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अब बस बहुत हुआ! इजरायल की हालत हुई ख़राब, सबसे बड़े दोस्त ने की गद्दारी ईरान का थामा हाथ, खुलेआम दी धमकी

France supports Iran: 12 दिन तक चले विनाशकारी युद्ध के बाद जब ईरान और इज़राइल के बीच संघर्ष थमा, तो दुनिया ने राहत की सांस ली — लेकिन फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की एक फोन कॉल ने एक बार फिर राजनीतिक हलकों में भूचाल ला दिया।

Harsh Srivastava
Published on: 30 Jun 2025 9:23 PM IST
अब बस बहुत हुआ! इजरायल की हालत हुई ख़राब, सबसे बड़े दोस्त ने की गद्दारी ईरान का थामा हाथ, खुलेआम दी धमकी
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France supports Iran: जिस फ्रांस को दुनिया इज़राइल का दोस्त और बेंजामिन नेतन्याहू का ‘पक्का साझेदार’ मानती थी, वही फ्रांस अब खुद को पूरी तरह ईरान के पाले में खड़ा कर चुका है। और यह कोई कूटनीतिक गलती नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति है। 12 दिन तक चले विनाशकारी युद्ध के बाद जब ईरान और इज़राइल के बीच संघर्ष थमा, तो दुनिया ने राहत की सांस ली — लेकिन फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की एक फोन कॉल ने एक बार फिर राजनीतिक हलकों में भूचाल ला दिया। मैक्रों ने ना सिर्फ ईरान के राष्ट्रपति पेजेश्कियान से लंबी बातचीत की, बल्कि उस बातचीत में इज़राइल के खिलाफ जमकर बयानबाज़ी भी की। उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि नेतन्याहू की सरकार को ईरान के परमाणु कार्यक्रम में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है। यही नहीं, मैक्रों ने ईरान के मारे गए सैन्य अधिकारियों के लिए शोक संवेदनाएं भी व्यक्त कीं, जिससे यह संकेत साफ हो गया कि फ्रांस अब खुले तौर पर 'ध्रुवीकरण' के खेल में शामिल हो चुका है।

मैक्रों ने इज़राइल को बताया 'सीमा लांघने वाला'

फोन कॉल के दौरान इमैनुएल मैक्रों ने एक के बाद एक कई चौंकाने वाले बयान दिए। उन्होंने कहा कि फ्रांस उन गिने-चुने देशों में शामिल था, जिन्होंने इज़राइल के हवाई हमलों की निंदा सबसे पहले की थी। उन्होंने यह भी जोड़ा कि ईरानी वैज्ञानिकों की मौत और सैन्य प्रतिष्ठानों पर हुए हमले एक 'अकारण आक्रामकता' का हिस्सा थे। सबसे बड़ी बात, मैक्रों ने नेतन्याहू का नाम लेकर कहा कि इज़राइल के पास अब कोई नैतिक या कानूनी आधार नहीं है कि वह ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम में हस्तक्षेप करे। यह बयान न केवल नेतन्याहू सरकार के लिए सीधा झटका है, बल्कि फ्रांस की विदेश नीति में एक खतरनाक मोड़ भी है।

ईरान ने IAEA को ठहराया ज़िम्मेदार, मैक्रों ने दिखाई सहानुभूति

इस बातचीत का दूसरा सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब ईरानी राष्ट्रपति पेजेश्कियान ने मैक्रों के सामने इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) पर बड़ा आरोप जड़ा। उन्होंने कहा कि IAEA के डायरेक्टर राफेल ग्रॉसी ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर गलत जानकारी फैलाई, जिससे इज़राइल को हमला करने का बहाना मिला। यही वजह है कि ईरान ने IAEA के साथ सहयोग खत्म करने का फैसला लिया। मैक्रों ने इस पर कोई विरोध नहीं जताया, बल्कि कहा कि वह ईरान की चिंताओं को "समझते हैं" और तेहरान के साथ सहयोग जारी रहेगा। यह बयान अंतरराष्ट्रीय परमाणु संतुलन पर ही सवाल खड़े कर देता है। क्या फ्रांस अब IAEA के बजाय ईरान की 'अपनी जांच प्रणाली' को मान्यता देगा?

“इज़राइल के पास NPT नहीं, फिर भी छूट क्यों?” – ईरान का सीधा सवाल

ईरान के राष्ट्रपति ने सीधी चुनौती देते हुए कहा कि दुनिया इज़राइल के परमाणु हथियारों पर चुप क्यों है? उन्होंने पूछा कि जब ईरान की सभी गतिविधियां IAEA की निगरानी में होती हैं, तो फिर भी वह हमलों का शिकार क्यों है? जबकि इज़राइल खुद NPT (परमाणु अप्रसार संधि) का सदस्य नहीं है, और लगातार अंतरराष्ट्रीय कानूनों की अनदेखी करता आ रहा है। यह सवाल अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गूंजने लगा है — क्या IAEA और दुनिया के बाकी देश दोहरे मापदंड अपना रहे हैं? क्या वाकई अमेरिका और यूरोपीय देश एक आंख से अंधे हैं जब बात इज़राइल की होती है?

“क्या गारंटी है कि अगला हमला नहीं होगा?” – पेजेश्कियान की चेतावनी

ईरानी राष्ट्रपति ने एक और धमाकेदार सवाल मैक्रों से पूछा — “इस बात की क्या गारंटी है कि अब इज़राइल दोबारा हमारे परमाणु ठिकानों पर हमला नहीं करेगा?” उन्होंने कहा कि जब तक IAEA जैसी संस्थाएं पूरी तरह से निष्पक्ष नहीं होतीं, तब तक ईरान की जनता इन संस्थाओं पर भरोसा नहीं करेगी। उनका यह बयान न केवल IAEA को कटघरे में खड़ा करता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि ईरान किसी भी समय 'एक और जवाबी हमला' कर सकता है।

सीजफायर के बाद भी शांत नहीं होगा वेस्ट एशिया?

ईरान और इज़राइल के बीच 12 दिन तक चले युद्ध में सैकड़ों लोगों की मौत और हजारों की जिंदगी उजड़ने के बाद भी अगर कोई सोचता है कि यह अध्याय खत्म हो गया — तो वो गलत है। मैक्रों जैसे नेता जब ऐसे बयान देते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वेस्ट एशिया अब केवल युद्ध का मैदान नहीं, बल्कि कूटनीति, सत्ता और प्रोपेगेंडा की भट्टी में जल रहा है।

क्या फ्रांस ने खुद को 'ग्लोबल साउथ' का नया मसीहा घोषित कर दिया?

इस पूरी बातचीत से एक बात और साफ होती है — फ्रांस अब खुद को अमेरिका और ब्रिटेन जैसे पश्चिमी गुट से अलग दिखाना चाहता है। वह खुद को एक ऐसे 'ग्लोबल साउथ' के समर्थक के रूप में पेश कर रहा है, जो अमेरिका की 'हुकूमत' से अलग अपनी संप्रभु विदेश नीति बनाए रखना चाहता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या मैक्रों का यह जोखिम उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग कर देगा? या फिर यह पश्चिमी देशों में एक नई विभाजन रेखा की शुरुआत है?

एक फोन कॉल ने बदल दिया भूगोल का संतुलन?

इस पूरी कूटनीतिक हलचल में एक बात तय है — नेतन्याहू के करीबी माने जाने वाले मैक्रों अब उनके सबसे बड़े आलोचक बन गए हैं। यह न केवल इज़राइल के लिए बड़ा झटका है, बल्कि अमेरिका की पश्चिम एशिया रणनीति पर भी एक करारा तमाचा है। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या यह 'सीजफायर' केवल दिखावा था — और असली जंग अब भाषणों और नीतियों की शक्ल में लड़ी जाएगी?

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Harsh Srivastava

News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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