफलतापूर्वक युद्ध लड़ा, जिसमें श्रीनगर, कारगिल और पूंछ जैसे क्षेत्रों में निर्णायक लड़ाइयाँ लड़ी गईं। 1965 में पाकिस्तान की घुसपैठ के जवाब में भारतीय सेना ने सफल जवाबी कार्रवाई की और कई रणनीतिक क्षेत्रों पर कब्जा किया। 1971 में भारतीय सेना ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में निर्णायक भूमिका निभाई, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान का विभाजन हुआ। 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने कठिन पर्वतीय परिस्थितियों में पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ा और कारगिल सेक्टर को मुक्त किया, जिससे भारतीय सेना की बहादुरी और तकनीकी श्रेष्ठता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया।
वहीं, पाकिस्तान की सेना ने इन युद्धों में कई बार रणनीतिक विफलताओं का सामना किया। 1947-48 में कश्मीर का अधिकांश हिस्सा भारत के पास रहा, 1965 में भारतीय सेना ने पाकिस्तान की योजनाओं को विफल कर दिया, 1971 में पाकिस्तान का विभाजन हुआ, और 1999 में कारगिल से पीछे हटना पड़ा। हाल ही में पाकिस्तान ने आधिकारिक रूप से 1999 के कारगिल युद्ध में अपनी सेना की भूमिका को स्वीकार किया। इसके अलावा, पाकिस्तान की सेना को आंतरिक विद्रोह और आतंकवाद के खिलाफ भी तैनात किया गया है, खासकर बलूचिस्तान, खैबर-पख्तूनख्वा और स्वात में सैन्य अभियानों के दौरान। भारतीय सेना अपने सैनिकों को विशेष प्रशिक्षण देती है, जैसे ऊँचाई, रेगिस्तान, जंगल, और शहरी युद्ध के लिए, जबकि पाकिस्तान की सेना का फोकस मुख्यतः सीमा पर स्थित सुरक्षा संकट और आंतरिक विद्रोहों से निपटने पर है।
अंतरराष्ट्रीय छवि और शांति अभियानों में भागीदारी
भारत और पाकिस्तान दोनों ही संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सक्रिय भागीदार रहे हैं, लेकिन दोनों देशों की अंतरराष्ट्रीय छवि और योगदान की प्रकृति में महत्वपूर्ण अंतर है। भारत संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सबसे बड़े और सबसे पुराने योगदानकर्ताओं में से एक है। 1950 के दशक से अब तक भारत ने 50 से अधिक मिशनों में 2,90,000 से अधिक शांति सैनिक भेजे हैं, और वर्तमान में भी लगभग 5,000 भारतीय सैनिक 9 सक्रिय मिशनों में तैनात हैं। भारतीय सेना का अनुशासन, व्यावसायिकता और मानवीय दृष्टिकोण विश्व समुदाय में अत्यधिक सराहा गया है, जिससे उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि सकारात्मक बनी हुई है।
वहीं, पाकिस्तान भी संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सक्रिय रहा है और उसके सैनिकों ने अफ्रीका व अन्य क्षेत्रों में विभिन्न मिशनों में भाग लिया है। पाकिस्तान का योगदान संख्यात्मक रूप से उल्लेखनीय है, लेकिन उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि पर अक्सर आतंकवाद से संबंधित मुद्दों के कारण प्रश्न उठते हैं। आतंकवादी संगठनों से कथित संबंधों और सीमा पार आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बार-बार सफाई देनी पड़ी है, जिससे उसकी विश्वसनीयता और छवि प्रभावित हुई है। इस प्रकार, जबकि दोनों देश शांति अभियानों में सहभागी हैं, भारत की भूमिका और छवि अधिक स्थिर और सकारात्मक मानी जाती है।
नागरिक नियंत्रण और राजनीति में भूमिका
भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के लोकतांत्रिक नियंत्रण और राजनीतिक भूमिका में गहरा अंतर है। भारत में सेना पूरी तरह से संविधान और लोकतांत्रिक ढांचे के अधीन कार्य करती है। राष्ट्रपति भारतीय सेना के सर्वोच्च कमांडर होते हैं, और सेना चुनी हुई सरकार के निर्देशों के अनुसार काम करती है। भारतीय सेना के शीर्ष अधिकारी लगातार यह स्पष्ट करते रहे हैं कि सेना को राजनीति से दूर रहना चाहिए, और वह राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारतीय सेना की इस पेशेवर और लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता की सराहना की जाती है। हालांकि हाल के वर्षों में कुछ विश्लेषकों ने सेना के राजनीतिकरण को लेकर चिंताएं व्यक्त की हैं, फिर भी सेना की बुनियादी भूमिका नीति-निर्माण या सत्ता परिवर्तन में नहीं होती, बल्कि वह लोकतांत्रिक सरकार के आदेशों का पालन करती है।
इसके विपरीत, पाकिस्तान में सेना का राजनीतिक प्रभाव ऐतिहासिक रूप से अत्यधिक और निर्णायक रहा है। पाकिस्तान की सेना ने कई बार सीधे सत्ता पर कब्जा किया है—1958, 1977 और 1999 में सैन्य तख्तापलट हुए, जिनमें से 1999 का तख्तापलट सबसे प्रमुख था, जब जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार को हटाकर खुद को 'चीफ एक्जीक्यूटिव' घोषित किया और संविधान को निलंबित कर दिया। पाकिस्तान में सेना का राजनीतिक व्यवस्था, विदेश नीति और आंतरिक सुरक्षा मामलों में स्थायी दखल रहा है। सेना अक्सर राजनीतिक दलों को समर्थन या विरोध देकर सत्ता संतुलन को प्रभावित करती है, और सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार सैन्य हस्तक्षेप को 'राज्य की आवश्यकता' के तहत वैध ठहराया है। इस प्रकार, जहाँ भारत की सेना लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्ध है, वहीं पाकिस्तान की सेना राजनीति में प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूपों में सक्रिय भूमिका निभाती रही है।
Start Quiz
This Quiz helps us to increase our knowledge