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दुनिया की सबसे खामोश लेकिन सबसे घातक जंग: जानिए क्या है 'प्रॉक्सी वॉर' जो भारत से लेकर अमेरिका तक सबको चुपचाप जला रही है
Proxy War: क्या आप जानते हैं कि प्रॉक्सी वॉर किसे कहते हैं और ये कैसे बम और बंदूकों की लड़ाई से भी खतरनाक होती है। आइये विस्तार से समझते हैं।
Proxy War (Image Credit-Social Media)
Proxy War : कभी-कभी जंग की सबसे तेज़ चीखें गोली नहीं, बल्कि चुप्पी में छुपी होती हैं। जब बंदूकें नहीं चलतीं, लेकिन सरहदें कांपती हैं। जब युद्ध की घोषणा नहीं होती, फिर भी लाशें गिरती हैं। यह वह युद्ध है जो अखबारों के पहले पन्ने पर नहीं, बल्कि कूटनीति के तहखानों में लड़ा जाता है। इसे कहते हैं प्रॉक्सी वॉर। हाल के वर्षों में यह शब्द अचानक दुनिया भर की सुर्खियों में है चाहे बात रूस-यूक्रेन संघर्ष की हो, अमेरिका-ईरान के बीच बढ़ते तनाव की, या भारत-पाकिस्तान के परोक्ष झगड़ों की। हर बार जब दो देशों के बीच कोई तीसरा पक्ष मोहरा बनता है, जब लड़ाई की जगह कोई और देश, संगठन या आतंकवादी समूह चुनता है तब एक ‘प्रॉक्सी’ लड़ाई लड़ी जाती है। लेकिन आखिर ये प्रॉक्सी वॉर है क्या? इसे लड़ने के तरीके क्या हैं? और इससे किसे क्या फायदा होता है और कौन सबसे बड़ा नुकसान उठाता है?
छाया युद्ध या छुपा सच: क्या है प्रॉक्सी वॉर
प्रॉक्सी वॉर यानी ‘प्रतिनिधि युद्ध’ एक ऐसी स्थिति है जिसमें दो प्रतिद्वंद्वी देश या ताकतें प्रत्यक्ष रूप से आमने-सामने नहीं लड़ते, बल्कि किसी तीसरे पक्ष के ज़रिए एक-दूसरे से लड़ते हैं। ये तीसरा पक्ष कोई देश, संगठन, विद्रोही गुट, आतंकवादी संगठन या कभी-कभी राजनीतिक समूह भी हो सकता है। उदाहरण के लिए, शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ ने कई बार एक-दूसरे से प्रत्यक्ष युद्ध नहीं किया।लेकिन वियतनाम, कोरिया, अफगानिस्तान, सीरिया, और लैटिन अमेरिकी देशों में विभिन्न गुटों को समर्थन देकर अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे के खिलाफ जंग लड़ी। यही प्रॉक्सी वॉर की असली पहचान है खुद पीछे रहकर किसी और के ज़रिए दुश्मन को मात देना।
क्यों छाया में लड़ी जाती है यह जंग
प्रॉक्सी वॉर का मकसद साफ़ होता है सीधा युद्ध टालना। लेकिन उद्देश्य पूरा करना। आज की दुनिया में जहां परमाणु हथियारों का डर है, वैश्विक प्रतिबंधों की संभावना है, और कूटनीतिक संबंधों की परवाह करनी पड़ती है, वहाँ सीधा युद्ध हर बार मुमकिन नहीं होता। ऐसे में प्रॉक्सी वॉर एक ऐसा विकल्प बनकर उभरता है जिसमें युद्ध की आग तो लगती है, पर कोई देश ‘जिम्मेदार’ नहीं बनता। इसे ‘डिनायबिलिटी’ यानी इनकार की ताकत कहते हैं। बड़े देश आतंकवादी गुटों को फंडिंग देते हैं, विद्रोही आंदोलनों को हथियार पहुंचाते हैं, और एक निर्दोष चेहरे के पीछे से शातिर चालें चलते हैं।
आज की दुनिया में प्रॉक्सी वॉर की बढ़ती ताकत
हाल ही में यूक्रेन संकट में रूस और पश्चिमी देशों के बीच जो तनातनी देखी गई, वह भी एक प्रकार की प्रॉक्सी रणनीति का हिस्सा मानी जा सकती है। अमेरिका और NATO देश यूक्रेन को हथियार, धन और खुफिया जानकारी दे रहे हैं, जबकि रूस इसे ‘प्रत्यक्ष हस्तक्षेप’ मानता है। सीधे युद्ध की जगह दुनिया भर की ताकतें एक ज़मीन पर अपनी ताकत आजमा रही हैं। सीरिया में भी वर्षों से प्रॉक्सी वॉर चल रहा है रूस, ईरान और असद सरकार बनाम अमेरिका, कुर्द मिलिशिया और विद्रोही गुट। भारत की बात करें, तो पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में आतंकवाद को समर्थन देना, प्रशिक्षण देना और हथियार मुहैया कराना एक क्लासिक प्रॉक्सी वॉर का उदाहरण है। पाकिस्तान खुद सामने नहीं आता, लेकिन उसके ‘प्रॉक्सी’ संगठन भारत की आंतरिक सुरक्षा को चुनौती देते हैं।
प्रॉक्सी वॉर: फायदे भी हैं, पर कीमत कौन चुकाता है
एक देश के लिए प्रॉक्सी वॉर के कुछ रणनीतिक फायदे होते हैं। पहला प्रत्यक्ष युद्ध से बचा जा सकता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय आलोचना और प्रतिबंधों से राहत मिलती है। दूसरा संसाधनों की कम खपत होती है और अपनी सेना को सीधे खतरे में नहीं डालना पड़ता। तीसरा ‘डिनायबिलिटी’ यानी किसी भी कार्यवाही से इनकार करने का विकल्प मिलता है। लेकिन इन फायदे की कीमत बेहद भारी होती है आम जनता की, निर्दोष लोगों की, उन देशों की जो युद्धभूमि बन जाते हैं। प्रॉक्सी वॉर में शामिल गुट अक्सर कानून, मानवाधिकार और नैतिकता को ताक पर रख देते हैं। आतंकवाद, गृह युद्ध, भुखमरी, पलायन और अस्थिरता यह सब इसकी उपज है। अफगानिस्तान, सीरिया, यमन, इराक जैसे देश दशकों से प्रॉक्सी वॉर के मैदान बने हुए हैं और उनकी पीढ़ियाँ आज भी इसकी कीमत चुका रही हैं।
प्रॉक्सी वॉर कैसे होता है
प्रॉक्सी वॉर केवल बंदूक और बम से नहीं लड़ा जाता।यह युद्ध सूचना, धन, प्रोपेगैंडा, साइबर अटैक, और राजनीतिक हस्तक्षेप के रूप में भी होता है। कई बार एक देश दूसरे देश के चुनाव में हस्तक्षेप करता है, वहां की मीडिया को प्रभावित करता है, या समाज में ध्रुवीकरण फैलाता है। इसे ‘हाइब्रिड प्रॉक्सी वॉर’ कहा जाता है। 21वीं सदी में यह नया ट्रेंड बनता जा रहा है, जहां दुश्मन का चेहरा नजर नहीं आता लेकिन असर हर जगह दिखता है।
भारत की चुनौती: कैसे निपटे इस अदृश्य जंग से
भारत पिछले कई दशकों से पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद का सामना कर रहा है, जो एक कट्टर और खतरनाक प्रॉक्सी वॉर का उदाहरण है। भारत ने कूटनीतिक स्तर पर इसे उजागर करने की कोशिश की है, सैन्य जवाबी कार्रवाई की है (सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक), लेकिन यह जंग पूरी तरह खत्म नहीं हुई। इसके लिए भारत को इंटेलिजेंस, साइबर सुरक्षा, राजनयिक रणनीति, और स्थानीय सामाजिक एकता को मज़बूत करना होगा। जब तक भारत के अंदर कोई दरार नहीं होगी, तब तक बाहर की ताकतें उस दरार को चीर नहीं पाएंगी।
सबसे खतरनाक युद्ध वो होता है जिसे दुनिया देख नहीं पाती
प्रॉक्सी वॉर वह युद्ध है जो कागज पर नहीं होता, लेकिन उसकी आंच असली होती है। यह आज की सबसे जटिल, चालाक और खतरनाक रणनीति है जिसमें शांति के मुखौटे के पीछे आग सुलगती रहती है। दुनिया को अब यह समझना होगा कि शांति केवल युद्ध ना होने से नहीं आती बल्कि उन हालातों से आती है जहां कोई भी ताकत दूसरे देश की ज़मीन, समाज या राजनीति को अपने हथियार के तौर पर इस्तेमाल न कर सके। प्रॉक्सी वॉर की असली हार तब होगी जब हर देश अपनी समस्याओं का हल खुद ढूंढेगा और किसी बाहरी ताकत को अपना ‘प्रॉक्सी’ बनने की इजाजत नहीं देगा।
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